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200 | इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें ९५६ बनी हुई हैं और २७२ निर्माणाधीन हैं। (२००९ के अनुसार) १९९५ में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम.एच.सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगांव चौपाटी, जुहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है। मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम-धाम के संग मनाये जाते हैं। गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है। | महाराष्ट्र दिवस किस दिन मनाया जाता है ? | {
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} | On which day Maharashtra Day is celebrated? | European effects are clearly visible in their architectural components, such as German gable, Dutch -style roofs, wooden arts in Swiss style, Roman arches as well as traditional Indian components.There are also some Indo Cerectic style buildings, such as the Gateway of India.The construction of the art deco style appears to the Marine Drive and Oval grounds.Mumbai after Mayami, the most art deco -style buildings in the world are found in the world.Modern buildings are more visible in new suburban areas.Mumbai so far has the most skyscrapers in India.Of these, 958 remain and 242 are under construction.(As of 2009) established in 1959, Mumbai Heritage Conservation Committee (MHCC) takes care of the preservation of heritage sites located in the city.There are two UNESCO World Heritage Sites in Mumbai - Chhatrapati Shivaji Terminus and Elephanta caves include Nariman Point, Girgaon Chowpatty, Juhu Beach and Marine Drives in famous tourist destinations in the city.Essel World is the theme park here, located near Gorai Beach.It is also the largest theme of Asia, Water Park, Water Kingdom.Residents of Mumbai celebrate the Indian festivals as well as other festivals.Diwali, Holi, Eid, Christmas, Navratri, Dussehra, Durga Puja, Mahashivratri, Muharram etc. are the main festivals.Apart from these, Ganesh Chaturthi and Janmashtami are celebrated with some more pomp.In Ganesh-Utsav, very huge and grand pandals are installed in the city, in which huge idols of Lord Ganpati are installed.These idols are immersed in the ocean on the day of Anant Chaudas ten days later.On the day of Janmashtami, a very high Makhan matka is tied by the committees in all the neighborhoods.The children and boys of the neighborhood break it and break it.Black horse art is an exhibition of arts, which performs functions from the fields of various arts such as music, dance, theater and movies etc.A week long Bandra festival is celebrated by local people.The Banaganga festival is a two-day annual music festival, which is held in the month of January.This festival is a Jata organized by Maharashtra Tourism Development Corporation (MTDC) near Atihashik Banganga Sarovar. | {
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201 | इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें ९५६ बनी हुई हैं और २७२ निर्माणाधीन हैं। (२००९ के अनुसार) १९९५ में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम.एच.सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगांव चौपाटी, जुहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है। मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम-धाम के संग मनाये जाते हैं। गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है। | गेटवे ऑफ इंडिया का निर्माण किस शैली की इमारतों की तरह किया गया है ? | {
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"इंडो सेरेनिक शैली"
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} | The Gateway of India is constructed like which style of buildings? | European effects are clearly visible in their architectural components, such as German gable, Dutch -style roofs, wooden arts in Swiss style, Roman arches as well as traditional Indian components.There are also some Indo Cerectic style buildings, such as the Gateway of India.The construction of the art deco style appears to the Marine Drive and Oval grounds.Mumbai after Mayami, the most art deco -style buildings in the world are found in the world.Modern buildings are more visible in new suburban areas.Mumbai so far has the most skyscrapers in India.Of these, 958 remain and 242 are under construction.(As of 2009) established in 1959, Mumbai Heritage Conservation Committee (MHCC) takes care of the preservation of heritage sites located in the city.There are two UNESCO World Heritage Sites in Mumbai - Chhatrapati Shivaji Terminus and Elephanta caves include Nariman Point, Girgaon Chowpatty, Juhu Beach and Marine Drives in famous tourist destinations in the city.Essel World is the theme park here, located near Gorai Beach.It is also the largest theme of Asia, Water Park, Water Kingdom.Residents of Mumbai celebrate the Indian festivals as well as other festivals.Diwali, Holi, Eid, Christmas, Navratri, Dussehra, Durga Puja, Mahashivratri, Muharram etc. are the main festivals.Apart from these, Ganesh Chaturthi and Janmashtami are celebrated with some more pomp.In Ganesh-Utsav, very huge and grand pandals are installed in the city, in which huge idols of Lord Ganpati are installed.These idols are immersed in the ocean on the day of Anant Chaudas ten days later.On the day of Janmashtami, a very high Makhan matka is tied by the committees in all the neighborhoods.The children and boys of the neighborhood break it and break it.Black horse art is an exhibition of arts, which performs functions from the fields of various arts such as music, dance, theater and movies etc.A week long Bandra festival is celebrated by local people.The Banaganga festival is a two-day annual music festival, which is held in the month of January.This festival is a Jata organized by Maharashtra Tourism Development Corporation (MTDC) near Atihashik Banganga Sarovar. | {
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"Indo-Serenic style"
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202 | इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें ९५६ बनी हुई हैं और २७२ निर्माणाधीन हैं। (२००९ के अनुसार) १९९५ में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम.एच.सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगांव चौपाटी, जुहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है। मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम-धाम के संग मनाये जाते हैं। गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है। | भारत के किस शहर में सबसे अधिक आधुनिक इमारतें हैं ? | {
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"मुंबई"
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307
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} | Which city in India has the highest number of modern buildings? | European effects are clearly visible in their architectural components, such as German gable, Dutch -style roofs, wooden arts in Swiss style, Roman arches as well as traditional Indian components.There are also some Indo Cerectic style buildings, such as the Gateway of India.The construction of the art deco style appears to the Marine Drive and Oval grounds.Mumbai after Mayami, the most art deco -style buildings in the world are found in the world.Modern buildings are more visible in new suburban areas.Mumbai so far has the most skyscrapers in India.Of these, 958 remain and 242 are under construction.(As of 2009) established in 1959, Mumbai Heritage Conservation Committee (MHCC) takes care of the preservation of heritage sites located in the city.There are two UNESCO World Heritage Sites in Mumbai - Chhatrapati Shivaji Terminus and Elephanta caves include Nariman Point, Girgaon Chowpatty, Juhu Beach and Marine Drives in famous tourist destinations in the city.Essel World is the theme park here, located near Gorai Beach.It is also the largest theme of Asia, Water Park, Water Kingdom.Residents of Mumbai celebrate the Indian festivals as well as other festivals.Diwali, Holi, Eid, Christmas, Navratri, Dussehra, Durga Puja, Mahashivratri, Muharram etc. are the main festivals.Apart from these, Ganesh Chaturthi and Janmashtami are celebrated with some more pomp.In Ganesh-Utsav, very huge and grand pandals are installed in the city, in which huge idols of Lord Ganpati are installed.These idols are immersed in the ocean on the day of Anant Chaudas ten days later.On the day of Janmashtami, a very high Makhan matka is tied by the committees in all the neighborhoods.The children and boys of the neighborhood break it and break it.Black horse art is an exhibition of arts, which performs functions from the fields of various arts such as music, dance, theater and movies etc.A week long Bandra festival is celebrated by local people.The Banaganga festival is a two-day annual music festival, which is held in the month of January.This festival is a Jata organized by Maharashtra Tourism Development Corporation (MTDC) near Atihashik Banganga Sarovar. | {
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307
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"Mumbai"
]
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203 | इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें ९५६ बनी हुई हैं और २७२ निर्माणाधीन हैं। (२००९ के अनुसार) १९९५ में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम.एच.सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगांव चौपाटी, जुहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है। मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम-धाम के संग मनाये जाते हैं। गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है। | मुंबई में कितनी यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं ? | {
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"दो"
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685
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} | How many UNESCO World Heritage Sites are there in Mumbai? | European effects are clearly visible in their architectural components, such as German gable, Dutch -style roofs, wooden arts in Swiss style, Roman arches as well as traditional Indian components.There are also some Indo Cerectic style buildings, such as the Gateway of India.The construction of the art deco style appears to the Marine Drive and Oval grounds.Mumbai after Mayami, the most art deco -style buildings in the world are found in the world.Modern buildings are more visible in new suburban areas.Mumbai so far has the most skyscrapers in India.Of these, 958 remain and 242 are under construction.(As of 2009) established in 1959, Mumbai Heritage Conservation Committee (MHCC) takes care of the preservation of heritage sites located in the city.There are two UNESCO World Heritage Sites in Mumbai - Chhatrapati Shivaji Terminus and Elephanta caves include Nariman Point, Girgaon Chowpatty, Juhu Beach and Marine Drives in famous tourist destinations in the city.Essel World is the theme park here, located near Gorai Beach.It is also the largest theme of Asia, Water Park, Water Kingdom.Residents of Mumbai celebrate the Indian festivals as well as other festivals.Diwali, Holi, Eid, Christmas, Navratri, Dussehra, Durga Puja, Mahashivratri, Muharram etc. are the main festivals.Apart from these, Ganesh Chaturthi and Janmashtami are celebrated with some more pomp.In Ganesh-Utsav, very huge and grand pandals are installed in the city, in which huge idols of Lord Ganpati are installed.These idols are immersed in the ocean on the day of Anant Chaudas ten days later.On the day of Janmashtami, a very high Makhan matka is tied by the committees in all the neighborhoods.The children and boys of the neighborhood break it and break it.Black horse art is an exhibition of arts, which performs functions from the fields of various arts such as music, dance, theater and movies etc.A week long Bandra festival is celebrated by local people.The Banaganga festival is a two-day annual music festival, which is held in the month of January.This festival is a Jata organized by Maharashtra Tourism Development Corporation (MTDC) near Atihashik Banganga Sarovar. | {
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685
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"text": [
"Two"
]
} |
204 | इनमें से कई के मुख्यालय भी राज्य में ही स्थित हैं, जिनमें दो सबसे बड़ी आई.टी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं। इन संस्थाओं से निर्यात रु. ५०,००० करोड़ (१२.५ बिलियन) से भी अधिक पहुंचा है, जो भारत के कुल सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात का ३८% है। देवनहल्ली के बाहरी ओर का नंदी हिल क्षेत्र में ५० वर्ग कि.मी भाग, आने वाले २२ बिलियन के ब्याल आईटी निवेश क्षेत्र की स्थली है। ये कर्नाटक की मूल संरचना इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। इन सब कारणों के चलते ही बंगलौर को भारत की सिलिकॉन घाटी कहा जाने लगा है। भारत में कर्नाटक जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यह भारत के सबसे बड़े जैव आधारित उद्योग समूह का केन्द्र भी है। यहां देश की ३२० जैवप्रौद्योगिकी संस्थाओं व कंपनियों में से १५८ स्थित हैं। इसी राज्य से भारत के कुल पुष्प-उद्योग का ७५% योगदान है। पुष्प उद्योग तेजी से उभरता और फैलता उद्योग है, जिसमें विश्व भर में सजावटी पौधे और फूलों की आपूर्ति की जाती है। भारत के अग्रणी बैंकों में से सात बैंकों, केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक, कार्पोरेशन बैंक, विजया बैंक, कर्नाटक बैंक, वैश्य बैंक और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर का उद्गम इसी राज्य से हुआ था। राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में प्रति ५०० व्यक्ति एक बैंक शाखा है। ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बैंक वितरण है। | कर्नाटक राज्य के बैंकों में औसतन कितने लोग काम करते है ? | {
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} | On an average, how many people work in banks in the state of Karnataka? | Many of these headquarters are also located in the state, including two largest IT companies Infosys and Wipro.Export from these institutions Rs.More than 50,000 crores (12.5 billion) has reached more than 37% of India's total information technology exports.The outer side of Devanhalli is a place of 50 square km in the Nandi Hill area, the 22 billion of the upcoming 22 billion IT investment sector.This is the largest project in history of Karnataka so far.Due to all these reasons, Bangalore is being called the Silicon Valley of India.Karnataka is also a leader in the field of biotechnology in India.It is also the center of India's largest bio -based industry group.There are 158 out of 320 biotechnology institutions and companies of the country.India's total flower industry contributes 75% from this state.The floral industry is a rapid emergence and spreading industry, which is supplied ornamental plants and flowers worldwide.Seven of India's leading banks, Canara Bank, Syndicate Bank, Corporation Bank, Vijaya Bank, Karnataka Bank, Vaishya Bank and State Bank of Mysore originated from this state.The coastal districts of the state Udupi and South Kannada have a bank branch per 500 people.This is India's best bank distribution. | {
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],
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205 | इनमें से कई के मुख्यालय भी राज्य में ही स्थित हैं, जिनमें दो सबसे बड़ी आई.टी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं। इन संस्थाओं से निर्यात रु. ५०,००० करोड़ (१२.५ बिलियन) से भी अधिक पहुंचा है, जो भारत के कुल सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात का ३८% है। देवनहल्ली के बाहरी ओर का नंदी हिल क्षेत्र में ५० वर्ग कि.मी भाग, आने वाले २२ बिलियन के ब्याल आईटी निवेश क्षेत्र की स्थली है। ये कर्नाटक की मूल संरचना इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। इन सब कारणों के चलते ही बंगलौर को भारत की सिलिकॉन घाटी कहा जाने लगा है। भारत में कर्नाटक जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यह भारत के सबसे बड़े जैव आधारित उद्योग समूह का केन्द्र भी है। यहां देश की ३२० जैवप्रौद्योगिकी संस्थाओं व कंपनियों में से १५८ स्थित हैं। इसी राज्य से भारत के कुल पुष्प-उद्योग का ७५% योगदान है। पुष्प उद्योग तेजी से उभरता और फैलता उद्योग है, जिसमें विश्व भर में सजावटी पौधे और फूलों की आपूर्ति की जाती है। भारत के अग्रणी बैंकों में से सात बैंकों, केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक, कार्पोरेशन बैंक, विजया बैंक, कर्नाटक बैंक, वैश्य बैंक और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर का उद्गम इसी राज्य से हुआ था। राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में प्रति ५०० व्यक्ति एक बैंक शाखा है। ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बैंक वितरण है। | भारत के कुल आईटी निर्यात में इनफ़ोसिस और विप्रो कितना प्रतिशत का योगदान दे रही है ? | {
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"३८%"
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230
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} | What percentage of India's total IT exports are contributed by Infosys and Wipro? | Many of these headquarters are also located in the state, including two largest IT companies Infosys and Wipro.Export from these institutions Rs.More than 50,000 crores (12.5 billion) has reached more than 37% of India's total information technology exports.The outer side of Devanhalli is a place of 50 square km in the Nandi Hill area, the 22 billion of the upcoming 22 billion IT investment sector.This is the largest project in history of Karnataka so far.Due to all these reasons, Bangalore is being called the Silicon Valley of India.Karnataka is also a leader in the field of biotechnology in India.It is also the center of India's largest bio -based industry group.There are 158 out of 320 biotechnology institutions and companies of the country.India's total flower industry contributes 75% from this state.The floral industry is a rapid emergence and spreading industry, which is supplied ornamental plants and flowers worldwide.Seven of India's leading banks, Canara Bank, Syndicate Bank, Corporation Bank, Vijaya Bank, Karnataka Bank, Vaishya Bank and State Bank of Mysore originated from this state.The coastal districts of the state Udupi and South Kannada have a bank branch per 500 people.This is India's best bank distribution. | {
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230
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"38 per cent"
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206 | इनमें से कई के मुख्यालय भी राज्य में ही स्थित हैं, जिनमें दो सबसे बड़ी आई.टी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं। इन संस्थाओं से निर्यात रु. ५०,००० करोड़ (१२.५ बिलियन) से भी अधिक पहुंचा है, जो भारत के कुल सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात का ३८% है। देवनहल्ली के बाहरी ओर का नंदी हिल क्षेत्र में ५० वर्ग कि.मी भाग, आने वाले २२ बिलियन के ब्याल आईटी निवेश क्षेत्र की स्थली है। ये कर्नाटक की मूल संरचना इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। इन सब कारणों के चलते ही बंगलौर को भारत की सिलिकॉन घाटी कहा जाने लगा है। भारत में कर्नाटक जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यह भारत के सबसे बड़े जैव आधारित उद्योग समूह का केन्द्र भी है। यहां देश की ३२० जैवप्रौद्योगिकी संस्थाओं व कंपनियों में से १५८ स्थित हैं। इसी राज्य से भारत के कुल पुष्प-उद्योग का ७५% योगदान है। पुष्प उद्योग तेजी से उभरता और फैलता उद्योग है, जिसमें विश्व भर में सजावटी पौधे और फूलों की आपूर्ति की जाती है। भारत के अग्रणी बैंकों में से सात बैंकों, केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक, कार्पोरेशन बैंक, विजया बैंक, कर्नाटक बैंक, वैश्य बैंक और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर का उद्गम इसी राज्य से हुआ था। राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में प्रति ५०० व्यक्ति एक बैंक शाखा है। ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बैंक वितरण है। | इनफ़ोसिस और विप्रो का कुल आईटी निर्यात कितने रुपए का है ? | {
"text": [
"५०,००० करोड़"
],
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} | The total IT exports of Infosys and Wipro are worth how much? | Many of these headquarters are also located in the state, including two largest IT companies Infosys and Wipro.Export from these institutions Rs.More than 50,000 crores (12.5 billion) has reached more than 37% of India's total information technology exports.The outer side of Devanhalli is a place of 50 square km in the Nandi Hill area, the 22 billion of the upcoming 22 billion IT investment sector.This is the largest project in history of Karnataka so far.Due to all these reasons, Bangalore is being called the Silicon Valley of India.Karnataka is also a leader in the field of biotechnology in India.It is also the center of India's largest bio -based industry group.There are 158 out of 320 biotechnology institutions and companies of the country.India's total flower industry contributes 75% from this state.The floral industry is a rapid emergence and spreading industry, which is supplied ornamental plants and flowers worldwide.Seven of India's leading banks, Canara Bank, Syndicate Bank, Corporation Bank, Vijaya Bank, Karnataka Bank, Vaishya Bank and State Bank of Mysore originated from this state.The coastal districts of the state Udupi and South Kannada have a bank branch per 500 people.This is India's best bank distribution. | {
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"50,000 crores."
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207 | इनमें से कई के मुख्यालय भी राज्य में ही स्थित हैं, जिनमें दो सबसे बड़ी आई.टी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं। इन संस्थाओं से निर्यात रु. ५०,००० करोड़ (१२.५ बिलियन) से भी अधिक पहुंचा है, जो भारत के कुल सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात का ३८% है। देवनहल्ली के बाहरी ओर का नंदी हिल क्षेत्र में ५० वर्ग कि.मी भाग, आने वाले २२ बिलियन के ब्याल आईटी निवेश क्षेत्र की स्थली है। ये कर्नाटक की मूल संरचना इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। इन सब कारणों के चलते ही बंगलौर को भारत की सिलिकॉन घाटी कहा जाने लगा है। भारत में कर्नाटक जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यह भारत के सबसे बड़े जैव आधारित उद्योग समूह का केन्द्र भी है। यहां देश की ३२० जैवप्रौद्योगिकी संस्थाओं व कंपनियों में से १५८ स्थित हैं। इसी राज्य से भारत के कुल पुष्प-उद्योग का ७५% योगदान है। पुष्प उद्योग तेजी से उभरता और फैलता उद्योग है, जिसमें विश्व भर में सजावटी पौधे और फूलों की आपूर्ति की जाती है। भारत के अग्रणी बैंकों में से सात बैंकों, केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक, कार्पोरेशन बैंक, विजया बैंक, कर्नाटक बैंक, वैश्य बैंक और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर का उद्गम इसी राज्य से हुआ था। राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में प्रति ५०० व्यक्ति एक बैंक शाखा है। ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बैंक वितरण है। | भारत का सिलिकॉन वैली किसे कहा जाता है ? | {
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} | What is called the Silicon Valley of India? | Many of these headquarters are also located in the state, including two largest IT companies Infosys and Wipro.Export from these institutions Rs.More than 50,000 crores (12.5 billion) has reached more than 37% of India's total information technology exports.The outer side of Devanhalli is a place of 50 square km in the Nandi Hill area, the 22 billion of the upcoming 22 billion IT investment sector.This is the largest project in history of Karnataka so far.Due to all these reasons, Bangalore is being called the Silicon Valley of India.Karnataka is also a leader in the field of biotechnology in India.It is also the center of India's largest bio -based industry group.There are 158 out of 320 biotechnology institutions and companies of the country.India's total flower industry contributes 75% from this state.The floral industry is a rapid emergence and spreading industry, which is supplied ornamental plants and flowers worldwide.Seven of India's leading banks, Canara Bank, Syndicate Bank, Corporation Bank, Vijaya Bank, Karnataka Bank, Vaishya Bank and State Bank of Mysore originated from this state.The coastal districts of the state Udupi and South Kannada have a bank branch per 500 people.This is India's best bank distribution. | {
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208 | इनमें से कई के मुख्यालय भी राज्य में ही स्थित हैं, जिनमें दो सबसे बड़ी आई.टी कंपनियां इन्फोसिस और विप्रो हैं। इन संस्थाओं से निर्यात रु. ५०,००० करोड़ (१२.५ बिलियन) से भी अधिक पहुंचा है, जो भारत के कुल सूचना प्रौद्योगिकी निर्यात का ३८% है। देवनहल्ली के बाहरी ओर का नंदी हिल क्षेत्र में ५० वर्ग कि.मी भाग, आने वाले २२ बिलियन के ब्याल आईटी निवेश क्षेत्र की स्थली है। ये कर्नाटक की मूल संरचना इतिहास की अब तक की सबसे बड़ी परियोजना है। इन सब कारणों के चलते ही बंगलौर को भारत की सिलिकॉन घाटी कहा जाने लगा है। भारत में कर्नाटक जैवप्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी अग्रणी है। यह भारत के सबसे बड़े जैव आधारित उद्योग समूह का केन्द्र भी है। यहां देश की ३२० जैवप्रौद्योगिकी संस्थाओं व कंपनियों में से १५८ स्थित हैं। इसी राज्य से भारत के कुल पुष्प-उद्योग का ७५% योगदान है। पुष्प उद्योग तेजी से उभरता और फैलता उद्योग है, जिसमें विश्व भर में सजावटी पौधे और फूलों की आपूर्ति की जाती है। भारत के अग्रणी बैंकों में से सात बैंकों, केनरा बैंक, सिंडिकेट बैंक, कार्पोरेशन बैंक, विजया बैंक, कर्नाटक बैंक, वैश्य बैंक और स्टेट बैंक ऑफ मैसूर का उद्गम इसी राज्य से हुआ था। राज्य के तटीय जिलों उडुपी और दक्षिण कन्नड़ में प्रति ५०० व्यक्ति एक बैंक शाखा है। ये भारत का सर्वश्रेष्ठ बैंक वितरण है। | मार्च 2002 तक कर्नाटक राज्य में कितनी बैंकों की शाखा थी? | {
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} | As of March 2002, how many banks had a branch in the state of Karnataka? | Many of these headquarters are also located in the state, including two largest IT companies Infosys and Wipro.Export from these institutions Rs.More than 50,000 crores (12.5 billion) has reached more than 37% of India's total information technology exports.The outer side of Devanhalli is a place of 50 square km in the Nandi Hill area, the 22 billion of the upcoming 22 billion IT investment sector.This is the largest project in history of Karnataka so far.Due to all these reasons, Bangalore is being called the Silicon Valley of India.Karnataka is also a leader in the field of biotechnology in India.It is also the center of India's largest bio -based industry group.There are 158 out of 320 biotechnology institutions and companies of the country.India's total flower industry contributes 75% from this state.The floral industry is a rapid emergence and spreading industry, which is supplied ornamental plants and flowers worldwide.Seven of India's leading banks, Canara Bank, Syndicate Bank, Corporation Bank, Vijaya Bank, Karnataka Bank, Vaishya Bank and State Bank of Mysore originated from this state.The coastal districts of the state Udupi and South Kannada have a bank branch per 500 people.This is India's best bank distribution. | {
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209 | इन्हें भी देखें: गांधीवादगांधी जी ने अपना जीवन सत्य, या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी स्वयं की गल्तियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया। गांधी जी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ने के लिए अपने दुष्टात्माओं , भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना है। गांधी जी ने अपने विचारों को सबसे पहले उस समय संक्षेप में व्यक्त किया जब उन्होंने कहा भगवान ही सत्य है| बाद में उन्होंने अपने इस कथन को सत्य ही भगवान है में बदल दिया। इस प्रकार , सत्य में गांधी के दर्शन है " परमेश्वर "|हालांकि गांधी जी अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक बिल्कुल नहीं थे फिर भी इसे बड़े पैमाने पर राजनैतिक क्षेत्र में इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। अहिंसा (non-violence), अहिंसा (ahimsa) और अप्रतिकार (non-resistance) का भारतीय धार्मिक विचारों में एक लंबा इतिहास है और इसके हिंदु, बौद्ध, जैन, यहूदी और ईसाई समुदायों में बहुत सी अवधारणाएं हैं। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ " (The Story of My Experiments with Truth)में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है। उन्हें कहते हुए बताया गया था :जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हतयारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें। " मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है। एक आंख के लिए दूसरी आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी। मरने के लिए मैरे पास बहुत से कारण है किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है "इन सिद्धातों को लागू करने में गांधी जी ने इन्हें दुनिया को दिखाने के लिए सर्वाधिक तार्किक सीमा पर ले जाने से भी मुंह नहीं मोड़ा जहां सरकार, पुलिस और सेनाए भी अहिंसात्मक बन गईं थीं। " फॉर पसिफिस्ट्स." नामक पुस्तक से उद्धरण लिए गए हैं। विज्ञान का युद्ध किसी व्यक्ति को तानाशाही , शुद्ध और सरलता की ओर ले जाता है। अहिंसा का विज्ञान अकेले ही किसी व्यक्ति को शुद्ध लोकतंत्र के मार्ग की ओर ले जा सकता है। प्रेम पर आधारित शक्ति सजा के डर से उत्पन्न शक्ति से हजार गुणा अधिक और स्थायी होती है। यह कहना निन्दा करने जैसा होगा कि कि अहिंसा का अभ्यास केवल व्यक्तिगत तौर पर किया जा सकता है और व्यक्तिवादिता वाले देश इसका कभी भी अभ्यास नहीं कर सकते हैं। शुद्ध अराजकता का निकटतम दृष्टिकोण अहिंसा पर आधारित लोकतंत्र होगा; संपूर्ण अहिंसा के आधार पर संगठित और चलने वाला कोई समाज शुद्ध अराजकता वाला समाज होगा। मैं ने भी स्वीकार किया कि एक अहिंसक राज्य में भी पुलिस बल की जरूरत अनिवार्य हो सकती है। पुलिस रैंकों का गठन अहिंसा में विश्वास रखने वालों से किया जाएगा। लोग उनकी हर संभव मदद करेंगे और आपसी सहयोग के माध्यम से वे किसी भी उपद्रव का आसानी से सामना कर लेंगे ...श्रम और पूंजी तथा हड़तालों के बीव हिंसक झगड़े बहुत कम होंगे और अहिंसक राज्यों में तो बहुत कम होंगे क्योंकि अहिंसक समाज की बाहुलता का प्रभाव समाज में प्रमुख तत्वों का सम्मान करने के लिए महान होगा। इसी प्रकार साम्प्रदायिक अव्यवस्था के लिए कोई जगह नहीं होगी;। शांति एवं अव्यवस्था के समय सशस्त्र सैनिकों की तरह सेना का कोई अहिंसात्मक कार्य उनका यह कर्तव्य होगा कि वे विजय दिलाने वाले समुदायों को एकजुट करें जिसमें शांति का प्रसार, तथा ऐसी गतिविधियों का समावेश हो जो किसी भी व्यक्ति को उसके चर्च अथवा खंड में संपर्क बनाए रखते हुए अपने साथ मिला लें। इस प्रकार की सैना को किसी भी आपात स्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा भीड़ के क्रोध को शांत करने के लिए उसके पास मरने के लिए सैनिकों की पर्याप्त नफरी भी होनी चाहिए;सत्याग्रह (सत्यबल) के बिग्रेड को प्रत्येक गांव तथा शहर तक भवनों के प्रत्येक ब्लॉक में संगठित किया जा सकता हैयदि अहिंसात्मक समाज पर हमला किया जाता है तब अहिंसा के दो मार्ग खुलते हैं। अधिकार पाने के लिए हमलावर से सहयोग न करें बल्कि समर्पण करने की अपेक्षा मृत्यु को गले लगाना पसंद करें। दूसरा तरीका होगा ऐसी जनता द्वारा अहिंसक प्रतिरोध करना हो सकता है जिन्हें अहिंसक तरीके से प्रशिक्षित किया गया हो ...इस अप्रत्याशित प्रदर्शन की अनंत राहों पर आदमियों और महिलाओं को हमलावर की इच्छा लिए आत्मसमर्पण करने की बजाए आसानी से मरना अच्छा लगता है और अंतंत: उसे तथा उसकी सैनिक बहादुरी के समक्ष पिघलना जरूर पड़ता है। ऐसे किसी देश अथवा समूह जिसने अंहिंसा को अपनी अंतिम नीति बना लिया है उसे परमाणु बम भी अपना दास नहीं बना सकता है। उस देश में अहिंसा का स्तर खुशी-खुशी गुजरता है तब वह प्राकृतिक तौर पर इतना अधिक बढ़ जाता है कि उसे सार्वभोमिक आदर मिलने लगता है। इन विचारों के अनुरूप १९४० में जब नाजी जर्मनी द्वारा अंग्रेजों के द्वीपों पर किए गए हमले आसन्न दिखाई दिए तब गांधी जी ने अंग्रेजों को शांति और युद्ध में अहिंसा की निम्नलिखित नीति का अनुसरण करने को कहा। मैं आपसे हथियार रखने के लिए कहना पसंद करूंगा क्योंकि ये आपको अथवा मानवता को बचाने में बेकार हैं। आपको हेर हिटलर और सिगनोर मुसोलिनी को आमंत्रित करना होगा कि उन्हें देशों से जो कुछ चाहिए आप उन्हें अपना अधिकार कहते हैं। यदि इन सज्जनों को अपने घर पर रहने का चयन करना है तब आपको उन्हें खाली करना होगा। यदि वे तुम्हें आसानी से रास्ता नहीं देते हैं तब आप अपने आपको , पुरूषों को महिलाओं को और बच्चों की बलि देने की अनुमति देंगे किंतु अपनी निष्ठा के प्रति झुकने से इंकार करेंगे। १९४६ में युद्ध के बाद दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने इससे भी आगे एक विचार का प्रस्तुतीकरण किया। यहूदियों को अपने लिए स्वयं कसाई का चाकू दे देना चाहिए था। उन्हें अपने आप को समुद्री चट्टानों से समुद्र के अंदर फैंक देना चाहिए था। फिर भी गांधी जी को पता था कि इस प्रकार के अहिंसा के स्तर को अटूट विश्वास और साहस की जरूरत होगी और इसके लिए उसने महसूस कर लिया था कि यह हर किसी के पास नहीं होता है। इसलिए उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को परामर्श दिया कि उन्हें अहिंसा को अपने पास रखने की जरूरत नहीं है खास तौर पर उस समय जब इसे कायरता के संरक्षण के लिए उपयोग में किया गया हो। गांधी जी ने अपने सत्याग्रह आंदोलन में ऐसे लोगों को दूर ही रखा जो हथियार उठाने से डरते थे अथवा प्रतिरोध करने में स्वयं की अक्षमता का अनुभव करते थे। उन्होंने लिखा कि :मैं मानता हूं कि जहां डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूंगा। प्रत्येक सभा पर मैं तब तक चेतावनी दोहराता रहता था जब तक वन्हें यह अहसास नहीं हो जाता है कि वे एक ऐसे अंहिसात्मक बल के अधिकार में आ गए हैं जिसके अधिकार में वे पहले भी थे और वे उस प्रयोग के आदि हो चुके थे और उनका मानना था कि उन्हें अहिंसा से कुछ लेना देना नहीं हैं तथा फिर से हथियार उठा लिए थे। खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgar)के बारे में ऐसा कभी नहीं कहना चाहिए कि जो एक बार इतने बहादुर थे कि बादशाह खान (Badshah Khan)के प्रभाव में अब वे डरपोक बन गए। वीरता केवल अच्छे निशाने वालों में ही नहीं होती है बल्कि मृत्यु को हरा देने वालों में तथा अपनी छातियों को गोली खाने के लिए सदा तैयार रहने वालों में भी होती है। बाल्यावस्था में गांधी को मांस खाने का अनुभव मिला। ऐसा उनकी उत्तराधिकारी जिज्ञासा के कारण ही था जिसमें उसके उत्साहवर्धक मित्र शेख मेहताब का भी योगदान था। वेजीटेरियनिज्म का विचार भारत की हिंदु और जैन प्रथाओं में कूट-कूट कर भरा हुआ था तथा उनकी मातृभूमि गुजरात में ज्यादातर हिंदु शाकाहारी ही थे। इसी तरह जैन भी थे। गांधी का परिवार भी इससे अछूता नहीं था। पढाई के लिए लंदन आने से पूर्व गांधी जी ने अपनी माता पुतलीबाई और अपने चाचा बेचारजी स्वामी से एक वायदा किया था कि वे मांस खाने, शराब पीने से तथा संकीणता से दूर रहेंगे। उन्होने अपने वायदे रखने के लिए उपवास किए और ऐसा करने से सबूत कुछ ऐसा मिला जो भोजन करने से नहीं मिल सकता था, उन्होंने अपने जीवन पर्यन्त दर्शन के लिए आधार जो प्राप्त कर लिया था। जैसे जैसे गांधी जी व्यस्क होते गए वे पूर्णतया शाकाहारी बन गए। गांधी जी स्वयं इस अवधि में बहुत सी महान विभूतियों से प्रेरित हुए और लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के चैयरमेन डॉ० जोसिया ओल्डफील्ड के मित्र बन गए। | ब्रिटिश द्वीपों पर नाज़ी जर्मनी ने किस वर्ष हमला किया था? | {
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} | In which year did Nazi Germany invade the British Isles? | See also: Gandhism Gandhi dedicated his life to the comprehensive search for truth, or truth. He tried to learn from his own mistakes and experiment on himself to achieve this goal. He named his autobiography the experiment of truth. Gandhiji said that the most important battle to fight is to overcome elements like our demons, fear and insecurity. Gandhiji first expressed his thoughts briefly when he said that God is the truth. Later he changed his statement to Truth is God. Thus, Gandhi's philosophy in truth is "God". Although Gandhiji was not at all the originator of the principle of non-violence, he was the first person to use it on a large scale in the political field. Non-violence, ahimsa and non-resistance have a long history in Indian religious thought and are common concepts in Hindu, Buddhist, Jain, Jewish and Christian communities. Gandhiji described his philosophy and his life's path in his autobiography The Story of My Experiments with Truth. He was quoted as saying: When I am disappointed I remember I believe that although history is the path of truth, love always conquers it. There have been tyrants and murderers and for some time they seemed invincible but in the end they fall - always think of this. " Dead, What difference does it make to the orphans and the homeless that beneath the sacred name of freedom and democracy lies the mad destruction of totalitarianism? One eye for another will make the whole world blind. I have many reasons to die, but I have no reason to kill anyone." In applying these principles, Gandhiji did not shy away from taking them to their most logical limits to show them to the world where the government , the police and the army also became non-violent. The quotations are from the book "For Pacifists." The war of science leads one to dictatorship, pure and simple. The science of non-violence alone leads one to pure democracy. can lead to the path of violence. The power based on love is a thousand times greater and more permanent than the power generated by the fear of punishment. It would be blasphemous to say that non-violence can be practiced only individually and by those who are individualistic. Countries can never practice this. The nearest approach to pure anarchy would be a democracy based on nonviolence; any society organized and run on the basis of complete nonviolence would be a society of pure anarchy. I also admitted that even in a nonviolent state the police The need for force may be inevitable.The police ranks will be composed of those who believe in non-violence. People will help them in every possible way and through mutual cooperation they will easily face any disturbance…There will be very few violent conflicts between labor and capital and strikes and in non-violent states there will be even less because of the majority of non-violent society. The impact of will be great to respect the key elements in the society. Similarly, there will be no room for communal disorder. Like armed forces in times of peace or disorder, their duty will be to unite communities to victory, including the promotion of peace, and activities that will connect any individual to his or her church or denomination. Keep it and mix it with yourself. This type of army should be ready to fight any emergency and should also have sufficient courage of soldiers to die to calm the anger of the crowd; Satyagraha (Satyabal) brigades should be sent to every village and city. Every block of buildings can be organized. If a non-violent society is attacked then two paths to non-violence open up. Do not cooperate with the attacker to gain authority but prefer to embrace death rather than surrender. Another way would be non-violent resistance by a population that has been trained in non-violent methods...The men and women on the endless lines of this unexpected demonstration would rather die easily than surrender to the will of the aggressor and ultimately : One has to melt before him and his military bravery. Even the atomic bomb cannot enslave any country or group that has made non-violence its ultimate policy. When the level of non-violence passes happily in that country, then it naturally increases so much that it starts getting universal respect. In line with these ideas, when in 1940 an attack by Nazi Germany on the British Isles appeared imminent, Gandhiji asked the British to follow the following policy of non-violence in peace and war. I would prefer to ask you to lay down your weapons as they are useless in saving you or humanity. You have to invite Herr Hitler and Signor Mussolini to do whatever they want from the countries you call your right. If these gentlemen choose to stay at your home then you will have to vacate them. If they do not give you easy way then you will allow yourselves, men, women and children to be sacrificed but will refuse to bend your allegiance. In an interview given after the war in 1946, he A further idea was also presented. The Jews should have provided themselves with the butcher's knife. He should have thrown himself into the sea from the sea cliffs. Yet Gandhiji knew that this level of nonviolence would require unwavering faith and courage, and he realized that not everyone had it. Therefore he advised everyone that they need not keep non-violence to themselves especially when it is used to protect cowardice. In his Satyagraha movement, Gandhiji kept away those people who were afraid of taking up arms or felt incapable of resisting. He wrote: I believe that where there is a choice between cowardice and violence, I will give my opinion in favor of violence. I would repeat the warning at every meeting until they realized that they had come under the control of a non-violent force similar to that which they had been in control of before and that they had become accustomed to that use and believed that He said that he had nothing to do with non-violence and had again taken up arms. It should never be said about Khudai Khidmatgar that those who were once so brave have now become cowards under the influence of Badshah Khan. Bravery is found not only in those who are good marksmen but also in those who defeat death and are always ready to take a bullet to their chests. Gandhi had the experience of eating meat in his childhood. This was due to his curiosity about his successor, in which his encouraging friend Sheikh Mehtab also contributed. The idea of vegetarianism was deeply embedded in the Hindu and Jain practices of India and in his homeland Gujarat, most Hindus were vegetarian. Similarly, Jains were also there. Gandhi's family was also not untouched by this. Before coming to London for studies, Gandhiji had made a promise to his mother Putlibai and his uncle Becharaji Swami that he would stay away from eating meat, drinking alcohol and narrow-mindedness. He fasted to keep his promises and by doing so provided proof of something that eating could not have provided, the basis for his lifelong philosophy. As Gandhiji grew into adulthood, he became a complete vegetarian. Gandhiji himself was inspired by many great personalities during this period and became a friend of Dr. Josiah Oldfield, Chairman of the London Vegetarian Society. | {
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"1940."
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210 | इन्हें भी देखें: गांधीवादगांधी जी ने अपना जीवन सत्य, या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी स्वयं की गल्तियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया। गांधी जी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ने के लिए अपने दुष्टात्माओं , भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना है। गांधी जी ने अपने विचारों को सबसे पहले उस समय संक्षेप में व्यक्त किया जब उन्होंने कहा भगवान ही सत्य है| बाद में उन्होंने अपने इस कथन को सत्य ही भगवान है में बदल दिया। इस प्रकार , सत्य में गांधी के दर्शन है " परमेश्वर "|हालांकि गांधी जी अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक बिल्कुल नहीं थे फिर भी इसे बड़े पैमाने पर राजनैतिक क्षेत्र में इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। अहिंसा (non-violence), अहिंसा (ahimsa) और अप्रतिकार (non-resistance) का भारतीय धार्मिक विचारों में एक लंबा इतिहास है और इसके हिंदु, बौद्ध, जैन, यहूदी और ईसाई समुदायों में बहुत सी अवधारणाएं हैं। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ " (The Story of My Experiments with Truth)में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है। उन्हें कहते हुए बताया गया था :जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हतयारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें। " मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है। एक आंख के लिए दूसरी आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी। मरने के लिए मैरे पास बहुत से कारण है किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है "इन सिद्धातों को लागू करने में गांधी जी ने इन्हें दुनिया को दिखाने के लिए सर्वाधिक तार्किक सीमा पर ले जाने से भी मुंह नहीं मोड़ा जहां सरकार, पुलिस और सेनाए भी अहिंसात्मक बन गईं थीं। " फॉर पसिफिस्ट्स." नामक पुस्तक से उद्धरण लिए गए हैं। विज्ञान का युद्ध किसी व्यक्ति को तानाशाही , शुद्ध और सरलता की ओर ले जाता है। अहिंसा का विज्ञान अकेले ही किसी व्यक्ति को शुद्ध लोकतंत्र के मार्ग की ओर ले जा सकता है। प्रेम पर आधारित शक्ति सजा के डर से उत्पन्न शक्ति से हजार गुणा अधिक और स्थायी होती है। यह कहना निन्दा करने जैसा होगा कि कि अहिंसा का अभ्यास केवल व्यक्तिगत तौर पर किया जा सकता है और व्यक्तिवादिता वाले देश इसका कभी भी अभ्यास नहीं कर सकते हैं। शुद्ध अराजकता का निकटतम दृष्टिकोण अहिंसा पर आधारित लोकतंत्र होगा; संपूर्ण अहिंसा के आधार पर संगठित और चलने वाला कोई समाज शुद्ध अराजकता वाला समाज होगा। मैं ने भी स्वीकार किया कि एक अहिंसक राज्य में भी पुलिस बल की जरूरत अनिवार्य हो सकती है। पुलिस रैंकों का गठन अहिंसा में विश्वास रखने वालों से किया जाएगा। लोग उनकी हर संभव मदद करेंगे और आपसी सहयोग के माध्यम से वे किसी भी उपद्रव का आसानी से सामना कर लेंगे ...श्रम और पूंजी तथा हड़तालों के बीव हिंसक झगड़े बहुत कम होंगे और अहिंसक राज्यों में तो बहुत कम होंगे क्योंकि अहिंसक समाज की बाहुलता का प्रभाव समाज में प्रमुख तत्वों का सम्मान करने के लिए महान होगा। इसी प्रकार साम्प्रदायिक अव्यवस्था के लिए कोई जगह नहीं होगी;। शांति एवं अव्यवस्था के समय सशस्त्र सैनिकों की तरह सेना का कोई अहिंसात्मक कार्य उनका यह कर्तव्य होगा कि वे विजय दिलाने वाले समुदायों को एकजुट करें जिसमें शांति का प्रसार, तथा ऐसी गतिविधियों का समावेश हो जो किसी भी व्यक्ति को उसके चर्च अथवा खंड में संपर्क बनाए रखते हुए अपने साथ मिला लें। इस प्रकार की सैना को किसी भी आपात स्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा भीड़ के क्रोध को शांत करने के लिए उसके पास मरने के लिए सैनिकों की पर्याप्त नफरी भी होनी चाहिए;सत्याग्रह (सत्यबल) के बिग्रेड को प्रत्येक गांव तथा शहर तक भवनों के प्रत्येक ब्लॉक में संगठित किया जा सकता हैयदि अहिंसात्मक समाज पर हमला किया जाता है तब अहिंसा के दो मार्ग खुलते हैं। अधिकार पाने के लिए हमलावर से सहयोग न करें बल्कि समर्पण करने की अपेक्षा मृत्यु को गले लगाना पसंद करें। दूसरा तरीका होगा ऐसी जनता द्वारा अहिंसक प्रतिरोध करना हो सकता है जिन्हें अहिंसक तरीके से प्रशिक्षित किया गया हो ...इस अप्रत्याशित प्रदर्शन की अनंत राहों पर आदमियों और महिलाओं को हमलावर की इच्छा लिए आत्मसमर्पण करने की बजाए आसानी से मरना अच्छा लगता है और अंतंत: उसे तथा उसकी सैनिक बहादुरी के समक्ष पिघलना जरूर पड़ता है। ऐसे किसी देश अथवा समूह जिसने अंहिंसा को अपनी अंतिम नीति बना लिया है उसे परमाणु बम भी अपना दास नहीं बना सकता है। उस देश में अहिंसा का स्तर खुशी-खुशी गुजरता है तब वह प्राकृतिक तौर पर इतना अधिक बढ़ जाता है कि उसे सार्वभोमिक आदर मिलने लगता है। इन विचारों के अनुरूप १९४० में जब नाजी जर्मनी द्वारा अंग्रेजों के द्वीपों पर किए गए हमले आसन्न दिखाई दिए तब गांधी जी ने अंग्रेजों को शांति और युद्ध में अहिंसा की निम्नलिखित नीति का अनुसरण करने को कहा। मैं आपसे हथियार रखने के लिए कहना पसंद करूंगा क्योंकि ये आपको अथवा मानवता को बचाने में बेकार हैं। आपको हेर हिटलर और सिगनोर मुसोलिनी को आमंत्रित करना होगा कि उन्हें देशों से जो कुछ चाहिए आप उन्हें अपना अधिकार कहते हैं। यदि इन सज्जनों को अपने घर पर रहने का चयन करना है तब आपको उन्हें खाली करना होगा। यदि वे तुम्हें आसानी से रास्ता नहीं देते हैं तब आप अपने आपको , पुरूषों को महिलाओं को और बच्चों की बलि देने की अनुमति देंगे किंतु अपनी निष्ठा के प्रति झुकने से इंकार करेंगे। १९४६ में युद्ध के बाद दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने इससे भी आगे एक विचार का प्रस्तुतीकरण किया। यहूदियों को अपने लिए स्वयं कसाई का चाकू दे देना चाहिए था। उन्हें अपने आप को समुद्री चट्टानों से समुद्र के अंदर फैंक देना चाहिए था। फिर भी गांधी जी को पता था कि इस प्रकार के अहिंसा के स्तर को अटूट विश्वास और साहस की जरूरत होगी और इसके लिए उसने महसूस कर लिया था कि यह हर किसी के पास नहीं होता है। इसलिए उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को परामर्श दिया कि उन्हें अहिंसा को अपने पास रखने की जरूरत नहीं है खास तौर पर उस समय जब इसे कायरता के संरक्षण के लिए उपयोग में किया गया हो। गांधी जी ने अपने सत्याग्रह आंदोलन में ऐसे लोगों को दूर ही रखा जो हथियार उठाने से डरते थे अथवा प्रतिरोध करने में स्वयं की अक्षमता का अनुभव करते थे। उन्होंने लिखा कि :मैं मानता हूं कि जहां डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूंगा। प्रत्येक सभा पर मैं तब तक चेतावनी दोहराता रहता था जब तक वन्हें यह अहसास नहीं हो जाता है कि वे एक ऐसे अंहिसात्मक बल के अधिकार में आ गए हैं जिसके अधिकार में वे पहले भी थे और वे उस प्रयोग के आदि हो चुके थे और उनका मानना था कि उन्हें अहिंसा से कुछ लेना देना नहीं हैं तथा फिर से हथियार उठा लिए थे। खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgar)के बारे में ऐसा कभी नहीं कहना चाहिए कि जो एक बार इतने बहादुर थे कि बादशाह खान (Badshah Khan)के प्रभाव में अब वे डरपोक बन गए। वीरता केवल अच्छे निशाने वालों में ही नहीं होती है बल्कि मृत्यु को हरा देने वालों में तथा अपनी छातियों को गोली खाने के लिए सदा तैयार रहने वालों में भी होती है। बाल्यावस्था में गांधी को मांस खाने का अनुभव मिला। ऐसा उनकी उत्तराधिकारी जिज्ञासा के कारण ही था जिसमें उसके उत्साहवर्धक मित्र शेख मेहताब का भी योगदान था। वेजीटेरियनिज्म का विचार भारत की हिंदु और जैन प्रथाओं में कूट-कूट कर भरा हुआ था तथा उनकी मातृभूमि गुजरात में ज्यादातर हिंदु शाकाहारी ही थे। इसी तरह जैन भी थे। गांधी का परिवार भी इससे अछूता नहीं था। पढाई के लिए लंदन आने से पूर्व गांधी जी ने अपनी माता पुतलीबाई और अपने चाचा बेचारजी स्वामी से एक वायदा किया था कि वे मांस खाने, शराब पीने से तथा संकीणता से दूर रहेंगे। उन्होने अपने वायदे रखने के लिए उपवास किए और ऐसा करने से सबूत कुछ ऐसा मिला जो भोजन करने से नहीं मिल सकता था, उन्होंने अपने जीवन पर्यन्त दर्शन के लिए आधार जो प्राप्त कर लिया था। जैसे जैसे गांधी जी व्यस्क होते गए वे पूर्णतया शाकाहारी बन गए। गांधी जी स्वयं इस अवधि में बहुत सी महान विभूतियों से प्रेरित हुए और लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के चैयरमेन डॉ० जोसिया ओल्डफील्ड के मित्र बन गए। | सत्याग्रह के ब्रिगेड का क्या नाम था? | {
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} | What was the name of the brigade of Satyagraha? | See also: Gandhism Gandhi dedicated his life to the comprehensive search for truth, or truth. He tried to learn from his own mistakes and experiment on himself to achieve this goal. He named his autobiography the experiment of truth. Gandhiji said that the most important battle to fight is to overcome elements like our demons, fear and insecurity. Gandhiji first expressed his thoughts briefly when he said that God is the truth. Later he changed his statement to Truth is God. Thus, Gandhi's philosophy in truth is "God". Although Gandhiji was not at all the originator of the principle of non-violence, he was the first person to use it on a large scale in the political field. Non-violence, ahimsa and non-resistance have a long history in Indian religious thought and are common concepts in Hindu, Buddhist, Jain, Jewish and Christian communities. Gandhiji described his philosophy and his life's path in his autobiography The Story of My Experiments with Truth. He was quoted as saying: When I am disappointed I remember I believe that although history is the path of truth, love always conquers it. There have been tyrants and murderers and for some time they seemed invincible but in the end they fall - always think of this. " Dead, What difference does it make to the orphans and the homeless that beneath the sacred name of freedom and democracy lies the mad destruction of totalitarianism? One eye for another will make the whole world blind. I have many reasons to die, but I have no reason to kill anyone." In applying these principles, Gandhiji did not shy away from taking them to their most logical limits to show them to the world where the government , the police and the army also became non-violent. The quotations are from the book "For Pacifists." The war of science leads one to dictatorship, pure and simple. The science of non-violence alone leads one to pure democracy. can lead to the path of violence. The power based on love is a thousand times greater and more permanent than the power generated by the fear of punishment. It would be blasphemous to say that non-violence can be practiced only individually and by those who are individualistic. Countries can never practice this. The nearest approach to pure anarchy would be a democracy based on nonviolence; any society organized and run on the basis of complete nonviolence would be a society of pure anarchy. I also admitted that even in a nonviolent state the police The need for force may be inevitable.The police ranks will be composed of those who believe in non-violence. People will help them in every possible way and through mutual cooperation they will easily face any disturbance…There will be very few violent conflicts between labor and capital and strikes and in non-violent states there will be even less because of the majority of non-violent society. The impact of will be great to respect the key elements in the society. Similarly, there will be no room for communal disorder. Like armed forces in times of peace or disorder, their duty will be to unite communities to victory, including the promotion of peace, and activities that will connect any individual to his or her church or denomination. Keep it and mix it with yourself. This type of army should be ready to fight any emergency and should also have sufficient courage of soldiers to die to calm the anger of the crowd; Satyagraha (Satyabal) brigades should be sent to every village and city. Every block of buildings can be organized. If a non-violent society is attacked then two paths to non-violence open up. Do not cooperate with the attacker to gain authority but prefer to embrace death rather than surrender. Another way would be non-violent resistance by a population that has been trained in non-violent methods...The men and women on the endless lines of this unexpected demonstration would rather die easily than surrender to the will of the aggressor and ultimately : One has to melt before him and his military bravery. Even the atomic bomb cannot enslave any country or group that has made non-violence its ultimate policy. When the level of non-violence passes happily in that country, then it naturally increases so much that it starts getting universal respect. In line with these ideas, when in 1940 an attack by Nazi Germany on the British Isles appeared imminent, Gandhiji asked the British to follow the following policy of non-violence in peace and war. I would prefer to ask you to lay down your weapons as they are useless in saving you or humanity. You have to invite Herr Hitler and Signor Mussolini to do whatever they want from the countries you call your right. If these gentlemen choose to stay at your home then you will have to vacate them. If they do not give you easy way then you will allow yourselves, men, women and children to be sacrificed but will refuse to bend your allegiance. In an interview given after the war in 1946, he A further idea was also presented. The Jews should have provided themselves with the butcher's knife. He should have thrown himself into the sea from the sea cliffs. Yet Gandhiji knew that this level of nonviolence would require unwavering faith and courage, and he realized that not everyone had it. Therefore he advised everyone that they need not keep non-violence to themselves especially when it is used to protect cowardice. In his Satyagraha movement, Gandhiji kept away those people who were afraid of taking up arms or felt incapable of resisting. He wrote: I believe that where there is a choice between cowardice and violence, I will give my opinion in favor of violence. I would repeat the warning at every meeting until they realized that they had come under the control of a non-violent force similar to that which they had been in control of before and that they had become accustomed to that use and believed that He said that he had nothing to do with non-violence and had again taken up arms. It should never be said about Khudai Khidmatgar that those who were once so brave have now become cowards under the influence of Badshah Khan. Bravery is found not only in those who are good marksmen but also in those who defeat death and are always ready to take a bullet to their chests. Gandhi had the experience of eating meat in his childhood. This was due to his curiosity about his successor, in which his encouraging friend Sheikh Mehtab also contributed. The idea of vegetarianism was deeply embedded in the Hindu and Jain practices of India and in his homeland Gujarat, most Hindus were vegetarian. Similarly, Jains were also there. Gandhi's family was also not untouched by this. Before coming to London for studies, Gandhiji had made a promise to his mother Putlibai and his uncle Becharaji Swami that he would stay away from eating meat, drinking alcohol and narrow-mindedness. He fasted to keep his promises and by doing so provided proof of something that eating could not have provided, the basis for his lifelong philosophy. As Gandhiji grew into adulthood, he became a complete vegetarian. Gandhiji himself was inspired by many great personalities during this period and became a friend of Dr. Josiah Oldfield, Chairman of the London Vegetarian Society. | {
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211 | इन्हें भी देखें: गांधीवादगांधी जी ने अपना जीवन सत्य, या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी स्वयं की गल्तियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया। गांधी जी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ने के लिए अपने दुष्टात्माओं , भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना है। गांधी जी ने अपने विचारों को सबसे पहले उस समय संक्षेप में व्यक्त किया जब उन्होंने कहा भगवान ही सत्य है| बाद में उन्होंने अपने इस कथन को सत्य ही भगवान है में बदल दिया। इस प्रकार , सत्य में गांधी के दर्शन है " परमेश्वर "|हालांकि गांधी जी अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक बिल्कुल नहीं थे फिर भी इसे बड़े पैमाने पर राजनैतिक क्षेत्र में इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। अहिंसा (non-violence), अहिंसा (ahimsa) और अप्रतिकार (non-resistance) का भारतीय धार्मिक विचारों में एक लंबा इतिहास है और इसके हिंदु, बौद्ध, जैन, यहूदी और ईसाई समुदायों में बहुत सी अवधारणाएं हैं। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ " (The Story of My Experiments with Truth)में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है। उन्हें कहते हुए बताया गया था :जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हतयारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें। " मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है। एक आंख के लिए दूसरी आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी। मरने के लिए मैरे पास बहुत से कारण है किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है "इन सिद्धातों को लागू करने में गांधी जी ने इन्हें दुनिया को दिखाने के लिए सर्वाधिक तार्किक सीमा पर ले जाने से भी मुंह नहीं मोड़ा जहां सरकार, पुलिस और सेनाए भी अहिंसात्मक बन गईं थीं। " फॉर पसिफिस्ट्स." नामक पुस्तक से उद्धरण लिए गए हैं। विज्ञान का युद्ध किसी व्यक्ति को तानाशाही , शुद्ध और सरलता की ओर ले जाता है। अहिंसा का विज्ञान अकेले ही किसी व्यक्ति को शुद्ध लोकतंत्र के मार्ग की ओर ले जा सकता है। प्रेम पर आधारित शक्ति सजा के डर से उत्पन्न शक्ति से हजार गुणा अधिक और स्थायी होती है। यह कहना निन्दा करने जैसा होगा कि कि अहिंसा का अभ्यास केवल व्यक्तिगत तौर पर किया जा सकता है और व्यक्तिवादिता वाले देश इसका कभी भी अभ्यास नहीं कर सकते हैं। शुद्ध अराजकता का निकटतम दृष्टिकोण अहिंसा पर आधारित लोकतंत्र होगा; संपूर्ण अहिंसा के आधार पर संगठित और चलने वाला कोई समाज शुद्ध अराजकता वाला समाज होगा। मैं ने भी स्वीकार किया कि एक अहिंसक राज्य में भी पुलिस बल की जरूरत अनिवार्य हो सकती है। पुलिस रैंकों का गठन अहिंसा में विश्वास रखने वालों से किया जाएगा। लोग उनकी हर संभव मदद करेंगे और आपसी सहयोग के माध्यम से वे किसी भी उपद्रव का आसानी से सामना कर लेंगे ...श्रम और पूंजी तथा हड़तालों के बीव हिंसक झगड़े बहुत कम होंगे और अहिंसक राज्यों में तो बहुत कम होंगे क्योंकि अहिंसक समाज की बाहुलता का प्रभाव समाज में प्रमुख तत्वों का सम्मान करने के लिए महान होगा। इसी प्रकार साम्प्रदायिक अव्यवस्था के लिए कोई जगह नहीं होगी;। शांति एवं अव्यवस्था के समय सशस्त्र सैनिकों की तरह सेना का कोई अहिंसात्मक कार्य उनका यह कर्तव्य होगा कि वे विजय दिलाने वाले समुदायों को एकजुट करें जिसमें शांति का प्रसार, तथा ऐसी गतिविधियों का समावेश हो जो किसी भी व्यक्ति को उसके चर्च अथवा खंड में संपर्क बनाए रखते हुए अपने साथ मिला लें। इस प्रकार की सैना को किसी भी आपात स्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा भीड़ के क्रोध को शांत करने के लिए उसके पास मरने के लिए सैनिकों की पर्याप्त नफरी भी होनी चाहिए;सत्याग्रह (सत्यबल) के बिग्रेड को प्रत्येक गांव तथा शहर तक भवनों के प्रत्येक ब्लॉक में संगठित किया जा सकता हैयदि अहिंसात्मक समाज पर हमला किया जाता है तब अहिंसा के दो मार्ग खुलते हैं। अधिकार पाने के लिए हमलावर से सहयोग न करें बल्कि समर्पण करने की अपेक्षा मृत्यु को गले लगाना पसंद करें। दूसरा तरीका होगा ऐसी जनता द्वारा अहिंसक प्रतिरोध करना हो सकता है जिन्हें अहिंसक तरीके से प्रशिक्षित किया गया हो ...इस अप्रत्याशित प्रदर्शन की अनंत राहों पर आदमियों और महिलाओं को हमलावर की इच्छा लिए आत्मसमर्पण करने की बजाए आसानी से मरना अच्छा लगता है और अंतंत: उसे तथा उसकी सैनिक बहादुरी के समक्ष पिघलना जरूर पड़ता है। ऐसे किसी देश अथवा समूह जिसने अंहिंसा को अपनी अंतिम नीति बना लिया है उसे परमाणु बम भी अपना दास नहीं बना सकता है। उस देश में अहिंसा का स्तर खुशी-खुशी गुजरता है तब वह प्राकृतिक तौर पर इतना अधिक बढ़ जाता है कि उसे सार्वभोमिक आदर मिलने लगता है। इन विचारों के अनुरूप १९४० में जब नाजी जर्मनी द्वारा अंग्रेजों के द्वीपों पर किए गए हमले आसन्न दिखाई दिए तब गांधी जी ने अंग्रेजों को शांति और युद्ध में अहिंसा की निम्नलिखित नीति का अनुसरण करने को कहा। मैं आपसे हथियार रखने के लिए कहना पसंद करूंगा क्योंकि ये आपको अथवा मानवता को बचाने में बेकार हैं। आपको हेर हिटलर और सिगनोर मुसोलिनी को आमंत्रित करना होगा कि उन्हें देशों से जो कुछ चाहिए आप उन्हें अपना अधिकार कहते हैं। यदि इन सज्जनों को अपने घर पर रहने का चयन करना है तब आपको उन्हें खाली करना होगा। यदि वे तुम्हें आसानी से रास्ता नहीं देते हैं तब आप अपने आपको , पुरूषों को महिलाओं को और बच्चों की बलि देने की अनुमति देंगे किंतु अपनी निष्ठा के प्रति झुकने से इंकार करेंगे। १९४६ में युद्ध के बाद दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने इससे भी आगे एक विचार का प्रस्तुतीकरण किया। यहूदियों को अपने लिए स्वयं कसाई का चाकू दे देना चाहिए था। उन्हें अपने आप को समुद्री चट्टानों से समुद्र के अंदर फैंक देना चाहिए था। फिर भी गांधी जी को पता था कि इस प्रकार के अहिंसा के स्तर को अटूट विश्वास और साहस की जरूरत होगी और इसके लिए उसने महसूस कर लिया था कि यह हर किसी के पास नहीं होता है। इसलिए उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को परामर्श दिया कि उन्हें अहिंसा को अपने पास रखने की जरूरत नहीं है खास तौर पर उस समय जब इसे कायरता के संरक्षण के लिए उपयोग में किया गया हो। गांधी जी ने अपने सत्याग्रह आंदोलन में ऐसे लोगों को दूर ही रखा जो हथियार उठाने से डरते थे अथवा प्रतिरोध करने में स्वयं की अक्षमता का अनुभव करते थे। उन्होंने लिखा कि :मैं मानता हूं कि जहां डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूंगा। प्रत्येक सभा पर मैं तब तक चेतावनी दोहराता रहता था जब तक वन्हें यह अहसास नहीं हो जाता है कि वे एक ऐसे अंहिसात्मक बल के अधिकार में आ गए हैं जिसके अधिकार में वे पहले भी थे और वे उस प्रयोग के आदि हो चुके थे और उनका मानना था कि उन्हें अहिंसा से कुछ लेना देना नहीं हैं तथा फिर से हथियार उठा लिए थे। खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgar)के बारे में ऐसा कभी नहीं कहना चाहिए कि जो एक बार इतने बहादुर थे कि बादशाह खान (Badshah Khan)के प्रभाव में अब वे डरपोक बन गए। वीरता केवल अच्छे निशाने वालों में ही नहीं होती है बल्कि मृत्यु को हरा देने वालों में तथा अपनी छातियों को गोली खाने के लिए सदा तैयार रहने वालों में भी होती है। बाल्यावस्था में गांधी को मांस खाने का अनुभव मिला। ऐसा उनकी उत्तराधिकारी जिज्ञासा के कारण ही था जिसमें उसके उत्साहवर्धक मित्र शेख मेहताब का भी योगदान था। वेजीटेरियनिज्म का विचार भारत की हिंदु और जैन प्रथाओं में कूट-कूट कर भरा हुआ था तथा उनकी मातृभूमि गुजरात में ज्यादातर हिंदु शाकाहारी ही थे। इसी तरह जैन भी थे। गांधी का परिवार भी इससे अछूता नहीं था। पढाई के लिए लंदन आने से पूर्व गांधी जी ने अपनी माता पुतलीबाई और अपने चाचा बेचारजी स्वामी से एक वायदा किया था कि वे मांस खाने, शराब पीने से तथा संकीणता से दूर रहेंगे। उन्होने अपने वायदे रखने के लिए उपवास किए और ऐसा करने से सबूत कुछ ऐसा मिला जो भोजन करने से नहीं मिल सकता था, उन्होंने अपने जीवन पर्यन्त दर्शन के लिए आधार जो प्राप्त कर लिया था। जैसे जैसे गांधी जी व्यस्क होते गए वे पूर्णतया शाकाहारी बन गए। गांधी जी स्वयं इस अवधि में बहुत सी महान विभूतियों से प्रेरित हुए और लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के चैयरमेन डॉ० जोसिया ओल्डफील्ड के मित्र बन गए। | महात्मा गाँधी के चाचा का क्या नाम था? | {
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"बेचारजी स्वामी"
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} | What was the name of Mahatma Gandhi's uncle? | See also: Gandhism Gandhi dedicated his life to the comprehensive search for truth, or truth. He tried to learn from his own mistakes and experiment on himself to achieve this goal. He named his autobiography the experiment of truth. Gandhiji said that the most important battle to fight is to overcome elements like our demons, fear and insecurity. Gandhiji first expressed his thoughts briefly when he said that God is the truth. Later he changed his statement to Truth is God. Thus, Gandhi's philosophy in truth is "God". Although Gandhiji was not at all the originator of the principle of non-violence, he was the first person to use it on a large scale in the political field. Non-violence, ahimsa and non-resistance have a long history in Indian religious thought and are common concepts in Hindu, Buddhist, Jain, Jewish and Christian communities. Gandhiji described his philosophy and his life's path in his autobiography The Story of My Experiments with Truth. He was quoted as saying: When I am disappointed I remember I believe that although history is the path of truth, love always conquers it. There have been tyrants and murderers and for some time they seemed invincible but in the end they fall - always think of this. " Dead, What difference does it make to the orphans and the homeless that beneath the sacred name of freedom and democracy lies the mad destruction of totalitarianism? One eye for another will make the whole world blind. I have many reasons to die, but I have no reason to kill anyone." In applying these principles, Gandhiji did not shy away from taking them to their most logical limits to show them to the world where the government , the police and the army also became non-violent. The quotations are from the book "For Pacifists." The war of science leads one to dictatorship, pure and simple. The science of non-violence alone leads one to pure democracy. can lead to the path of violence. The power based on love is a thousand times greater and more permanent than the power generated by the fear of punishment. It would be blasphemous to say that non-violence can be practiced only individually and by those who are individualistic. Countries can never practice this. The nearest approach to pure anarchy would be a democracy based on nonviolence; any society organized and run on the basis of complete nonviolence would be a society of pure anarchy. I also admitted that even in a nonviolent state the police The need for force may be inevitable.The police ranks will be composed of those who believe in non-violence. People will help them in every possible way and through mutual cooperation they will easily face any disturbance…There will be very few violent conflicts between labor and capital and strikes and in non-violent states there will be even less because of the majority of non-violent society. The impact of will be great to respect the key elements in the society. Similarly, there will be no room for communal disorder. Like armed forces in times of peace or disorder, their duty will be to unite communities to victory, including the promotion of peace, and activities that will connect any individual to his or her church or denomination. Keep it and mix it with yourself. This type of army should be ready to fight any emergency and should also have sufficient courage of soldiers to die to calm the anger of the crowd; Satyagraha (Satyabal) brigades should be sent to every village and city. Every block of buildings can be organized. If a non-violent society is attacked then two paths to non-violence open up. Do not cooperate with the attacker to gain authority but prefer to embrace death rather than surrender. Another way would be non-violent resistance by a population that has been trained in non-violent methods...The men and women on the endless lines of this unexpected demonstration would rather die easily than surrender to the will of the aggressor and ultimately : One has to melt before him and his military bravery. Even the atomic bomb cannot enslave any country or group that has made non-violence its ultimate policy. When the level of non-violence passes happily in that country, then it naturally increases so much that it starts getting universal respect. In line with these ideas, when in 1940 an attack by Nazi Germany on the British Isles appeared imminent, Gandhiji asked the British to follow the following policy of non-violence in peace and war. I would prefer to ask you to lay down your weapons as they are useless in saving you or humanity. You have to invite Herr Hitler and Signor Mussolini to do whatever they want from the countries you call your right. If these gentlemen choose to stay at your home then you will have to vacate them. If they do not give you easy way then you will allow yourselves, men, women and children to be sacrificed but will refuse to bend your allegiance. In an interview given after the war in 1946, he A further idea was also presented. The Jews should have provided themselves with the butcher's knife. He should have thrown himself into the sea from the sea cliffs. Yet Gandhiji knew that this level of nonviolence would require unwavering faith and courage, and he realized that not everyone had it. Therefore he advised everyone that they need not keep non-violence to themselves especially when it is used to protect cowardice. In his Satyagraha movement, Gandhiji kept away those people who were afraid of taking up arms or felt incapable of resisting. He wrote: I believe that where there is a choice between cowardice and violence, I will give my opinion in favor of violence. I would repeat the warning at every meeting until they realized that they had come under the control of a non-violent force similar to that which they had been in control of before and that they had become accustomed to that use and believed that He said that he had nothing to do with non-violence and had again taken up arms. It should never be said about Khudai Khidmatgar that those who were once so brave have now become cowards under the influence of Badshah Khan. Bravery is found not only in those who are good marksmen but also in those who defeat death and are always ready to take a bullet to their chests. Gandhi had the experience of eating meat in his childhood. This was due to his curiosity about his successor, in which his encouraging friend Sheikh Mehtab also contributed. The idea of vegetarianism was deeply embedded in the Hindu and Jain practices of India and in his homeland Gujarat, most Hindus were vegetarian. Similarly, Jains were also there. Gandhi's family was also not untouched by this. Before coming to London for studies, Gandhiji had made a promise to his mother Putlibai and his uncle Becharaji Swami that he would stay away from eating meat, drinking alcohol and narrow-mindedness. He fasted to keep his promises and by doing so provided proof of something that eating could not have provided, the basis for his lifelong philosophy. As Gandhiji grew into adulthood, he became a complete vegetarian. Gandhiji himself was inspired by many great personalities during this period and became a friend of Dr. Josiah Oldfield, Chairman of the London Vegetarian Society. | {
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212 | इन्हें भी देखें: गांधीवादगांधी जी ने अपना जीवन सत्य, या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी स्वयं की गल्तियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया। गांधी जी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ने के लिए अपने दुष्टात्माओं , भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना है। गांधी जी ने अपने विचारों को सबसे पहले उस समय संक्षेप में व्यक्त किया जब उन्होंने कहा भगवान ही सत्य है| बाद में उन्होंने अपने इस कथन को सत्य ही भगवान है में बदल दिया। इस प्रकार , सत्य में गांधी के दर्शन है " परमेश्वर "|हालांकि गांधी जी अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक बिल्कुल नहीं थे फिर भी इसे बड़े पैमाने पर राजनैतिक क्षेत्र में इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। अहिंसा (non-violence), अहिंसा (ahimsa) और अप्रतिकार (non-resistance) का भारतीय धार्मिक विचारों में एक लंबा इतिहास है और इसके हिंदु, बौद्ध, जैन, यहूदी और ईसाई समुदायों में बहुत सी अवधारणाएं हैं। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ " (The Story of My Experiments with Truth)में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है। उन्हें कहते हुए बताया गया था :जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हतयारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें। " मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है। एक आंख के लिए दूसरी आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी। मरने के लिए मैरे पास बहुत से कारण है किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है "इन सिद्धातों को लागू करने में गांधी जी ने इन्हें दुनिया को दिखाने के लिए सर्वाधिक तार्किक सीमा पर ले जाने से भी मुंह नहीं मोड़ा जहां सरकार, पुलिस और सेनाए भी अहिंसात्मक बन गईं थीं। " फॉर पसिफिस्ट्स." नामक पुस्तक से उद्धरण लिए गए हैं। विज्ञान का युद्ध किसी व्यक्ति को तानाशाही , शुद्ध और सरलता की ओर ले जाता है। अहिंसा का विज्ञान अकेले ही किसी व्यक्ति को शुद्ध लोकतंत्र के मार्ग की ओर ले जा सकता है। प्रेम पर आधारित शक्ति सजा के डर से उत्पन्न शक्ति से हजार गुणा अधिक और स्थायी होती है। यह कहना निन्दा करने जैसा होगा कि कि अहिंसा का अभ्यास केवल व्यक्तिगत तौर पर किया जा सकता है और व्यक्तिवादिता वाले देश इसका कभी भी अभ्यास नहीं कर सकते हैं। शुद्ध अराजकता का निकटतम दृष्टिकोण अहिंसा पर आधारित लोकतंत्र होगा; संपूर्ण अहिंसा के आधार पर संगठित और चलने वाला कोई समाज शुद्ध अराजकता वाला समाज होगा। मैं ने भी स्वीकार किया कि एक अहिंसक राज्य में भी पुलिस बल की जरूरत अनिवार्य हो सकती है। पुलिस रैंकों का गठन अहिंसा में विश्वास रखने वालों से किया जाएगा। लोग उनकी हर संभव मदद करेंगे और आपसी सहयोग के माध्यम से वे किसी भी उपद्रव का आसानी से सामना कर लेंगे ...श्रम और पूंजी तथा हड़तालों के बीव हिंसक झगड़े बहुत कम होंगे और अहिंसक राज्यों में तो बहुत कम होंगे क्योंकि अहिंसक समाज की बाहुलता का प्रभाव समाज में प्रमुख तत्वों का सम्मान करने के लिए महान होगा। इसी प्रकार साम्प्रदायिक अव्यवस्था के लिए कोई जगह नहीं होगी;। शांति एवं अव्यवस्था के समय सशस्त्र सैनिकों की तरह सेना का कोई अहिंसात्मक कार्य उनका यह कर्तव्य होगा कि वे विजय दिलाने वाले समुदायों को एकजुट करें जिसमें शांति का प्रसार, तथा ऐसी गतिविधियों का समावेश हो जो किसी भी व्यक्ति को उसके चर्च अथवा खंड में संपर्क बनाए रखते हुए अपने साथ मिला लें। इस प्रकार की सैना को किसी भी आपात स्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा भीड़ के क्रोध को शांत करने के लिए उसके पास मरने के लिए सैनिकों की पर्याप्त नफरी भी होनी चाहिए;सत्याग्रह (सत्यबल) के बिग्रेड को प्रत्येक गांव तथा शहर तक भवनों के प्रत्येक ब्लॉक में संगठित किया जा सकता हैयदि अहिंसात्मक समाज पर हमला किया जाता है तब अहिंसा के दो मार्ग खुलते हैं। अधिकार पाने के लिए हमलावर से सहयोग न करें बल्कि समर्पण करने की अपेक्षा मृत्यु को गले लगाना पसंद करें। दूसरा तरीका होगा ऐसी जनता द्वारा अहिंसक प्रतिरोध करना हो सकता है जिन्हें अहिंसक तरीके से प्रशिक्षित किया गया हो ...इस अप्रत्याशित प्रदर्शन की अनंत राहों पर आदमियों और महिलाओं को हमलावर की इच्छा लिए आत्मसमर्पण करने की बजाए आसानी से मरना अच्छा लगता है और अंतंत: उसे तथा उसकी सैनिक बहादुरी के समक्ष पिघलना जरूर पड़ता है। ऐसे किसी देश अथवा समूह जिसने अंहिंसा को अपनी अंतिम नीति बना लिया है उसे परमाणु बम भी अपना दास नहीं बना सकता है। उस देश में अहिंसा का स्तर खुशी-खुशी गुजरता है तब वह प्राकृतिक तौर पर इतना अधिक बढ़ जाता है कि उसे सार्वभोमिक आदर मिलने लगता है। इन विचारों के अनुरूप १९४० में जब नाजी जर्मनी द्वारा अंग्रेजों के द्वीपों पर किए गए हमले आसन्न दिखाई दिए तब गांधी जी ने अंग्रेजों को शांति और युद्ध में अहिंसा की निम्नलिखित नीति का अनुसरण करने को कहा। मैं आपसे हथियार रखने के लिए कहना पसंद करूंगा क्योंकि ये आपको अथवा मानवता को बचाने में बेकार हैं। आपको हेर हिटलर और सिगनोर मुसोलिनी को आमंत्रित करना होगा कि उन्हें देशों से जो कुछ चाहिए आप उन्हें अपना अधिकार कहते हैं। यदि इन सज्जनों को अपने घर पर रहने का चयन करना है तब आपको उन्हें खाली करना होगा। यदि वे तुम्हें आसानी से रास्ता नहीं देते हैं तब आप अपने आपको , पुरूषों को महिलाओं को और बच्चों की बलि देने की अनुमति देंगे किंतु अपनी निष्ठा के प्रति झुकने से इंकार करेंगे। १९४६ में युद्ध के बाद दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने इससे भी आगे एक विचार का प्रस्तुतीकरण किया। यहूदियों को अपने लिए स्वयं कसाई का चाकू दे देना चाहिए था। उन्हें अपने आप को समुद्री चट्टानों से समुद्र के अंदर फैंक देना चाहिए था। फिर भी गांधी जी को पता था कि इस प्रकार के अहिंसा के स्तर को अटूट विश्वास और साहस की जरूरत होगी और इसके लिए उसने महसूस कर लिया था कि यह हर किसी के पास नहीं होता है। इसलिए उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को परामर्श दिया कि उन्हें अहिंसा को अपने पास रखने की जरूरत नहीं है खास तौर पर उस समय जब इसे कायरता के संरक्षण के लिए उपयोग में किया गया हो। गांधी जी ने अपने सत्याग्रह आंदोलन में ऐसे लोगों को दूर ही रखा जो हथियार उठाने से डरते थे अथवा प्रतिरोध करने में स्वयं की अक्षमता का अनुभव करते थे। उन्होंने लिखा कि :मैं मानता हूं कि जहां डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूंगा। प्रत्येक सभा पर मैं तब तक चेतावनी दोहराता रहता था जब तक वन्हें यह अहसास नहीं हो जाता है कि वे एक ऐसे अंहिसात्मक बल के अधिकार में आ गए हैं जिसके अधिकार में वे पहले भी थे और वे उस प्रयोग के आदि हो चुके थे और उनका मानना था कि उन्हें अहिंसा से कुछ लेना देना नहीं हैं तथा फिर से हथियार उठा लिए थे। खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgar)के बारे में ऐसा कभी नहीं कहना चाहिए कि जो एक बार इतने बहादुर थे कि बादशाह खान (Badshah Khan)के प्रभाव में अब वे डरपोक बन गए। वीरता केवल अच्छे निशाने वालों में ही नहीं होती है बल्कि मृत्यु को हरा देने वालों में तथा अपनी छातियों को गोली खाने के लिए सदा तैयार रहने वालों में भी होती है। बाल्यावस्था में गांधी को मांस खाने का अनुभव मिला। ऐसा उनकी उत्तराधिकारी जिज्ञासा के कारण ही था जिसमें उसके उत्साहवर्धक मित्र शेख मेहताब का भी योगदान था। वेजीटेरियनिज्म का विचार भारत की हिंदु और जैन प्रथाओं में कूट-कूट कर भरा हुआ था तथा उनकी मातृभूमि गुजरात में ज्यादातर हिंदु शाकाहारी ही थे। इसी तरह जैन भी थे। गांधी का परिवार भी इससे अछूता नहीं था। पढाई के लिए लंदन आने से पूर्व गांधी जी ने अपनी माता पुतलीबाई और अपने चाचा बेचारजी स्वामी से एक वायदा किया था कि वे मांस खाने, शराब पीने से तथा संकीणता से दूर रहेंगे। उन्होने अपने वायदे रखने के लिए उपवास किए और ऐसा करने से सबूत कुछ ऐसा मिला जो भोजन करने से नहीं मिल सकता था, उन्होंने अपने जीवन पर्यन्त दर्शन के लिए आधार जो प्राप्त कर लिया था। जैसे जैसे गांधी जी व्यस्क होते गए वे पूर्णतया शाकाहारी बन गए। गांधी जी स्वयं इस अवधि में बहुत सी महान विभूतियों से प्रेरित हुए और लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के चैयरमेन डॉ० जोसिया ओल्डफील्ड के मित्र बन गए। | द वेजिटेरियन सोसाइटी ऑफ़ लन्दन में गांधी जी के मित्र का क्या नाम था? | {
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} | What was the name of Gandhiji's friend in The Vegetarian Society of London? | See also: Gandhism Gandhi dedicated his life to the comprehensive search for truth, or truth. He tried to learn from his own mistakes and experiment on himself to achieve this goal. He named his autobiography the experiment of truth. Gandhiji said that the most important battle to fight is to overcome elements like our demons, fear and insecurity. Gandhiji first expressed his thoughts briefly when he said that God is the truth. Later he changed his statement to Truth is God. Thus, Gandhi's philosophy in truth is "God". Although Gandhiji was not at all the originator of the principle of non-violence, he was the first person to use it on a large scale in the political field. Non-violence, ahimsa and non-resistance have a long history in Indian religious thought and are common concepts in Hindu, Buddhist, Jain, Jewish and Christian communities. Gandhiji described his philosophy and his life's path in his autobiography The Story of My Experiments with Truth. He was quoted as saying: When I am disappointed I remember I believe that although history is the path of truth, love always conquers it. There have been tyrants and murderers and for some time they seemed invincible but in the end they fall - always think of this. " Dead, What difference does it make to the orphans and the homeless that beneath the sacred name of freedom and democracy lies the mad destruction of totalitarianism? One eye for another will make the whole world blind. I have many reasons to die, but I have no reason to kill anyone." In applying these principles, Gandhiji did not shy away from taking them to their most logical limits to show them to the world where the government , the police and the army also became non-violent. The quotations are from the book "For Pacifists." The war of science leads one to dictatorship, pure and simple. The science of non-violence alone leads one to pure democracy. can lead to the path of violence. The power based on love is a thousand times greater and more permanent than the power generated by the fear of punishment. It would be blasphemous to say that non-violence can be practiced only individually and by those who are individualistic. Countries can never practice this. The nearest approach to pure anarchy would be a democracy based on nonviolence; any society organized and run on the basis of complete nonviolence would be a society of pure anarchy. I also admitted that even in a nonviolent state the police The need for force may be inevitable.The police ranks will be composed of those who believe in non-violence. People will help them in every possible way and through mutual cooperation they will easily face any disturbance…There will be very few violent conflicts between labor and capital and strikes and in non-violent states there will be even less because of the majority of non-violent society. The impact of will be great to respect the key elements in the society. Similarly, there will be no room for communal disorder. Like armed forces in times of peace or disorder, their duty will be to unite communities to victory, including the promotion of peace, and activities that will connect any individual to his or her church or denomination. Keep it and mix it with yourself. This type of army should be ready to fight any emergency and should also have sufficient courage of soldiers to die to calm the anger of the crowd; Satyagraha (Satyabal) brigades should be sent to every village and city. Every block of buildings can be organized. If a non-violent society is attacked then two paths to non-violence open up. Do not cooperate with the attacker to gain authority but prefer to embrace death rather than surrender. Another way would be non-violent resistance by a population that has been trained in non-violent methods...The men and women on the endless lines of this unexpected demonstration would rather die easily than surrender to the will of the aggressor and ultimately : One has to melt before him and his military bravery. Even the atomic bomb cannot enslave any country or group that has made non-violence its ultimate policy. When the level of non-violence passes happily in that country, then it naturally increases so much that it starts getting universal respect. In line with these ideas, when in 1940 an attack by Nazi Germany on the British Isles appeared imminent, Gandhiji asked the British to follow the following policy of non-violence in peace and war. I would prefer to ask you to lay down your weapons as they are useless in saving you or humanity. You have to invite Herr Hitler and Signor Mussolini to do whatever they want from the countries you call your right. If these gentlemen choose to stay at your home then you will have to vacate them. If they do not give you easy way then you will allow yourselves, men, women and children to be sacrificed but will refuse to bend your allegiance. In an interview given after the war in 1946, he A further idea was also presented. The Jews should have provided themselves with the butcher's knife. He should have thrown himself into the sea from the sea cliffs. Yet Gandhiji knew that this level of nonviolence would require unwavering faith and courage, and he realized that not everyone had it. Therefore he advised everyone that they need not keep non-violence to themselves especially when it is used to protect cowardice. In his Satyagraha movement, Gandhiji kept away those people who were afraid of taking up arms or felt incapable of resisting. He wrote: I believe that where there is a choice between cowardice and violence, I will give my opinion in favor of violence. I would repeat the warning at every meeting until they realized that they had come under the control of a non-violent force similar to that which they had been in control of before and that they had become accustomed to that use and believed that He said that he had nothing to do with non-violence and had again taken up arms. It should never be said about Khudai Khidmatgar that those who were once so brave have now become cowards under the influence of Badshah Khan. Bravery is found not only in those who are good marksmen but also in those who defeat death and are always ready to take a bullet to their chests. Gandhi had the experience of eating meat in his childhood. This was due to his curiosity about his successor, in which his encouraging friend Sheikh Mehtab also contributed. The idea of vegetarianism was deeply embedded in the Hindu and Jain practices of India and in his homeland Gujarat, most Hindus were vegetarian. Similarly, Jains were also there. Gandhi's family was also not untouched by this. Before coming to London for studies, Gandhiji had made a promise to his mother Putlibai and his uncle Becharaji Swami that he would stay away from eating meat, drinking alcohol and narrow-mindedness. He fasted to keep his promises and by doing so provided proof of something that eating could not have provided, the basis for his lifelong philosophy. As Gandhiji grew into adulthood, he became a complete vegetarian. Gandhiji himself was inspired by many great personalities during this period and became a friend of Dr. Josiah Oldfield, Chairman of the London Vegetarian Society. | {
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"Dr. Josiah Oldfield"
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213 | इन्हें भी देखें: गांधीवादगांधी जी ने अपना जीवन सत्य, या सच्चाई की व्यापक खोज में समर्पित कर दिया। उन्होंने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी स्वयं की गल्तियों और खुद पर प्रयोग करते हुए सीखने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आत्मकथा को सत्य के प्रयोग का नाम दिया। गांधी जी ने कहा कि सबसे महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ने के लिए अपने दुष्टात्माओं , भय और असुरक्षा जैसे तत्वों पर विजय पाना है। गांधी जी ने अपने विचारों को सबसे पहले उस समय संक्षेप में व्यक्त किया जब उन्होंने कहा भगवान ही सत्य है| बाद में उन्होंने अपने इस कथन को सत्य ही भगवान है में बदल दिया। इस प्रकार , सत्य में गांधी के दर्शन है " परमेश्वर "|हालांकि गांधी जी अहिंसा के सिद्धांत के प्रवर्तक बिल्कुल नहीं थे फिर भी इसे बड़े पैमाने पर राजनैतिक क्षेत्र में इस्तेमाल करने वाले वे पहले व्यक्ति थे। अहिंसा (non-violence), अहिंसा (ahimsa) और अप्रतिकार (non-resistance) का भारतीय धार्मिक विचारों में एक लंबा इतिहास है और इसके हिंदु, बौद्ध, जैन, यहूदी और ईसाई समुदायों में बहुत सी अवधारणाएं हैं। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा द स्टोरी ऑफ़ माय एक्सपेरिमेंट्स विथ ट्रुथ " (The Story of My Experiments with Truth)में दर्शन और अपने जीवन के मार्ग का वर्णन किया है। उन्हें कहते हुए बताया गया था :जब मैं निराश होता हूं तब मैं याद करता हूं कि हालांकि इतिहास सत्य का मार्ग होता है किंतु प्रेम इसे सदैव जीत लेता है। यहां अत्याचारी और हतयारे भी हुए हैं और कुछ समय के लिए वे अपराजय लगते थे किंतु अंत में उनका पतन ही होता है -इसका सदैव विचार करें। " मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है। एक आंख के लिए दूसरी आंख पूरी दुनिया को अंधा बना देगी। मरने के लिए मैरे पास बहुत से कारण है किंतु मेरे पास किसी को मारने का कोई भी कारण नहीं है "इन सिद्धातों को लागू करने में गांधी जी ने इन्हें दुनिया को दिखाने के लिए सर्वाधिक तार्किक सीमा पर ले जाने से भी मुंह नहीं मोड़ा जहां सरकार, पुलिस और सेनाए भी अहिंसात्मक बन गईं थीं। " फॉर पसिफिस्ट्स." नामक पुस्तक से उद्धरण लिए गए हैं। विज्ञान का युद्ध किसी व्यक्ति को तानाशाही , शुद्ध और सरलता की ओर ले जाता है। अहिंसा का विज्ञान अकेले ही किसी व्यक्ति को शुद्ध लोकतंत्र के मार्ग की ओर ले जा सकता है। प्रेम पर आधारित शक्ति सजा के डर से उत्पन्न शक्ति से हजार गुणा अधिक और स्थायी होती है। यह कहना निन्दा करने जैसा होगा कि कि अहिंसा का अभ्यास केवल व्यक्तिगत तौर पर किया जा सकता है और व्यक्तिवादिता वाले देश इसका कभी भी अभ्यास नहीं कर सकते हैं। शुद्ध अराजकता का निकटतम दृष्टिकोण अहिंसा पर आधारित लोकतंत्र होगा; संपूर्ण अहिंसा के आधार पर संगठित और चलने वाला कोई समाज शुद्ध अराजकता वाला समाज होगा। मैं ने भी स्वीकार किया कि एक अहिंसक राज्य में भी पुलिस बल की जरूरत अनिवार्य हो सकती है। पुलिस रैंकों का गठन अहिंसा में विश्वास रखने वालों से किया जाएगा। लोग उनकी हर संभव मदद करेंगे और आपसी सहयोग के माध्यम से वे किसी भी उपद्रव का आसानी से सामना कर लेंगे ...श्रम और पूंजी तथा हड़तालों के बीव हिंसक झगड़े बहुत कम होंगे और अहिंसक राज्यों में तो बहुत कम होंगे क्योंकि अहिंसक समाज की बाहुलता का प्रभाव समाज में प्रमुख तत्वों का सम्मान करने के लिए महान होगा। इसी प्रकार साम्प्रदायिक अव्यवस्था के लिए कोई जगह नहीं होगी;। शांति एवं अव्यवस्था के समय सशस्त्र सैनिकों की तरह सेना का कोई अहिंसात्मक कार्य उनका यह कर्तव्य होगा कि वे विजय दिलाने वाले समुदायों को एकजुट करें जिसमें शांति का प्रसार, तथा ऐसी गतिविधियों का समावेश हो जो किसी भी व्यक्ति को उसके चर्च अथवा खंड में संपर्क बनाए रखते हुए अपने साथ मिला लें। इस प्रकार की सैना को किसी भी आपात स्थिति से लड़ने के लिए तैयार रहना चाहिए तथा भीड़ के क्रोध को शांत करने के लिए उसके पास मरने के लिए सैनिकों की पर्याप्त नफरी भी होनी चाहिए;सत्याग्रह (सत्यबल) के बिग्रेड को प्रत्येक गांव तथा शहर तक भवनों के प्रत्येक ब्लॉक में संगठित किया जा सकता हैयदि अहिंसात्मक समाज पर हमला किया जाता है तब अहिंसा के दो मार्ग खुलते हैं। अधिकार पाने के लिए हमलावर से सहयोग न करें बल्कि समर्पण करने की अपेक्षा मृत्यु को गले लगाना पसंद करें। दूसरा तरीका होगा ऐसी जनता द्वारा अहिंसक प्रतिरोध करना हो सकता है जिन्हें अहिंसक तरीके से प्रशिक्षित किया गया हो ...इस अप्रत्याशित प्रदर्शन की अनंत राहों पर आदमियों और महिलाओं को हमलावर की इच्छा लिए आत्मसमर्पण करने की बजाए आसानी से मरना अच्छा लगता है और अंतंत: उसे तथा उसकी सैनिक बहादुरी के समक्ष पिघलना जरूर पड़ता है। ऐसे किसी देश अथवा समूह जिसने अंहिंसा को अपनी अंतिम नीति बना लिया है उसे परमाणु बम भी अपना दास नहीं बना सकता है। उस देश में अहिंसा का स्तर खुशी-खुशी गुजरता है तब वह प्राकृतिक तौर पर इतना अधिक बढ़ जाता है कि उसे सार्वभोमिक आदर मिलने लगता है। इन विचारों के अनुरूप १९४० में जब नाजी जर्मनी द्वारा अंग्रेजों के द्वीपों पर किए गए हमले आसन्न दिखाई दिए तब गांधी जी ने अंग्रेजों को शांति और युद्ध में अहिंसा की निम्नलिखित नीति का अनुसरण करने को कहा। मैं आपसे हथियार रखने के लिए कहना पसंद करूंगा क्योंकि ये आपको अथवा मानवता को बचाने में बेकार हैं। आपको हेर हिटलर और सिगनोर मुसोलिनी को आमंत्रित करना होगा कि उन्हें देशों से जो कुछ चाहिए आप उन्हें अपना अधिकार कहते हैं। यदि इन सज्जनों को अपने घर पर रहने का चयन करना है तब आपको उन्हें खाली करना होगा। यदि वे तुम्हें आसानी से रास्ता नहीं देते हैं तब आप अपने आपको , पुरूषों को महिलाओं को और बच्चों की बलि देने की अनुमति देंगे किंतु अपनी निष्ठा के प्रति झुकने से इंकार करेंगे। १९४६ में युद्ध के बाद दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने इससे भी आगे एक विचार का प्रस्तुतीकरण किया। यहूदियों को अपने लिए स्वयं कसाई का चाकू दे देना चाहिए था। उन्हें अपने आप को समुद्री चट्टानों से समुद्र के अंदर फैंक देना चाहिए था। फिर भी गांधी जी को पता था कि इस प्रकार के अहिंसा के स्तर को अटूट विश्वास और साहस की जरूरत होगी और इसके लिए उसने महसूस कर लिया था कि यह हर किसी के पास नहीं होता है। इसलिए उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को परामर्श दिया कि उन्हें अहिंसा को अपने पास रखने की जरूरत नहीं है खास तौर पर उस समय जब इसे कायरता के संरक्षण के लिए उपयोग में किया गया हो। गांधी जी ने अपने सत्याग्रह आंदोलन में ऐसे लोगों को दूर ही रखा जो हथियार उठाने से डरते थे अथवा प्रतिरोध करने में स्वयं की अक्षमता का अनुभव करते थे। उन्होंने लिखा कि :मैं मानता हूं कि जहां डरपोक और हिंसा में से किसी एक को चुनना हो तो मैं हिंसा के पक्ष में अपनी राय दूंगा। प्रत्येक सभा पर मैं तब तक चेतावनी दोहराता रहता था जब तक वन्हें यह अहसास नहीं हो जाता है कि वे एक ऐसे अंहिसात्मक बल के अधिकार में आ गए हैं जिसके अधिकार में वे पहले भी थे और वे उस प्रयोग के आदि हो चुके थे और उनका मानना था कि उन्हें अहिंसा से कुछ लेना देना नहीं हैं तथा फिर से हथियार उठा लिए थे। खुदाई खिदमतगार (Khudai Khidmatgar)के बारे में ऐसा कभी नहीं कहना चाहिए कि जो एक बार इतने बहादुर थे कि बादशाह खान (Badshah Khan)के प्रभाव में अब वे डरपोक बन गए। वीरता केवल अच्छे निशाने वालों में ही नहीं होती है बल्कि मृत्यु को हरा देने वालों में तथा अपनी छातियों को गोली खाने के लिए सदा तैयार रहने वालों में भी होती है। बाल्यावस्था में गांधी को मांस खाने का अनुभव मिला। ऐसा उनकी उत्तराधिकारी जिज्ञासा के कारण ही था जिसमें उसके उत्साहवर्धक मित्र शेख मेहताब का भी योगदान था। वेजीटेरियनिज्म का विचार भारत की हिंदु और जैन प्रथाओं में कूट-कूट कर भरा हुआ था तथा उनकी मातृभूमि गुजरात में ज्यादातर हिंदु शाकाहारी ही थे। इसी तरह जैन भी थे। गांधी का परिवार भी इससे अछूता नहीं था। पढाई के लिए लंदन आने से पूर्व गांधी जी ने अपनी माता पुतलीबाई और अपने चाचा बेचारजी स्वामी से एक वायदा किया था कि वे मांस खाने, शराब पीने से तथा संकीणता से दूर रहेंगे। उन्होने अपने वायदे रखने के लिए उपवास किए और ऐसा करने से सबूत कुछ ऐसा मिला जो भोजन करने से नहीं मिल सकता था, उन्होंने अपने जीवन पर्यन्त दर्शन के लिए आधार जो प्राप्त कर लिया था। जैसे जैसे गांधी जी व्यस्क होते गए वे पूर्णतया शाकाहारी बन गए। गांधी जी स्वयं इस अवधि में बहुत सी महान विभूतियों से प्रेरित हुए और लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के चैयरमेन डॉ० जोसिया ओल्डफील्ड के मित्र बन गए। | शाकाहार से सम्बंधित महात्मा गाँधी के लेख कहाँ प्रकाशित हुए थे? | {
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} | Where were Mahatma Gandhi's writings on vegetarianism published? | See also: Gandhism Gandhi dedicated his life to the comprehensive search for truth, or truth. He tried to learn from his own mistakes and experiment on himself to achieve this goal. He named his autobiography the experiment of truth. Gandhiji said that the most important battle to fight is to overcome elements like our demons, fear and insecurity. Gandhiji first expressed his thoughts briefly when he said that God is the truth. Later he changed his statement to Truth is God. Thus, Gandhi's philosophy in truth is "God". Although Gandhiji was not at all the originator of the principle of non-violence, he was the first person to use it on a large scale in the political field. Non-violence, ahimsa and non-resistance have a long history in Indian religious thought and are common concepts in Hindu, Buddhist, Jain, Jewish and Christian communities. Gandhiji described his philosophy and his life's path in his autobiography The Story of My Experiments with Truth. He was quoted as saying: When I am disappointed I remember I believe that although history is the path of truth, love always conquers it. There have been tyrants and murderers and for some time they seemed invincible but in the end they fall - always think of this. " Dead, What difference does it make to the orphans and the homeless that beneath the sacred name of freedom and democracy lies the mad destruction of totalitarianism? One eye for another will make the whole world blind. I have many reasons to die, but I have no reason to kill anyone." In applying these principles, Gandhiji did not shy away from taking them to their most logical limits to show them to the world where the government , the police and the army also became non-violent. The quotations are from the book "For Pacifists." The war of science leads one to dictatorship, pure and simple. The science of non-violence alone leads one to pure democracy. can lead to the path of violence. The power based on love is a thousand times greater and more permanent than the power generated by the fear of punishment. It would be blasphemous to say that non-violence can be practiced only individually and by those who are individualistic. Countries can never practice this. The nearest approach to pure anarchy would be a democracy based on nonviolence; any society organized and run on the basis of complete nonviolence would be a society of pure anarchy. I also admitted that even in a nonviolent state the police The need for force may be inevitable.The police ranks will be composed of those who believe in non-violence. People will help them in every possible way and through mutual cooperation they will easily face any disturbance…There will be very few violent conflicts between labor and capital and strikes and in non-violent states there will be even less because of the majority of non-violent society. The impact of will be great to respect the key elements in the society. Similarly, there will be no room for communal disorder. Like armed forces in times of peace or disorder, their duty will be to unite communities to victory, including the promotion of peace, and activities that will connect any individual to his or her church or denomination. Keep it and mix it with yourself. This type of army should be ready to fight any emergency and should also have sufficient courage of soldiers to die to calm the anger of the crowd; Satyagraha (Satyabal) brigades should be sent to every village and city. Every block of buildings can be organized. If a non-violent society is attacked then two paths to non-violence open up. Do not cooperate with the attacker to gain authority but prefer to embrace death rather than surrender. Another way would be non-violent resistance by a population that has been trained in non-violent methods...The men and women on the endless lines of this unexpected demonstration would rather die easily than surrender to the will of the aggressor and ultimately : One has to melt before him and his military bravery. Even the atomic bomb cannot enslave any country or group that has made non-violence its ultimate policy. When the level of non-violence passes happily in that country, then it naturally increases so much that it starts getting universal respect. In line with these ideas, when in 1940 an attack by Nazi Germany on the British Isles appeared imminent, Gandhiji asked the British to follow the following policy of non-violence in peace and war. I would prefer to ask you to lay down your weapons as they are useless in saving you or humanity. You have to invite Herr Hitler and Signor Mussolini to do whatever they want from the countries you call your right. If these gentlemen choose to stay at your home then you will have to vacate them. If they do not give you easy way then you will allow yourselves, men, women and children to be sacrificed but will refuse to bend your allegiance. In an interview given after the war in 1946, he A further idea was also presented. The Jews should have provided themselves with the butcher's knife. He should have thrown himself into the sea from the sea cliffs. Yet Gandhiji knew that this level of nonviolence would require unwavering faith and courage, and he realized that not everyone had it. Therefore he advised everyone that they need not keep non-violence to themselves especially when it is used to protect cowardice. In his Satyagraha movement, Gandhiji kept away those people who were afraid of taking up arms or felt incapable of resisting. He wrote: I believe that where there is a choice between cowardice and violence, I will give my opinion in favor of violence. I would repeat the warning at every meeting until they realized that they had come under the control of a non-violent force similar to that which they had been in control of before and that they had become accustomed to that use and believed that He said that he had nothing to do with non-violence and had again taken up arms. It should never be said about Khudai Khidmatgar that those who were once so brave have now become cowards under the influence of Badshah Khan. Bravery is found not only in those who are good marksmen but also in those who defeat death and are always ready to take a bullet to their chests. Gandhi had the experience of eating meat in his childhood. This was due to his curiosity about his successor, in which his encouraging friend Sheikh Mehtab also contributed. The idea of vegetarianism was deeply embedded in the Hindu and Jain practices of India and in his homeland Gujarat, most Hindus were vegetarian. Similarly, Jains were also there. Gandhi's family was also not untouched by this. Before coming to London for studies, Gandhiji had made a promise to his mother Putlibai and his uncle Becharaji Swami that he would stay away from eating meat, drinking alcohol and narrow-mindedness. He fasted to keep his promises and by doing so provided proof of something that eating could not have provided, the basis for his lifelong philosophy. As Gandhiji grew into adulthood, he became a complete vegetarian. Gandhiji himself was inspired by many great personalities during this period and became a friend of Dr. Josiah Oldfield, Chairman of the London Vegetarian Society. | {
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214 | इन्हें भी देखें: चेन्नई का स्थापत्य एवं भारत के उपभाग चेन्नई शहर का प्रशासन चेन्नई नगर निगम के पास है। १६८८ में स्थापित हुआ यह निगम भारत में ही नहीं, ब्रिटेन के बाहर किसी भी राष्ट्रमंडल देश में सबसे पहला नगर निगम है। इसमें १५५ पार्षद है, जो चेन्नई के १५५ वार्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका चुनाव सीधे चेन्नई की जनता ही करती है। ये लोग अपने आप में से ही एक महापौर एवं एक उप-महापौर चुनते हैं जो छः समितियों का संचालन करता है। चेन्नई, तमिल नाडु राज्य की राजधानी होने से राज्य की कार्यपालिका और न्यायपालिका के मुख्यालय शहर में मुख्य रूप से फोर्ट सेंट जॉर्ज में सचिवालय इमारत में और शेष कार्यालय शहर में विभिन्न स्थानों पर अनेक इमारतों में स्थित हैं। मद्रास उच्च न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र तमिल नाडु राज्य और पुदुचेरी तक है। यह राज्य की सर्वोच्च न्याय संस्था है और चेन्नई में ही स्थापित है। चेन्नई में तीन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं – चेन्नई उत्तर, चेन्नई मध्य और चेन्नई दक्षिण और १८ विधान-सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। चेन्नई का महानगरीय क्षेत्र कई उपनगरों तक व्याप्त है, जिसमें कांचीपुरम जिला और तिरुवल्लुर जिला के भी क्षेत्र आते हैं। बडए उपनगरों में वहां की टाउन-नगर पालिकाएं हैं और छोटे क्षेत्रों में टाउन-परिषद हैं जिन्हें पंचायत कहते हैं। शहर का क्षेत्र जहां १७४ कि॰मी॰² (६७ मील²) है, वहीं उपनगरीय क्षेत्र ११८९ कि॰मी॰² (४५८ मील²) तक फैले हुए हैं। | सीएमडीए का पूरा नाम क्या है ? | {
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} | What is the full name of CMDA? | See also: Chennai's architecture of Chennai and the administration of Chennai city of India is with Chennai Municipal Corporation.This corporation, established in 14, is the first Municipal Corporation not only in India, but outside the UK in any Commonwealth country.It has 155 councilors, who represent 155 wards in Chennai.The people of Chennai directly choose them.These people choose a mayor and a Deputy Mayor from themselves who conducts six committees.Chennai, being the capital of the state of Tamil Nadu, is located mainly in the Secretariat building in Fort St. George and the remaining offices in various places in the city.The jurisdiction of the Madras High Court is to the Tamil Nadu state and Puducherry.It is the highest justice institution of the state and is established in Chennai.Chennai has three Lok Sabha constituencies-Chennai North, Chennai Central and Chennai South and 14 Vidhan Sabha constituencies.The metropolitan region of Chennai prevails up to many suburbs, including Kanchipuram district and the areas of Thiruvallur district.There are towns in the upper suburbs there are towns and councils in small areas which are called panchayats.While the area of the city is 14 km² (4 mile), the suburban areas are spread to 1179 km² (457 mile). | {
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215 | इन्हें भी देखें: चेन्नई का स्थापत्य एवं भारत के उपभाग चेन्नई शहर का प्रशासन चेन्नई नगर निगम के पास है। १६८८ में स्थापित हुआ यह निगम भारत में ही नहीं, ब्रिटेन के बाहर किसी भी राष्ट्रमंडल देश में सबसे पहला नगर निगम है। इसमें १५५ पार्षद है, जो चेन्नई के १५५ वार्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका चुनाव सीधे चेन्नई की जनता ही करती है। ये लोग अपने आप में से ही एक महापौर एवं एक उप-महापौर चुनते हैं जो छः समितियों का संचालन करता है। चेन्नई, तमिल नाडु राज्य की राजधानी होने से राज्य की कार्यपालिका और न्यायपालिका के मुख्यालय शहर में मुख्य रूप से फोर्ट सेंट जॉर्ज में सचिवालय इमारत में और शेष कार्यालय शहर में विभिन्न स्थानों पर अनेक इमारतों में स्थित हैं। मद्रास उच्च न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र तमिल नाडु राज्य और पुदुचेरी तक है। यह राज्य की सर्वोच्च न्याय संस्था है और चेन्नई में ही स्थापित है। चेन्नई में तीन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं – चेन्नई उत्तर, चेन्नई मध्य और चेन्नई दक्षिण और १८ विधान-सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। चेन्नई का महानगरीय क्षेत्र कई उपनगरों तक व्याप्त है, जिसमें कांचीपुरम जिला और तिरुवल्लुर जिला के भी क्षेत्र आते हैं। बडए उपनगरों में वहां की टाउन-नगर पालिकाएं हैं और छोटे क्षेत्रों में टाउन-परिषद हैं जिन्हें पंचायत कहते हैं। शहर का क्षेत्र जहां १७४ कि॰मी॰² (६७ मील²) है, वहीं उपनगरीय क्षेत्र ११८९ कि॰मी॰² (४५८ मील²) तक फैले हुए हैं। | चेन्नई शहर का क्षेत्रफल कितना है ? | {
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"१७४ कि॰मी॰²"
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} | What is the area of Chennai city? | See also: Chennai's architecture of Chennai and the administration of Chennai city of India is with Chennai Municipal Corporation.This corporation, established in 14, is the first Municipal Corporation not only in India, but outside the UK in any Commonwealth country.It has 155 councilors, who represent 155 wards in Chennai.The people of Chennai directly choose them.These people choose a mayor and a Deputy Mayor from themselves who conducts six committees.Chennai, being the capital of the state of Tamil Nadu, is located mainly in the Secretariat building in Fort St. George and the remaining offices in various places in the city.The jurisdiction of the Madras High Court is to the Tamil Nadu state and Puducherry.It is the highest justice institution of the state and is established in Chennai.Chennai has three Lok Sabha constituencies-Chennai North, Chennai Central and Chennai South and 14 Vidhan Sabha constituencies.The metropolitan region of Chennai prevails up to many suburbs, including Kanchipuram district and the areas of Thiruvallur district.There are towns in the upper suburbs there are towns and councils in small areas which are called panchayats.While the area of the city is 14 km² (4 mile), the suburban areas are spread to 1179 km² (457 mile). | {
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"174 km2"
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216 | इन्हें भी देखें: चेन्नई का स्थापत्य एवं भारत के उपभाग चेन्नई शहर का प्रशासन चेन्नई नगर निगम के पास है। १६८८ में स्थापित हुआ यह निगम भारत में ही नहीं, ब्रिटेन के बाहर किसी भी राष्ट्रमंडल देश में सबसे पहला नगर निगम है। इसमें १५५ पार्षद है, जो चेन्नई के १५५ वार्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका चुनाव सीधे चेन्नई की जनता ही करती है। ये लोग अपने आप में से ही एक महापौर एवं एक उप-महापौर चुनते हैं जो छः समितियों का संचालन करता है। चेन्नई, तमिल नाडु राज्य की राजधानी होने से राज्य की कार्यपालिका और न्यायपालिका के मुख्यालय शहर में मुख्य रूप से फोर्ट सेंट जॉर्ज में सचिवालय इमारत में और शेष कार्यालय शहर में विभिन्न स्थानों पर अनेक इमारतों में स्थित हैं। मद्रास उच्च न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र तमिल नाडु राज्य और पुदुचेरी तक है। यह राज्य की सर्वोच्च न्याय संस्था है और चेन्नई में ही स्थापित है। चेन्नई में तीन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं – चेन्नई उत्तर, चेन्नई मध्य और चेन्नई दक्षिण और १८ विधान-सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। चेन्नई का महानगरीय क्षेत्र कई उपनगरों तक व्याप्त है, जिसमें कांचीपुरम जिला और तिरुवल्लुर जिला के भी क्षेत्र आते हैं। बडए उपनगरों में वहां की टाउन-नगर पालिकाएं हैं और छोटे क्षेत्रों में टाउन-परिषद हैं जिन्हें पंचायत कहते हैं। शहर का क्षेत्र जहां १७४ कि॰मी॰² (६७ मील²) है, वहीं उपनगरीय क्षेत्र ११८९ कि॰मी॰² (४५८ मील²) तक फैले हुए हैं। | चेन्नई में कितने लोकसभा क्षेत्र है ? | {
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"तीन"
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} | How many Lok Sabha constituencies are there in Chennai? | See also: Chennai's architecture of Chennai and the administration of Chennai city of India is with Chennai Municipal Corporation.This corporation, established in 14, is the first Municipal Corporation not only in India, but outside the UK in any Commonwealth country.It has 155 councilors, who represent 155 wards in Chennai.The people of Chennai directly choose them.These people choose a mayor and a Deputy Mayor from themselves who conducts six committees.Chennai, being the capital of the state of Tamil Nadu, is located mainly in the Secretariat building in Fort St. George and the remaining offices in various places in the city.The jurisdiction of the Madras High Court is to the Tamil Nadu state and Puducherry.It is the highest justice institution of the state and is established in Chennai.Chennai has three Lok Sabha constituencies-Chennai North, Chennai Central and Chennai South and 14 Vidhan Sabha constituencies.The metropolitan region of Chennai prevails up to many suburbs, including Kanchipuram district and the areas of Thiruvallur district.There are towns in the upper suburbs there are towns and councils in small areas which are called panchayats.While the area of the city is 14 km² (4 mile), the suburban areas are spread to 1179 km² (457 mile). | {
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794
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"Three"
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217 | इन्हें भी देखें: चेन्नई का स्थापत्य एवं भारत के उपभाग चेन्नई शहर का प्रशासन चेन्नई नगर निगम के पास है। १६८८ में स्थापित हुआ यह निगम भारत में ही नहीं, ब्रिटेन के बाहर किसी भी राष्ट्रमंडल देश में सबसे पहला नगर निगम है। इसमें १५५ पार्षद है, जो चेन्नई के १५५ वार्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका चुनाव सीधे चेन्नई की जनता ही करती है। ये लोग अपने आप में से ही एक महापौर एवं एक उप-महापौर चुनते हैं जो छः समितियों का संचालन करता है। चेन्नई, तमिल नाडु राज्य की राजधानी होने से राज्य की कार्यपालिका और न्यायपालिका के मुख्यालय शहर में मुख्य रूप से फोर्ट सेंट जॉर्ज में सचिवालय इमारत में और शेष कार्यालय शहर में विभिन्न स्थानों पर अनेक इमारतों में स्थित हैं। मद्रास उच्च न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र तमिल नाडु राज्य और पुदुचेरी तक है। यह राज्य की सर्वोच्च न्याय संस्था है और चेन्नई में ही स्थापित है। चेन्नई में तीन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं – चेन्नई उत्तर, चेन्नई मध्य और चेन्नई दक्षिण और १८ विधान-सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। चेन्नई का महानगरीय क्षेत्र कई उपनगरों तक व्याप्त है, जिसमें कांचीपुरम जिला और तिरुवल्लुर जिला के भी क्षेत्र आते हैं। बडए उपनगरों में वहां की टाउन-नगर पालिकाएं हैं और छोटे क्षेत्रों में टाउन-परिषद हैं जिन्हें पंचायत कहते हैं। शहर का क्षेत्र जहां १७४ कि॰मी॰² (६७ मील²) है, वहीं उपनगरीय क्षेत्र ११८९ कि॰मी॰² (४५८ मील²) तक फैले हुए हैं। | चेन्नई नगर निगम की स्थापना किस वर्ष हुई थी ? | {
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"१६८८"
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} | In which year was the Chennai Municipal Corporation established? | See also: Chennai's architecture of Chennai and the administration of Chennai city of India is with Chennai Municipal Corporation.This corporation, established in 14, is the first Municipal Corporation not only in India, but outside the UK in any Commonwealth country.It has 155 councilors, who represent 155 wards in Chennai.The people of Chennai directly choose them.These people choose a mayor and a Deputy Mayor from themselves who conducts six committees.Chennai, being the capital of the state of Tamil Nadu, is located mainly in the Secretariat building in Fort St. George and the remaining offices in various places in the city.The jurisdiction of the Madras High Court is to the Tamil Nadu state and Puducherry.It is the highest justice institution of the state and is established in Chennai.Chennai has three Lok Sabha constituencies-Chennai North, Chennai Central and Chennai South and 14 Vidhan Sabha constituencies.The metropolitan region of Chennai prevails up to many suburbs, including Kanchipuram district and the areas of Thiruvallur district.There are towns in the upper suburbs there are towns and councils in small areas which are called panchayats.While the area of the city is 14 km² (4 mile), the suburban areas are spread to 1179 km² (457 mile). | {
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103
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"1688"
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218 | इन्हें भी देखें: चेन्नई का स्थापत्य एवं भारत के उपभाग चेन्नई शहर का प्रशासन चेन्नई नगर निगम के पास है। १६८८ में स्थापित हुआ यह निगम भारत में ही नहीं, ब्रिटेन के बाहर किसी भी राष्ट्रमंडल देश में सबसे पहला नगर निगम है। इसमें १५५ पार्षद है, जो चेन्नई के १५५ वार्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका चुनाव सीधे चेन्नई की जनता ही करती है। ये लोग अपने आप में से ही एक महापौर एवं एक उप-महापौर चुनते हैं जो छः समितियों का संचालन करता है। चेन्नई, तमिल नाडु राज्य की राजधानी होने से राज्य की कार्यपालिका और न्यायपालिका के मुख्यालय शहर में मुख्य रूप से फोर्ट सेंट जॉर्ज में सचिवालय इमारत में और शेष कार्यालय शहर में विभिन्न स्थानों पर अनेक इमारतों में स्थित हैं। मद्रास उच्च न्यायालय का अधिकार-क्षेत्र तमिल नाडु राज्य और पुदुचेरी तक है। यह राज्य की सर्वोच्च न्याय संस्था है और चेन्नई में ही स्थापित है। चेन्नई में तीन लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं – चेन्नई उत्तर, चेन्नई मध्य और चेन्नई दक्षिण और १८ विधान-सभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। चेन्नई का महानगरीय क्षेत्र कई उपनगरों तक व्याप्त है, जिसमें कांचीपुरम जिला और तिरुवल्लुर जिला के भी क्षेत्र आते हैं। बडए उपनगरों में वहां की टाउन-नगर पालिकाएं हैं और छोटे क्षेत्रों में टाउन-परिषद हैं जिन्हें पंचायत कहते हैं। शहर का क्षेत्र जहां १७४ कि॰मी॰² (६७ मील²) है, वहीं उपनगरीय क्षेत्र ११८९ कि॰मी॰² (४५८ मील²) तक फैले हुए हैं। | चेन्नई में कुल कितने विधानसभा क्षेत्र है ? | {
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"१८"
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874
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} | How many assembly constituencies are there in Chennai? | See also: Chennai's architecture of Chennai and the administration of Chennai city of India is with Chennai Municipal Corporation.This corporation, established in 14, is the first Municipal Corporation not only in India, but outside the UK in any Commonwealth country.It has 155 councilors, who represent 155 wards in Chennai.The people of Chennai directly choose them.These people choose a mayor and a Deputy Mayor from themselves who conducts six committees.Chennai, being the capital of the state of Tamil Nadu, is located mainly in the Secretariat building in Fort St. George and the remaining offices in various places in the city.The jurisdiction of the Madras High Court is to the Tamil Nadu state and Puducherry.It is the highest justice institution of the state and is established in Chennai.Chennai has three Lok Sabha constituencies-Chennai North, Chennai Central and Chennai South and 14 Vidhan Sabha constituencies.The metropolitan region of Chennai prevails up to many suburbs, including Kanchipuram district and the areas of Thiruvallur district.There are towns in the upper suburbs there are towns and councils in small areas which are called panchayats.While the area of the city is 14 km² (4 mile), the suburban areas are spread to 1179 km² (457 mile). | {
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874
],
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"18"
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} |
219 | इन्हें भी देखें: महाड़ सत्याग्रह एवं कालाराम मन्दिर सत्याग्रहआम्बेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। " आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास किये, जिसके लिये उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, किन्तु ये सभी प्रयास तब विफल हो गये जब उनके ग्राहकों ने जाना कि ये अछूत हैं। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि वे छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया। भारत सरकार अधिनियम १९१९, तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की। १९२० में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन शीघ्र ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया। | बी आर अंबेडकर द्वारा निर्मित पहले केन्द्रीय संस्था का क्या नाम था ? | {
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} | What was the name of the first central institution created by B. R. Ambedkar? | See also: Mahad Satyagraha and Kalaram Temple Satyagraha Aambedkar had said "untouchability is worse than slavery." Ambedkar was educated by the princely state of Baroda, so he was bound to serve him.He was appointed the military secretary of Maharaja Gaikwad, but due to caste discrimination, he had to quit the job in no time.He described the incident in his autobiography, waiting for a visa.After this, he made an effort to find livelihood means for his growing family, for which he also worked as an accountant, and as a private teacher, and established an investment consultation business, but all these efforts then then all these efforts thenTheir customers failed when they knew that they were untouchables.In 1918, he became a professor of political economics at Sydenham College of Commerce and Economics in Mumbai.Although he was successful with the students, other professors protested at sharing water drinking utensils with them.The Government of India Act, 1919, was invited to Ambedkar as a prominent scholar of India, to give evidence as a prominent scholar from India.During this hearing, Ambedkar advocated a separate election and reservation for Dalits and other religious communities.In 1920, from Bombay, he started the publication of the weekly mooknayak.This publication soon became popular among the readers, then Ambedkar used it to criticize the reluctance of the Indian political community for fighting orthodox Hindu politicians and ethnic discrimination.The speech given during a conference of his Dalit class greatly influenced the local ruler of Kolhapur state Shahu IV, whose food with Ambedkar created a stir in the orthodox society. | {
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220 | इन्हें भी देखें: महाड़ सत्याग्रह एवं कालाराम मन्दिर सत्याग्रहआम्बेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। " आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास किये, जिसके लिये उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, किन्तु ये सभी प्रयास तब विफल हो गये जब उनके ग्राहकों ने जाना कि ये अछूत हैं। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि वे छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया। भारत सरकार अधिनियम १९१९, तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की। १९२० में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन शीघ्र ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया। | अम्बेडकर की आत्मकथा का नाम क्या है ? | {
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"वेटिंग फॉर अ वीजा"
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357
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} | What is the name of Ambedkar's autobiography? | See also: Mahad Satyagraha and Kalaram Temple Satyagraha Aambedkar had said "untouchability is worse than slavery." Ambedkar was educated by the princely state of Baroda, so he was bound to serve him.He was appointed the military secretary of Maharaja Gaikwad, but due to caste discrimination, he had to quit the job in no time.He described the incident in his autobiography, waiting for a visa.After this, he made an effort to find livelihood means for his growing family, for which he also worked as an accountant, and as a private teacher, and established an investment consultation business, but all these efforts then then all these efforts thenTheir customers failed when they knew that they were untouchables.In 1918, he became a professor of political economics at Sydenham College of Commerce and Economics in Mumbai.Although he was successful with the students, other professors protested at sharing water drinking utensils with them.The Government of India Act, 1919, was invited to Ambedkar as a prominent scholar of India, to give evidence as a prominent scholar from India.During this hearing, Ambedkar advocated a separate election and reservation for Dalits and other religious communities.In 1920, from Bombay, he started the publication of the weekly mooknayak.This publication soon became popular among the readers, then Ambedkar used it to criticize the reluctance of the Indian political community for fighting orthodox Hindu politicians and ethnic discrimination.The speech given during a conference of his Dalit class greatly influenced the local ruler of Kolhapur state Shahu IV, whose food with Ambedkar created a stir in the orthodox society. | {
"answer_start": [
357
],
"text": [
"Waiting for a Visa"
]
} |
221 | इन्हें भी देखें: महाड़ सत्याग्रह एवं कालाराम मन्दिर सत्याग्रहआम्बेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। " आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास किये, जिसके लिये उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, किन्तु ये सभी प्रयास तब विफल हो गये जब उनके ग्राहकों ने जाना कि ये अछूत हैं। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि वे छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया। भारत सरकार अधिनियम १९१९, तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की। १९२० में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन शीघ्र ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया। | अम्बेडकर को किस रियासत द्वारा शिक्षित किया गया था ? | {
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"बड़ौदा के रियासत राज्य"
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120
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} | Ambedkar was educated by which princely state? | See also: Mahad Satyagraha and Kalaram Temple Satyagraha Aambedkar had said "untouchability is worse than slavery." Ambedkar was educated by the princely state of Baroda, so he was bound to serve him.He was appointed the military secretary of Maharaja Gaikwad, but due to caste discrimination, he had to quit the job in no time.He described the incident in his autobiography, waiting for a visa.After this, he made an effort to find livelihood means for his growing family, for which he also worked as an accountant, and as a private teacher, and established an investment consultation business, but all these efforts then then all these efforts thenTheir customers failed when they knew that they were untouchables.In 1918, he became a professor of political economics at Sydenham College of Commerce and Economics in Mumbai.Although he was successful with the students, other professors protested at sharing water drinking utensils with them.The Government of India Act, 1919, was invited to Ambedkar as a prominent scholar of India, to give evidence as a prominent scholar from India.During this hearing, Ambedkar advocated a separate election and reservation for Dalits and other religious communities.In 1920, from Bombay, he started the publication of the weekly mooknayak.This publication soon became popular among the readers, then Ambedkar used it to criticize the reluctance of the Indian political community for fighting orthodox Hindu politicians and ethnic discrimination.The speech given during a conference of his Dalit class greatly influenced the local ruler of Kolhapur state Shahu IV, whose food with Ambedkar created a stir in the orthodox society. | {
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120
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"text": [
"Princely States of Baroda"
]
} |
222 | इन्हें भी देखें: महाड़ सत्याग्रह एवं कालाराम मन्दिर सत्याग्रहआम्बेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। " आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास किये, जिसके लिये उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, किन्तु ये सभी प्रयास तब विफल हो गये जब उनके ग्राहकों ने जाना कि ये अछूत हैं। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि वे छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया। भारत सरकार अधिनियम १९१९, तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की। १९२० में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन शीघ्र ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया। | अम्बेडकर को किसके सामने गवाही देने के लिए आमंत्रित किया गया था ? | {
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"साउथबरो समिति के समक्ष"
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928
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} | Ambedkar was invited to testify before whom? | See also: Mahad Satyagraha and Kalaram Temple Satyagraha Aambedkar had said "untouchability is worse than slavery." Ambedkar was educated by the princely state of Baroda, so he was bound to serve him.He was appointed the military secretary of Maharaja Gaikwad, but due to caste discrimination, he had to quit the job in no time.He described the incident in his autobiography, waiting for a visa.After this, he made an effort to find livelihood means for his growing family, for which he also worked as an accountant, and as a private teacher, and established an investment consultation business, but all these efforts then then all these efforts thenTheir customers failed when they knew that they were untouchables.In 1918, he became a professor of political economics at Sydenham College of Commerce and Economics in Mumbai.Although he was successful with the students, other professors protested at sharing water drinking utensils with them.The Government of India Act, 1919, was invited to Ambedkar as a prominent scholar of India, to give evidence as a prominent scholar from India.During this hearing, Ambedkar advocated a separate election and reservation for Dalits and other religious communities.In 1920, from Bombay, he started the publication of the weekly mooknayak.This publication soon became popular among the readers, then Ambedkar used it to criticize the reluctance of the Indian political community for fighting orthodox Hindu politicians and ethnic discrimination.The speech given during a conference of his Dalit class greatly influenced the local ruler of Kolhapur state Shahu IV, whose food with Ambedkar created a stir in the orthodox society. | {
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928
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"before the Southborough Committee."
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223 | इन्हें भी देखें: महाड़ सत्याग्रह एवं कालाराम मन्दिर सत्याग्रहआम्बेडकर ने कहा था "छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। " आम्बेडकर बड़ौदा के रियासत राज्य द्वारा शिक्षित थे, अतः उनकी सेवा करने के लिए बाध्य थे। उन्हें महाराजा गायकवाड़ का सैन्य सचिव नियुक्त किया गया, लेकिन जातिगत भेदभाव के कारण कुछ ही समय में उन्हें यह नौकरी छोड़नी पडी। उन्होंने इस घटना को अपनी आत्मकथा, वेटिंग फॉर अ वीजा में वर्णित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने बढ़ते परिवार के लिए जीविका साधन खोजने के पुनः प्रयास किये, जिसके लिये उन्होंने लेखाकार के रूप में, व एक निजी शिक्षक के रूप में भी काम किया, और एक निवेश परामर्श व्यवसाय की स्थापना की, किन्तु ये सभी प्रयास तब विफल हो गये जब उनके ग्राहकों ने जाना कि ये अछूत हैं। 1918 में, ये मुंबई में सिडेनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर बने। हालांकि वे छात्रों के साथ सफल रहे, फिर भी अन्य प्रोफेसरों ने उनके साथ पानी पीने के बर्तन साझा करने पर विरोध किया। भारत सरकार अधिनियम १९१९, तैयार कर रही साउथबरो समिति के समक्ष, भारत के एक प्रमुख विद्वान के तौर पर आम्बेडकर को साक्ष्य देने के लिये आमंत्रित किया गया। इस सुनवाई के दौरान, आम्बेडकर ने दलितों और अन्य धार्मिक समुदायों के लिये पृथक निर्वाचिका और आरक्षण देने की वकालत की। १९२० में, बंबई से, उन्होंने साप्ताहिक मूकनायक के प्रकाशन की शुरूआत की। यह प्रकाशन शीघ्र ही पाठकों मे लोकप्रिय हो गया, तब आम्बेडकर ने इसका प्रयोग रूढ़िवादी हिंदू राजनेताओं व जातीय भेदभाव से लड़ने के प्रति भारतीय राजनैतिक समुदाय की अनिच्छा की आलोचना करने के लिये किया। उनके दलित वर्ग के एक सम्मेलन के दौरान दिये गये भाषण ने कोल्हापुर राज्य के स्थानीय शासक शाहू चतुर्थ को बहुत प्रभावित किया, जिनका आम्बेडकर के साथ भोजन करना रूढ़िवादी समाज मे हलचल मचा गया। | दलित अधिकारों की रक्षा के लिए अम्बेडकर ने कितनी पत्रिकाएं निकालीं थी ? | {
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""
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null
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} | How many journals did Ambedkar bring out to protect Dalit rights? | See also: Mahad Satyagraha and Kalaram Temple Satyagraha Aambedkar had said "untouchability is worse than slavery." Ambedkar was educated by the princely state of Baroda, so he was bound to serve him.He was appointed the military secretary of Maharaja Gaikwad, but due to caste discrimination, he had to quit the job in no time.He described the incident in his autobiography, waiting for a visa.After this, he made an effort to find livelihood means for his growing family, for which he also worked as an accountant, and as a private teacher, and established an investment consultation business, but all these efforts then then all these efforts thenTheir customers failed when they knew that they were untouchables.In 1918, he became a professor of political economics at Sydenham College of Commerce and Economics in Mumbai.Although he was successful with the students, other professors protested at sharing water drinking utensils with them.The Government of India Act, 1919, was invited to Ambedkar as a prominent scholar of India, to give evidence as a prominent scholar from India.During this hearing, Ambedkar advocated a separate election and reservation for Dalits and other religious communities.In 1920, from Bombay, he started the publication of the weekly mooknayak.This publication soon became popular among the readers, then Ambedkar used it to criticize the reluctance of the Indian political community for fighting orthodox Hindu politicians and ethnic discrimination.The speech given during a conference of his Dalit class greatly influenced the local ruler of Kolhapur state Shahu IV, whose food with Ambedkar created a stir in the orthodox society. | {
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null
],
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""
]
} |
224 | इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया, आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं। द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के अन्तर्गत १ जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। सन १९२७ तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "छुआछूत" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। 1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। | अछूत समुदाय को जलाशय से पानी निकालने का अधिकार के सत्याग्रह की शुरुआत किस शहर से हुई थी? | {
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"महाड शहर"
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} | The Satyagraha for the right of the untouchable community to draw water from the reservoir began in which city? | Protests took place across India in protest against this commission.While its report was ignored by most Indians, Ambedkar sent a recommendation for separate future constitutional reforms.Ambedkar held a ceremony on 1 January 1927 at the Koregaon Vijay Memorial (Jaistambha) in honor of the Indian Mahar soldiers killed during the Battle of Koregaon on 1 January 1818 under the Second Anglo-Maratha War.Here the names of the soldiers belonging to the Mahar community were excavated on an inscription of marble and made Koregaon a symbol of Dalit self -respect.By 1926, Dr. Ambedkar decided to start a broad and active movement against untouchability.He struggled to get the untouchables to enter Hindu temples, along with opening public resources of public resources to all sections of the society, through public movements, satyagrahas and processions.He also run a satyagraha to get the untouchable community in Mahad city to get the right to take water from the Chowdar reservoir of the city.At the conference in late 1927, Ambedkar publicly condemned the ancient Hindu text, Manusmriti, whose many positions, openly, openly, open caste discrimination and casteism, to make caste discrimination and "untouchability" ideologically., And they formally lit copies of ancient text.On 25 December 1927, he burnt copies of Manusmriti under the leadership of thousands of followers.In its memory, 25 December is celebrated every year by Ambedkarites and Hindu Dalits as Manusmriti Dahan Day.In 1930, Ambedkar started Kalaram Temple Satyagraha after three months of preparation. | {
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864
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"Mahad City"
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225 | इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया, आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं। द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के अन्तर्गत १ जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। सन १९२७ तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "छुआछूत" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। 1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। | कालाराम मंदिर आंदोलन किस वर्ष हुआ था ? | {
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"1930"
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} | In which year did the Kalaram Temple movement take place? | Protests took place across India in protest against this commission.While its report was ignored by most Indians, Ambedkar sent a recommendation for separate future constitutional reforms.Ambedkar held a ceremony on 1 January 1927 at the Koregaon Vijay Memorial (Jaistambha) in honor of the Indian Mahar soldiers killed during the Battle of Koregaon on 1 January 1818 under the Second Anglo-Maratha War.Here the names of the soldiers belonging to the Mahar community were excavated on an inscription of marble and made Koregaon a symbol of Dalit self -respect.By 1926, Dr. Ambedkar decided to start a broad and active movement against untouchability.He struggled to get the untouchables to enter Hindu temples, along with opening public resources of public resources to all sections of the society, through public movements, satyagrahas and processions.He also run a satyagraha to get the untouchable community in Mahad city to get the right to take water from the Chowdar reservoir of the city.At the conference in late 1927, Ambedkar publicly condemned the ancient Hindu text, Manusmriti, whose many positions, openly, openly, open caste discrimination and casteism, to make caste discrimination and "untouchability" ideologically., And they formally lit copies of ancient text.On 25 December 1927, he burnt copies of Manusmriti under the leadership of thousands of followers.In its memory, 25 December is celebrated every year by Ambedkarites and Hindu Dalits as Manusmriti Dahan Day.In 1930, Ambedkar started Kalaram Temple Satyagraha after three months of preparation. | {
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1468
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"1930."
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226 | इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया, आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं। द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के अन्तर्गत १ जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। सन १९२७ तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "छुआछूत" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। 1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। | कोरेगांव विजय स्मारक का दूसरा नाम क्या है? | {
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"जयस्तंभ"
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} | What is the other name of Koregaon Vijay Smarak? | Protests took place across India in protest against this commission.While its report was ignored by most Indians, Ambedkar sent a recommendation for separate future constitutional reforms.Ambedkar held a ceremony on 1 January 1927 at the Koregaon Vijay Memorial (Jaistambha) in honor of the Indian Mahar soldiers killed during the Battle of Koregaon on 1 January 1818 under the Second Anglo-Maratha War.Here the names of the soldiers belonging to the Mahar community were excavated on an inscription of marble and made Koregaon a symbol of Dalit self -respect.By 1926, Dr. Ambedkar decided to start a broad and active movement against untouchability.He struggled to get the untouchables to enter Hindu temples, along with opening public resources of public resources to all sections of the society, through public movements, satyagrahas and processions.He also run a satyagraha to get the untouchable community in Mahad city to get the right to take water from the Chowdar reservoir of the city.At the conference in late 1927, Ambedkar publicly condemned the ancient Hindu text, Manusmriti, whose many positions, openly, openly, open caste discrimination and casteism, to make caste discrimination and "untouchability" ideologically., And they formally lit copies of ancient text.On 25 December 1927, he burnt copies of Manusmriti under the leadership of thousands of followers.In its memory, 25 December is celebrated every year by Ambedkarites and Hindu Dalits as Manusmriti Dahan Day.In 1930, Ambedkar started Kalaram Temple Satyagraha after three months of preparation. | {
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370
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"Jaystambh"
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227 | इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया, आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं। द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के अन्तर्गत १ जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। सन १९२७ तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "छुआछूत" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। 1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। | अछुतता के खिलाफ सक्रीय आंदोलन की शुरुआत आंबेडकर ने किस वर्ष की थी? | {
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"सन १९२७"
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532
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} | In which year did Ambedkar launch an active movement against untouchability? | Protests took place across India in protest against this commission.While its report was ignored by most Indians, Ambedkar sent a recommendation for separate future constitutional reforms.Ambedkar held a ceremony on 1 January 1927 at the Koregaon Vijay Memorial (Jaistambha) in honor of the Indian Mahar soldiers killed during the Battle of Koregaon on 1 January 1818 under the Second Anglo-Maratha War.Here the names of the soldiers belonging to the Mahar community were excavated on an inscription of marble and made Koregaon a symbol of Dalit self -respect.By 1926, Dr. Ambedkar decided to start a broad and active movement against untouchability.He struggled to get the untouchables to enter Hindu temples, along with opening public resources of public resources to all sections of the society, through public movements, satyagrahas and processions.He also run a satyagraha to get the untouchable community in Mahad city to get the right to take water from the Chowdar reservoir of the city.At the conference in late 1927, Ambedkar publicly condemned the ancient Hindu text, Manusmriti, whose many positions, openly, openly, open caste discrimination and casteism, to make caste discrimination and "untouchability" ideologically., And they formally lit copies of ancient text.On 25 December 1927, he burnt copies of Manusmriti under the leadership of thousands of followers.In its memory, 25 December is celebrated every year by Ambedkarites and Hindu Dalits as Manusmriti Dahan Day.In 1930, Ambedkar started Kalaram Temple Satyagraha after three months of preparation. | {
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"The year 1927"
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228 | इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया, आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं। द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के अन्तर्गत १ जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। सन १९२७ तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "छुआछूत" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। 1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। | महार सैनिको की मृत्यु कब हुई थी? | {
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} | When did the Mahar soldiers die? | Protests took place across India in protest against this commission.While its report was ignored by most Indians, Ambedkar sent a recommendation for separate future constitutional reforms.Ambedkar held a ceremony on 1 January 1927 at the Koregaon Vijay Memorial (Jaistambha) in honor of the Indian Mahar soldiers killed during the Battle of Koregaon on 1 January 1818 under the Second Anglo-Maratha War.Here the names of the soldiers belonging to the Mahar community were excavated on an inscription of marble and made Koregaon a symbol of Dalit self -respect.By 1926, Dr. Ambedkar decided to start a broad and active movement against untouchability.He struggled to get the untouchables to enter Hindu temples, along with opening public resources of public resources to all sections of the society, through public movements, satyagrahas and processions.He also run a satyagraha to get the untouchable community in Mahad city to get the right to take water from the Chowdar reservoir of the city.At the conference in late 1927, Ambedkar publicly condemned the ancient Hindu text, Manusmriti, whose many positions, openly, openly, open caste discrimination and casteism, to make caste discrimination and "untouchability" ideologically., And they formally lit copies of ancient text.On 25 December 1927, he burnt copies of Manusmriti under the leadership of thousands of followers.In its memory, 25 December is celebrated every year by Ambedkarites and Hindu Dalits as Manusmriti Dahan Day.In 1930, Ambedkar started Kalaram Temple Satyagraha after three months of preparation. | {
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229 | इस आयोग के विरोध में भारत भर में विरोध प्रदर्शन हुये। जहां इसकी रिपोर्ट को अधिकतर भारतीयों द्वारा अनदेखा कर दिया गया, आम्बेडकर ने अलग से भविष्य के संवैधानिक सुधारों के लिये सिफारिश लिखकर भेजीं। द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध के अन्तर्गत १ जनवरी 1818 को हुई कोरेगाँव की लड़ाई के दौरान मारे गये भारतीय महार सैनिकों के सम्मान में आम्बेडकर ने 1 जनवरी 1927 को कोरेगाँव विजय स्मारक (जयस्तंभ) में एक समारोह आयोजित किया। यहाँ महार समुदाय से संबंधित सैनिकों के नाम संगमरमर के एक शिलालेख पर खुदवाये गये तथा कोरेगाँव को दलित स्वाभिमान का प्रतीक बनाया। सन १९२७ तक, डॉ॰ आम्बेडकर ने छुआछूत के विरुद्ध एक व्यापक एवं सक्रिय आंदोलन आरम्भ करने का निर्णय किया। उन्होंने सार्वजनिक आंदोलनों, सत्याग्रहों और जलूसों के द्वारा, पेयजल के सार्वजनिक संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिये खुलवाने के साथ ही उन्होनें अछूतों को भी हिंदू मन्दिरों में प्रवेश करने का अधिकार दिलाने के लिये संघर्ष किया। उन्होंने महाड शहर में अछूत समुदाय को भी नगर की चवदार जलाशय से पानी लेने का अधिकार दिलाने कि लिये सत्याग्रह चलाया। 1927 के अंत में सम्मेलन में, आम्बेडकर ने जाति भेदभाव और "छुआछूत" को वैचारिक रूप से न्यायसंगत बनाने के लिए, प्राचीन हिंदू पाठ, मनुस्मृति, जिसके कई पद, खुलकर जातीय भेदभाव व जातिवाद का समर्थन करते हैं, की सार्वजनिक रूप से निंदा की, और उन्होंने औपचारिक रूप से प्राचीन पाठ की प्रतियां जलाईं। 25 दिसंबर 1927 को, उन्होंने हजारों अनुयायियों के नेतृत्व में मनुस्मृति की प्रतियों को जलाया। इसकी स्मृति में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनुस्मृति दहन दिवस के रूप में आम्बेडकरवादियों और हिंदू दलितों द्वारा मनाया जाता है। 1930 में, आम्बेडकर ने तीन महीने की तैयारी के बाद कालाराम मन्दिर सत्याग्रह आरम्भ किया। | कालाराम मंदिर आंदोलन में कितने स्वयंसेवक एकत्रित हुए थे? | {
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} | How many volunteers were mobilized in the Kalaram temple movement? | Protests took place across India in protest against this commission.While its report was ignored by most Indians, Ambedkar sent a recommendation for separate future constitutional reforms.Ambedkar held a ceremony on 1 January 1927 at the Koregaon Vijay Memorial (Jaistambha) in honor of the Indian Mahar soldiers killed during the Battle of Koregaon on 1 January 1818 under the Second Anglo-Maratha War.Here the names of the soldiers belonging to the Mahar community were excavated on an inscription of marble and made Koregaon a symbol of Dalit self -respect.By 1926, Dr. Ambedkar decided to start a broad and active movement against untouchability.He struggled to get the untouchables to enter Hindu temples, along with opening public resources of public resources to all sections of the society, through public movements, satyagrahas and processions.He also run a satyagraha to get the untouchable community in Mahad city to get the right to take water from the Chowdar reservoir of the city.At the conference in late 1927, Ambedkar publicly condemned the ancient Hindu text, Manusmriti, whose many positions, openly, openly, open caste discrimination and casteism, to make caste discrimination and "untouchability" ideologically., And they formally lit copies of ancient text.On 25 December 1927, he burnt copies of Manusmriti under the leadership of thousands of followers.In its memory, 25 December is celebrated every year by Ambedkarites and Hindu Dalits as Manusmriti Dahan Day.In 1930, Ambedkar started Kalaram Temple Satyagraha after three months of preparation. | {
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230 | इस उपनिवेशवाद के चलते अन्य सभी व्यापारी संस्थाओं को पुर्तगालियों की शर्तों के अधीण ही रहना पढ़ता था, जिस पर उस समय के शासकों व व्यापारियों को आपत्ति होने लगीं थीं। मुगल साम्राज्य ने अकबर के राजतिलक के बाद पहला निशाना गुजरात को बनाया और सागर तट पर प्रथम विजय पायी १५७२ में, किन्तु पुर्तगालियों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए पहले कुछ वर्षों तक उनसे मात्र फारस की खाड़ी क्षेत्र में यात्रा करने हेतु कर्ताज़ नामक पास लिये जाते रहे। १५७२ में सूरत के अधिग्रहण के समय मुगलों और पुर्तगालियों की प्रथम भेंट हुई और पुर्तगालियों को मुगलों की असली शक्ति का अनुमान हुआ और फलतः उन्होंने युद्ध के बजाय नीति से काम लेना उचित समझा व पुर्तगाली राज्यपाल ने अकबर के निर्देश पर उसे एक राजदूत के द्वारा सन्धि प्रस्ताव भेजा। अकबर ने उस क्षेत्र से अपने हरम के व अन्य मुस्लिम लोगों द्वारा मक्का को हज की यात्रा को सुरक्षित करने की दृष्टि से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। १५७३ में अकबर ने अपने गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों को एक फरमान जारी किया, जिसमें निकटवर्त्ती दमण में पुर्तगालियों को शांति से रहने दिये जाने का आदेश दिया था। इसके बदले में पुर्तगालियों ने अकबर के परिवार के लिये हज को जाने हेतु पास जारी किये थे। १५७६ में में अकबर ने याह्या सलेह के नेतृत्व में अपने हरम के अनेक सदस्यों सहित हाजियों का एक बड़ा जत्था हज को भेजा। ये जत्था दो पोतों में सूरत से जेद्दाह बंदरगाह पर १५७७ में पहुँचा और मक्का और मदीना को अग्रसर हुआ। १५७७ से १५८० के बीच चार और कारवां हज को रवाना हुआ, जिनके साथ मक्का व मदीना के लोगों के लिये भेंटें व गरीबों के लिये सदके थे। ये यात्री समाज के आर्थिक रूप से निचले वर्ग के थे और इनके जाने से उन शहरों पर आर्थिक भार बढ़ा। तब तुर्क प्रशासन ने इनसे घर लौट जाने का निवेदन किया, जिस पर हरम की स्त्रियां तैयार न हुईं। काफी विवाद के बाद उन्हें विवश होकर लौटना पढ़ा। अदन के राज्यपाल को १५८० में आये यात्रियों की बड़ी संख्या देखकर बढ़ा रोष हुआ और उसने लौटते हुए मुगलों का यथासंभव अपमान भी किया। [कृपया उद्धरण जोड़ें] इन प्रकरणों के कारण अकबर को हाजियों की यात्राओं पर रोक लगानी पड़ी। १५८४ के बाद अकबर ने यमन के साम्राज्य के अधीनस्थ अदन के बंदरगाह पर पुर्तगालियों की मदद से चढ़ाई करने की योजना बनायी। | मुगल दूत को स्थायी रूप से गोवा में तैनात कब किया गया था? | {
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} | When was the Mughal envoy permanently stationed in Goa? | Due to this colonialism, all other merchant institutions used to study the conditions of the Portuguese, on which the rulers and traders of that time started objecting.The Mughal Empire made Gujarat the first target after Akbar's coronation and the first victory on the ocean coast in 1582, but keeping in mind the power of the Portuguese, for the first few years, he took passes to him for the first few years to travel to the Gulf area of Persia.Keep goingAt the time of the acquisition of Surat in 1572, the first meeting of the Mughals and the Portuguese was estimated to the Portuguese and as a result, they thought it appropriate to work with the policy rather than the war and the Portuguese Governor on Akbar's instructions by an ambassador by an ambassador.Sent proposal.Akbar accepted the proposal from that region to secure the journey of Haj by his harem and other Muslims.In 1583, Akbar issued a decree to his administrative officials of his Gujarat, in which the Portuguese in nearby Daman ordered the Portuguese to live peacefully.In return, the Portuguese had issued passes for Akbar's family to go to Haj.In 157, Akbar sent a big batch of Hajis, including many members of his harem under the leadership of Yahya Saleh.The batch reached Jeddah port from Surat in two grandchildren in two grandchildren and Mecca and Madina moved.Between 158 and 1580, four more caravan left for Haj, with whom there were meetings for the people of Mecca and Madina and for the poor.These passengers belonged to the economically lower class of society and their departure increased economic burden on those cities.The Ottoman administration then requested them to return home, on which the women of Haram were not ready.After a lot of controversy, he was forced to return.The Governor of Aden increased the large number of passengers who came in 1580 and insulted the Mughals as much as possible while returning.[Please add quotes] Akbar had to stop the visits of Hajis due to these cases.After 157, Akbar planned to climb at the port of Aden, subordinate to the Empire of Yemen, with the help of the Portuguese. | {
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231 | इस उपनिवेशवाद के चलते अन्य सभी व्यापारी संस्थाओं को पुर्तगालियों की शर्तों के अधीण ही रहना पढ़ता था, जिस पर उस समय के शासकों व व्यापारियों को आपत्ति होने लगीं थीं। मुगल साम्राज्य ने अकबर के राजतिलक के बाद पहला निशाना गुजरात को बनाया और सागर तट पर प्रथम विजय पायी १५७२ में, किन्तु पुर्तगालियों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए पहले कुछ वर्षों तक उनसे मात्र फारस की खाड़ी क्षेत्र में यात्रा करने हेतु कर्ताज़ नामक पास लिये जाते रहे। १५७२ में सूरत के अधिग्रहण के समय मुगलों और पुर्तगालियों की प्रथम भेंट हुई और पुर्तगालियों को मुगलों की असली शक्ति का अनुमान हुआ और फलतः उन्होंने युद्ध के बजाय नीति से काम लेना उचित समझा व पुर्तगाली राज्यपाल ने अकबर के निर्देश पर उसे एक राजदूत के द्वारा सन्धि प्रस्ताव भेजा। अकबर ने उस क्षेत्र से अपने हरम के व अन्य मुस्लिम लोगों द्वारा मक्का को हज की यात्रा को सुरक्षित करने की दृष्टि से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। १५७३ में अकबर ने अपने गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों को एक फरमान जारी किया, जिसमें निकटवर्त्ती दमण में पुर्तगालियों को शांति से रहने दिये जाने का आदेश दिया था। इसके बदले में पुर्तगालियों ने अकबर के परिवार के लिये हज को जाने हेतु पास जारी किये थे। १५७६ में में अकबर ने याह्या सलेह के नेतृत्व में अपने हरम के अनेक सदस्यों सहित हाजियों का एक बड़ा जत्था हज को भेजा। ये जत्था दो पोतों में सूरत से जेद्दाह बंदरगाह पर १५७७ में पहुँचा और मक्का और मदीना को अग्रसर हुआ। १५७७ से १५८० के बीच चार और कारवां हज को रवाना हुआ, जिनके साथ मक्का व मदीना के लोगों के लिये भेंटें व गरीबों के लिये सदके थे। ये यात्री समाज के आर्थिक रूप से निचले वर्ग के थे और इनके जाने से उन शहरों पर आर्थिक भार बढ़ा। तब तुर्क प्रशासन ने इनसे घर लौट जाने का निवेदन किया, जिस पर हरम की स्त्रियां तैयार न हुईं। काफी विवाद के बाद उन्हें विवश होकर लौटना पढ़ा। अदन के राज्यपाल को १५८० में आये यात्रियों की बड़ी संख्या देखकर बढ़ा रोष हुआ और उसने लौटते हुए मुगलों का यथासंभव अपमान भी किया। [कृपया उद्धरण जोड़ें] इन प्रकरणों के कारण अकबर को हाजियों की यात्राओं पर रोक लगानी पड़ी। १५८४ के बाद अकबर ने यमन के साम्राज्य के अधीनस्थ अदन के बंदरगाह पर पुर्तगालियों की मदद से चढ़ाई करने की योजना बनायी। | अदन का बंदरगाह किस साम्राज्य के अधीन था ? | {
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1882
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} | The port of Aden was under which empire? | Due to this colonialism, all other merchant institutions used to study the conditions of the Portuguese, on which the rulers and traders of that time started objecting.The Mughal Empire made Gujarat the first target after Akbar's coronation and the first victory on the ocean coast in 1582, but keeping in mind the power of the Portuguese, for the first few years, he took passes to him for the first few years to travel to the Gulf area of Persia.Keep goingAt the time of the acquisition of Surat in 1572, the first meeting of the Mughals and the Portuguese was estimated to the Portuguese and as a result, they thought it appropriate to work with the policy rather than the war and the Portuguese Governor on Akbar's instructions by an ambassador by an ambassador.Sent proposal.Akbar accepted the proposal from that region to secure the journey of Haj by his harem and other Muslims.In 1583, Akbar issued a decree to his administrative officials of his Gujarat, in which the Portuguese in nearby Daman ordered the Portuguese to live peacefully.In return, the Portuguese had issued passes for Akbar's family to go to Haj.In 157, Akbar sent a big batch of Hajis, including many members of his harem under the leadership of Yahya Saleh.The batch reached Jeddah port from Surat in two grandchildren in two grandchildren and Mecca and Madina moved.Between 158 and 1580, four more caravan left for Haj, with whom there were meetings for the people of Mecca and Madina and for the poor.These passengers belonged to the economically lower class of society and their departure increased economic burden on those cities.The Ottoman administration then requested them to return home, on which the women of Haram were not ready.After a lot of controversy, he was forced to return.The Governor of Aden increased the large number of passengers who came in 1580 and insulted the Mughals as much as possible while returning.[Please add quotes] Akbar had to stop the visits of Hajis due to these cases.After 157, Akbar planned to climb at the port of Aden, subordinate to the Empire of Yemen, with the help of the Portuguese. | {
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1882
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"Yemen"
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232 | इस उपनिवेशवाद के चलते अन्य सभी व्यापारी संस्थाओं को पुर्तगालियों की शर्तों के अधीण ही रहना पढ़ता था, जिस पर उस समय के शासकों व व्यापारियों को आपत्ति होने लगीं थीं। मुगल साम्राज्य ने अकबर के राजतिलक के बाद पहला निशाना गुजरात को बनाया और सागर तट पर प्रथम विजय पायी १५७२ में, किन्तु पुर्तगालियों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए पहले कुछ वर्षों तक उनसे मात्र फारस की खाड़ी क्षेत्र में यात्रा करने हेतु कर्ताज़ नामक पास लिये जाते रहे। १५७२ में सूरत के अधिग्रहण के समय मुगलों और पुर्तगालियों की प्रथम भेंट हुई और पुर्तगालियों को मुगलों की असली शक्ति का अनुमान हुआ और फलतः उन्होंने युद्ध के बजाय नीति से काम लेना उचित समझा व पुर्तगाली राज्यपाल ने अकबर के निर्देश पर उसे एक राजदूत के द्वारा सन्धि प्रस्ताव भेजा। अकबर ने उस क्षेत्र से अपने हरम के व अन्य मुस्लिम लोगों द्वारा मक्का को हज की यात्रा को सुरक्षित करने की दृष्टि से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। १५७३ में अकबर ने अपने गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों को एक फरमान जारी किया, जिसमें निकटवर्त्ती दमण में पुर्तगालियों को शांति से रहने दिये जाने का आदेश दिया था। इसके बदले में पुर्तगालियों ने अकबर के परिवार के लिये हज को जाने हेतु पास जारी किये थे। १५७६ में में अकबर ने याह्या सलेह के नेतृत्व में अपने हरम के अनेक सदस्यों सहित हाजियों का एक बड़ा जत्था हज को भेजा। ये जत्था दो पोतों में सूरत से जेद्दाह बंदरगाह पर १५७७ में पहुँचा और मक्का और मदीना को अग्रसर हुआ। १५७७ से १५८० के बीच चार और कारवां हज को रवाना हुआ, जिनके साथ मक्का व मदीना के लोगों के लिये भेंटें व गरीबों के लिये सदके थे। ये यात्री समाज के आर्थिक रूप से निचले वर्ग के थे और इनके जाने से उन शहरों पर आर्थिक भार बढ़ा। तब तुर्क प्रशासन ने इनसे घर लौट जाने का निवेदन किया, जिस पर हरम की स्त्रियां तैयार न हुईं। काफी विवाद के बाद उन्हें विवश होकर लौटना पढ़ा। अदन के राज्यपाल को १५८० में आये यात्रियों की बड़ी संख्या देखकर बढ़ा रोष हुआ और उसने लौटते हुए मुगलों का यथासंभव अपमान भी किया। [कृपया उद्धरण जोड़ें] इन प्रकरणों के कारण अकबर को हाजियों की यात्राओं पर रोक लगानी पड़ी। १५८४ के बाद अकबर ने यमन के साम्राज्य के अधीनस्थ अदन के बंदरगाह पर पुर्तगालियों की मदद से चढ़ाई करने की योजना बनायी। | पुर्तगाली सेना ने यमन पर हमला कब किया था? | {
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} | When did the Portuguese army invade Yemen? | Due to this colonialism, all other merchant institutions used to study the conditions of the Portuguese, on which the rulers and traders of that time started objecting.The Mughal Empire made Gujarat the first target after Akbar's coronation and the first victory on the ocean coast in 1582, but keeping in mind the power of the Portuguese, for the first few years, he took passes to him for the first few years to travel to the Gulf area of Persia.Keep goingAt the time of the acquisition of Surat in 1572, the first meeting of the Mughals and the Portuguese was estimated to the Portuguese and as a result, they thought it appropriate to work with the policy rather than the war and the Portuguese Governor on Akbar's instructions by an ambassador by an ambassador.Sent proposal.Akbar accepted the proposal from that region to secure the journey of Haj by his harem and other Muslims.In 1583, Akbar issued a decree to his administrative officials of his Gujarat, in which the Portuguese in nearby Daman ordered the Portuguese to live peacefully.In return, the Portuguese had issued passes for Akbar's family to go to Haj.In 157, Akbar sent a big batch of Hajis, including many members of his harem under the leadership of Yahya Saleh.The batch reached Jeddah port from Surat in two grandchildren in two grandchildren and Mecca and Madina moved.Between 158 and 1580, four more caravan left for Haj, with whom there were meetings for the people of Mecca and Madina and for the poor.These passengers belonged to the economically lower class of society and their departure increased economic burden on those cities.The Ottoman administration then requested them to return home, on which the women of Haram were not ready.After a lot of controversy, he was forced to return.The Governor of Aden increased the large number of passengers who came in 1580 and insulted the Mughals as much as possible while returning.[Please add quotes] Akbar had to stop the visits of Hajis due to these cases.After 157, Akbar planned to climb at the port of Aden, subordinate to the Empire of Yemen, with the help of the Portuguese. | {
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233 | इस उपनिवेशवाद के चलते अन्य सभी व्यापारी संस्थाओं को पुर्तगालियों की शर्तों के अधीण ही रहना पढ़ता था, जिस पर उस समय के शासकों व व्यापारियों को आपत्ति होने लगीं थीं। मुगल साम्राज्य ने अकबर के राजतिलक के बाद पहला निशाना गुजरात को बनाया और सागर तट पर प्रथम विजय पायी १५७२ में, किन्तु पुर्तगालियों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए पहले कुछ वर्षों तक उनसे मात्र फारस की खाड़ी क्षेत्र में यात्रा करने हेतु कर्ताज़ नामक पास लिये जाते रहे। १५७२ में सूरत के अधिग्रहण के समय मुगलों और पुर्तगालियों की प्रथम भेंट हुई और पुर्तगालियों को मुगलों की असली शक्ति का अनुमान हुआ और फलतः उन्होंने युद्ध के बजाय नीति से काम लेना उचित समझा व पुर्तगाली राज्यपाल ने अकबर के निर्देश पर उसे एक राजदूत के द्वारा सन्धि प्रस्ताव भेजा। अकबर ने उस क्षेत्र से अपने हरम के व अन्य मुस्लिम लोगों द्वारा मक्का को हज की यात्रा को सुरक्षित करने की दृष्टि से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। १५७३ में अकबर ने अपने गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों को एक फरमान जारी किया, जिसमें निकटवर्त्ती दमण में पुर्तगालियों को शांति से रहने दिये जाने का आदेश दिया था। इसके बदले में पुर्तगालियों ने अकबर के परिवार के लिये हज को जाने हेतु पास जारी किये थे। १५७६ में में अकबर ने याह्या सलेह के नेतृत्व में अपने हरम के अनेक सदस्यों सहित हाजियों का एक बड़ा जत्था हज को भेजा। ये जत्था दो पोतों में सूरत से जेद्दाह बंदरगाह पर १५७७ में पहुँचा और मक्का और मदीना को अग्रसर हुआ। १५७७ से १५८० के बीच चार और कारवां हज को रवाना हुआ, जिनके साथ मक्का व मदीना के लोगों के लिये भेंटें व गरीबों के लिये सदके थे। ये यात्री समाज के आर्थिक रूप से निचले वर्ग के थे और इनके जाने से उन शहरों पर आर्थिक भार बढ़ा। तब तुर्क प्रशासन ने इनसे घर लौट जाने का निवेदन किया, जिस पर हरम की स्त्रियां तैयार न हुईं। काफी विवाद के बाद उन्हें विवश होकर लौटना पढ़ा। अदन के राज्यपाल को १५८० में आये यात्रियों की बड़ी संख्या देखकर बढ़ा रोष हुआ और उसने लौटते हुए मुगलों का यथासंभव अपमान भी किया। [कृपया उद्धरण जोड़ें] इन प्रकरणों के कारण अकबर को हाजियों की यात्राओं पर रोक लगानी पड़ी। १५८४ के बाद अकबर ने यमन के साम्राज्य के अधीनस्थ अदन के बंदरगाह पर पुर्तगालियों की मदद से चढ़ाई करने की योजना बनायी। | अकबर के समय मुगल साम्राज्य ने गुजरात के समुद्री तट पर अपनी पहली जीत किस वर्ष हासिल की थी ? | {
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"१५७२"
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} | In which year did the Mughal Empire achieve its first victory on the sea coast of Gujarat at the time of Akbar? | Due to this colonialism, all other merchant institutions used to study the conditions of the Portuguese, on which the rulers and traders of that time started objecting.The Mughal Empire made Gujarat the first target after Akbar's coronation and the first victory on the ocean coast in 1582, but keeping in mind the power of the Portuguese, for the first few years, he took passes to him for the first few years to travel to the Gulf area of Persia.Keep goingAt the time of the acquisition of Surat in 1572, the first meeting of the Mughals and the Portuguese was estimated to the Portuguese and as a result, they thought it appropriate to work with the policy rather than the war and the Portuguese Governor on Akbar's instructions by an ambassador by an ambassador.Sent proposal.Akbar accepted the proposal from that region to secure the journey of Haj by his harem and other Muslims.In 1583, Akbar issued a decree to his administrative officials of his Gujarat, in which the Portuguese in nearby Daman ordered the Portuguese to live peacefully.In return, the Portuguese had issued passes for Akbar's family to go to Haj.In 157, Akbar sent a big batch of Hajis, including many members of his harem under the leadership of Yahya Saleh.The batch reached Jeddah port from Surat in two grandchildren in two grandchildren and Mecca and Madina moved.Between 158 and 1580, four more caravan left for Haj, with whom there were meetings for the people of Mecca and Madina and for the poor.These passengers belonged to the economically lower class of society and their departure increased economic burden on those cities.The Ottoman administration then requested them to return home, on which the women of Haram were not ready.After a lot of controversy, he was forced to return.The Governor of Aden increased the large number of passengers who came in 1580 and insulted the Mughals as much as possible while returning.[Please add quotes] Akbar had to stop the visits of Hajis due to these cases.After 157, Akbar planned to climb at the port of Aden, subordinate to the Empire of Yemen, with the help of the Portuguese. | {
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"1572"
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234 | इस उपनिवेशवाद के चलते अन्य सभी व्यापारी संस्थाओं को पुर्तगालियों की शर्तों के अधीण ही रहना पढ़ता था, जिस पर उस समय के शासकों व व्यापारियों को आपत्ति होने लगीं थीं। मुगल साम्राज्य ने अकबर के राजतिलक के बाद पहला निशाना गुजरात को बनाया और सागर तट पर प्रथम विजय पायी १५७२ में, किन्तु पुर्तगालियों की शक्ति को ध्यान में रखते हुए पहले कुछ वर्षों तक उनसे मात्र फारस की खाड़ी क्षेत्र में यात्रा करने हेतु कर्ताज़ नामक पास लिये जाते रहे। १५७२ में सूरत के अधिग्रहण के समय मुगलों और पुर्तगालियों की प्रथम भेंट हुई और पुर्तगालियों को मुगलों की असली शक्ति का अनुमान हुआ और फलतः उन्होंने युद्ध के बजाय नीति से काम लेना उचित समझा व पुर्तगाली राज्यपाल ने अकबर के निर्देश पर उसे एक राजदूत के द्वारा सन्धि प्रस्ताव भेजा। अकबर ने उस क्षेत्र से अपने हरम के व अन्य मुस्लिम लोगों द्वारा मक्का को हज की यात्रा को सुरक्षित करने की दृष्टि से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। १५७३ में अकबर ने अपने गुजरात के प्रशासनिक अधिकारियों को एक फरमान जारी किया, जिसमें निकटवर्त्ती दमण में पुर्तगालियों को शांति से रहने दिये जाने का आदेश दिया था। इसके बदले में पुर्तगालियों ने अकबर के परिवार के लिये हज को जाने हेतु पास जारी किये थे। १५७६ में में अकबर ने याह्या सलेह के नेतृत्व में अपने हरम के अनेक सदस्यों सहित हाजियों का एक बड़ा जत्था हज को भेजा। ये जत्था दो पोतों में सूरत से जेद्दाह बंदरगाह पर १५७७ में पहुँचा और मक्का और मदीना को अग्रसर हुआ। १५७७ से १५८० के बीच चार और कारवां हज को रवाना हुआ, जिनके साथ मक्का व मदीना के लोगों के लिये भेंटें व गरीबों के लिये सदके थे। ये यात्री समाज के आर्थिक रूप से निचले वर्ग के थे और इनके जाने से उन शहरों पर आर्थिक भार बढ़ा। तब तुर्क प्रशासन ने इनसे घर लौट जाने का निवेदन किया, जिस पर हरम की स्त्रियां तैयार न हुईं। काफी विवाद के बाद उन्हें विवश होकर लौटना पढ़ा। अदन के राज्यपाल को १५८० में आये यात्रियों की बड़ी संख्या देखकर बढ़ा रोष हुआ और उसने लौटते हुए मुगलों का यथासंभव अपमान भी किया। [कृपया उद्धरण जोड़ें] इन प्रकरणों के कारण अकबर को हाजियों की यात्राओं पर रोक लगानी पड़ी। १५८४ के बाद अकबर ने यमन के साम्राज्य के अधीनस्थ अदन के बंदरगाह पर पुर्तगालियों की मदद से चढ़ाई करने की योजना बनायी। | अकबर के सिंहासन पर बैठने के बाद मुगल साम्राज्य ने किस राज्य को जितने का अपना पहला लक्ष्य बनाया था ? | {
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"गुजरात"
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} | After Akbar's ascension to the throne, which state did the Mughal Empire make its first goal of conquering? | Due to this colonialism, all other merchant institutions used to study the conditions of the Portuguese, on which the rulers and traders of that time started objecting.The Mughal Empire made Gujarat the first target after Akbar's coronation and the first victory on the ocean coast in 1582, but keeping in mind the power of the Portuguese, for the first few years, he took passes to him for the first few years to travel to the Gulf area of Persia.Keep goingAt the time of the acquisition of Surat in 1572, the first meeting of the Mughals and the Portuguese was estimated to the Portuguese and as a result, they thought it appropriate to work with the policy rather than the war and the Portuguese Governor on Akbar's instructions by an ambassador by an ambassador.Sent proposal.Akbar accepted the proposal from that region to secure the journey of Haj by his harem and other Muslims.In 1583, Akbar issued a decree to his administrative officials of his Gujarat, in which the Portuguese in nearby Daman ordered the Portuguese to live peacefully.In return, the Portuguese had issued passes for Akbar's family to go to Haj.In 157, Akbar sent a big batch of Hajis, including many members of his harem under the leadership of Yahya Saleh.The batch reached Jeddah port from Surat in two grandchildren in two grandchildren and Mecca and Madina moved.Between 158 and 1580, four more caravan left for Haj, with whom there were meetings for the people of Mecca and Madina and for the poor.These passengers belonged to the economically lower class of society and their departure increased economic burden on those cities.The Ottoman administration then requested them to return home, on which the women of Haram were not ready.After a lot of controversy, he was forced to return.The Governor of Aden increased the large number of passengers who came in 1580 and insulted the Mughals as much as possible while returning.[Please add quotes] Akbar had to stop the visits of Hajis due to these cases.After 157, Akbar planned to climb at the port of Aden, subordinate to the Empire of Yemen, with the help of the Portuguese. | {
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216
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"Gujarat"
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235 | इस काल में कोई भी शासक एक साम्राज्य बनाने में सक्षम नहीं था और लगातार मूल भूमि की तुलना में दुसरे क्षेत्र की ओर आगे बढ़ने का क्रम जारी था। इस अवधि में नये शासन के कारण जाति में बांटे गए सामान्य कृषकों के लिए कृषि करना और सहज हो गया। जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्थानीय मतभेद होने लगे। 6 और 7 वीं शताब्दी में, पहली भक्ति भजन तमिल भाषा में बनाया गया था। पूरे भारत में उनकी नकल की गई और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और इसने उपमहाद्वीप की सभी आधुनिक भाषाओं के विकास का नेतृत्व किया। राजघरानो ने लोगों को राजधानी की आकर्षित किया। शहरीकरण के साथ शहरों में बड़े स्तर पर मंदिरों का निर्माण किया। दक्षिण भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और जावा में देखा जा सकता है। १० वीं शताब्दी के बाद घुमन्तु मुस्लिम वंशों ने जातियता तथा धर्म द्वारा संघठित तेज घोड़ों से युक्त बड़ी सेना के द्वारा उत्तर-पश्चिमी मैदानों पर बार बार आकर्मण किया, अंततः १२०६ इस्लामीक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उन्हें उतर भारत को अधिक नियंत्रित करना था तथा दक्षिण भारत पर आकर्मण करना था। भारतीय कुलीन वर्ग के विघटनकारी सल्तनत ने बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिमों को स्वयं के रीतिरिवाजों पर छोड़ दिया। १३ वीं शताब्दी में मंगोलों द्वारा किये के विनाशकारी आकर्मण से भारत की रक्षा की। सल्तनत के पतन के कारण स्वशासित विजयनगर साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक मजबूत शैव परंपरा और सल्तनत की सैन्य तकनीक पर निर्माण करते हुए साम्राज्य ने भारत के विशाल भाग पर शासन किया और इसके बाद लंबे समय तक दक्षिण भारतीय समाज को प्रभावित किया। १७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आदि के नेतृत्व में चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। | भारत को ब्रिटिश शासन से पूर्ण स्वतंत्रता कब मिली थी? | {
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"१५ अगस्त, १९४७"
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} | When did India get complete independence from British rule? | In this period, no ruler was able to create an empire and continued to move towards another area as compared to the original land.During this period, due to the new regime, agriculture became more comfortable for general farmers distributed in caste.As a result of the caste system, local differences began to occur.In the 6th and 7th century, the first devotional hymn was built in Tamil language.He was copied across India and led the revival of Hinduism and the development of all modern languages of the subcontinent.Rajgharano attracted people to the capital.With urbanization, temples were built on a large scale in cities.The influence of the political and cultural system of South India can be seen in the countries of South Asia, Myanmar, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, Philippines, Malaysia and Java.After the 10th century, the nomadic Muslim dynasties repeatedly attracted the northwest plains by a large army with rapid horses by casteism and religion, eventually 1207 Islamic Delhi Sultanate was established.They had to control India more and have to do south India.The disintegrating Sultanate of the Indian elite class left a large number of non-Muslims on their own customs.In the 13th century, protected India from the devastating attraction of Mongols.The collapse of the Sultanate paved the way to the autonomous Vijayanagara Empire.The empire ruled the vast part of India, constructing a strong Shaiva tradition and military technology of the Sultanate and then influenced South Indian society for a long time.Many European countries including Portugal, Dutch, France, Britain, who were willing to trade with India, took advantage of the internal government chaos of the country in the mid -century medieval period.Till almost he was successful in rule over the entire country.Most of India came directly under the administrative control of the British rule after the failed rebellion against the British East India Company in 1857, which is also known by the first struggle of Indian freedom.In the beginning of the twentieth century, due to the spread of modern education and the changing political conditions on the World Catal, an intellectual movement in India was a mealing which laid the foundation of many changes and movements on social and political levels.The establishment of the Indian National Congress in 185 gave a moving form to the freedom movement.In the beginning of the twentieth century, a huge non -violent struggle for achieving independence for a long time, which is led by Mahatma Gandhi, which is officially addressed as the 'Father of the Nation' of modern India, in this century, the social movement of India, which socialThere was also a huge non -violent and revolutionary struggle for independence, which was led by Dr. Babasaheb Ambedkar, who is addressed as the 'creator of modern India', 'Constitution maker' and 'Masiha of Dalits'.Along with this, the revolutionary struggle led by Chandrashekhar Azad, Sardar Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru, Netaji Subhash Chandra Bose, etc. As a result of the revolutionary struggle, August 15, 1949, India gained complete freedom from British rule.Thereafter, India became a republic on January 26, 1950.Being a multi-ethnic and multi-religious nation, India has suffered from time to time to become a victim of communal and ethnic hatred.Regional dissatisfaction and rebellion have also been in different parts of the country, but its secularism and democracy, except only 1985–4, when the then Prime Minister Indira Gandhi declared the Emergency, has been intact.There are unresolved border disputes with India's neighboring nations. | {
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"August 15, 1947"
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236 | इस काल में कोई भी शासक एक साम्राज्य बनाने में सक्षम नहीं था और लगातार मूल भूमि की तुलना में दुसरे क्षेत्र की ओर आगे बढ़ने का क्रम जारी था। इस अवधि में नये शासन के कारण जाति में बांटे गए सामान्य कृषकों के लिए कृषि करना और सहज हो गया। जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्थानीय मतभेद होने लगे। 6 और 7 वीं शताब्दी में, पहली भक्ति भजन तमिल भाषा में बनाया गया था। पूरे भारत में उनकी नकल की गई और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और इसने उपमहाद्वीप की सभी आधुनिक भाषाओं के विकास का नेतृत्व किया। राजघरानो ने लोगों को राजधानी की आकर्षित किया। शहरीकरण के साथ शहरों में बड़े स्तर पर मंदिरों का निर्माण किया। दक्षिण भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और जावा में देखा जा सकता है। १० वीं शताब्दी के बाद घुमन्तु मुस्लिम वंशों ने जातियता तथा धर्म द्वारा संघठित तेज घोड़ों से युक्त बड़ी सेना के द्वारा उत्तर-पश्चिमी मैदानों पर बार बार आकर्मण किया, अंततः १२०६ इस्लामीक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उन्हें उतर भारत को अधिक नियंत्रित करना था तथा दक्षिण भारत पर आकर्मण करना था। भारतीय कुलीन वर्ग के विघटनकारी सल्तनत ने बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिमों को स्वयं के रीतिरिवाजों पर छोड़ दिया। १३ वीं शताब्दी में मंगोलों द्वारा किये के विनाशकारी आकर्मण से भारत की रक्षा की। सल्तनत के पतन के कारण स्वशासित विजयनगर साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक मजबूत शैव परंपरा और सल्तनत की सैन्य तकनीक पर निर्माण करते हुए साम्राज्य ने भारत के विशाल भाग पर शासन किया और इसके बाद लंबे समय तक दक्षिण भारतीय समाज को प्रभावित किया। १७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आदि के नेतृत्व में चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। | भारत का चीन के साथ पहला युद्ध किस वर्ष हुआ था? | {
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} | In which year did India's first war with China take place? | In this period, no ruler was able to create an empire and continued to move towards another area as compared to the original land.During this period, due to the new regime, agriculture became more comfortable for general farmers distributed in caste.As a result of the caste system, local differences began to occur.In the 6th and 7th century, the first devotional hymn was built in Tamil language.He was copied across India and led the revival of Hinduism and the development of all modern languages of the subcontinent.Rajgharano attracted people to the capital.With urbanization, temples were built on a large scale in cities.The influence of the political and cultural system of South India can be seen in the countries of South Asia, Myanmar, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, Philippines, Malaysia and Java.After the 10th century, the nomadic Muslim dynasties repeatedly attracted the northwest plains by a large army with rapid horses by casteism and religion, eventually 1207 Islamic Delhi Sultanate was established.They had to control India more and have to do south India.The disintegrating Sultanate of the Indian elite class left a large number of non-Muslims on their own customs.In the 13th century, protected India from the devastating attraction of Mongols.The collapse of the Sultanate paved the way to the autonomous Vijayanagara Empire.The empire ruled the vast part of India, constructing a strong Shaiva tradition and military technology of the Sultanate and then influenced South Indian society for a long time.Many European countries including Portugal, Dutch, France, Britain, who were willing to trade with India, took advantage of the internal government chaos of the country in the mid -century medieval period.Till almost he was successful in rule over the entire country.Most of India came directly under the administrative control of the British rule after the failed rebellion against the British East India Company in 1857, which is also known by the first struggle of Indian freedom.In the beginning of the twentieth century, due to the spread of modern education and the changing political conditions on the World Catal, an intellectual movement in India was a mealing which laid the foundation of many changes and movements on social and political levels.The establishment of the Indian National Congress in 185 gave a moving form to the freedom movement.In the beginning of the twentieth century, a huge non -violent struggle for achieving independence for a long time, which is led by Mahatma Gandhi, which is officially addressed as the 'Father of the Nation' of modern India, in this century, the social movement of India, which socialThere was also a huge non -violent and revolutionary struggle for independence, which was led by Dr. Babasaheb Ambedkar, who is addressed as the 'creator of modern India', 'Constitution maker' and 'Masiha of Dalits'.Along with this, the revolutionary struggle led by Chandrashekhar Azad, Sardar Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru, Netaji Subhash Chandra Bose, etc. As a result of the revolutionary struggle, August 15, 1949, India gained complete freedom from British rule.Thereafter, India became a republic on January 26, 1950.Being a multi-ethnic and multi-religious nation, India has suffered from time to time to become a victim of communal and ethnic hatred.Regional dissatisfaction and rebellion have also been in different parts of the country, but its secularism and democracy, except only 1985–4, when the then Prime Minister Indira Gandhi declared the Emergency, has been intact.There are unresolved border disputes with India's neighboring nations. | {
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237 | इस काल में कोई भी शासक एक साम्राज्य बनाने में सक्षम नहीं था और लगातार मूल भूमि की तुलना में दुसरे क्षेत्र की ओर आगे बढ़ने का क्रम जारी था। इस अवधि में नये शासन के कारण जाति में बांटे गए सामान्य कृषकों के लिए कृषि करना और सहज हो गया। जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्थानीय मतभेद होने लगे। 6 और 7 वीं शताब्दी में, पहली भक्ति भजन तमिल भाषा में बनाया गया था। पूरे भारत में उनकी नकल की गई और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और इसने उपमहाद्वीप की सभी आधुनिक भाषाओं के विकास का नेतृत्व किया। राजघरानो ने लोगों को राजधानी की आकर्षित किया। शहरीकरण के साथ शहरों में बड़े स्तर पर मंदिरों का निर्माण किया। दक्षिण भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और जावा में देखा जा सकता है। १० वीं शताब्दी के बाद घुमन्तु मुस्लिम वंशों ने जातियता तथा धर्म द्वारा संघठित तेज घोड़ों से युक्त बड़ी सेना के द्वारा उत्तर-पश्चिमी मैदानों पर बार बार आकर्मण किया, अंततः १२०६ इस्लामीक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उन्हें उतर भारत को अधिक नियंत्रित करना था तथा दक्षिण भारत पर आकर्मण करना था। भारतीय कुलीन वर्ग के विघटनकारी सल्तनत ने बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिमों को स्वयं के रीतिरिवाजों पर छोड़ दिया। १३ वीं शताब्दी में मंगोलों द्वारा किये के विनाशकारी आकर्मण से भारत की रक्षा की। सल्तनत के पतन के कारण स्वशासित विजयनगर साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक मजबूत शैव परंपरा और सल्तनत की सैन्य तकनीक पर निर्माण करते हुए साम्राज्य ने भारत के विशाल भाग पर शासन किया और इसके बाद लंबे समय तक दक्षिण भारतीय समाज को प्रभावित किया। १७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आदि के नेतृत्व में चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। | भारत ने पहला परमाणु परीक्षण किस वर्ष किया था? | {
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} | In which year did India conduct its first nuclear test? | In this period, no ruler was able to create an empire and continued to move towards another area as compared to the original land.During this period, due to the new regime, agriculture became more comfortable for general farmers distributed in caste.As a result of the caste system, local differences began to occur.In the 6th and 7th century, the first devotional hymn was built in Tamil language.He was copied across India and led the revival of Hinduism and the development of all modern languages of the subcontinent.Rajgharano attracted people to the capital.With urbanization, temples were built on a large scale in cities.The influence of the political and cultural system of South India can be seen in the countries of South Asia, Myanmar, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, Philippines, Malaysia and Java.After the 10th century, the nomadic Muslim dynasties repeatedly attracted the northwest plains by a large army with rapid horses by casteism and religion, eventually 1207 Islamic Delhi Sultanate was established.They had to control India more and have to do south India.The disintegrating Sultanate of the Indian elite class left a large number of non-Muslims on their own customs.In the 13th century, protected India from the devastating attraction of Mongols.The collapse of the Sultanate paved the way to the autonomous Vijayanagara Empire.The empire ruled the vast part of India, constructing a strong Shaiva tradition and military technology of the Sultanate and then influenced South Indian society for a long time.Many European countries including Portugal, Dutch, France, Britain, who were willing to trade with India, took advantage of the internal government chaos of the country in the mid -century medieval period.Till almost he was successful in rule over the entire country.Most of India came directly under the administrative control of the British rule after the failed rebellion against the British East India Company in 1857, which is also known by the first struggle of Indian freedom.In the beginning of the twentieth century, due to the spread of modern education and the changing political conditions on the World Catal, an intellectual movement in India was a mealing which laid the foundation of many changes and movements on social and political levels.The establishment of the Indian National Congress in 185 gave a moving form to the freedom movement.In the beginning of the twentieth century, a huge non -violent struggle for achieving independence for a long time, which is led by Mahatma Gandhi, which is officially addressed as the 'Father of the Nation' of modern India, in this century, the social movement of India, which socialThere was also a huge non -violent and revolutionary struggle for independence, which was led by Dr. Babasaheb Ambedkar, who is addressed as the 'creator of modern India', 'Constitution maker' and 'Masiha of Dalits'.Along with this, the revolutionary struggle led by Chandrashekhar Azad, Sardar Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru, Netaji Subhash Chandra Bose, etc. As a result of the revolutionary struggle, August 15, 1949, India gained complete freedom from British rule.Thereafter, India became a republic on January 26, 1950.Being a multi-ethnic and multi-religious nation, India has suffered from time to time to become a victim of communal and ethnic hatred.Regional dissatisfaction and rebellion have also been in different parts of the country, but its secularism and democracy, except only 1985–4, when the then Prime Minister Indira Gandhi declared the Emergency, has been intact.There are unresolved border disputes with India's neighboring nations. | {
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238 | इस काल में कोई भी शासक एक साम्राज्य बनाने में सक्षम नहीं था और लगातार मूल भूमि की तुलना में दुसरे क्षेत्र की ओर आगे बढ़ने का क्रम जारी था। इस अवधि में नये शासन के कारण जाति में बांटे गए सामान्य कृषकों के लिए कृषि करना और सहज हो गया। जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्थानीय मतभेद होने लगे। 6 और 7 वीं शताब्दी में, पहली भक्ति भजन तमिल भाषा में बनाया गया था। पूरे भारत में उनकी नकल की गई और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और इसने उपमहाद्वीप की सभी आधुनिक भाषाओं के विकास का नेतृत्व किया। राजघरानो ने लोगों को राजधानी की आकर्षित किया। शहरीकरण के साथ शहरों में बड़े स्तर पर मंदिरों का निर्माण किया। दक्षिण भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और जावा में देखा जा सकता है। १० वीं शताब्दी के बाद घुमन्तु मुस्लिम वंशों ने जातियता तथा धर्म द्वारा संघठित तेज घोड़ों से युक्त बड़ी सेना के द्वारा उत्तर-पश्चिमी मैदानों पर बार बार आकर्मण किया, अंततः १२०६ इस्लामीक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उन्हें उतर भारत को अधिक नियंत्रित करना था तथा दक्षिण भारत पर आकर्मण करना था। भारतीय कुलीन वर्ग के विघटनकारी सल्तनत ने बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिमों को स्वयं के रीतिरिवाजों पर छोड़ दिया। १३ वीं शताब्दी में मंगोलों द्वारा किये के विनाशकारी आकर्मण से भारत की रक्षा की। सल्तनत के पतन के कारण स्वशासित विजयनगर साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक मजबूत शैव परंपरा और सल्तनत की सैन्य तकनीक पर निर्माण करते हुए साम्राज्य ने भारत के विशाल भाग पर शासन किया और इसके बाद लंबे समय तक दक्षिण भारतीय समाज को प्रभावित किया। १७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आदि के नेतृत्व में चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। | भारत का राष्ट्रपिता किसे कहा जाता है? | {
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} | Who is called the Father of the Nation of India? | In this period, no ruler was able to create an empire and continued to move towards another area as compared to the original land.During this period, due to the new regime, agriculture became more comfortable for general farmers distributed in caste.As a result of the caste system, local differences began to occur.In the 6th and 7th century, the first devotional hymn was built in Tamil language.He was copied across India and led the revival of Hinduism and the development of all modern languages of the subcontinent.Rajgharano attracted people to the capital.With urbanization, temples were built on a large scale in cities.The influence of the political and cultural system of South India can be seen in the countries of South Asia, Myanmar, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, Philippines, Malaysia and Java.After the 10th century, the nomadic Muslim dynasties repeatedly attracted the northwest plains by a large army with rapid horses by casteism and religion, eventually 1207 Islamic Delhi Sultanate was established.They had to control India more and have to do south India.The disintegrating Sultanate of the Indian elite class left a large number of non-Muslims on their own customs.In the 13th century, protected India from the devastating attraction of Mongols.The collapse of the Sultanate paved the way to the autonomous Vijayanagara Empire.The empire ruled the vast part of India, constructing a strong Shaiva tradition and military technology of the Sultanate and then influenced South Indian society for a long time.Many European countries including Portugal, Dutch, France, Britain, who were willing to trade with India, took advantage of the internal government chaos of the country in the mid -century medieval period.Till almost he was successful in rule over the entire country.Most of India came directly under the administrative control of the British rule after the failed rebellion against the British East India Company in 1857, which is also known by the first struggle of Indian freedom.In the beginning of the twentieth century, due to the spread of modern education and the changing political conditions on the World Catal, an intellectual movement in India was a mealing which laid the foundation of many changes and movements on social and political levels.The establishment of the Indian National Congress in 185 gave a moving form to the freedom movement.In the beginning of the twentieth century, a huge non -violent struggle for achieving independence for a long time, which is led by Mahatma Gandhi, which is officially addressed as the 'Father of the Nation' of modern India, in this century, the social movement of India, which socialThere was also a huge non -violent and revolutionary struggle for independence, which was led by Dr. Babasaheb Ambedkar, who is addressed as the 'creator of modern India', 'Constitution maker' and 'Masiha of Dalits'.Along with this, the revolutionary struggle led by Chandrashekhar Azad, Sardar Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru, Netaji Subhash Chandra Bose, etc. As a result of the revolutionary struggle, August 15, 1949, India gained complete freedom from British rule.Thereafter, India became a republic on January 26, 1950.Being a multi-ethnic and multi-religious nation, India has suffered from time to time to become a victim of communal and ethnic hatred.Regional dissatisfaction and rebellion have also been in different parts of the country, but its secularism and democracy, except only 1985–4, when the then Prime Minister Indira Gandhi declared the Emergency, has been intact.There are unresolved border disputes with India's neighboring nations. | {
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239 | इस काल में कोई भी शासक एक साम्राज्य बनाने में सक्षम नहीं था और लगातार मूल भूमि की तुलना में दुसरे क्षेत्र की ओर आगे बढ़ने का क्रम जारी था। इस अवधि में नये शासन के कारण जाति में बांटे गए सामान्य कृषकों के लिए कृषि करना और सहज हो गया। जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्थानीय मतभेद होने लगे। 6 और 7 वीं शताब्दी में, पहली भक्ति भजन तमिल भाषा में बनाया गया था। पूरे भारत में उनकी नकल की गई और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और इसने उपमहाद्वीप की सभी आधुनिक भाषाओं के विकास का नेतृत्व किया। राजघरानो ने लोगों को राजधानी की आकर्षित किया। शहरीकरण के साथ शहरों में बड़े स्तर पर मंदिरों का निर्माण किया। दक्षिण भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और जावा में देखा जा सकता है। १० वीं शताब्दी के बाद घुमन्तु मुस्लिम वंशों ने जातियता तथा धर्म द्वारा संघठित तेज घोड़ों से युक्त बड़ी सेना के द्वारा उत्तर-पश्चिमी मैदानों पर बार बार आकर्मण किया, अंततः १२०६ इस्लामीक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उन्हें उतर भारत को अधिक नियंत्रित करना था तथा दक्षिण भारत पर आकर्मण करना था। भारतीय कुलीन वर्ग के विघटनकारी सल्तनत ने बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिमों को स्वयं के रीतिरिवाजों पर छोड़ दिया। १३ वीं शताब्दी में मंगोलों द्वारा किये के विनाशकारी आकर्मण से भारत की रक्षा की। सल्तनत के पतन के कारण स्वशासित विजयनगर साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक मजबूत शैव परंपरा और सल्तनत की सैन्य तकनीक पर निर्माण करते हुए साम्राज्य ने भारत के विशाल भाग पर शासन किया और इसके बाद लंबे समय तक दक्षिण भारतीय समाज को प्रभावित किया। १७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आदि के नेतृत्व में चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। | भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना किस वर्ष हुई थी? | {
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} | In which year was the Indian National Congress founded? | In this period, no ruler was able to create an empire and continued to move towards another area as compared to the original land.During this period, due to the new regime, agriculture became more comfortable for general farmers distributed in caste.As a result of the caste system, local differences began to occur.In the 6th and 7th century, the first devotional hymn was built in Tamil language.He was copied across India and led the revival of Hinduism and the development of all modern languages of the subcontinent.Rajgharano attracted people to the capital.With urbanization, temples were built on a large scale in cities.The influence of the political and cultural system of South India can be seen in the countries of South Asia, Myanmar, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, Philippines, Malaysia and Java.After the 10th century, the nomadic Muslim dynasties repeatedly attracted the northwest plains by a large army with rapid horses by casteism and religion, eventually 1207 Islamic Delhi Sultanate was established.They had to control India more and have to do south India.The disintegrating Sultanate of the Indian elite class left a large number of non-Muslims on their own customs.In the 13th century, protected India from the devastating attraction of Mongols.The collapse of the Sultanate paved the way to the autonomous Vijayanagara Empire.The empire ruled the vast part of India, constructing a strong Shaiva tradition and military technology of the Sultanate and then influenced South Indian society for a long time.Many European countries including Portugal, Dutch, France, Britain, who were willing to trade with India, took advantage of the internal government chaos of the country in the mid -century medieval period.Till almost he was successful in rule over the entire country.Most of India came directly under the administrative control of the British rule after the failed rebellion against the British East India Company in 1857, which is also known by the first struggle of Indian freedom.In the beginning of the twentieth century, due to the spread of modern education and the changing political conditions on the World Catal, an intellectual movement in India was a mealing which laid the foundation of many changes and movements on social and political levels.The establishment of the Indian National Congress in 185 gave a moving form to the freedom movement.In the beginning of the twentieth century, a huge non -violent struggle for achieving independence for a long time, which is led by Mahatma Gandhi, which is officially addressed as the 'Father of the Nation' of modern India, in this century, the social movement of India, which socialThere was also a huge non -violent and revolutionary struggle for independence, which was led by Dr. Babasaheb Ambedkar, who is addressed as the 'creator of modern India', 'Constitution maker' and 'Masiha of Dalits'.Along with this, the revolutionary struggle led by Chandrashekhar Azad, Sardar Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru, Netaji Subhash Chandra Bose, etc. As a result of the revolutionary struggle, August 15, 1949, India gained complete freedom from British rule.Thereafter, India became a republic on January 26, 1950.Being a multi-ethnic and multi-religious nation, India has suffered from time to time to become a victim of communal and ethnic hatred.Regional dissatisfaction and rebellion have also been in different parts of the country, but its secularism and democracy, except only 1985–4, when the then Prime Minister Indira Gandhi declared the Emergency, has been intact.There are unresolved border disputes with India's neighboring nations. | {
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240 | इस काल में कोई भी शासक एक साम्राज्य बनाने में सक्षम नहीं था और लगातार मूल भूमि की तुलना में दुसरे क्षेत्र की ओर आगे बढ़ने का क्रम जारी था। इस अवधि में नये शासन के कारण जाति में बांटे गए सामान्य कृषकों के लिए कृषि करना और सहज हो गया। जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्थानीय मतभेद होने लगे। 6 और 7 वीं शताब्दी में, पहली भक्ति भजन तमिल भाषा में बनाया गया था। पूरे भारत में उनकी नकल की गई और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और इसने उपमहाद्वीप की सभी आधुनिक भाषाओं के विकास का नेतृत्व किया। राजघरानो ने लोगों को राजधानी की आकर्षित किया। शहरीकरण के साथ शहरों में बड़े स्तर पर मंदिरों का निर्माण किया। दक्षिण भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और जावा में देखा जा सकता है। १० वीं शताब्दी के बाद घुमन्तु मुस्लिम वंशों ने जातियता तथा धर्म द्वारा संघठित तेज घोड़ों से युक्त बड़ी सेना के द्वारा उत्तर-पश्चिमी मैदानों पर बार बार आकर्मण किया, अंततः १२०६ इस्लामीक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उन्हें उतर भारत को अधिक नियंत्रित करना था तथा दक्षिण भारत पर आकर्मण करना था। भारतीय कुलीन वर्ग के विघटनकारी सल्तनत ने बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिमों को स्वयं के रीतिरिवाजों पर छोड़ दिया। १३ वीं शताब्दी में मंगोलों द्वारा किये के विनाशकारी आकर्मण से भारत की रक्षा की। सल्तनत के पतन के कारण स्वशासित विजयनगर साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक मजबूत शैव परंपरा और सल्तनत की सैन्य तकनीक पर निर्माण करते हुए साम्राज्य ने भारत के विशाल भाग पर शासन किया और इसके बाद लंबे समय तक दक्षिण भारतीय समाज को प्रभावित किया। १७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आदि के नेतृत्व में चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। | भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध किस वर्ष हुआ था? | {
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} | In which year was the First War of Indian Independence fought? | In this period, no ruler was able to create an empire and continued to move towards another area as compared to the original land.During this period, due to the new regime, agriculture became more comfortable for general farmers distributed in caste.As a result of the caste system, local differences began to occur.In the 6th and 7th century, the first devotional hymn was built in Tamil language.He was copied across India and led the revival of Hinduism and the development of all modern languages of the subcontinent.Rajgharano attracted people to the capital.With urbanization, temples were built on a large scale in cities.The influence of the political and cultural system of South India can be seen in the countries of South Asia, Myanmar, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, Philippines, Malaysia and Java.After the 10th century, the nomadic Muslim dynasties repeatedly attracted the northwest plains by a large army with rapid horses by casteism and religion, eventually 1207 Islamic Delhi Sultanate was established.They had to control India more and have to do south India.The disintegrating Sultanate of the Indian elite class left a large number of non-Muslims on their own customs.In the 13th century, protected India from the devastating attraction of Mongols.The collapse of the Sultanate paved the way to the autonomous Vijayanagara Empire.The empire ruled the vast part of India, constructing a strong Shaiva tradition and military technology of the Sultanate and then influenced South Indian society for a long time.Many European countries including Portugal, Dutch, France, Britain, who were willing to trade with India, took advantage of the internal government chaos of the country in the mid -century medieval period.Till almost he was successful in rule over the entire country.Most of India came directly under the administrative control of the British rule after the failed rebellion against the British East India Company in 1857, which is also known by the first struggle of Indian freedom.In the beginning of the twentieth century, due to the spread of modern education and the changing political conditions on the World Catal, an intellectual movement in India was a mealing which laid the foundation of many changes and movements on social and political levels.The establishment of the Indian National Congress in 185 gave a moving form to the freedom movement.In the beginning of the twentieth century, a huge non -violent struggle for achieving independence for a long time, which is led by Mahatma Gandhi, which is officially addressed as the 'Father of the Nation' of modern India, in this century, the social movement of India, which socialThere was also a huge non -violent and revolutionary struggle for independence, which was led by Dr. Babasaheb Ambedkar, who is addressed as the 'creator of modern India', 'Constitution maker' and 'Masiha of Dalits'.Along with this, the revolutionary struggle led by Chandrashekhar Azad, Sardar Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru, Netaji Subhash Chandra Bose, etc. As a result of the revolutionary struggle, August 15, 1949, India gained complete freedom from British rule.Thereafter, India became a republic on January 26, 1950.Being a multi-ethnic and multi-religious nation, India has suffered from time to time to become a victim of communal and ethnic hatred.Regional dissatisfaction and rebellion have also been in different parts of the country, but its secularism and democracy, except only 1985–4, when the then Prime Minister Indira Gandhi declared the Emergency, has been intact.There are unresolved border disputes with India's neighboring nations. | {
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241 | इस काल में कोई भी शासक एक साम्राज्य बनाने में सक्षम नहीं था और लगातार मूल भूमि की तुलना में दुसरे क्षेत्र की ओर आगे बढ़ने का क्रम जारी था। इस अवधि में नये शासन के कारण जाति में बांटे गए सामान्य कृषकों के लिए कृषि करना और सहज हो गया। जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप स्थानीय मतभेद होने लगे। 6 और 7 वीं शताब्दी में, पहली भक्ति भजन तमिल भाषा में बनाया गया था। पूरे भारत में उनकी नकल की गई और हिंदू धर्म के पुनरुत्थान और इसने उपमहाद्वीप की सभी आधुनिक भाषाओं के विकास का नेतृत्व किया। राजघरानो ने लोगों को राजधानी की आकर्षित किया। शहरीकरण के साथ शहरों में बड़े स्तर पर मंदिरों का निर्माण किया। दक्षिण भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक व्यवस्था का प्रभाव दक्षिण एशिया के देशों म्यांमार, थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और जावा में देखा जा सकता है। १० वीं शताब्दी के बाद घुमन्तु मुस्लिम वंशों ने जातियता तथा धर्म द्वारा संघठित तेज घोड़ों से युक्त बड़ी सेना के द्वारा उत्तर-पश्चिमी मैदानों पर बार बार आकर्मण किया, अंततः १२०६ इस्लामीक दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई। उन्हें उतर भारत को अधिक नियंत्रित करना था तथा दक्षिण भारत पर आकर्मण करना था। भारतीय कुलीन वर्ग के विघटनकारी सल्तनत ने बड़े पैमाने पर गैर-मुस्लिमों को स्वयं के रीतिरिवाजों पर छोड़ दिया। १३ वीं शताब्दी में मंगोलों द्वारा किये के विनाशकारी आकर्मण से भारत की रक्षा की। सल्तनत के पतन के कारण स्वशासित विजयनगर साम्राज्य का मार्ग प्रशस्त हुआ। एक मजबूत शैव परंपरा और सल्तनत की सैन्य तकनीक पर निर्माण करते हुए साम्राज्य ने भारत के विशाल भाग पर शासन किया और इसके बाद लंबे समय तक दक्षिण भारतीय समाज को प्रभावित किया। १७वीं शताब्दी के मध्यकाल में पुर्तगाल, डच, फ्रांस, ब्रिटेन सहित अनेक यूरोपीय देशों, जो भारत से व्यापार करने के इच्छुक थे, उन्होंने देश की आतंरिक शासकीय अराजकता का फायदा उठाया अंग्रेज दूसरे देशों से व्यापार के इच्छुक लोगों को रोकने में सफल रहे और १८४० तक लगभग संपूर्ण देश पर शासन करने में सफल हुए। १८५७ में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के विरुद्ध असफल विद्रोह, जो भारतीय स्वतन्त्रता के प्रथम संग्राम से भी जाना जाता है, के बाद भारत का अधिकांश भाग सीधे अंग्रेजी शासन के प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया। बीसवी सदी के प्रारम्भ में आधुनिक शिक्षा के प्रसार और विश्वपटल पर बदलती राजनीतिक परिस्थितियों के चलते भारत में एक बौद्धिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ जिसने सामाजिक और राजनीतिक स्तरों पर अनेक परिवर्तनों एवम आन्दोलनों की नीव रखी। १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक गतिमान स्वरूप दिया। बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में लम्बे समय तक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिये विशाल अहिंसावादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व महात्मा गांधी, जो आधिकारिक रूप से आधुनिक भारत के 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किये जाते हैं, इसी सदी में भारत के सामाजिक आन्दोलन, जो सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए भी विशाल अहिंसावादी एवं क्रांतिवादी संघर्ष चला, जिसका नेतृत्व डॉ॰ बाबासाहेब आंबेडकर ने किया, जो ‘आधुनिक भारत के निर्माता’, ‘संविधान निर्माता' एवं ‘दलितों के मसिहा’ के रूप में संबोधित किये जाते है। इसके साथ-साथ चंद्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, आदि के नेतृत्व में चले क्रांतिकारी संघर्ष के फलस्वरुप १५ अगस्त, १९४७ भारत ने अंग्रेजी शासन से पूर्णतः स्वतंत्रता प्राप्त की। तदुपरान्त २६ जनवरी, १९५० को भारत एक गणराज्य बना। एक बहुजातीय तथा बहुधार्मिक राष्ट्र होने के कारण भारत को समय-समय पर साम्प्रदायिक तथा जातीय विद्वेष का शिकार होना पड़ा है। क्षेत्रीय असंतोष तथा विद्रोह भी हालाँकि देश के अलग-अलग हिस्सों में होते रहे हैं, पर इसकी धर्मनिरपेक्षता तथा जनतांत्रिकता, केवल १९७५-७७ को छोड़, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी थी, अक्षुण्ण रही है। भारत के पड़ोसी राष्ट्रों के साथ अनसुलझे सीमा विवाद हैं। | 6वीं और 7वीं शताब्दी में भक्ति भजनों की रचना किस भाषा में की गई थी? | {
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} | In which language were Bhakti hymns composed in the 6th and 7th centuries? | In this period, no ruler was able to create an empire and continued to move towards another area as compared to the original land.During this period, due to the new regime, agriculture became more comfortable for general farmers distributed in caste.As a result of the caste system, local differences began to occur.In the 6th and 7th century, the first devotional hymn was built in Tamil language.He was copied across India and led the revival of Hinduism and the development of all modern languages of the subcontinent.Rajgharano attracted people to the capital.With urbanization, temples were built on a large scale in cities.The influence of the political and cultural system of South India can be seen in the countries of South Asia, Myanmar, Thailand, Laos, Cambodia, Vietnam, Philippines, Malaysia and Java.After the 10th century, the nomadic Muslim dynasties repeatedly attracted the northwest plains by a large army with rapid horses by casteism and religion, eventually 1207 Islamic Delhi Sultanate was established.They had to control India more and have to do south India.The disintegrating Sultanate of the Indian elite class left a large number of non-Muslims on their own customs.In the 13th century, protected India from the devastating attraction of Mongols.The collapse of the Sultanate paved the way to the autonomous Vijayanagara Empire.The empire ruled the vast part of India, constructing a strong Shaiva tradition and military technology of the Sultanate and then influenced South Indian society for a long time.Many European countries including Portugal, Dutch, France, Britain, who were willing to trade with India, took advantage of the internal government chaos of the country in the mid -century medieval period.Till almost he was successful in rule over the entire country.Most of India came directly under the administrative control of the British rule after the failed rebellion against the British East India Company in 1857, which is also known by the first struggle of Indian freedom.In the beginning of the twentieth century, due to the spread of modern education and the changing political conditions on the World Catal, an intellectual movement in India was a mealing which laid the foundation of many changes and movements on social and political levels.The establishment of the Indian National Congress in 185 gave a moving form to the freedom movement.In the beginning of the twentieth century, a huge non -violent struggle for achieving independence for a long time, which is led by Mahatma Gandhi, which is officially addressed as the 'Father of the Nation' of modern India, in this century, the social movement of India, which socialThere was also a huge non -violent and revolutionary struggle for independence, which was led by Dr. Babasaheb Ambedkar, who is addressed as the 'creator of modern India', 'Constitution maker' and 'Masiha of Dalits'.Along with this, the revolutionary struggle led by Chandrashekhar Azad, Sardar Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru, Netaji Subhash Chandra Bose, etc. As a result of the revolutionary struggle, August 15, 1949, India gained complete freedom from British rule.Thereafter, India became a republic on January 26, 1950.Being a multi-ethnic and multi-religious nation, India has suffered from time to time to become a victim of communal and ethnic hatred.Regional dissatisfaction and rebellion have also been in different parts of the country, but its secularism and democracy, except only 1985–4, when the then Prime Minister Indira Gandhi declared the Emergency, has been intact.There are unresolved border disputes with India's neighboring nations. | {
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242 | इस दिशा में कोलकाता मेट्रो रेलवे तथा बहुत से नये फ्लाई-ओवरों तथा नयी सड़कों के निर्मान ने शहर को काफ़ी राहत दी है। कोलकाता में दो मुख्य लंबी दूरियों की गाड़ियों वाले रेलवे स्टेशन हैं- हावड़ा जंक्शन और सियालदह जंक्शन। कोलकाता रेलवे स्टेशन नाम से एक नया स्टेशन २००६ में बनाया गया है। कोलकाता शहर भारतीय रेलवे के दो मंडलों का मुख्यालय है – पूर्वी रेलवे और दक्षिण-पूर्व रेलवे। शहर के विमान संपर्क हेतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दम दम में स्थित है। यह विमानक्षेत्र शहर के उत्तरी छोर पर है व यहां से दोनों, अन्तर्देशीय और अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें चलती हैं। यह नगर पूर्वी भारत का एक प्रधान बंदरगाह है। कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ही कोलकाता पत्तन और हल्दिया पत्तन का प्रबंधन करता है। यहां से अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में पोर्ट ब्लेयर के लिये यात्री जहाज और भारत के अन्य बंदरगाहों तथा विदेशों के लिए भारतीय शिपिंग निगम के माल-जहाज चलते हैं। यहीं से कोलकाता के द्वि-शहर हावड़ा के लिए फेरी-सेवा भी चलती है। कोलकाता में दो बड़े रेलवे स्टेशन हैं जिनमे एक हावड़ा और दूसरा सियालदह में है, हावड़ा तुलनात्मक रूप से ज्यादा बड़ा स्टेशन है जबकि सियालदह से स्थानीय सेवाएँ ज्यादा हैं। शहर में उत्तर में दमदम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जो शहर को देश विदेश से जोड़ता है। शहर से सीधे ढाका यांगून, बैंकाक लंदन पारो सहित मध्य पूर्व एशिया के कुछ शहर जुड़े हुये हैं। कोलकाता भारतीय उपमहाद्वीप का एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ ट्राम यातायात का प्रचलन है। इसके अलावा यहाँ कोलकाता मेट्रो की भूमिगत रेल सेवा भी उपलब्ध है। गंगा की शाखा हुगली में कहीं कहीं स्टीमर यातायात की सुविधा भी उपलब्ध है। | कोलकाता रेलवे स्टेशन नामक नया स्टेशन किस वर्ष बनाया गया था? | {
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257
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} | In which year was the new station named Kolkata Railway Station built? | In this direction, Kolkata Metro Railway and many new fly-over and new roads have given a lot of relief to the city.Kolkata has two main long distance railway stations- Howrah Junction and Sealdah Junction.A new station named Kolkata railway station is built in 2007.The city of Kolkata is the headquarters of two divisions of Indian Railways-Eastern Railway and South-East Railway.Netaji Subhash Chandra Bose International Airport is located at Dum Dum for the city aircraft.The airport is at the northern end of the city and both, inland and international flights run from here.This city was a major port of ancient India.The Kolkata Port Trust manages the Kolkata port and Haldia ports.From here, passenger ships for Port Blair in the Andaman and Nicobar Islands and other ports of India and the Indian Shipping Corporation for abroad run.It is from here that the ferry-service also runs for the two-city Howrah of Kolkata.Kolkata has two major railway stations in which one is in Howrah and the other in Sealdah, Howrah is a comparatively larger station while local services are more than Sealdah.Netaji Subhash Chandra Bose International Airport, which connects the city from abroad in Dum Dum in the north.Some cities in the Middle East Asia including Dhaka Yangon, Bangkok London Paro are directly connected to the city.Kolkata is the only city in the Indian subcontinent where tram traffic is prevalent.Apart from this, underground rail service of Kolkata Metro is also available here.Steamer traffic facility is also available somewhere in the Ganges branch Hooghly. | {
"answer_start": [
257
],
"text": [
"2006"
]
} |
243 | इस दिशा में कोलकाता मेट्रो रेलवे तथा बहुत से नये फ्लाई-ओवरों तथा नयी सड़कों के निर्मान ने शहर को काफ़ी राहत दी है। कोलकाता में दो मुख्य लंबी दूरियों की गाड़ियों वाले रेलवे स्टेशन हैं- हावड़ा जंक्शन और सियालदह जंक्शन। कोलकाता रेलवे स्टेशन नाम से एक नया स्टेशन २००६ में बनाया गया है। कोलकाता शहर भारतीय रेलवे के दो मंडलों का मुख्यालय है – पूर्वी रेलवे और दक्षिण-पूर्व रेलवे। शहर के विमान संपर्क हेतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दम दम में स्थित है। यह विमानक्षेत्र शहर के उत्तरी छोर पर है व यहां से दोनों, अन्तर्देशीय और अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें चलती हैं। यह नगर पूर्वी भारत का एक प्रधान बंदरगाह है। कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ही कोलकाता पत्तन और हल्दिया पत्तन का प्रबंधन करता है। यहां से अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में पोर्ट ब्लेयर के लिये यात्री जहाज और भारत के अन्य बंदरगाहों तथा विदेशों के लिए भारतीय शिपिंग निगम के माल-जहाज चलते हैं। यहीं से कोलकाता के द्वि-शहर हावड़ा के लिए फेरी-सेवा भी चलती है। कोलकाता में दो बड़े रेलवे स्टेशन हैं जिनमे एक हावड़ा और दूसरा सियालदह में है, हावड़ा तुलनात्मक रूप से ज्यादा बड़ा स्टेशन है जबकि सियालदह से स्थानीय सेवाएँ ज्यादा हैं। शहर में उत्तर में दमदम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जो शहर को देश विदेश से जोड़ता है। शहर से सीधे ढाका यांगून, बैंकाक लंदन पारो सहित मध्य पूर्व एशिया के कुछ शहर जुड़े हुये हैं। कोलकाता भारतीय उपमहाद्वीप का एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ ट्राम यातायात का प्रचलन है। इसके अलावा यहाँ कोलकाता मेट्रो की भूमिगत रेल सेवा भी उपलब्ध है। गंगा की शाखा हुगली में कहीं कहीं स्टीमर यातायात की सुविधा भी उपलब्ध है। | कोलकाता में दो प्रमुख लंबी दूरी के रेलवे स्टेशन कौन से हैं? | {
"text": [
"हावड़ा जंक्शन और सियालदह जंक्शन"
],
"answer_start": [
183
]
} | Which are the two major long-distance railway stations in Kolkata? | In this direction, Kolkata Metro Railway and many new fly-over and new roads have given a lot of relief to the city.Kolkata has two main long distance railway stations- Howrah Junction and Sealdah Junction.A new station named Kolkata railway station is built in 2007.The city of Kolkata is the headquarters of two divisions of Indian Railways-Eastern Railway and South-East Railway.Netaji Subhash Chandra Bose International Airport is located at Dum Dum for the city aircraft.The airport is at the northern end of the city and both, inland and international flights run from here.This city was a major port of ancient India.The Kolkata Port Trust manages the Kolkata port and Haldia ports.From here, passenger ships for Port Blair in the Andaman and Nicobar Islands and other ports of India and the Indian Shipping Corporation for abroad run.It is from here that the ferry-service also runs for the two-city Howrah of Kolkata.Kolkata has two major railway stations in which one is in Howrah and the other in Sealdah, Howrah is a comparatively larger station while local services are more than Sealdah.Netaji Subhash Chandra Bose International Airport, which connects the city from abroad in Dum Dum in the north.Some cities in the Middle East Asia including Dhaka Yangon, Bangkok London Paro are directly connected to the city.Kolkata is the only city in the Indian subcontinent where tram traffic is prevalent.Apart from this, underground rail service of Kolkata Metro is also available here.Steamer traffic facility is also available somewhere in the Ganges branch Hooghly. | {
"answer_start": [
183
],
"text": [
"Howrah Junction and Sealdah Junction"
]
} |
244 | इस दिशा में कोलकाता मेट्रो रेलवे तथा बहुत से नये फ्लाई-ओवरों तथा नयी सड़कों के निर्मान ने शहर को काफ़ी राहत दी है। कोलकाता में दो मुख्य लंबी दूरियों की गाड़ियों वाले रेलवे स्टेशन हैं- हावड़ा जंक्शन और सियालदह जंक्शन। कोलकाता रेलवे स्टेशन नाम से एक नया स्टेशन २००६ में बनाया गया है। कोलकाता शहर भारतीय रेलवे के दो मंडलों का मुख्यालय है – पूर्वी रेलवे और दक्षिण-पूर्व रेलवे। शहर के विमान संपर्क हेतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दम दम में स्थित है। यह विमानक्षेत्र शहर के उत्तरी छोर पर है व यहां से दोनों, अन्तर्देशीय और अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें चलती हैं। यह नगर पूर्वी भारत का एक प्रधान बंदरगाह है। कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ही कोलकाता पत्तन और हल्दिया पत्तन का प्रबंधन करता है। यहां से अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में पोर्ट ब्लेयर के लिये यात्री जहाज और भारत के अन्य बंदरगाहों तथा विदेशों के लिए भारतीय शिपिंग निगम के माल-जहाज चलते हैं। यहीं से कोलकाता के द्वि-शहर हावड़ा के लिए फेरी-सेवा भी चलती है। कोलकाता में दो बड़े रेलवे स्टेशन हैं जिनमे एक हावड़ा और दूसरा सियालदह में है, हावड़ा तुलनात्मक रूप से ज्यादा बड़ा स्टेशन है जबकि सियालदह से स्थानीय सेवाएँ ज्यादा हैं। शहर में उत्तर में दमदम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जो शहर को देश विदेश से जोड़ता है। शहर से सीधे ढाका यांगून, बैंकाक लंदन पारो सहित मध्य पूर्व एशिया के कुछ शहर जुड़े हुये हैं। कोलकाता भारतीय उपमहाद्वीप का एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ ट्राम यातायात का प्रचलन है। इसके अलावा यहाँ कोलकाता मेट्रो की भूमिगत रेल सेवा भी उपलब्ध है। गंगा की शाखा हुगली में कहीं कहीं स्टीमर यातायात की सुविधा भी उपलब्ध है। | नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा कहां स्थित है? | {
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"दम दम"
],
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443
]
} | Where is Netaji Subhas Chandra Bose International Airport located? | In this direction, Kolkata Metro Railway and many new fly-over and new roads have given a lot of relief to the city.Kolkata has two main long distance railway stations- Howrah Junction and Sealdah Junction.A new station named Kolkata railway station is built in 2007.The city of Kolkata is the headquarters of two divisions of Indian Railways-Eastern Railway and South-East Railway.Netaji Subhash Chandra Bose International Airport is located at Dum Dum for the city aircraft.The airport is at the northern end of the city and both, inland and international flights run from here.This city was a major port of ancient India.The Kolkata Port Trust manages the Kolkata port and Haldia ports.From here, passenger ships for Port Blair in the Andaman and Nicobar Islands and other ports of India and the Indian Shipping Corporation for abroad run.It is from here that the ferry-service also runs for the two-city Howrah of Kolkata.Kolkata has two major railway stations in which one is in Howrah and the other in Sealdah, Howrah is a comparatively larger station while local services are more than Sealdah.Netaji Subhash Chandra Bose International Airport, which connects the city from abroad in Dum Dum in the north.Some cities in the Middle East Asia including Dhaka Yangon, Bangkok London Paro are directly connected to the city.Kolkata is the only city in the Indian subcontinent where tram traffic is prevalent.Apart from this, underground rail service of Kolkata Metro is also available here.Steamer traffic facility is also available somewhere in the Ganges branch Hooghly. | {
"answer_start": [
443
],
"text": [
"Dum Dum"
]
} |
245 | इस दिशा में कोलकाता मेट्रो रेलवे तथा बहुत से नये फ्लाई-ओवरों तथा नयी सड़कों के निर्मान ने शहर को काफ़ी राहत दी है। कोलकाता में दो मुख्य लंबी दूरियों की गाड़ियों वाले रेलवे स्टेशन हैं- हावड़ा जंक्शन और सियालदह जंक्शन। कोलकाता रेलवे स्टेशन नाम से एक नया स्टेशन २००६ में बनाया गया है। कोलकाता शहर भारतीय रेलवे के दो मंडलों का मुख्यालय है – पूर्वी रेलवे और दक्षिण-पूर्व रेलवे। शहर के विमान संपर्क हेतु नेताजी सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा दम दम में स्थित है। यह विमानक्षेत्र शहर के उत्तरी छोर पर है व यहां से दोनों, अन्तर्देशीय और अन्तर्राष्ट्रीय उड़ानें चलती हैं। यह नगर पूर्वी भारत का एक प्रधान बंदरगाह है। कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट ही कोलकाता पत्तन और हल्दिया पत्तन का प्रबंधन करता है। यहां से अंडमान निकोबार द्वीपसमूह में पोर्ट ब्लेयर के लिये यात्री जहाज और भारत के अन्य बंदरगाहों तथा विदेशों के लिए भारतीय शिपिंग निगम के माल-जहाज चलते हैं। यहीं से कोलकाता के द्वि-शहर हावड़ा के लिए फेरी-सेवा भी चलती है। कोलकाता में दो बड़े रेलवे स्टेशन हैं जिनमे एक हावड़ा और दूसरा सियालदह में है, हावड़ा तुलनात्मक रूप से ज्यादा बड़ा स्टेशन है जबकि सियालदह से स्थानीय सेवाएँ ज्यादा हैं। शहर में उत्तर में दमदम में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा जो शहर को देश विदेश से जोड़ता है। शहर से सीधे ढाका यांगून, बैंकाक लंदन पारो सहित मध्य पूर्व एशिया के कुछ शहर जुड़े हुये हैं। कोलकाता भारतीय उपमहाद्वीप का एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ ट्राम यातायात का प्रचलन है। इसके अलावा यहाँ कोलकाता मेट्रो की भूमिगत रेल सेवा भी उपलब्ध है। गंगा की शाखा हुगली में कहीं कहीं स्टीमर यातायात की सुविधा भी उपलब्ध है। | कोलकाता शहर की सड़कों पर किस रंग की टैक्सियाँ चलती हैं? | {
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""
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null
]
} | What colour taxis ply on the streets of Kolkata city? | In this direction, Kolkata Metro Railway and many new fly-over and new roads have given a lot of relief to the city.Kolkata has two main long distance railway stations- Howrah Junction and Sealdah Junction.A new station named Kolkata railway station is built in 2007.The city of Kolkata is the headquarters of two divisions of Indian Railways-Eastern Railway and South-East Railway.Netaji Subhash Chandra Bose International Airport is located at Dum Dum for the city aircraft.The airport is at the northern end of the city and both, inland and international flights run from here.This city was a major port of ancient India.The Kolkata Port Trust manages the Kolkata port and Haldia ports.From here, passenger ships for Port Blair in the Andaman and Nicobar Islands and other ports of India and the Indian Shipping Corporation for abroad run.It is from here that the ferry-service also runs for the two-city Howrah of Kolkata.Kolkata has two major railway stations in which one is in Howrah and the other in Sealdah, Howrah is a comparatively larger station while local services are more than Sealdah.Netaji Subhash Chandra Bose International Airport, which connects the city from abroad in Dum Dum in the north.Some cities in the Middle East Asia including Dhaka Yangon, Bangkok London Paro are directly connected to the city.Kolkata is the only city in the Indian subcontinent where tram traffic is prevalent.Apart from this, underground rail service of Kolkata Metro is also available here.Steamer traffic facility is also available somewhere in the Ganges branch Hooghly. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
246 | इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह कभी नहीं करेगा। "फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी अयंगार को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था। अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे। आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। आम्बेडकर का भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती। संविधान सभा में बहस के दौरान, आम्बेडकर ने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट कि। 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कहीं गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं वल्लभभाई पटेल समेत संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके ख़िलाफ़़ थी। | अंबेडकर ने किस मसौदे के बाद कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था? | {
"text": [
"हिन्दू कोड बिल"
],
"answer_start": [
935
]
} | After which draft did Ambedkar resign from the cabinet? | To agree to this proposal, I will never be a trusted thing against India's interests as the Law Minister of India, it will never do this."Then Abdullah contacted Nehru, who directed him to Gopal Swami Iyngar, who in turn contacted Vallabhbhai Patel and said that Nehru had promised the ske.A foreign tour was on a foreign tour. The day the article came for discussion, Ambedkar did not answer questions but participated on other articles. All arguments were made by Krishna Swami Iyengar. Ambedkar was actually in favor of the Uniform Civil Code.And used to oppose Section 370 in the case of Kashmir. Ambedkar's India would have a country of modern, scientific thinking and rational ideas, it would not have a place of personal law. During the debate in the Constituent Assembly, Ambedkar has adopted a uniform civil code.Recommended to reform Indian society by recommendation. Ambedkar resigned from the cabinet after stopping the draft of its Hindu Code Bill (Hindu Code Bill) in Parliament in 1951. Many rights to Indian women by Hindu Code BillThere was talk of providing somewhere. This draft demanded gender equality in succession, marriage and economy laws.Although Prime Minister Nehru, Cabinet and some other Congress leaders supported it, but a large number of members of Parliament, including President Rajendra Prasad and Vallabhbhai Patel, were against it. | {
"answer_start": [
935
],
"text": [
"The Hindu Code Bill"
]
} |
247 | इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह कभी नहीं करेगा। "फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी अयंगार को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था। अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे। आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। आम्बेडकर का भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती। संविधान सभा में बहस के दौरान, आम्बेडकर ने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट कि। 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कहीं गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं वल्लभभाई पटेल समेत संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके ख़िलाफ़़ थी। | अम्बेडकर संविधान के किस अनुच्छेद के खिलाफ थे? | {
"text": [
"धारा 370"
],
"answer_start": [
639
]
} | Ambedkar was against which article of the Constitution? | To agree to this proposal, I will never be a trusted thing against India's interests as the Law Minister of India, it will never do this."Then Abdullah contacted Nehru, who directed him to Gopal Swami Iyngar, who in turn contacted Vallabhbhai Patel and said that Nehru had promised the ske.A foreign tour was on a foreign tour. The day the article came for discussion, Ambedkar did not answer questions but participated on other articles. All arguments were made by Krishna Swami Iyengar. Ambedkar was actually in favor of the Uniform Civil Code.And used to oppose Section 370 in the case of Kashmir. Ambedkar's India would have a country of modern, scientific thinking and rational ideas, it would not have a place of personal law. During the debate in the Constituent Assembly, Ambedkar has adopted a uniform civil code.Recommended to reform Indian society by recommendation. Ambedkar resigned from the cabinet after stopping the draft of its Hindu Code Bill (Hindu Code Bill) in Parliament in 1951. Many rights to Indian women by Hindu Code BillThere was talk of providing somewhere. This draft demanded gender equality in succession, marriage and economy laws.Although Prime Minister Nehru, Cabinet and some other Congress leaders supported it, but a large number of members of Parliament, including President Rajendra Prasad and Vallabhbhai Patel, were against it. | {
"answer_start": [
639
],
"text": [
"Section 370"
]
} |
248 | इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह कभी नहीं करेगा। "फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी अयंगार को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था। अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे। आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। आम्बेडकर का भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती। संविधान सभा में बहस के दौरान, आम्बेडकर ने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट कि। 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कहीं गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं वल्लभभाई पटेल समेत संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके ख़िलाफ़़ थी। | अंबेडकर ने बॉम्बे निर्वाचन क्षेत्र में स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लोकसभा चुनाव कब लड़ा था? | {
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""
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null
]
} | When did Ambedkar contest the Lok Sabha elections as an independent candidate in the Bombay constituency? | To agree to this proposal, I will never be a trusted thing against India's interests as the Law Minister of India, it will never do this."Then Abdullah contacted Nehru, who directed him to Gopal Swami Iyngar, who in turn contacted Vallabhbhai Patel and said that Nehru had promised the ske.A foreign tour was on a foreign tour. The day the article came for discussion, Ambedkar did not answer questions but participated on other articles. All arguments were made by Krishna Swami Iyengar. Ambedkar was actually in favor of the Uniform Civil Code.And used to oppose Section 370 in the case of Kashmir. Ambedkar's India would have a country of modern, scientific thinking and rational ideas, it would not have a place of personal law. During the debate in the Constituent Assembly, Ambedkar has adopted a uniform civil code.Recommended to reform Indian society by recommendation. Ambedkar resigned from the cabinet after stopping the draft of its Hindu Code Bill (Hindu Code Bill) in Parliament in 1951. Many rights to Indian women by Hindu Code BillThere was talk of providing somewhere. This draft demanded gender equality in succession, marriage and economy laws.Although Prime Minister Nehru, Cabinet and some other Congress leaders supported it, but a large number of members of Parliament, including President Rajendra Prasad and Vallabhbhai Patel, were against it. | {
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null
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""
]
} |
249 | इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह कभी नहीं करेगा। "फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी अयंगार को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था। अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे। आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। आम्बेडकर का भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती। संविधान सभा में बहस के दौरान, आम्बेडकर ने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट कि। 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कहीं गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं वल्लभभाई पटेल समेत संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके ख़िलाफ़़ थी। | हिंदू कोड बिल का समर्थन किस राजनेता ने किया था? | {
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"प्रधानमंत्री नेहरू"
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1227
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} | Which politician supported the Hindu Code Bill? | To agree to this proposal, I will never be a trusted thing against India's interests as the Law Minister of India, it will never do this."Then Abdullah contacted Nehru, who directed him to Gopal Swami Iyngar, who in turn contacted Vallabhbhai Patel and said that Nehru had promised the ske.A foreign tour was on a foreign tour. The day the article came for discussion, Ambedkar did not answer questions but participated on other articles. All arguments were made by Krishna Swami Iyengar. Ambedkar was actually in favor of the Uniform Civil Code.And used to oppose Section 370 in the case of Kashmir. Ambedkar's India would have a country of modern, scientific thinking and rational ideas, it would not have a place of personal law. During the debate in the Constituent Assembly, Ambedkar has adopted a uniform civil code.Recommended to reform Indian society by recommendation. Ambedkar resigned from the cabinet after stopping the draft of its Hindu Code Bill (Hindu Code Bill) in Parliament in 1951. Many rights to Indian women by Hindu Code BillThere was talk of providing somewhere. This draft demanded gender equality in succession, marriage and economy laws.Although Prime Minister Nehru, Cabinet and some other Congress leaders supported it, but a large number of members of Parliament, including President Rajendra Prasad and Vallabhbhai Patel, were against it. | {
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1227
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"text": [
"Prime Minister Nehru"
]
} |
250 | इस प्रस्ताव को सहमति देने के लिए, मैं भारत के कानून मंत्री के रूप में भारत के हितों के खिलाफ एक विश्वासघाती बात होंगी, यह कभी नहीं करेगा। "फिर अब्दुल्ला ने नेहरू से संपर्क किया, जिन्होंने उन्हें गोपाल स्वामी अयंगार को निर्देशित किया, जिन्होंने बदले में वल्लभभाई पटेल से संपर्क किया और कहा कि नेहरू ने स्के का वादा किया था। अब्दुल्ला विशेष स्थिति। पटेल द्वारा अनुच्छेद पारित किया गया, जबकि नेहरू एक विदेश दौरे पर थे। जिस दिन लेख चर्चा के लिए आया था, आम्बेडकर ने इस पर सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन अन्य लेखों पर भाग लिया। सभी तर्क कृष्णा स्वामी अयंगार द्वारा किए गए थे। आम्बेडकर वास्तव में समान नागरिक संहिता के पक्षधर थे और कश्मीर के मामले में धारा 370 का विरोध करते थे। आम्बेडकर का भारत आधुनिक, वैज्ञानिक सोच और तर्कसंगत विचारों का देश होता, उसमें पर्सनल कानून की जगह नहीं होती। संविधान सभा में बहस के दौरान, आम्बेडकर ने एक समान नागरिक संहिता को अपनाने की सिफारिश करके भारतीय समाज में सुधार करने की अपनी इच्छा प्रकट कि। 1951 मे संसद में अपने हिन्दू कोड बिल (हिंदू संहिता विधेयक) के मसौदे को रोके जाने के बाद आम्बेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। हिंदू कोड बिल द्वारा भारतीय महिलाओं को कई अधिकारों प्रदान करने की बात कहीं गई थी। इस मसौदे में उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी। हालांकि प्रधानमंत्री नेहरू, कैबिनेट और कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं ने इसका समर्थन किया पर राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद एवं वल्लभभाई पटेल समेत संसद सदस्यों की एक बड़ी संख्या इसके ख़िलाफ़़ थी। | अंबेडकर को लोकसभा चुनाव में कितने वोट मिले थे ? | {
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""
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"answer_start": [
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]
} | How many votes did Ambedkar get in the Lok Sabha elections? | To agree to this proposal, I will never be a trusted thing against India's interests as the Law Minister of India, it will never do this."Then Abdullah contacted Nehru, who directed him to Gopal Swami Iyngar, who in turn contacted Vallabhbhai Patel and said that Nehru had promised the ske.A foreign tour was on a foreign tour. The day the article came for discussion, Ambedkar did not answer questions but participated on other articles. All arguments were made by Krishna Swami Iyengar. Ambedkar was actually in favor of the Uniform Civil Code.And used to oppose Section 370 in the case of Kashmir. Ambedkar's India would have a country of modern, scientific thinking and rational ideas, it would not have a place of personal law. During the debate in the Constituent Assembly, Ambedkar has adopted a uniform civil code.Recommended to reform Indian society by recommendation. Ambedkar resigned from the cabinet after stopping the draft of its Hindu Code Bill (Hindu Code Bill) in Parliament in 1951. Many rights to Indian women by Hindu Code BillThere was talk of providing somewhere. This draft demanded gender equality in succession, marriage and economy laws.Although Prime Minister Nehru, Cabinet and some other Congress leaders supported it, but a large number of members of Parliament, including President Rajendra Prasad and Vallabhbhai Patel, were against it. | {
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null
],
"text": [
""
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251 | इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदा पार की। तात्या ने अक्टूबर, १८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी। नर्मदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर को इटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस योजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया। मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं। मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी में सतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे। तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा, जीरापुर, प्रतापगढ, नाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा। परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ७ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम चार बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था,किन्तु राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के नवें अधिवेशन में कुछ ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आई है उसके अनुसार मानसिंह व तांत्या टोपे ने एक योजना बनाई, जिसके अनुसार टोपे के स्वामिभक्त साथी को नकली तांत्या टोपे बनने क एलिए राजी कर तैयार किया गया और इसके लिए वह स्वामिभक्त तैयार हो गया. उसी नकली तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने पकड़ा और फांसी दे दी. असली तांत्या टोपे इसके बाद भी आठ-दस वर्ष तक जीवित रहा और बाद में वह स्वाभाविक मौत से मरा. वह हर वर्ष अपने गांव जाता था और अपने परिजनों से मिला करता था,गजेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा लिखित व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक "तांत्या टोपे की कथित फांसी" दस्तावेज क्या कहते है? श्री सोलंकी ने अपनी पुस्तक में अनेक दस्तावेजों एवं पत्रों का उल्लेख किया है तथा उक्त पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर नारायणराव भागवत का चित्र भी छापा है. पुस्तक में उल्लेख है कि सन 1957 ई. में इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित डा. रामचंद्र बिल्लौर द्वारा लिखित "हमारा देश" नाटक पुस्तक के पृष्ठ स.46 पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि इस सम्बन्ध में एक नवीन शोध यह है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे को धोखा नहीं दिया, बल्कि अंग्रेजों की ही आँखों में धूल झोंकी. फांसी के तख़्त पर झूलने वाला कोई देश भक्त था, जिसने तांत्या टोपे को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया. तांत्या टोपे स्मारक समिति ने "तांत्या टोपे के वास्ते से" सन 1857 के क्रांतिकारी पत्र के नाम से सन 1978 में प्रकाशित किये है उक्त पत्रावली मध्यप्रदेश अभिलेखागार भोपाल (म.प्र.) में सुरक्षित है. इसमें मिले पत्र संख्या 1917 एवं 1918 के दो पत्र तांत्या टोपे के जिन्दा बचने के प्रमाण है. उक्त पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि तांत्या टोपे शताब्दी समारोह बम्बई में आयोजित किया गया था जिसमें तांत्या टोपे के भतीजे प्रो.टोपे तथा उनकी वृद्धा भतीजी का सम्मान किया गया था। अपने सम्मान पर इन दोनों ने प्रकट किया कि तांत्या टोपे को फांसी नहीं हुई थी। उनका कहना था कि सन 1909 ई. में तांत्या टोपे का स्वर्गवास हुआ और उनके परिवार ने विधिवत अंतिम संस्कार किया था। | एडवर्ड थॉम्पसन की पुस्तक द अदर साइड ऑफ द मेडिसिन कब प्रकाशित हुई थी? | {
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} | When was Edward Thompson's book The Other Side of the Medicine published? | To fulfill this plan, they reached Khurai in Sagar district, where Michael defeated the last group of his army. So Tatya crossed the Narmada at Saraiya Ghat near Fatehpur, between Hoshangabad and Narsinghpur. Tatya crossed the Narmada with about 2500 soldiers in late October 1858. There was a signal of Tatya's arrival long before crossing the Narmada. On 28 October, the Kotwar of Etawah village had given an important information to Asare police station, located 10 miles away from Chhindwara, where he had informed that a saffron flag, betel nut and betel leaf were being carried from village to village. Their objective was to awaken the public. There was also a hint from them that Nana Saheb or Tatya Tope was reaching in that direction. The British took immediate steps. Nagpur Deputy Commissioner alerted the Deputy Commissioners of neighboring districts to deal with the situation. This information was considered so important that its information was given to the Governor General. By crossing the Narmada and entering its southern region, Tatya created terror in the hearts of the British. Tatya was looking for this opportunity and the British had also set up barricades throughout Central India to thwart his plan. In this perspective, Tatya Tope's success will definitely be considered surprising. Elphinstone, the Governor of Bombay Province, became nervous due to Tatya's arrival in Nagpur area. Panic spread in Madras province also. Tatya crossed the inaccessible hills of Pachmarhi with his army and reached Jamai village, 26 miles north-west of Chhindwara. 17 policemen of the police station there were killed. Then Tatya reached Multai via Bordeh on 7th November. Both are in Betul district. Tatya rested for a day in Multai. He took bath in Tapti river and donated one Ashrafi each to the Brahmins. Later the British confiscated these Ashrafiyas. Heads of Deshmukh and Deshpande families of Multai and many villagers joined his army. But Tatya did not get the success he had expected in getting public support here. The British laid siege to Betul. The routes to move towards west or south were closed. Tatya eventually plundered Multai and set fire to government buildings. They turned towards north-west and reached East Nimar i.e. Khandwa district via Aathner and Bhainsdehi. Crossing the Satpura peaks in Tapti valley, Tatya reached Khandwa. He saw that the British had formed a front against him in every direction. Sir Hugh Rose in Khandesh and General Roberts in Gujarat blocked his path. The army was moving towards them towards Berar also. A colleague of Tatya has written that Tatya was facing a very difficult situation at that time. They had neither ammunition, nor supplies, nor money. He ordered his associates to go wherever they wanted, but his loyal associates and followers were not ready to leave their leader in such difficult times. Tatya wanted to reach Asirgarh, but Asir was tightly guarded. Therefore, before leaving Nimad, Tatya set fire to the police stations and government buildings of Khandwa, Piplod etc. From Khandwa he went back to Central India via Khargone. In Khargone, Khajiya Nayak along with his 4000 followers joined Tatya Tope. These included Bhil Sardar and Malsin. Here in Rajpur there was a fierce battle with Sutherland, but Tatya succeeded in crossing the Narmada by dodging Sutherland. Tatya's struggle for India's independence continued. Once again Tatya's great journey against the enemy started. From Khargone, he reached Indergarh via Chhota Udaipur, Banswara, Jirapur, Pratapgarh, Nahargarh. At Indergarh, he was surrounded from every direction by Brigadiers Napier, Schabers, Somerset, Smith, Michael and Horner and even higher military officers. There was no way to escape, but Tatya had immense patience and wisdom. Breaking this difficult and impossible encirclement of the British, they ran towards Jaipur. He had to be defeated by the British in Dewas and Shikar. Now in despair they were forced to take shelter in the forest of Paron. Tatya Tope was betrayed in the forest of Paron. Raja Mansingh of Narwar joined the British and due to his betrayal, Tatya was caught in his sleep on April 7, 1859. No one could catch Ranbankure Tatya awake. On April 15, 1859, Tatya was court martialed in Shivpuri on charges of rebellion and fighting a war against the British. All the members of the court martial were English. The result was obvious, he was given the death penalty. He was kept confined in the Shivpuri fort for three days. On April 18, at 4 pm, Tatya was brought out under the protection of the British company and hanged in the open field in the presence of thousands of people. It is said that Tatya climbed the gallows platform with firm steps and strangled himself in the noose. In this way Tatya became a part of the soil of Madhya Pradesh. Colonel Malleson has written the history of the rebellion of 1857. He said that Tatya Tope has become the 'hero' of the residents of Chambal, Narmada and Parvati valleys. The truth is that Tatya has become the 'hero' of the whole of India. An Englishman named Percy Cross has written that 'Tatya was the leader with the most brilliant mind in the Indian rebellion. If there were some more people like him, India could have been snatched from the hands of the British, but some historical material has come to light in the ninth session of Rajasthan History Congress. According to him, Mansingh and Tantya Tope made a plan, according to which Tope's loyal companion was persuaded to become a fake Tantya Tope and the loyalist agreed to do so. The same fake Tantya Tope was caught by the British and hanged. The real Tantya Tope still lived for eight-ten years and later died a natural death. He used to go to his village every year and meet his family members. What does the book "Alleged hanging of Tantya Tope" written by Gajendra Singh Solanki and published by All India History Compilation Scheme, New Delhi, document say? Shri Solanki has mentioned many documents and letters in his book and has also printed the picture of Narayanrao Bhagwat on the main page of the said book. It is mentioned in the book that in the footnote on page 46 of the drama book "Hamara Desh" written by Dr. Ramchandra Billaur, published by Indore University in 1957, it is written that a new research in this regard is that Raja Mansingh He did not betray Tantya Tope, but instead threw dust in the eyes of the British. There was a patriot hanging on the gallows, who sacrificed his life to save Tantya Tope. Tantya Tope Memorial Committee has published the revolutionary letter of 1857 in the name of "For the sake of Tantya Tope" in 1978. The said letter is preserved in Madhya Pradesh Archives, Bhopal (M.P.). The two letters dated 1917 and 1918 found in it are proof of Tantya Tope's survival. It is also mentioned in the said book that Tantya Tope centenary celebrations were organized in Bombay in which Tantya Tope's nephew Prof. Tope and his elderly niece were honoured. On their honor both of them revealed that Tantya Tope was not hanged. He said that Tantya Tope died in 1909 AD and his family had performed the last rites. | {
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252 | इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदा पार की। तात्या ने अक्टूबर, १८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी। नर्मदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर को इटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस योजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया। मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं। मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी में सतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे। तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा, जीरापुर, प्रतापगढ, नाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा। परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ७ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम चार बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था,किन्तु राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के नवें अधिवेशन में कुछ ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आई है उसके अनुसार मानसिंह व तांत्या टोपे ने एक योजना बनाई, जिसके अनुसार टोपे के स्वामिभक्त साथी को नकली तांत्या टोपे बनने क एलिए राजी कर तैयार किया गया और इसके लिए वह स्वामिभक्त तैयार हो गया. उसी नकली तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने पकड़ा और फांसी दे दी. असली तांत्या टोपे इसके बाद भी आठ-दस वर्ष तक जीवित रहा और बाद में वह स्वाभाविक मौत से मरा. वह हर वर्ष अपने गांव जाता था और अपने परिजनों से मिला करता था,गजेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा लिखित व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक "तांत्या टोपे की कथित फांसी" दस्तावेज क्या कहते है? श्री सोलंकी ने अपनी पुस्तक में अनेक दस्तावेजों एवं पत्रों का उल्लेख किया है तथा उक्त पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर नारायणराव भागवत का चित्र भी छापा है. पुस्तक में उल्लेख है कि सन 1957 ई. में इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित डा. रामचंद्र बिल्लौर द्वारा लिखित "हमारा देश" नाटक पुस्तक के पृष्ठ स.46 पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि इस सम्बन्ध में एक नवीन शोध यह है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे को धोखा नहीं दिया, बल्कि अंग्रेजों की ही आँखों में धूल झोंकी. फांसी के तख़्त पर झूलने वाला कोई देश भक्त था, जिसने तांत्या टोपे को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया. तांत्या टोपे स्मारक समिति ने "तांत्या टोपे के वास्ते से" सन 1857 के क्रांतिकारी पत्र के नाम से सन 1978 में प्रकाशित किये है उक्त पत्रावली मध्यप्रदेश अभिलेखागार भोपाल (म.प्र.) में सुरक्षित है. इसमें मिले पत्र संख्या 1917 एवं 1918 के दो पत्र तांत्या टोपे के जिन्दा बचने के प्रमाण है. उक्त पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि तांत्या टोपे शताब्दी समारोह बम्बई में आयोजित किया गया था जिसमें तांत्या टोपे के भतीजे प्रो.टोपे तथा उनकी वृद्धा भतीजी का सम्मान किया गया था। अपने सम्मान पर इन दोनों ने प्रकट किया कि तांत्या टोपे को फांसी नहीं हुई थी। उनका कहना था कि सन 1909 ई. में तांत्या टोपे का स्वर्गवास हुआ और उनके परिवार ने विधिवत अंतिम संस्कार किया था। | माइकल ने अपनी आखिरी सेना को कहाँ हराया था ? | {
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This information was considered so important that its information was given to the Governor General. By crossing the Narmada and entering its southern region, Tatya created terror in the hearts of the British. Tatya was looking for this opportunity and the British had also set up barricades throughout Central India to thwart his plan. In this perspective, Tatya Tope's success will definitely be considered surprising. Elphinstone, the Governor of Bombay Province, became nervous due to Tatya's arrival in Nagpur area. Panic spread in Madras province also. Tatya crossed the inaccessible hills of Pachmarhi with his army and reached Jamai village, 26 miles north-west of Chhindwara. 17 policemen of the police station there were killed. Then Tatya reached Multai via Bordeh on 7th November. Both are in Betul district. Tatya rested for a day in Multai. He took bath in Tapti river and donated one Ashrafi each to the Brahmins. Later the British confiscated these Ashrafiyas. Heads of Deshmukh and Deshpande families of Multai and many villagers joined his army. But Tatya did not get the success he had expected in getting public support here. The British laid siege to Betul. The routes to move towards west or south were closed. Tatya eventually plundered Multai and set fire to government buildings. They turned towards north-west and reached East Nimar i.e. Khandwa district via Aathner and Bhainsdehi. Crossing the Satpura peaks in Tapti valley, Tatya reached Khandwa. He saw that the British had formed a front against him in every direction. Sir Hugh Rose in Khandesh and General Roberts in Gujarat blocked his path. The army was moving towards them towards Berar also. A colleague of Tatya has written that Tatya was facing a very difficult situation at that time. They had neither ammunition, nor supplies, nor money. He ordered his associates to go wherever they wanted, but his loyal associates and followers were not ready to leave their leader in such difficult times. Tatya wanted to reach Asirgarh, but Asir was tightly guarded. Therefore, before leaving Nimad, Tatya set fire to the police stations and government buildings of Khandwa, Piplod etc. From Khandwa he went back to Central India via Khargone. In Khargone, Khajiya Nayak along with his 4000 followers joined Tatya Tope. These included Bhil Sardar and Malsin. Here in Rajpur there was a fierce battle with Sutherland, but Tatya succeeded in crossing the Narmada by dodging Sutherland. Tatya's struggle for India's independence continued. Once again Tatya's great journey against the enemy started. From Khargone, he reached Indergarh via Chhota Udaipur, Banswara, Jirapur, Pratapgarh, Nahargarh. At Indergarh, he was surrounded from every direction by Brigadiers Napier, Schabers, Somerset, Smith, Michael and Horner and even higher military officers. There was no way to escape, but Tatya had immense patience and wisdom. Breaking this difficult and impossible encirclement of the British, they ran towards Jaipur. He had to be defeated by the British in Dewas and Shikar. Now in despair they were forced to take shelter in the forest of Paron. Tatya Tope was betrayed in the forest of Paron. Raja Mansingh of Narwar joined the British and due to his betrayal, Tatya was caught in his sleep on April 7, 1859. No one could catch Ranbankure Tatya awake. On April 15, 1859, Tatya was court martialed in Shivpuri on charges of rebellion and fighting a war against the British. All the members of the court martial were English. The result was obvious, he was given the death penalty. He was kept confined in the Shivpuri fort for three days. On April 18, at 4 pm, Tatya was brought out under the protection of the British company and hanged in the open field in the presence of thousands of people. It is said that Tatya climbed the gallows platform with firm steps and strangled himself in the noose. In this way Tatya became a part of the soil of Madhya Pradesh. Colonel Malleson has written the history of the rebellion of 1857. He said that Tatya Tope has become the 'hero' of the residents of Chambal, Narmada and Parvati valleys. The truth is that Tatya has become the 'hero' of the whole of India. An Englishman named Percy Cross has written that 'Tatya was the leader with the most brilliant mind in the Indian rebellion. If there were some more people like him, India could have been snatched from the hands of the British, but some historical material has come to light in the ninth session of Rajasthan History Congress. According to him, Mansingh and Tantya Tope made a plan, according to which Tope's loyal companion was persuaded to become a fake Tantya Tope and the loyalist agreed to do so. The same fake Tantya Tope was caught by the British and hanged. The real Tantya Tope still lived for eight-ten years and later died a natural death. He used to go to his village every year and meet his family members. What does the book "Alleged hanging of Tantya Tope" written by Gajendra Singh Solanki and published by All India History Compilation Scheme, New Delhi, document say? Shri Solanki has mentioned many documents and letters in his book and has also printed the picture of Narayanrao Bhagwat on the main page of the said book. It is mentioned in the book that in the footnote on page 46 of the drama book "Hamara Desh" written by Dr. Ramchandra Billaur, published by Indore University in 1957, it is written that a new research in this regard is that Raja Mansingh He did not betray Tantya Tope, but instead threw dust in the eyes of the British. There was a patriot hanging on the gallows, who sacrificed his life to save Tantya Tope. Tantya Tope Memorial Committee has published the revolutionary letter of 1857 in the name of "For the sake of Tantya Tope" in 1978. The said letter is preserved in Madhya Pradesh Archives, Bhopal (M.P.). The two letters dated 1917 and 1918 found in it are proof of Tantya Tope's survival. It is also mentioned in the said book that Tantya Tope centenary celebrations were organized in Bombay in which Tantya Tope's nephew Prof. Tope and his elderly niece were honoured. On their honor both of them revealed that Tantya Tope was not hanged. He said that Tantya Tope died in 1909 AD and his family had performed the last rites. | {
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33
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"Sea"
]
} |
253 | इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदा पार की। तात्या ने अक्टूबर, १८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी। नर्मदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर को इटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस योजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया। मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं। मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी में सतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे। तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा, जीरापुर, प्रतापगढ, नाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा। परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ७ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम चार बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था,किन्तु राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के नवें अधिवेशन में कुछ ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आई है उसके अनुसार मानसिंह व तांत्या टोपे ने एक योजना बनाई, जिसके अनुसार टोपे के स्वामिभक्त साथी को नकली तांत्या टोपे बनने क एलिए राजी कर तैयार किया गया और इसके लिए वह स्वामिभक्त तैयार हो गया. उसी नकली तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने पकड़ा और फांसी दे दी. असली तांत्या टोपे इसके बाद भी आठ-दस वर्ष तक जीवित रहा और बाद में वह स्वाभाविक मौत से मरा. वह हर वर्ष अपने गांव जाता था और अपने परिजनों से मिला करता था,गजेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा लिखित व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक "तांत्या टोपे की कथित फांसी" दस्तावेज क्या कहते है? श्री सोलंकी ने अपनी पुस्तक में अनेक दस्तावेजों एवं पत्रों का उल्लेख किया है तथा उक्त पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर नारायणराव भागवत का चित्र भी छापा है. पुस्तक में उल्लेख है कि सन 1957 ई. में इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित डा. रामचंद्र बिल्लौर द्वारा लिखित "हमारा देश" नाटक पुस्तक के पृष्ठ स.46 पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि इस सम्बन्ध में एक नवीन शोध यह है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे को धोखा नहीं दिया, बल्कि अंग्रेजों की ही आँखों में धूल झोंकी. फांसी के तख़्त पर झूलने वाला कोई देश भक्त था, जिसने तांत्या टोपे को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया. तांत्या टोपे स्मारक समिति ने "तांत्या टोपे के वास्ते से" सन 1857 के क्रांतिकारी पत्र के नाम से सन 1978 में प्रकाशित किये है उक्त पत्रावली मध्यप्रदेश अभिलेखागार भोपाल (म.प्र.) में सुरक्षित है. इसमें मिले पत्र संख्या 1917 एवं 1918 के दो पत्र तांत्या टोपे के जिन्दा बचने के प्रमाण है. उक्त पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि तांत्या टोपे शताब्दी समारोह बम्बई में आयोजित किया गया था जिसमें तांत्या टोपे के भतीजे प्रो.टोपे तथा उनकी वृद्धा भतीजी का सम्मान किया गया था। अपने सम्मान पर इन दोनों ने प्रकट किया कि तांत्या टोपे को फांसी नहीं हुई थी। उनका कहना था कि सन 1909 ई. में तांत्या टोपे का स्वर्गवास हुआ और उनके परिवार ने विधिवत अंतिम संस्कार किया था। | अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह और युद्ध छेड़ने के आरोप में तात्या का कोर्ट-मार्शल कब किया गया था ? | {
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"१५ अप्रैल, १८५९"
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3984
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} | When was Tatya court-martialed on charges of rebellion and waging war against the British? | To fulfill this plan, they reached Khurai in Sagar district, where Michael defeated the last group of his army. So Tatya crossed the Narmada at Saraiya Ghat near Fatehpur, between Hoshangabad and Narsinghpur. Tatya crossed the Narmada with about 2500 soldiers in late October 1858. There was a signal of Tatya's arrival long before crossing the Narmada. On 28 October, the Kotwar of Etawah village had given an important information to Asare police station, located 10 miles away from Chhindwara, where he had informed that a saffron flag, betel nut and betel leaf were being carried from village to village. Their objective was to awaken the public. There was also a hint from them that Nana Saheb or Tatya Tope was reaching in that direction. The British took immediate steps. Nagpur Deputy Commissioner alerted the Deputy Commissioners of neighboring districts to deal with the situation. This information was considered so important that its information was given to the Governor General. By crossing the Narmada and entering its southern region, Tatya created terror in the hearts of the British. Tatya was looking for this opportunity and the British had also set up barricades throughout Central India to thwart his plan. In this perspective, Tatya Tope's success will definitely be considered surprising. Elphinstone, the Governor of Bombay Province, became nervous due to Tatya's arrival in Nagpur area. Panic spread in Madras province also. Tatya crossed the inaccessible hills of Pachmarhi with his army and reached Jamai village, 26 miles north-west of Chhindwara. 17 policemen of the police station there were killed. Then Tatya reached Multai via Bordeh on 7th November. Both are in Betul district. Tatya rested for a day in Multai. He took bath in Tapti river and donated one Ashrafi each to the Brahmins. Later the British confiscated these Ashrafiyas. Heads of Deshmukh and Deshpande families of Multai and many villagers joined his army. But Tatya did not get the success he had expected in getting public support here. The British laid siege to Betul. The routes to move towards west or south were closed. Tatya eventually plundered Multai and set fire to government buildings. They turned towards north-west and reached East Nimar i.e. Khandwa district via Aathner and Bhainsdehi. Crossing the Satpura peaks in Tapti valley, Tatya reached Khandwa. He saw that the British had formed a front against him in every direction. Sir Hugh Rose in Khandesh and General Roberts in Gujarat blocked his path. The army was moving towards them towards Berar also. A colleague of Tatya has written that Tatya was facing a very difficult situation at that time. They had neither ammunition, nor supplies, nor money. He ordered his associates to go wherever they wanted, but his loyal associates and followers were not ready to leave their leader in such difficult times. Tatya wanted to reach Asirgarh, but Asir was tightly guarded. Therefore, before leaving Nimad, Tatya set fire to the police stations and government buildings of Khandwa, Piplod etc. From Khandwa he went back to Central India via Khargone. In Khargone, Khajiya Nayak along with his 4000 followers joined Tatya Tope. These included Bhil Sardar and Malsin. Here in Rajpur there was a fierce battle with Sutherland, but Tatya succeeded in crossing the Narmada by dodging Sutherland. Tatya's struggle for India's independence continued. Once again Tatya's great journey against the enemy started. From Khargone, he reached Indergarh via Chhota Udaipur, Banswara, Jirapur, Pratapgarh, Nahargarh. At Indergarh, he was surrounded from every direction by Brigadiers Napier, Schabers, Somerset, Smith, Michael and Horner and even higher military officers. There was no way to escape, but Tatya had immense patience and wisdom. Breaking this difficult and impossible encirclement of the British, they ran towards Jaipur. He had to be defeated by the British in Dewas and Shikar. Now in despair they were forced to take shelter in the forest of Paron. Tatya Tope was betrayed in the forest of Paron. Raja Mansingh of Narwar joined the British and due to his betrayal, Tatya was caught in his sleep on April 7, 1859. No one could catch Ranbankure Tatya awake. On April 15, 1859, Tatya was court martialed in Shivpuri on charges of rebellion and fighting a war against the British. All the members of the court martial were English. The result was obvious, he was given the death penalty. He was kept confined in the Shivpuri fort for three days. On April 18, at 4 pm, Tatya was brought out under the protection of the British company and hanged in the open field in the presence of thousands of people. It is said that Tatya climbed the gallows platform with firm steps and strangled himself in the noose. In this way Tatya became a part of the soil of Madhya Pradesh. Colonel Malleson has written the history of the rebellion of 1857. He said that Tatya Tope has become the 'hero' of the residents of Chambal, Narmada and Parvati valleys. The truth is that Tatya has become the 'hero' of the whole of India. An Englishman named Percy Cross has written that 'Tatya was the leader with the most brilliant mind in the Indian rebellion. If there were some more people like him, India could have been snatched from the hands of the British, but some historical material has come to light in the ninth session of Rajasthan History Congress. According to him, Mansingh and Tantya Tope made a plan, according to which Tope's loyal companion was persuaded to become a fake Tantya Tope and the loyalist agreed to do so. The same fake Tantya Tope was caught by the British and hanged. The real Tantya Tope still lived for eight-ten years and later died a natural death. He used to go to his village every year and meet his family members. What does the book "Alleged hanging of Tantya Tope" written by Gajendra Singh Solanki and published by All India History Compilation Scheme, New Delhi, document say? Shri Solanki has mentioned many documents and letters in his book and has also printed the picture of Narayanrao Bhagwat on the main page of the said book. It is mentioned in the book that in the footnote on page 46 of the drama book "Hamara Desh" written by Dr. Ramchandra Billaur, published by Indore University in 1957, it is written that a new research in this regard is that Raja Mansingh He did not betray Tantya Tope, but instead threw dust in the eyes of the British. There was a patriot hanging on the gallows, who sacrificed his life to save Tantya Tope. Tantya Tope Memorial Committee has published the revolutionary letter of 1857 in the name of "For the sake of Tantya Tope" in 1978. The said letter is preserved in Madhya Pradesh Archives, Bhopal (M.P.). The two letters dated 1917 and 1918 found in it are proof of Tantya Tope's survival. It is also mentioned in the said book that Tantya Tope centenary celebrations were organized in Bombay in which Tantya Tope's nephew Prof. Tope and his elderly niece were honoured. On their honor both of them revealed that Tantya Tope was not hanged. He said that Tantya Tope died in 1909 AD and his family had performed the last rites. | {
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"April 15, 1859"
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254 | इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदा पार की। तात्या ने अक्टूबर, १८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी। नर्मदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर को इटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस योजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया। मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं। मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी में सतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे। तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा, जीरापुर, प्रतापगढ, नाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा। परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ७ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम चार बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था,किन्तु राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के नवें अधिवेशन में कुछ ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आई है उसके अनुसार मानसिंह व तांत्या टोपे ने एक योजना बनाई, जिसके अनुसार टोपे के स्वामिभक्त साथी को नकली तांत्या टोपे बनने क एलिए राजी कर तैयार किया गया और इसके लिए वह स्वामिभक्त तैयार हो गया. उसी नकली तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने पकड़ा और फांसी दे दी. असली तांत्या टोपे इसके बाद भी आठ-दस वर्ष तक जीवित रहा और बाद में वह स्वाभाविक मौत से मरा. वह हर वर्ष अपने गांव जाता था और अपने परिजनों से मिला करता था,गजेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा लिखित व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक "तांत्या टोपे की कथित फांसी" दस्तावेज क्या कहते है? श्री सोलंकी ने अपनी पुस्तक में अनेक दस्तावेजों एवं पत्रों का उल्लेख किया है तथा उक्त पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर नारायणराव भागवत का चित्र भी छापा है. पुस्तक में उल्लेख है कि सन 1957 ई. में इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित डा. रामचंद्र बिल्लौर द्वारा लिखित "हमारा देश" नाटक पुस्तक के पृष्ठ स.46 पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि इस सम्बन्ध में एक नवीन शोध यह है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे को धोखा नहीं दिया, बल्कि अंग्रेजों की ही आँखों में धूल झोंकी. फांसी के तख़्त पर झूलने वाला कोई देश भक्त था, जिसने तांत्या टोपे को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया. तांत्या टोपे स्मारक समिति ने "तांत्या टोपे के वास्ते से" सन 1857 के क्रांतिकारी पत्र के नाम से सन 1978 में प्रकाशित किये है उक्त पत्रावली मध्यप्रदेश अभिलेखागार भोपाल (म.प्र.) में सुरक्षित है. इसमें मिले पत्र संख्या 1917 एवं 1918 के दो पत्र तांत्या टोपे के जिन्दा बचने के प्रमाण है. उक्त पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि तांत्या टोपे शताब्दी समारोह बम्बई में आयोजित किया गया था जिसमें तांत्या टोपे के भतीजे प्रो.टोपे तथा उनकी वृद्धा भतीजी का सम्मान किया गया था। अपने सम्मान पर इन दोनों ने प्रकट किया कि तांत्या टोपे को फांसी नहीं हुई थी। उनका कहना था कि सन 1909 ई. में तांत्या टोपे का स्वर्गवास हुआ और उनके परिवार ने विधिवत अंतिम संस्कार किया था। | द अदर साइड ऑफ द मेडिसिन पुस्तक सबसे पहले कहाँ प्रकाशित हुई थी? | {
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} | Where was the book The Other Side of the Medicine first published? | To fulfill this plan, they reached Khurai in Sagar district, where Michael defeated the last group of his army. So Tatya crossed the Narmada at Saraiya Ghat near Fatehpur, between Hoshangabad and Narsinghpur. Tatya crossed the Narmada with about 2500 soldiers in late October 1858. There was a signal of Tatya's arrival long before crossing the Narmada. On 28 October, the Kotwar of Etawah village had given an important information to Asare police station, located 10 miles away from Chhindwara, where he had informed that a saffron flag, betel nut and betel leaf were being carried from village to village. Their objective was to awaken the public. There was also a hint from them that Nana Saheb or Tatya Tope was reaching in that direction. The British took immediate steps. Nagpur Deputy Commissioner alerted the Deputy Commissioners of neighboring districts to deal with the situation. This information was considered so important that its information was given to the Governor General. By crossing the Narmada and entering its southern region, Tatya created terror in the hearts of the British. Tatya was looking for this opportunity and the British had also set up barricades throughout Central India to thwart his plan. In this perspective, Tatya Tope's success will definitely be considered surprising. Elphinstone, the Governor of Bombay Province, became nervous due to Tatya's arrival in Nagpur area. Panic spread in Madras province also. Tatya crossed the inaccessible hills of Pachmarhi with his army and reached Jamai village, 26 miles north-west of Chhindwara. 17 policemen of the police station there were killed. Then Tatya reached Multai via Bordeh on 7th November. Both are in Betul district. Tatya rested for a day in Multai. He took bath in Tapti river and donated one Ashrafi each to the Brahmins. Later the British confiscated these Ashrafiyas. Heads of Deshmukh and Deshpande families of Multai and many villagers joined his army. But Tatya did not get the success he had expected in getting public support here. The British laid siege to Betul. The routes to move towards west or south were closed. Tatya eventually plundered Multai and set fire to government buildings. They turned towards north-west and reached East Nimar i.e. Khandwa district via Aathner and Bhainsdehi. Crossing the Satpura peaks in Tapti valley, Tatya reached Khandwa. He saw that the British had formed a front against him in every direction. Sir Hugh Rose in Khandesh and General Roberts in Gujarat blocked his path. The army was moving towards them towards Berar also. A colleague of Tatya has written that Tatya was facing a very difficult situation at that time. They had neither ammunition, nor supplies, nor money. He ordered his associates to go wherever they wanted, but his loyal associates and followers were not ready to leave their leader in such difficult times. Tatya wanted to reach Asirgarh, but Asir was tightly guarded. Therefore, before leaving Nimad, Tatya set fire to the police stations and government buildings of Khandwa, Piplod etc. From Khandwa he went back to Central India via Khargone. In Khargone, Khajiya Nayak along with his 4000 followers joined Tatya Tope. These included Bhil Sardar and Malsin. Here in Rajpur there was a fierce battle with Sutherland, but Tatya succeeded in crossing the Narmada by dodging Sutherland. Tatya's struggle for India's independence continued. Once again Tatya's great journey against the enemy started. From Khargone, he reached Indergarh via Chhota Udaipur, Banswara, Jirapur, Pratapgarh, Nahargarh. At Indergarh, he was surrounded from every direction by Brigadiers Napier, Schabers, Somerset, Smith, Michael and Horner and even higher military officers. There was no way to escape, but Tatya had immense patience and wisdom. Breaking this difficult and impossible encirclement of the British, they ran towards Jaipur. He had to be defeated by the British in Dewas and Shikar. Now in despair they were forced to take shelter in the forest of Paron. Tatya Tope was betrayed in the forest of Paron. Raja Mansingh of Narwar joined the British and due to his betrayal, Tatya was caught in his sleep on April 7, 1859. No one could catch Ranbankure Tatya awake. On April 15, 1859, Tatya was court martialed in Shivpuri on charges of rebellion and fighting a war against the British. All the members of the court martial were English. The result was obvious, he was given the death penalty. He was kept confined in the Shivpuri fort for three days. On April 18, at 4 pm, Tatya was brought out under the protection of the British company and hanged in the open field in the presence of thousands of people. It is said that Tatya climbed the gallows platform with firm steps and strangled himself in the noose. In this way Tatya became a part of the soil of Madhya Pradesh. Colonel Malleson has written the history of the rebellion of 1857. He said that Tatya Tope has become the 'hero' of the residents of Chambal, Narmada and Parvati valleys. The truth is that Tatya has become the 'hero' of the whole of India. An Englishman named Percy Cross has written that 'Tatya was the leader with the most brilliant mind in the Indian rebellion. If there were some more people like him, India could have been snatched from the hands of the British, but some historical material has come to light in the ninth session of Rajasthan History Congress. According to him, Mansingh and Tantya Tope made a plan, according to which Tope's loyal companion was persuaded to become a fake Tantya Tope and the loyalist agreed to do so. The same fake Tantya Tope was caught by the British and hanged. The real Tantya Tope still lived for eight-ten years and later died a natural death. He used to go to his village every year and meet his family members. What does the book "Alleged hanging of Tantya Tope" written by Gajendra Singh Solanki and published by All India History Compilation Scheme, New Delhi, document say? Shri Solanki has mentioned many documents and letters in his book and has also printed the picture of Narayanrao Bhagwat on the main page of the said book. It is mentioned in the book that in the footnote on page 46 of the drama book "Hamara Desh" written by Dr. Ramchandra Billaur, published by Indore University in 1957, it is written that a new research in this regard is that Raja Mansingh He did not betray Tantya Tope, but instead threw dust in the eyes of the British. There was a patriot hanging on the gallows, who sacrificed his life to save Tantya Tope. Tantya Tope Memorial Committee has published the revolutionary letter of 1857 in the name of "For the sake of Tantya Tope" in 1978. The said letter is preserved in Madhya Pradesh Archives, Bhopal (M.P.). The two letters dated 1917 and 1918 found in it are proof of Tantya Tope's survival. It is also mentioned in the said book that Tantya Tope centenary celebrations were organized in Bombay in which Tantya Tope's nephew Prof. Tope and his elderly niece were honoured. On their honor both of them revealed that Tantya Tope was not hanged. He said that Tantya Tope died in 1909 AD and his family had performed the last rites. | {
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255 | इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदा पार की। तात्या ने अक्टूबर, १८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी। नर्मदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर को इटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस योजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया। मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं। मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी में सतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे। तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा, जीरापुर, प्रतापगढ, नाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा। परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ७ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम चार बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था,किन्तु राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के नवें अधिवेशन में कुछ ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आई है उसके अनुसार मानसिंह व तांत्या टोपे ने एक योजना बनाई, जिसके अनुसार टोपे के स्वामिभक्त साथी को नकली तांत्या टोपे बनने क एलिए राजी कर तैयार किया गया और इसके लिए वह स्वामिभक्त तैयार हो गया. उसी नकली तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने पकड़ा और फांसी दे दी. असली तांत्या टोपे इसके बाद भी आठ-दस वर्ष तक जीवित रहा और बाद में वह स्वाभाविक मौत से मरा. वह हर वर्ष अपने गांव जाता था और अपने परिजनों से मिला करता था,गजेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा लिखित व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक "तांत्या टोपे की कथित फांसी" दस्तावेज क्या कहते है? श्री सोलंकी ने अपनी पुस्तक में अनेक दस्तावेजों एवं पत्रों का उल्लेख किया है तथा उक्त पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर नारायणराव भागवत का चित्र भी छापा है. पुस्तक में उल्लेख है कि सन 1957 ई. में इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित डा. रामचंद्र बिल्लौर द्वारा लिखित "हमारा देश" नाटक पुस्तक के पृष्ठ स.46 पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि इस सम्बन्ध में एक नवीन शोध यह है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे को धोखा नहीं दिया, बल्कि अंग्रेजों की ही आँखों में धूल झोंकी. फांसी के तख़्त पर झूलने वाला कोई देश भक्त था, जिसने तांत्या टोपे को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया. तांत्या टोपे स्मारक समिति ने "तांत्या टोपे के वास्ते से" सन 1857 के क्रांतिकारी पत्र के नाम से सन 1978 में प्रकाशित किये है उक्त पत्रावली मध्यप्रदेश अभिलेखागार भोपाल (म.प्र.) में सुरक्षित है. इसमें मिले पत्र संख्या 1917 एवं 1918 के दो पत्र तांत्या टोपे के जिन्दा बचने के प्रमाण है. उक्त पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि तांत्या टोपे शताब्दी समारोह बम्बई में आयोजित किया गया था जिसमें तांत्या टोपे के भतीजे प्रो.टोपे तथा उनकी वृद्धा भतीजी का सम्मान किया गया था। अपने सम्मान पर इन दोनों ने प्रकट किया कि तांत्या टोपे को फांसी नहीं हुई थी। उनका कहना था कि सन 1909 ई. में तांत्या टोपे का स्वर्गवास हुआ और उनके परिवार ने विधिवत अंतिम संस्कार किया था। | तात्या टोपे की मृत्यु कब हुई थी ? | {
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} | When did Tatya Tope die? | To fulfill this plan, they reached Khurai in Sagar district, where Michael defeated the last group of his army. So Tatya crossed the Narmada at Saraiya Ghat near Fatehpur, between Hoshangabad and Narsinghpur. Tatya crossed the Narmada with about 2500 soldiers in late October 1858. There was a signal of Tatya's arrival long before crossing the Narmada. On 28 October, the Kotwar of Etawah village had given an important information to Asare police station, located 10 miles away from Chhindwara, where he had informed that a saffron flag, betel nut and betel leaf were being carried from village to village. Their objective was to awaken the public. There was also a hint from them that Nana Saheb or Tatya Tope was reaching in that direction. The British took immediate steps. Nagpur Deputy Commissioner alerted the Deputy Commissioners of neighboring districts to deal with the situation. This information was considered so important that its information was given to the Governor General. By crossing the Narmada and entering its southern region, Tatya created terror in the hearts of the British. Tatya was looking for this opportunity and the British had also set up barricades throughout Central India to thwart his plan. In this perspective, Tatya Tope's success will definitely be considered surprising. Elphinstone, the Governor of Bombay Province, became nervous due to Tatya's arrival in Nagpur area. Panic spread in Madras province also. Tatya crossed the inaccessible hills of Pachmarhi with his army and reached Jamai village, 26 miles north-west of Chhindwara. 17 policemen of the police station there were killed. Then Tatya reached Multai via Bordeh on 7th November. Both are in Betul district. Tatya rested for a day in Multai. He took bath in Tapti river and donated one Ashrafi each to the Brahmins. Later the British confiscated these Ashrafiyas. Heads of Deshmukh and Deshpande families of Multai and many villagers joined his army. But Tatya did not get the success he had expected in getting public support here. The British laid siege to Betul. The routes to move towards west or south were closed. Tatya eventually plundered Multai and set fire to government buildings. They turned towards north-west and reached East Nimar i.e. Khandwa district via Aathner and Bhainsdehi. Crossing the Satpura peaks in Tapti valley, Tatya reached Khandwa. He saw that the British had formed a front against him in every direction. Sir Hugh Rose in Khandesh and General Roberts in Gujarat blocked his path. The army was moving towards them towards Berar also. A colleague of Tatya has written that Tatya was facing a very difficult situation at that time. They had neither ammunition, nor supplies, nor money. He ordered his associates to go wherever they wanted, but his loyal associates and followers were not ready to leave their leader in such difficult times. Tatya wanted to reach Asirgarh, but Asir was tightly guarded. Therefore, before leaving Nimad, Tatya set fire to the police stations and government buildings of Khandwa, Piplod etc. From Khandwa he went back to Central India via Khargone. In Khargone, Khajiya Nayak along with his 4000 followers joined Tatya Tope. These included Bhil Sardar and Malsin. Here in Rajpur there was a fierce battle with Sutherland, but Tatya succeeded in crossing the Narmada by dodging Sutherland. Tatya's struggle for India's independence continued. Once again Tatya's great journey against the enemy started. From Khargone, he reached Indergarh via Chhota Udaipur, Banswara, Jirapur, Pratapgarh, Nahargarh. At Indergarh, he was surrounded from every direction by Brigadiers Napier, Schabers, Somerset, Smith, Michael and Horner and even higher military officers. There was no way to escape, but Tatya had immense patience and wisdom. Breaking this difficult and impossible encirclement of the British, they ran towards Jaipur. He had to be defeated by the British in Dewas and Shikar. Now in despair they were forced to take shelter in the forest of Paron. Tatya Tope was betrayed in the forest of Paron. Raja Mansingh of Narwar joined the British and due to his betrayal, Tatya was caught in his sleep on April 7, 1859. No one could catch Ranbankure Tatya awake. On April 15, 1859, Tatya was court martialed in Shivpuri on charges of rebellion and fighting a war against the British. All the members of the court martial were English. The result was obvious, he was given the death penalty. He was kept confined in the Shivpuri fort for three days. On April 18, at 4 pm, Tatya was brought out under the protection of the British company and hanged in the open field in the presence of thousands of people. It is said that Tatya climbed the gallows platform with firm steps and strangled himself in the noose. In this way Tatya became a part of the soil of Madhya Pradesh. Colonel Malleson has written the history of the rebellion of 1857. He said that Tatya Tope has become the 'hero' of the residents of Chambal, Narmada and Parvati valleys. The truth is that Tatya has become the 'hero' of the whole of India. An Englishman named Percy Cross has written that 'Tatya was the leader with the most brilliant mind in the Indian rebellion. If there were some more people like him, India could have been snatched from the hands of the British, but some historical material has come to light in the ninth session of Rajasthan History Congress. According to him, Mansingh and Tantya Tope made a plan, according to which Tope's loyal companion was persuaded to become a fake Tantya Tope and the loyalist agreed to do so. The same fake Tantya Tope was caught by the British and hanged. The real Tantya Tope still lived for eight-ten years and later died a natural death. He used to go to his village every year and meet his family members. What does the book "Alleged hanging of Tantya Tope" written by Gajendra Singh Solanki and published by All India History Compilation Scheme, New Delhi, document say? Shri Solanki has mentioned many documents and letters in his book and has also printed the picture of Narayanrao Bhagwat on the main page of the said book. It is mentioned in the book that in the footnote on page 46 of the drama book "Hamara Desh" written by Dr. Ramchandra Billaur, published by Indore University in 1957, it is written that a new research in this regard is that Raja Mansingh He did not betray Tantya Tope, but instead threw dust in the eyes of the British. There was a patriot hanging on the gallows, who sacrificed his life to save Tantya Tope. Tantya Tope Memorial Committee has published the revolutionary letter of 1857 in the name of "For the sake of Tantya Tope" in 1978. The said letter is preserved in Madhya Pradesh Archives, Bhopal (M.P.). The two letters dated 1917 and 1918 found in it are proof of Tantya Tope's survival. It is also mentioned in the said book that Tantya Tope centenary celebrations were organized in Bombay in which Tantya Tope's nephew Prof. Tope and his elderly niece were honoured. On their honor both of them revealed that Tantya Tope was not hanged. 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256 | इस मंसूबे को पूरा करने के लिए वे सागर जिले में खुरई पहचे, जहाँ माइकिल ने उसकी सेना के पिछले दस्ते को परास्त कर दिया। इसलिए तात्या ने होशंगाबाद और नरसिंहपुर के बीच, फतेहपुर के निकट सरैया घाट पर नर्मदा पार की। तात्या ने अक्टूबर, १८५८ के अंत में करीब २५०० सैनिकों के साथ नरमदा पार की थी। नर्मदा पार करने के बहुत पहले ही तात्या के पहुँचने का संकेत मिल चुका था। २८ अक्टूबर को इटावा गाँव के कोटवार ने छिंदवाडा से १० मील दूर स्थित असरे थाने में एक महत्त्व की सूचना दी थी, उसने सूचित किया था कि एक भगवा झंडा, सुपारी और पान का पत्ता गाँव-गाँव घुमाया जा रहा है। इनका उद्देश्य जनता को जाग्रत करना था। उनसे संकेत भी मिलता था कि नाना साहब या तात्या टोपे उस दिशा में पहुँच रहे हैं। अंग्रेजों ने तत्काल कदम उठाए। नागपुर के डिप्टी कमिश्नर ने पडोसी जिलों के डिप्टी कमिश्नरों को स्थिति का सामना करने के लिए सचेत किया। इस सूचना को इतना महत्त्वपूर्ण माना गया कि उसकी जानकारी गवर्नर जनरल को दी गयी। नर्मदा पार करके और उसकी दक्षिणी क्षेत्र में प्रवेश करके तात्या ने अंग्रेजों के दिलों में दहशत पैदा कर दी। तात्या इसी मौके की तलाश में थे और अंग्रेज भी उनकी इस योजना को विफल करने के लिए समूचे केन्द्रीय भारत में मोर्चाबंदी किये थे। इस परिप्रेक्ष्य में तात्या टोपे की सफलता को निश्चय ही आश्चर्यजनक माना जायेगा। नागपुर क्षेत्र में तात्या के पहुँचने से बम्बई प्रांत का गर्वनर एलफिन्सटन घबरा गया। मद्रास प्रांत में भी घबराहट फैली। तात्या अपनी सेना के साथ पचमढी की दुर्गम पहाडयों को पार करते हुए छिंदवाडा के २६ मील उत्तर-पश्चिम में जमई गाँव पहुँच गये। वहाँ के थाने के १७ सिपाही मारे गये। फिर तात्या बोरदेह होते हुए सात नवंबर को मुलताई पहुँच गये। दोनों बैतूल जिले में हैं। मुलताई में तात्या ने एक दिन विश्राम किया। उन्होंने ताप्ती नदी में स्नान किया और ब्राह्मणों को एक-एक अशर्फी दान की। बाद में अंग्रेजों ने ये अशर्फियाँ जब्त कर लीं। मुलताई के देशमुख और देशपाण्डे परिवारों के प्रमुख और अनेक ग्रामीण उसकी सेना में शामिल हो गये। परंतु तात्या को यहाँ जन समर्थन प्राप्त करने में वह सफलता नहीं मिली जिसकी उसने अपेक्षा की थी। अंग्रेजों ने बैतूल में उनकी मजबूत घेराबंदी कर ली। पश्चिम या दक्षिण की ओर बढने के रास्ते बंद थे। अंततः तात्या ने मुलताई को लूट लिया और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। वे उत्तर-पश्चिम दिशा की ओर मुड गये और आठनेर और भैंसदेही होते हुए पूर्व निमाड यानि खण्डवा जिले पहुँच गये। ताप्ती घाटी में सतपुडा की चोटियाँ पार करते हुए तात्या खण्डवा पहुँचे। उन्होंने देखा कि अंग्रेजों ने हर एक दिशा में उनके विरूद्ध मोर्चा बाँध दिया है। खानदेश में सर ह्यूरोज और गुजरात में जनरल राबर्ट्स उनका रास्ता रोके थे। बरार की ओर भी फौज उनकी तरफ बढ रही थी। तात्या के एक सहयोगी ने लिखा है कि तात्या उस समय अत्यंत कठिन स्थिति का सामना कर रहे थे। उनके पास न गोला-बारूद था, न रसद, न पैसा। उन्होंने अपने सहयोगियों को आज्ञा दे दी कि वे जहाँ चाहें जा सकते हैं, परंतु निश्ठावान सहयोगी और अनुयायी ऐसे कठिन समय में अपने नेता का साथ छोडने को तैयार नहीं थे। तात्या असीरगढ पहुँचना चाहते थे, परंतु असीर पर कडा पहरा था। अतः निमाड से बिदा होने के पहले तात्या ने खण्डवा, पिपलोद आदि के पुलिस थानों और सरकारी इमारतों में आग लगा दी। खण्डवा से वे खरगोन होते हुए सेन्ट्रल इण्डिया वापस चले गये। खरगोन में खजिया नायक अपने ४००० अनुयायियों के साथ तात्या टोपे के साथ जा मिला। इनमें भील सरदार और मालसिन भी शामिल थे। यहाँ राजपुर में सदरलैण्ड के साथ एक घमासान लडाई हुई, परंतु सदरलैण्ड को चकमा देकर तात्या नर्मदा पार करने में सफल हो गये। भारत की स्वाधीनता के लिए तात्या का संघर्ष जारी था। एक बार फिर दुश्मन के विरुद्ध तात्या की महायात्रा शुरु हुई खरगोन से छोटा उदयपुर, बाँसवाडा, जीरापुर, प्रतापगढ, नाहरगढ होते हुए वे इन्दरगढ पहुँचे। इन्दरगढ में उन्हें नेपियर, शाबर्स, समरसेट, स्मिथ, माइकेल और हार्नर नामक ब्रिगेडियर और उससे भी ऊँचे सैनिक अधिकारियों ने हर एक दिशा से घेर लिया। बचकर निकलने का कोई रास्ता नहीं था, लेकिन तात्या में अपार धीरज और सूझ-बूझ थी। अंग्रेजों के इस कठिन और असंभव घेरे को तोडकर वे जयपुर की ओर भागे। देवास और शिकार में उन्हें अंग्रेजों से पराजित होना पडा। अब उन्हें निराश होकर परोन के जंगल में शरण लेने को विवश होना पडा। परोन के जंगल में तात्या टोपे के साथ विश्वासघात हुआ। नरवर का राजा मानसिंह अंग्रेजों से मिल गया और उसकी गद्दारी के कारण तात्या ७ अप्रैल, १८५९ को सोते में पकड लिए गये। रणबाँकुरे तात्या को कोई जागते हुए नहीं पकड सका। विद्रोह और अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध लडने के आरोप में १५ अप्रैल, १८५९ को शिवपुरी में तात्या का कोर्ट मार्शल किया गया। कोर्ट मार्शल के सब सदस्य अंग्रेज थे। परिणाम जाहिर था, उन्हें मौत की सजा दी गयी। शिवपुरी के किले में उन्हें तीन दिन बंद रखा गया। १८ अप्रैल को शाम चार बजे तात्या को अंग्रेज कंपनी की सुरक्षा में बाहर लाया गया और हजारों लोगों की उपस्थिति में खुले मैदान में फाँसी पर लटका दिया गया। कहते हैं तात्या फाँसी के चबूतरे पर दृढ कदमों से ऊपर चढे और फाँसी के फंदे में स्वयं अपना गला डाल दिया। इस प्रकार तात्या मध्यप्रदेश की मिट्टी का अंग बन गये। कर्नल मालेसन ने सन् १८५७ के विद्रोह का इतिहास लिखा है। उन्होंने कहा कि तात्या टोपे चम्बल, नर्मदा और पार्वती की घाटियों के निवासियों के ’हीरो‘ बन गये हैं। सच तो ये है कि तात्या सारे भारत के ’हीरो‘ बन गये हैं। पर्सी क्रास नामक एक अंग्रेज ने लिखा है कि ’भारतीय विद्रोह में तात्या सबसे प्रखर मस्तिश्क के नेता थे। उनकी तरह कुछ और लोग होते तो अंग्रेजों के हाथ से भारत छीना जा सकता था,किन्तु राजस्थान हिस्ट्री कांग्रेस के नवें अधिवेशन में कुछ ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश में आई है उसके अनुसार मानसिंह व तांत्या टोपे ने एक योजना बनाई, जिसके अनुसार टोपे के स्वामिभक्त साथी को नकली तांत्या टोपे बनने क एलिए राजी कर तैयार किया गया और इसके लिए वह स्वामिभक्त तैयार हो गया. उसी नकली तांत्या टोपे को अंग्रेजों ने पकड़ा और फांसी दे दी. असली तांत्या टोपे इसके बाद भी आठ-दस वर्ष तक जीवित रहा और बाद में वह स्वाभाविक मौत से मरा. वह हर वर्ष अपने गांव जाता था और अपने परिजनों से मिला करता था,गजेन्द्रसिंह सोलंकी द्वारा लिखित व अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित पुस्तक "तांत्या टोपे की कथित फांसी" दस्तावेज क्या कहते है? श्री सोलंकी ने अपनी पुस्तक में अनेक दस्तावेजों एवं पत्रों का उल्लेख किया है तथा उक्त पुस्तक के मुख्य पृष्ठ पर नारायणराव भागवत का चित्र भी छापा है. पुस्तक में उल्लेख है कि सन 1957 ई. में इन्दौर विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित डा. रामचंद्र बिल्लौर द्वारा लिखित "हमारा देश" नाटक पुस्तक के पृष्ठ स.46 पर पाद टिप्पणी में लिखा है कि इस सम्बन्ध में एक नवीन शोध यह है कि राजा मानसिंह ने तांत्या टोपे को धोखा नहीं दिया, बल्कि अंग्रेजों की ही आँखों में धूल झोंकी. फांसी के तख़्त पर झूलने वाला कोई देश भक्त था, जिसने तांत्या टोपे को बचाने के लिए अपना बलिदान दे दिया. तांत्या टोपे स्मारक समिति ने "तांत्या टोपे के वास्ते से" सन 1857 के क्रांतिकारी पत्र के नाम से सन 1978 में प्रकाशित किये है उक्त पत्रावली मध्यप्रदेश अभिलेखागार भोपाल (म.प्र.) में सुरक्षित है. इसमें मिले पत्र संख्या 1917 एवं 1918 के दो पत्र तांत्या टोपे के जिन्दा बचने के प्रमाण है. उक्त पुस्तक में यह भी उल्लेख किया गया है कि तांत्या टोपे शताब्दी समारोह बम्बई में आयोजित किया गया था जिसमें तांत्या टोपे के भतीजे प्रो.टोपे तथा उनकी वृद्धा भतीजी का सम्मान किया गया था। अपने सम्मान पर इन दोनों ने प्रकट किया कि तांत्या टोपे को फांसी नहीं हुई थी। उनका कहना था कि सन 1909 ई. में तांत्या टोपे का स्वर्गवास हुआ और उनके परिवार ने विधिवत अंतिम संस्कार किया था। | तात्या टोपे ने नर्मदा नदी को कितने सैनिको के साथ पार किया था ? | {
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"२५०० सैनिकों"
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246
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} | Tatya Tope had crossed the Narmada River with how many soldiers? | To fulfill this plan, they reached Khurai in Sagar district, where Michael defeated the last group of his army. So Tatya crossed the Narmada at Saraiya Ghat near Fatehpur, between Hoshangabad and Narsinghpur. Tatya crossed the Narmada with about 2500 soldiers in late October 1858. There was a signal of Tatya's arrival long before crossing the Narmada. On 28 October, the Kotwar of Etawah village had given an important information to Asare police station, located 10 miles away from Chhindwara, where he had informed that a saffron flag, betel nut and betel leaf were being carried from village to village. Their objective was to awaken the public. There was also a hint from them that Nana Saheb or Tatya Tope was reaching in that direction. The British took immediate steps. Nagpur Deputy Commissioner alerted the Deputy Commissioners of neighboring districts to deal with the situation. This information was considered so important that its information was given to the Governor General. By crossing the Narmada and entering its southern region, Tatya created terror in the hearts of the British. Tatya was looking for this opportunity and the British had also set up barricades throughout Central India to thwart his plan. In this perspective, Tatya Tope's success will definitely be considered surprising. Elphinstone, the Governor of Bombay Province, became nervous due to Tatya's arrival in Nagpur area. Panic spread in Madras province also. Tatya crossed the inaccessible hills of Pachmarhi with his army and reached Jamai village, 26 miles north-west of Chhindwara. 17 policemen of the police station there were killed. Then Tatya reached Multai via Bordeh on 7th November. Both are in Betul district. Tatya rested for a day in Multai. He took bath in Tapti river and donated one Ashrafi each to the Brahmins. Later the British confiscated these Ashrafiyas. Heads of Deshmukh and Deshpande families of Multai and many villagers joined his army. But Tatya did not get the success he had expected in getting public support here. The British laid siege to Betul. The routes to move towards west or south were closed. Tatya eventually plundered Multai and set fire to government buildings. They turned towards north-west and reached East Nimar i.e. Khandwa district via Aathner and Bhainsdehi. Crossing the Satpura peaks in Tapti valley, Tatya reached Khandwa. He saw that the British had formed a front against him in every direction. Sir Hugh Rose in Khandesh and General Roberts in Gujarat blocked his path. The army was moving towards them towards Berar also. A colleague of Tatya has written that Tatya was facing a very difficult situation at that time. They had neither ammunition, nor supplies, nor money. He ordered his associates to go wherever they wanted, but his loyal associates and followers were not ready to leave their leader in such difficult times. Tatya wanted to reach Asirgarh, but Asir was tightly guarded. Therefore, before leaving Nimad, Tatya set fire to the police stations and government buildings of Khandwa, Piplod etc. From Khandwa he went back to Central India via Khargone. In Khargone, Khajiya Nayak along with his 4000 followers joined Tatya Tope. These included Bhil Sardar and Malsin. Here in Rajpur there was a fierce battle with Sutherland, but Tatya succeeded in crossing the Narmada by dodging Sutherland. Tatya's struggle for India's independence continued. Once again Tatya's great journey against the enemy started. From Khargone, he reached Indergarh via Chhota Udaipur, Banswara, Jirapur, Pratapgarh, Nahargarh. At Indergarh, he was surrounded from every direction by Brigadiers Napier, Schabers, Somerset, Smith, Michael and Horner and even higher military officers. There was no way to escape, but Tatya had immense patience and wisdom. Breaking this difficult and impossible encirclement of the British, they ran towards Jaipur. He had to be defeated by the British in Dewas and Shikar. Now in despair they were forced to take shelter in the forest of Paron. Tatya Tope was betrayed in the forest of Paron. Raja Mansingh of Narwar joined the British and due to his betrayal, Tatya was caught in his sleep on April 7, 1859. No one could catch Ranbankure Tatya awake. On April 15, 1859, Tatya was court martialed in Shivpuri on charges of rebellion and fighting a war against the British. All the members of the court martial were English. The result was obvious, he was given the death penalty. He was kept confined in the Shivpuri fort for three days. On April 18, at 4 pm, Tatya was brought out under the protection of the British company and hanged in the open field in the presence of thousands of people. It is said that Tatya climbed the gallows platform with firm steps and strangled himself in the noose. In this way Tatya became a part of the soil of Madhya Pradesh. Colonel Malleson has written the history of the rebellion of 1857. He said that Tatya Tope has become the 'hero' of the residents of Chambal, Narmada and Parvati valleys. The truth is that Tatya has become the 'hero' of the whole of India. An Englishman named Percy Cross has written that 'Tatya was the leader with the most brilliant mind in the Indian rebellion. If there were some more people like him, India could have been snatched from the hands of the British, but some historical material has come to light in the ninth session of Rajasthan History Congress. According to him, Mansingh and Tantya Tope made a plan, according to which Tope's loyal companion was persuaded to become a fake Tantya Tope and the loyalist agreed to do so. The same fake Tantya Tope was caught by the British and hanged. The real Tantya Tope still lived for eight-ten years and later died a natural death. He used to go to his village every year and meet his family members. What does the book "Alleged hanging of Tantya Tope" written by Gajendra Singh Solanki and published by All India History Compilation Scheme, New Delhi, document say? Shri Solanki has mentioned many documents and letters in his book and has also printed the picture of Narayanrao Bhagwat on the main page of the said book. It is mentioned in the book that in the footnote on page 46 of the drama book "Hamara Desh" written by Dr. Ramchandra Billaur, published by Indore University in 1957, it is written that a new research in this regard is that Raja Mansingh He did not betray Tantya Tope, but instead threw dust in the eyes of the British. There was a patriot hanging on the gallows, who sacrificed his life to save Tantya Tope. Tantya Tope Memorial Committee has published the revolutionary letter of 1857 in the name of "For the sake of Tantya Tope" in 1978. The said letter is preserved in Madhya Pradesh Archives, Bhopal (M.P.). The two letters dated 1917 and 1918 found in it are proof of Tantya Tope's survival. It is also mentioned in the said book that Tantya Tope centenary celebrations were organized in Bombay in which Tantya Tope's nephew Prof. Tope and his elderly niece were honoured. On their honor both of them revealed that Tantya Tope was not hanged. He said that Tantya Tope died in 1909 AD and his family had performed the last rites. | {
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246
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"2500 soldiers"
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257 | इस मन्दिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर की स्थापना गुर्जर परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। यह स्थान भगवान शिव के भव्य मन्दिर और साईक्लोपियन बाँध के लिए जाना जाता है। यहाँ के भोजेश्वर मन्दिर की सुन्दर सजावट की गई है। मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना है जिसके गर्भगृह में लगभग साढ़े तीन मीटर लम्बा शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत के सबसे विशाल शिवलिंगों में शुमार किया जाता है। इस मस्जिद को क़ुदसिया बेग़म की बेटी सिकंदर जहां बेग़म ने 1860 ई॰ में बनवाया था। यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल की आठवीं शासिका शाहजहां बे सिकंदर बेगम के शासन काल में प्रारम्भ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवन्तपर्यंत यह बन न सकी। शौकत महल, भोपाल शहर के बीचोंबीच चौक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है। झील के किनारे बना यह महल सदर मंज़िल के पीछे स्थित है। बाणगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है। यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्ट्रीय संस्थानों में एक है। 1982 में स्थापित इस भवन में अनेक रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह अनोखा संग्रहालय श्यामला की पहाडियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण भोपाल से 46 किलोमीटर दूर स्थित भीमबेटका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं। यह गुफाएँ चारों तरफ से विन्ध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका सम्बन्ध नवपाषाण काल से है। इन गुफाओं के अन्दर बने चित्र गुफाओं में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के जीवन का विवरण प्रस्तुत करते हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है। | शौर्य स्मारक किस शहर में स्थित है ? | {
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} | The Shaurya Smarak is located in which city? | This temple is also called Somnath of the East.Bhojpur, 28 km from Bhopal, was founded by King Bhoj of Gurjar Parmar dynasty.That is why this place is known as Bhojpur.This place is known for the grand temple of Lord Shiva and the cyclopian dam.The Bhojeshwar temple here has been beautifully decorated.The temple is built on a high platform with a three -and -a -half meter long Shivling in the sanctum sanctorum.It is included among the largest Shivalingas in India.This mosque was built by Sikander Jahan Begum, daughter of Qudasia Begum in 1860 AD.This mosque is one of the largest mosques in India.The construction work of this mosque started during the reign of Shah Jahan Bay Sikander Begum, the eighth ruler of Bhopal, but due to lack of funds, it could not be made.Shaukat Mahal is located at the entrance of the Chowk area in the heart of Bhopal city.This palace, built on the banks of the lake, is located behind the Sadar destination.This museum located on Banganga Road has the sculptures collected from various parts of Madhya Pradesh.This building is one of the most unique national institutions in India.Many creative arts are exhibited in this building established in 1982.This unique museum is spread over an area of 200 acres on the hills of Shyamala.Bhimbetka's caves, 46 km from South Bhopal, are popular for prehistoric period painters.These caves are surrounded by vein ranges from all sides, which are related to the Neolithic period.Pictures inside these caves present the details of the life of the prehistoric period living in the caves.The oldest painting here is considered to be 12 thousand years ago. | {
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258 | इस मन्दिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर की स्थापना गुर्जर परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। यह स्थान भगवान शिव के भव्य मन्दिर और साईक्लोपियन बाँध के लिए जाना जाता है। यहाँ के भोजेश्वर मन्दिर की सुन्दर सजावट की गई है। मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना है जिसके गर्भगृह में लगभग साढ़े तीन मीटर लम्बा शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत के सबसे विशाल शिवलिंगों में शुमार किया जाता है। इस मस्जिद को क़ुदसिया बेग़म की बेटी सिकंदर जहां बेग़म ने 1860 ई॰ में बनवाया था। यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल की आठवीं शासिका शाहजहां बे सिकंदर बेगम के शासन काल में प्रारम्भ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवन्तपर्यंत यह बन न सकी। शौकत महल, भोपाल शहर के बीचोंबीच चौक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है। झील के किनारे बना यह महल सदर मंज़िल के पीछे स्थित है। बाणगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है। यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्ट्रीय संस्थानों में एक है। 1982 में स्थापित इस भवन में अनेक रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह अनोखा संग्रहालय श्यामला की पहाडियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण भोपाल से 46 किलोमीटर दूर स्थित भीमबेटका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं। यह गुफाएँ चारों तरफ से विन्ध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका सम्बन्ध नवपाषाण काल से है। इन गुफाओं के अन्दर बने चित्र गुफाओं में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के जीवन का विवरण प्रस्तुत करते हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है। | कुदसिया बेगम की बेटी का क्या नाम था? | {
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"सिकंदर जहां बेग़म"
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} | What was the name of Qudsia Begum's daughter? | This temple is also called Somnath of the East.Bhojpur, 28 km from Bhopal, was founded by King Bhoj of Gurjar Parmar dynasty.That is why this place is known as Bhojpur.This place is known for the grand temple of Lord Shiva and the cyclopian dam.The Bhojeshwar temple here has been beautifully decorated.The temple is built on a high platform with a three -and -a -half meter long Shivling in the sanctum sanctorum.It is included among the largest Shivalingas in India.This mosque was built by Sikander Jahan Begum, daughter of Qudasia Begum in 1860 AD.This mosque is one of the largest mosques in India.The construction work of this mosque started during the reign of Shah Jahan Bay Sikander Begum, the eighth ruler of Bhopal, but due to lack of funds, it could not be made.Shaukat Mahal is located at the entrance of the Chowk area in the heart of Bhopal city.This palace, built on the banks of the lake, is located behind the Sadar destination.This museum located on Banganga Road has the sculptures collected from various parts of Madhya Pradesh.This building is one of the most unique national institutions in India.Many creative arts are exhibited in this building established in 1982.This unique museum is spread over an area of 200 acres on the hills of Shyamala.Bhimbetka's caves, 46 km from South Bhopal, are popular for prehistoric period painters.These caves are surrounded by vein ranges from all sides, which are related to the Neolithic period.Pictures inside these caves present the details of the life of the prehistoric period living in the caves.The oldest painting here is considered to be 12 thousand years ago. | {
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485
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"Sikandar Jahan Begum"
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259 | इस मन्दिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर की स्थापना गुर्जर परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। यह स्थान भगवान शिव के भव्य मन्दिर और साईक्लोपियन बाँध के लिए जाना जाता है। यहाँ के भोजेश्वर मन्दिर की सुन्दर सजावट की गई है। मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना है जिसके गर्भगृह में लगभग साढ़े तीन मीटर लम्बा शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत के सबसे विशाल शिवलिंगों में शुमार किया जाता है। इस मस्जिद को क़ुदसिया बेग़म की बेटी सिकंदर जहां बेग़म ने 1860 ई॰ में बनवाया था। यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल की आठवीं शासिका शाहजहां बे सिकंदर बेगम के शासन काल में प्रारम्भ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवन्तपर्यंत यह बन न सकी। शौकत महल, भोपाल शहर के बीचोंबीच चौक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है। झील के किनारे बना यह महल सदर मंज़िल के पीछे स्थित है। बाणगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है। यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्ट्रीय संस्थानों में एक है। 1982 में स्थापित इस भवन में अनेक रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह अनोखा संग्रहालय श्यामला की पहाडियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण भोपाल से 46 किलोमीटर दूर स्थित भीमबेटका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं। यह गुफाएँ चारों तरफ से विन्ध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका सम्बन्ध नवपाषाण काल से है। इन गुफाओं के अन्दर बने चित्र गुफाओं में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के जीवन का विवरण प्रस्तुत करते हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है। | राजा भोज किस वंश के राजा थे? | {
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"गुर्जर परमार वंश"
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} | Raja Bhoj was the king of which dynasty? | This temple is also called Somnath of the East.Bhojpur, 28 km from Bhopal, was founded by King Bhoj of Gurjar Parmar dynasty.That is why this place is known as Bhojpur.This place is known for the grand temple of Lord Shiva and the cyclopian dam.The Bhojeshwar temple here has been beautifully decorated.The temple is built on a high platform with a three -and -a -half meter long Shivling in the sanctum sanctorum.It is included among the largest Shivalingas in India.This mosque was built by Sikander Jahan Begum, daughter of Qudasia Begum in 1860 AD.This mosque is one of the largest mosques in India.The construction work of this mosque started during the reign of Shah Jahan Bay Sikander Begum, the eighth ruler of Bhopal, but due to lack of funds, it could not be made.Shaukat Mahal is located at the entrance of the Chowk area in the heart of Bhopal city.This palace, built on the banks of the lake, is located behind the Sadar destination.This museum located on Banganga Road has the sculptures collected from various parts of Madhya Pradesh.This building is one of the most unique national institutions in India.Many creative arts are exhibited in this building established in 1982.This unique museum is spread over an area of 200 acres on the hills of Shyamala.Bhimbetka's caves, 46 km from South Bhopal, are popular for prehistoric period painters.These caves are surrounded by vein ranges from all sides, which are related to the Neolithic period.Pictures inside these caves present the details of the life of the prehistoric period living in the caves.The oldest painting here is considered to be 12 thousand years ago. | {
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93
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"Gurjara Paramara dynasty"
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} |
260 | इस मन्दिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर की स्थापना गुर्जर परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। यह स्थान भगवान शिव के भव्य मन्दिर और साईक्लोपियन बाँध के लिए जाना जाता है। यहाँ के भोजेश्वर मन्दिर की सुन्दर सजावट की गई है। मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना है जिसके गर्भगृह में लगभग साढ़े तीन मीटर लम्बा शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत के सबसे विशाल शिवलिंगों में शुमार किया जाता है। इस मस्जिद को क़ुदसिया बेग़म की बेटी सिकंदर जहां बेग़म ने 1860 ई॰ में बनवाया था। यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल की आठवीं शासिका शाहजहां बे सिकंदर बेगम के शासन काल में प्रारम्भ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवन्तपर्यंत यह बन न सकी। शौकत महल, भोपाल शहर के बीचोंबीच चौक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है। झील के किनारे बना यह महल सदर मंज़िल के पीछे स्थित है। बाणगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है। यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्ट्रीय संस्थानों में एक है। 1982 में स्थापित इस भवन में अनेक रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह अनोखा संग्रहालय श्यामला की पहाडियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण भोपाल से 46 किलोमीटर दूर स्थित भीमबेटका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं। यह गुफाएँ चारों तरफ से विन्ध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका सम्बन्ध नवपाषाण काल से है। इन गुफाओं के अन्दर बने चित्र गुफाओं में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के जीवन का विवरण प्रस्तुत करते हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है। | दक्षिण भोपाल से श्यामला भीमबेटका गुफाओं की दुरी कितनी है ? | {
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"46 किलोमीटर"
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1197
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} | How far is Shyamla Bhimbetka Caves from South Bhopal? | This temple is also called Somnath of the East.Bhojpur, 28 km from Bhopal, was founded by King Bhoj of Gurjar Parmar dynasty.That is why this place is known as Bhojpur.This place is known for the grand temple of Lord Shiva and the cyclopian dam.The Bhojeshwar temple here has been beautifully decorated.The temple is built on a high platform with a three -and -a -half meter long Shivling in the sanctum sanctorum.It is included among the largest Shivalingas in India.This mosque was built by Sikander Jahan Begum, daughter of Qudasia Begum in 1860 AD.This mosque is one of the largest mosques in India.The construction work of this mosque started during the reign of Shah Jahan Bay Sikander Begum, the eighth ruler of Bhopal, but due to lack of funds, it could not be made.Shaukat Mahal is located at the entrance of the Chowk area in the heart of Bhopal city.This palace, built on the banks of the lake, is located behind the Sadar destination.This museum located on Banganga Road has the sculptures collected from various parts of Madhya Pradesh.This building is one of the most unique national institutions in India.Many creative arts are exhibited in this building established in 1982.This unique museum is spread over an area of 200 acres on the hills of Shyamala.Bhimbetka's caves, 46 km from South Bhopal, are popular for prehistoric period painters.These caves are surrounded by vein ranges from all sides, which are related to the Neolithic period.Pictures inside these caves present the details of the life of the prehistoric period living in the caves.The oldest painting here is considered to be 12 thousand years ago. | {
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1197
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"46 Kms"
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261 | इस मन्दिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर की स्थापना गुर्जर परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। यह स्थान भगवान शिव के भव्य मन्दिर और साईक्लोपियन बाँध के लिए जाना जाता है। यहाँ के भोजेश्वर मन्दिर की सुन्दर सजावट की गई है। मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना है जिसके गर्भगृह में लगभग साढ़े तीन मीटर लम्बा शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत के सबसे विशाल शिवलिंगों में शुमार किया जाता है। इस मस्जिद को क़ुदसिया बेग़म की बेटी सिकंदर जहां बेग़म ने 1860 ई॰ में बनवाया था। यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल की आठवीं शासिका शाहजहां बे सिकंदर बेगम के शासन काल में प्रारम्भ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवन्तपर्यंत यह बन न सकी। शौकत महल, भोपाल शहर के बीचोंबीच चौक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है। झील के किनारे बना यह महल सदर मंज़िल के पीछे स्थित है। बाणगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है। यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्ट्रीय संस्थानों में एक है। 1982 में स्थापित इस भवन में अनेक रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह अनोखा संग्रहालय श्यामला की पहाडियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण भोपाल से 46 किलोमीटर दूर स्थित भीमबेटका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं। यह गुफाएँ चारों तरफ से विन्ध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका सम्बन्ध नवपाषाण काल से है। इन गुफाओं के अन्दर बने चित्र गुफाओं में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के जीवन का विवरण प्रस्तुत करते हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है। | शौर्य स्मारक का उद्घाटन भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कब किया था ? | {
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""
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} | When was the Shaurya Smarak inaugurated by the Prime Minister of India, Shri Narendra Modi? | This temple is also called Somnath of the East.Bhojpur, 28 km from Bhopal, was founded by King Bhoj of Gurjar Parmar dynasty.That is why this place is known as Bhojpur.This place is known for the grand temple of Lord Shiva and the cyclopian dam.The Bhojeshwar temple here has been beautifully decorated.The temple is built on a high platform with a three -and -a -half meter long Shivling in the sanctum sanctorum.It is included among the largest Shivalingas in India.This mosque was built by Sikander Jahan Begum, daughter of Qudasia Begum in 1860 AD.This mosque is one of the largest mosques in India.The construction work of this mosque started during the reign of Shah Jahan Bay Sikander Begum, the eighth ruler of Bhopal, but due to lack of funds, it could not be made.Shaukat Mahal is located at the entrance of the Chowk area in the heart of Bhopal city.This palace, built on the banks of the lake, is located behind the Sadar destination.This museum located on Banganga Road has the sculptures collected from various parts of Madhya Pradesh.This building is one of the most unique national institutions in India.Many creative arts are exhibited in this building established in 1982.This unique museum is spread over an area of 200 acres on the hills of Shyamala.Bhimbetka's caves, 46 km from South Bhopal, are popular for prehistoric period painters.These caves are surrounded by vein ranges from all sides, which are related to the Neolithic period.Pictures inside these caves present the details of the life of the prehistoric period living in the caves.The oldest painting here is considered to be 12 thousand years ago. | {
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262 | इस मन्दिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर की स्थापना गुर्जर परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। यह स्थान भगवान शिव के भव्य मन्दिर और साईक्लोपियन बाँध के लिए जाना जाता है। यहाँ के भोजेश्वर मन्दिर की सुन्दर सजावट की गई है। मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना है जिसके गर्भगृह में लगभग साढ़े तीन मीटर लम्बा शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत के सबसे विशाल शिवलिंगों में शुमार किया जाता है। इस मस्जिद को क़ुदसिया बेग़म की बेटी सिकंदर जहां बेग़म ने 1860 ई॰ में बनवाया था। यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल की आठवीं शासिका शाहजहां बे सिकंदर बेगम के शासन काल में प्रारम्भ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवन्तपर्यंत यह बन न सकी। शौकत महल, भोपाल शहर के बीचोंबीच चौक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है। झील के किनारे बना यह महल सदर मंज़िल के पीछे स्थित है। बाणगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है। यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्ट्रीय संस्थानों में एक है। 1982 में स्थापित इस भवन में अनेक रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह अनोखा संग्रहालय श्यामला की पहाडियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण भोपाल से 46 किलोमीटर दूर स्थित भीमबेटका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं। यह गुफाएँ चारों तरफ से विन्ध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका सम्बन्ध नवपाषाण काल से है। इन गुफाओं के अन्दर बने चित्र गुफाओं में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के जीवन का विवरण प्रस्तुत करते हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है। | पूर्व के सोमनाथ मंदिर की स्थापना किसने की थी? | {
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"राजा भोज"
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113
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} | Who founded the Somnath Temple of the East? | This temple is also called Somnath of the East.Bhojpur, 28 km from Bhopal, was founded by King Bhoj of Gurjar Parmar dynasty.That is why this place is known as Bhojpur.This place is known for the grand temple of Lord Shiva and the cyclopian dam.The Bhojeshwar temple here has been beautifully decorated.The temple is built on a high platform with a three -and -a -half meter long Shivling in the sanctum sanctorum.It is included among the largest Shivalingas in India.This mosque was built by Sikander Jahan Begum, daughter of Qudasia Begum in 1860 AD.This mosque is one of the largest mosques in India.The construction work of this mosque started during the reign of Shah Jahan Bay Sikander Begum, the eighth ruler of Bhopal, but due to lack of funds, it could not be made.Shaukat Mahal is located at the entrance of the Chowk area in the heart of Bhopal city.This palace, built on the banks of the lake, is located behind the Sadar destination.This museum located on Banganga Road has the sculptures collected from various parts of Madhya Pradesh.This building is one of the most unique national institutions in India.Many creative arts are exhibited in this building established in 1982.This unique museum is spread over an area of 200 acres on the hills of Shyamala.Bhimbetka's caves, 46 km from South Bhopal, are popular for prehistoric period painters.These caves are surrounded by vein ranges from all sides, which are related to the Neolithic period.Pictures inside these caves present the details of the life of the prehistoric period living in the caves.The oldest painting here is considered to be 12 thousand years ago. | {
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113
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"Raja Bhoj"
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263 | इस मन्दिर को पूर्व का सोमनाथ भी कहा जाता है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर स्थित भोजपुर की स्थापना गुर्जर परमार वंश के राजा भोज ने की थी। इसीलिए यह स्थान भोजपुर के नाम से चर्चित है। यह स्थान भगवान शिव के भव्य मन्दिर और साईक्लोपियन बाँध के लिए जाना जाता है। यहाँ के भोजेश्वर मन्दिर की सुन्दर सजावट की गई है। मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना है जिसके गर्भगृह में लगभग साढ़े तीन मीटर लम्बा शिवलिंग स्थापित है। इसे भारत के सबसे विशाल शिवलिंगों में शुमार किया जाता है। इस मस्जिद को क़ुदसिया बेग़म की बेटी सिकंदर जहां बेग़म ने 1860 ई॰ में बनवाया था। यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल की आठवीं शासिका शाहजहां बे सिकंदर बेगम के शासन काल में प्रारम्भ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवन्तपर्यंत यह बन न सकी। शौकत महल, भोपाल शहर के बीचोंबीच चौक एरिया के प्रवेश द्वार पर स्थित है। झील के किनारे बना यह महल सदर मंज़िल के पीछे स्थित है। बाणगंगा रोड पर स्थित इस संग्रहालय में मध्यप्रदेश के विभिन्न हिस्सों से एकत्रित की हुई मूर्तियों को रखा गया है। यह भवन भारत के सबसे अनूठे राष्ट्रीय संस्थानों में एक है। 1982 में स्थापित इस भवन में अनेक रचनात्मक कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। यह अनोखा संग्रहालय श्यामला की पहाडियों पर 200 एकड़ के क्षेत्र में फैला हुआ है। दक्षिण भोपाल से 46 किलोमीटर दूर स्थित भीमबेटका की गुफाएं प्रागैतिहासिक काल की चित्रकारियों के लिए लोकप्रिय हैं। यह गुफाएँ चारों तरफ से विन्ध्य पर्वतमालाओं से घिरी हुईं हैं, जिनका सम्बन्ध नवपाषाण काल से है। इन गुफाओं के अन्दर बने चित्र गुफाओं में रहने वाले प्रागैतिहासिक काल के जीवन का विवरण प्रस्तुत करते हैं। यहां की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12 हजार वर्ष पूर्व की मानी जाती है। | पूर्व के सोमनाथ मंदिर में किस देवता का मंदिर है? | {
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"भगवान शिव"
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183
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} | Which deity is worshipped in the Somnath Temple of the East? | This temple is also called Somnath of the East.Bhojpur, 28 km from Bhopal, was founded by King Bhoj of Gurjar Parmar dynasty.That is why this place is known as Bhojpur.This place is known for the grand temple of Lord Shiva and the cyclopian dam.The Bhojeshwar temple here has been beautifully decorated.The temple is built on a high platform with a three -and -a -half meter long Shivling in the sanctum sanctorum.It is included among the largest Shivalingas in India.This mosque was built by Sikander Jahan Begum, daughter of Qudasia Begum in 1860 AD.This mosque is one of the largest mosques in India.The construction work of this mosque started during the reign of Shah Jahan Bay Sikander Begum, the eighth ruler of Bhopal, but due to lack of funds, it could not be made.Shaukat Mahal is located at the entrance of the Chowk area in the heart of Bhopal city.This palace, built on the banks of the lake, is located behind the Sadar destination.This museum located on Banganga Road has the sculptures collected from various parts of Madhya Pradesh.This building is one of the most unique national institutions in India.Many creative arts are exhibited in this building established in 1982.This unique museum is spread over an area of 200 acres on the hills of Shyamala.Bhimbetka's caves, 46 km from South Bhopal, are popular for prehistoric period painters.These caves are surrounded by vein ranges from all sides, which are related to the Neolithic period.Pictures inside these caves present the details of the life of the prehistoric period living in the caves.The oldest painting here is considered to be 12 thousand years ago. | {
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183
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"Lord Shiva"
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} |
264 | इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे। शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[17 अगस्त 1666। सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। | शिवाजी ने संधि प्रस्ताव किसे भेजा था? | {
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"मुग़लों"
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155
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} | To whom did Shivaji send the treaty proposal? | Shivaji started suffering in this war and seeing the possibility of defeat, Shivaji sent a proposal for the treaty.According to this treaty in June 1665, Shivaji will give 23 forts to the Mughals and in this way only 12 fortifications will survive.The income from these 23 fortifications was 4 lakh Huns annually.Shivaji will get the areas of Balaghat and Konkan, but he will have to pay 40 lakh Huns in 13 installments in return.Apart from this, they will also give revenue of 5 lakh Huns per year.Shivaji himself will be free from being in Aurangzeb's court, but his son Shambhaji will have to bear the Mughal court.Shivaji will support the Mughals against Bijapur.Shivaji was called to Agra where he felt that he was not getting proper respect.In protest, he showed his romantic court and accused Aurangzeb of betrayal.Aurangzeb was angry with this and he ignored Shivaji and put 5000 soldiers on him.A few days later (on 18 August 1666), Aurangzeb intended to kill King Shivaji.But both Shivaji and Sambhaji managed to escape with their indomitable courage and device [17 August 1666.Shivaji Maharaj, leaving Sambhaji in Mathura, left to Banaras, went to Rajgarh via Banaras, Puri [2 September 1666].This gave the Marathas a new life.Aurangzeb doubted Jaisingh and got him killed by poisoning him.After taking initiative by Jaswant Singh, in 1668, Shivaji made the second time with the Mughals.Aurangzeb recognized Shivaji as the king.Shivaji's son Shambhaji got 5000 mansabdari and Shivaji was returned to the district of Poona, Chakan and Soup. | {
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155
],
"text": [
"Mughals"
]
} |
265 | इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे। शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[17 अगस्त 1666। सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। | औरंगजेब ने राजा शिवाजी को मारने का इरादा कब किया था? | {
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"18 अगस्त 1666"
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880
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} | When did Aurangzeb intend to kill King Shivaji? | Shivaji started suffering in this war and seeing the possibility of defeat, Shivaji sent a proposal for the treaty.According to this treaty in June 1665, Shivaji will give 23 forts to the Mughals and in this way only 12 fortifications will survive.The income from these 23 fortifications was 4 lakh Huns annually.Shivaji will get the areas of Balaghat and Konkan, but he will have to pay 40 lakh Huns in 13 installments in return.Apart from this, they will also give revenue of 5 lakh Huns per year.Shivaji himself will be free from being in Aurangzeb's court, but his son Shambhaji will have to bear the Mughal court.Shivaji will support the Mughals against Bijapur.Shivaji was called to Agra where he felt that he was not getting proper respect.In protest, he showed his romantic court and accused Aurangzeb of betrayal.Aurangzeb was angry with this and he ignored Shivaji and put 5000 soldiers on him.A few days later (on 18 August 1666), Aurangzeb intended to kill King Shivaji.But both Shivaji and Sambhaji managed to escape with their indomitable courage and device [17 August 1666.Shivaji Maharaj, leaving Sambhaji in Mathura, left to Banaras, went to Rajgarh via Banaras, Puri [2 September 1666].This gave the Marathas a new life.Aurangzeb doubted Jaisingh and got him killed by poisoning him.After taking initiative by Jaswant Singh, in 1668, Shivaji made the second time with the Mughals.Aurangzeb recognized Shivaji as the king.Shivaji's son Shambhaji got 5000 mansabdari and Shivaji was returned to the district of Poona, Chakan and Soup. | {
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880
],
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"18th August 1666"
]
} |
266 | इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे। शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[17 अगस्त 1666। सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। | सूरत शहर को दूसरी बार लुटने से शिवाजी को कितनी संपत्ति हासिल हुई थी ? | {
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} | How much wealth did Shivaji gain by plundering the city of Surat for the second time? | Shivaji started suffering in this war and seeing the possibility of defeat, Shivaji sent a proposal for the treaty.According to this treaty in June 1665, Shivaji will give 23 forts to the Mughals and in this way only 12 fortifications will survive.The income from these 23 fortifications was 4 lakh Huns annually.Shivaji will get the areas of Balaghat and Konkan, but he will have to pay 40 lakh Huns in 13 installments in return.Apart from this, they will also give revenue of 5 lakh Huns per year.Shivaji himself will be free from being in Aurangzeb's court, but his son Shambhaji will have to bear the Mughal court.Shivaji will support the Mughals against Bijapur.Shivaji was called to Agra where he felt that he was not getting proper respect.In protest, he showed his romantic court and accused Aurangzeb of betrayal.Aurangzeb was angry with this and he ignored Shivaji and put 5000 soldiers on him.A few days later (on 18 August 1666), Aurangzeb intended to kill King Shivaji.But both Shivaji and Sambhaji managed to escape with their indomitable courage and device [17 August 1666.Shivaji Maharaj, leaving Sambhaji in Mathura, left to Banaras, went to Rajgarh via Banaras, Puri [2 September 1666].This gave the Marathas a new life.Aurangzeb doubted Jaisingh and got him killed by poisoning him.After taking initiative by Jaswant Singh, in 1668, Shivaji made the second time with the Mughals.Aurangzeb recognized Shivaji as the king.Shivaji's son Shambhaji got 5000 mansabdari and Shivaji was returned to the district of Poona, Chakan and Soup. | {
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]
} |
267 | इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे। शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[17 अगस्त 1666। सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। | औरंगजेब ने शिवाजी को नजरबंद करके कितने सैनिकों का पहरा लगा दिया था? | {
"text": [
"5000 सैनिकों"
],
"answer_start": [
832
]
} | How many soldiers did Aurangzeb put under Shivaji's house arrest? | Shivaji started suffering in this war and seeing the possibility of defeat, Shivaji sent a proposal for the treaty.According to this treaty in June 1665, Shivaji will give 23 forts to the Mughals and in this way only 12 fortifications will survive.The income from these 23 fortifications was 4 lakh Huns annually.Shivaji will get the areas of Balaghat and Konkan, but he will have to pay 40 lakh Huns in 13 installments in return.Apart from this, they will also give revenue of 5 lakh Huns per year.Shivaji himself will be free from being in Aurangzeb's court, but his son Shambhaji will have to bear the Mughal court.Shivaji will support the Mughals against Bijapur.Shivaji was called to Agra where he felt that he was not getting proper respect.In protest, he showed his romantic court and accused Aurangzeb of betrayal.Aurangzeb was angry with this and he ignored Shivaji and put 5000 soldiers on him.A few days later (on 18 August 1666), Aurangzeb intended to kill King Shivaji.But both Shivaji and Sambhaji managed to escape with their indomitable courage and device [17 August 1666.Shivaji Maharaj, leaving Sambhaji in Mathura, left to Banaras, went to Rajgarh via Banaras, Puri [2 September 1666].This gave the Marathas a new life.Aurangzeb doubted Jaisingh and got him killed by poisoning him.After taking initiative by Jaswant Singh, in 1668, Shivaji made the second time with the Mughals.Aurangzeb recognized Shivaji as the king.Shivaji's son Shambhaji got 5000 mansabdari and Shivaji was returned to the district of Poona, Chakan and Soup. | {
"answer_start": [
832
],
"text": [
"5000 troops."
]
} |
268 | इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे। शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[17 अगस्त 1666। सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। | शिवाजी को 23 किलों से सालाना कितने रुपये की आमदनी होती थी? | {
"text": [
"4 लाख हूण"
],
"answer_start": [
251
]
} | What was the annual income of Shivaji from 23 forts? | Shivaji started suffering in this war and seeing the possibility of defeat, Shivaji sent a proposal for the treaty.According to this treaty in June 1665, Shivaji will give 23 forts to the Mughals and in this way only 12 fortifications will survive.The income from these 23 fortifications was 4 lakh Huns annually.Shivaji will get the areas of Balaghat and Konkan, but he will have to pay 40 lakh Huns in 13 installments in return.Apart from this, they will also give revenue of 5 lakh Huns per year.Shivaji himself will be free from being in Aurangzeb's court, but his son Shambhaji will have to bear the Mughal court.Shivaji will support the Mughals against Bijapur.Shivaji was called to Agra where he felt that he was not getting proper respect.In protest, he showed his romantic court and accused Aurangzeb of betrayal.Aurangzeb was angry with this and he ignored Shivaji and put 5000 soldiers on him.A few days later (on 18 August 1666), Aurangzeb intended to kill King Shivaji.But both Shivaji and Sambhaji managed to escape with their indomitable courage and device [17 August 1666.Shivaji Maharaj, leaving Sambhaji in Mathura, left to Banaras, went to Rajgarh via Banaras, Puri [2 September 1666].This gave the Marathas a new life.Aurangzeb doubted Jaisingh and got him killed by poisoning him.After taking initiative by Jaswant Singh, in 1668, Shivaji made the second time with the Mughals.Aurangzeb recognized Shivaji as the king.Shivaji's son Shambhaji got 5000 mansabdari and Shivaji was returned to the district of Poona, Chakan and Soup. | {
"answer_start": [
251
],
"text": [
"4 lakh"
]
} |
269 | इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे। शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[17 अगस्त 1666। सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। | शिवाजी ने सूरत शहर को दूसरी बार कब लुटा था ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | When did Shivaji plunder the city of Surat for the second time? | Shivaji started suffering in this war and seeing the possibility of defeat, Shivaji sent a proposal for the treaty.According to this treaty in June 1665, Shivaji will give 23 forts to the Mughals and in this way only 12 fortifications will survive.The income from these 23 fortifications was 4 lakh Huns annually.Shivaji will get the areas of Balaghat and Konkan, but he will have to pay 40 lakh Huns in 13 installments in return.Apart from this, they will also give revenue of 5 lakh Huns per year.Shivaji himself will be free from being in Aurangzeb's court, but his son Shambhaji will have to bear the Mughal court.Shivaji will support the Mughals against Bijapur.Shivaji was called to Agra where he felt that he was not getting proper respect.In protest, he showed his romantic court and accused Aurangzeb of betrayal.Aurangzeb was angry with this and he ignored Shivaji and put 5000 soldiers on him.A few days later (on 18 August 1666), Aurangzeb intended to kill King Shivaji.But both Shivaji and Sambhaji managed to escape with their indomitable courage and device [17 August 1666.Shivaji Maharaj, leaving Sambhaji in Mathura, left to Banaras, went to Rajgarh via Banaras, Puri [2 September 1666].This gave the Marathas a new life.Aurangzeb doubted Jaisingh and got him killed by poisoning him.After taking initiative by Jaswant Singh, in 1668, Shivaji made the second time with the Mughals.Aurangzeb recognized Shivaji as the king.Shivaji's son Shambhaji got 5000 mansabdari and Shivaji was returned to the district of Poona, Chakan and Soup. | {
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null
],
"text": [
""
]
} |
270 | इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा। जून 1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच जाएँगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4 लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के ख़िलाफ़ शिवाजी मुगलों का साथ देंगे। शिवाजी को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके विरोध में उन्होंने अपना रोश भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नजरबन्द कर दिया और उनपर 5000 सैनिकों के पहरे लगा दिये। कुछ ही दिनों बाद (18 अगस्त 1666 को) राजा शिवाजी को मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अदम्य साहस ओर युक्ति के साथ शिवाजी और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[17 अगस्त 1666। सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी महाराज बनारस, गये, पुरी होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666]। इससे मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र शम्भाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया। | औरंगजेब ने किस शासक को जहर देकर मार डाला था? | {
"text": [
"जयसिंह"
],
"answer_start": [
1225
]
} | Which ruler was poisoned to death by Aurangzeb? | Shivaji started suffering in this war and seeing the possibility of defeat, Shivaji sent a proposal for the treaty.According to this treaty in June 1665, Shivaji will give 23 forts to the Mughals and in this way only 12 fortifications will survive.The income from these 23 fortifications was 4 lakh Huns annually.Shivaji will get the areas of Balaghat and Konkan, but he will have to pay 40 lakh Huns in 13 installments in return.Apart from this, they will also give revenue of 5 lakh Huns per year.Shivaji himself will be free from being in Aurangzeb's court, but his son Shambhaji will have to bear the Mughal court.Shivaji will support the Mughals against Bijapur.Shivaji was called to Agra where he felt that he was not getting proper respect.In protest, he showed his romantic court and accused Aurangzeb of betrayal.Aurangzeb was angry with this and he ignored Shivaji and put 5000 soldiers on him.A few days later (on 18 August 1666), Aurangzeb intended to kill King Shivaji.But both Shivaji and Sambhaji managed to escape with their indomitable courage and device [17 August 1666.Shivaji Maharaj, leaving Sambhaji in Mathura, left to Banaras, went to Rajgarh via Banaras, Puri [2 September 1666].This gave the Marathas a new life.Aurangzeb doubted Jaisingh and got him killed by poisoning him.After taking initiative by Jaswant Singh, in 1668, Shivaji made the second time with the Mughals.Aurangzeb recognized Shivaji as the king.Shivaji's son Shambhaji got 5000 mansabdari and Shivaji was returned to the district of Poona, Chakan and Soup. | {
"answer_start": [
1225
],
"text": [
"Jaisingh"
]
} |
271 | इस विभाग में ३६ उप-भाग और १२१ पुलिस-स्टेशन है। शहर खा यातायात चेन्नई सिटी ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियंत्रित होता है। महानगर के उपनगर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अधीन आते हैं, एवं बाहरी जेले कांचीपुरम एवं तिरुवल्लुर पुलिस विभागों के अन्तर्गत्त हैं। चेन्नई नगर निगम और उपनगरीय नगरपालिकाएं नागरिक सुविधाएं मुहैया कराती हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कूड़ा-प्रबंधन नील मेटल फैनालिका एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट; एक निजी कंपनी और कुछ अन्य क्षेत्रों में नगर निगम देखता है। जल-आपूर्ति एवं मल-निकास (सीवेज ट्रीटमेंट) चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वॉटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड देखाता है। विद्युत आपूर्ति तमिल नाडु विद्युत बोर्ड प्रबंध करता है। शहर की दूरभाष सेवा छः मोबाइल और चार लैंडलाइन कंपनियों के द्वारा प्रबंध होता है, और यही कंपनियां तथा सिफी और हैथवे ब्रॉडबैंड सेवा द्वारा इंटरनेट भी उपलब्ध कराती हैं। शहर के क्षेत्र से कोई मुख्य नदी नहीं गुजरती है, अतः चेन्नई में वार्षिक मानसून वर्षा के जल को सरोवरों में सहेज कर रखने का इतिहास रहा है। शहर की बढ़ती आबादी और भूमिगत जल के गिरते स्तर के कारण शहर को जल अभाव का सामना करना पड़ा है। इस दिशा में वीरानम झील परियोजना भी कारगर नहीम सिद्ध हुई है। नई वीरानम परियोजना ने काफ़ी हद तक इस समस्या का समाधान किया है और शाहर की सुदूर स्रोतों पर निर्भरता घटी है। | चेन्नई शहर में बिजली की आपूर्ति किसके द्वारा प्रबंधित की जाती है ? | {
"text": [
"तमिल नाडु विद्युत बोर्ड"
],
"answer_start": [
567
]
} | The power supply in the city of Chennai is managed by whom? | This department has 37 sub-parts and 121 police stations.City eating traffic is controlled by Chennai City Traffic Police.The suburbs of the metropolis come under the Chennai Metropolitan Police, and the outer bars are under the end of Kanchipuram and Thiruvallur Police Departments.Chennai Municipal Corporation and suburban municipalities provide civil facilities.Garbage-management indigo metal fhanlica environment management in most areas;The Municipal Corporation sees a private company and in some other areas.Water-supply and sewage treatment Chennai Metropolitan Water Supply and Sewage Board.Electrical supply Tamil Nadu Electricity Board manages.The city's telephone service is managed by six mobiles and four landline companies, and the same companies and Safi and Hathaway Broadband service also provide internet.No main river passes from the city area, so Chennai has a history of saving the annual monsoon rainwater in lakes.The city has faced water scarcity due to the increasing population of the city and falling level of ground water.The Veeranam Lake project in this direction has also proved to be effective.The new Veeranam project has solved this problem to a great extent and has reduced the dependence on remote sources. | {
"answer_start": [
567
],
"text": [
"Tamil Nadu Electricity Board"
]
} |
272 | इस विभाग में ३६ उप-भाग और १२१ पुलिस-स्टेशन है। शहर खा यातायात चेन्नई सिटी ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियंत्रित होता है। महानगर के उपनगर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अधीन आते हैं, एवं बाहरी जेले कांचीपुरम एवं तिरुवल्लुर पुलिस विभागों के अन्तर्गत्त हैं। चेन्नई नगर निगम और उपनगरीय नगरपालिकाएं नागरिक सुविधाएं मुहैया कराती हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कूड़ा-प्रबंधन नील मेटल फैनालिका एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट; एक निजी कंपनी और कुछ अन्य क्षेत्रों में नगर निगम देखता है। जल-आपूर्ति एवं मल-निकास (सीवेज ट्रीटमेंट) चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वॉटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड देखाता है। विद्युत आपूर्ति तमिल नाडु विद्युत बोर्ड प्रबंध करता है। शहर की दूरभाष सेवा छः मोबाइल और चार लैंडलाइन कंपनियों के द्वारा प्रबंध होता है, और यही कंपनियां तथा सिफी और हैथवे ब्रॉडबैंड सेवा द्वारा इंटरनेट भी उपलब्ध कराती हैं। शहर के क्षेत्र से कोई मुख्य नदी नहीं गुजरती है, अतः चेन्नई में वार्षिक मानसून वर्षा के जल को सरोवरों में सहेज कर रखने का इतिहास रहा है। शहर की बढ़ती आबादी और भूमिगत जल के गिरते स्तर के कारण शहर को जल अभाव का सामना करना पड़ा है। इस दिशा में वीरानम झील परियोजना भी कारगर नहीम सिद्ध हुई है। नई वीरानम परियोजना ने काफ़ी हद तक इस समस्या का समाधान किया है और शाहर की सुदूर स्रोतों पर निर्भरता घटी है। | आंध्र प्रदेश में कौन सी जल की नई परियोजना चल रही है ? | {
"text": [
""
],
"answer_start": [
null
]
} | Which new water project is going on in Andhra Pradesh? | This department has 37 sub-parts and 121 police stations.City eating traffic is controlled by Chennai City Traffic Police.The suburbs of the metropolis come under the Chennai Metropolitan Police, and the outer bars are under the end of Kanchipuram and Thiruvallur Police Departments.Chennai Municipal Corporation and suburban municipalities provide civil facilities.Garbage-management indigo metal fhanlica environment management in most areas;The Municipal Corporation sees a private company and in some other areas.Water-supply and sewage treatment Chennai Metropolitan Water Supply and Sewage Board.Electrical supply Tamil Nadu Electricity Board manages.The city's telephone service is managed by six mobiles and four landline companies, and the same companies and Safi and Hathaway Broadband service also provide internet.No main river passes from the city area, so Chennai has a history of saving the annual monsoon rainwater in lakes.The city has faced water scarcity due to the increasing population of the city and falling level of ground water.The Veeranam Lake project in this direction has also proved to be effective.The new Veeranam project has solved this problem to a great extent and has reduced the dependence on remote sources. | {
"answer_start": [
null
],
"text": [
""
]
} |
273 | इस विभाग में ३६ उप-भाग और १२१ पुलिस-स्टेशन है। शहर खा यातायात चेन्नई सिटी ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियंत्रित होता है। महानगर के उपनगर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अधीन आते हैं, एवं बाहरी जेले कांचीपुरम एवं तिरुवल्लुर पुलिस विभागों के अन्तर्गत्त हैं। चेन्नई नगर निगम और उपनगरीय नगरपालिकाएं नागरिक सुविधाएं मुहैया कराती हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कूड़ा-प्रबंधन नील मेटल फैनालिका एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट; एक निजी कंपनी और कुछ अन्य क्षेत्रों में नगर निगम देखता है। जल-आपूर्ति एवं मल-निकास (सीवेज ट्रीटमेंट) चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वॉटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड देखाता है। विद्युत आपूर्ति तमिल नाडु विद्युत बोर्ड प्रबंध करता है। शहर की दूरभाष सेवा छः मोबाइल और चार लैंडलाइन कंपनियों के द्वारा प्रबंध होता है, और यही कंपनियां तथा सिफी और हैथवे ब्रॉडबैंड सेवा द्वारा इंटरनेट भी उपलब्ध कराती हैं। शहर के क्षेत्र से कोई मुख्य नदी नहीं गुजरती है, अतः चेन्नई में वार्षिक मानसून वर्षा के जल को सरोवरों में सहेज कर रखने का इतिहास रहा है। शहर की बढ़ती आबादी और भूमिगत जल के गिरते स्तर के कारण शहर को जल अभाव का सामना करना पड़ा है। इस दिशा में वीरानम झील परियोजना भी कारगर नहीम सिद्ध हुई है। नई वीरानम परियोजना ने काफ़ी हद तक इस समस्या का समाधान किया है और शाहर की सुदूर स्रोतों पर निर्भरता घटी है। | किस कंपनी द्वारा चेन्नई शहर के कचरे का प्रबंधन किया जाता है ? | {
"text": [
"फैनालिका एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट"
],
"answer_start": [
360
]
} | Which company manages Chennai city's waste? | This department has 37 sub-parts and 121 police stations.City eating traffic is controlled by Chennai City Traffic Police.The suburbs of the metropolis come under the Chennai Metropolitan Police, and the outer bars are under the end of Kanchipuram and Thiruvallur Police Departments.Chennai Municipal Corporation and suburban municipalities provide civil facilities.Garbage-management indigo metal fhanlica environment management in most areas;The Municipal Corporation sees a private company and in some other areas.Water-supply and sewage treatment Chennai Metropolitan Water Supply and Sewage Board.Electrical supply Tamil Nadu Electricity Board manages.The city's telephone service is managed by six mobiles and four landline companies, and the same companies and Safi and Hathaway Broadband service also provide internet.No main river passes from the city area, so Chennai has a history of saving the annual monsoon rainwater in lakes.The city has faced water scarcity due to the increasing population of the city and falling level of ground water.The Veeranam Lake project in this direction has also proved to be effective.The new Veeranam project has solved this problem to a great extent and has reduced the dependence on remote sources. | {
"answer_start": [
360
],
"text": [
"Fanalica Environment Management"
]
} |
274 | इस विभाग में ३६ उप-भाग और १२१ पुलिस-स्टेशन है। शहर खा यातायात चेन्नई सिटी ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियंत्रित होता है। महानगर के उपनगर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अधीन आते हैं, एवं बाहरी जेले कांचीपुरम एवं तिरुवल्लुर पुलिस विभागों के अन्तर्गत्त हैं। चेन्नई नगर निगम और उपनगरीय नगरपालिकाएं नागरिक सुविधाएं मुहैया कराती हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कूड़ा-प्रबंधन नील मेटल फैनालिका एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट; एक निजी कंपनी और कुछ अन्य क्षेत्रों में नगर निगम देखता है। जल-आपूर्ति एवं मल-निकास (सीवेज ट्रीटमेंट) चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वॉटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड देखाता है। विद्युत आपूर्ति तमिल नाडु विद्युत बोर्ड प्रबंध करता है। शहर की दूरभाष सेवा छः मोबाइल और चार लैंडलाइन कंपनियों के द्वारा प्रबंध होता है, और यही कंपनियां तथा सिफी और हैथवे ब्रॉडबैंड सेवा द्वारा इंटरनेट भी उपलब्ध कराती हैं। शहर के क्षेत्र से कोई मुख्य नदी नहीं गुजरती है, अतः चेन्नई में वार्षिक मानसून वर्षा के जल को सरोवरों में सहेज कर रखने का इतिहास रहा है। शहर की बढ़ती आबादी और भूमिगत जल के गिरते स्तर के कारण शहर को जल अभाव का सामना करना पड़ा है। इस दिशा में वीरानम झील परियोजना भी कारगर नहीम सिद्ध हुई है। नई वीरानम परियोजना ने काफ़ी हद तक इस समस्या का समाधान किया है और शाहर की सुदूर स्रोतों पर निर्भरता घटी है। | चेन्नई शहर का यातायात किसके द्वारा नियंत्रित किया जाता है ? | {
"text": [
"चेन्नई सिटी ट्रैफिक पुलिस"
],
"answer_start": [
61
]
} | Chennai city traffic is controlled by whom? | This department has 37 sub-parts and 121 police stations.City eating traffic is controlled by Chennai City Traffic Police.The suburbs of the metropolis come under the Chennai Metropolitan Police, and the outer bars are under the end of Kanchipuram and Thiruvallur Police Departments.Chennai Municipal Corporation and suburban municipalities provide civil facilities.Garbage-management indigo metal fhanlica environment management in most areas;The Municipal Corporation sees a private company and in some other areas.Water-supply and sewage treatment Chennai Metropolitan Water Supply and Sewage Board.Electrical supply Tamil Nadu Electricity Board manages.The city's telephone service is managed by six mobiles and four landline companies, and the same companies and Safi and Hathaway Broadband service also provide internet.No main river passes from the city area, so Chennai has a history of saving the annual monsoon rainwater in lakes.The city has faced water scarcity due to the increasing population of the city and falling level of ground water.The Veeranam Lake project in this direction has also proved to be effective.The new Veeranam project has solved this problem to a great extent and has reduced the dependence on remote sources. | {
"answer_start": [
61
],
"text": [
"Chennai City Traffic Police"
]
} |
275 | इस विभाग में ३६ उप-भाग और १२१ पुलिस-स्टेशन है। शहर खा यातायात चेन्नई सिटी ट्रैफिक पुलिस द्वारा नियंत्रित होता है। महानगर के उपनगर चेन्नई मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अधीन आते हैं, एवं बाहरी जेले कांचीपुरम एवं तिरुवल्लुर पुलिस विभागों के अन्तर्गत्त हैं। चेन्नई नगर निगम और उपनगरीय नगरपालिकाएं नागरिक सुविधाएं मुहैया कराती हैं। अधिकांश क्षेत्रों में कूड़ा-प्रबंधन नील मेटल फैनालिका एन्वायरनमेंट मैनेजमेंट; एक निजी कंपनी और कुछ अन्य क्षेत्रों में नगर निगम देखता है। जल-आपूर्ति एवं मल-निकास (सीवेज ट्रीटमेंट) चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वॉटर सप्लाई एंड सीवेज बोर्ड देखाता है। विद्युत आपूर्ति तमिल नाडु विद्युत बोर्ड प्रबंध करता है। शहर की दूरभाष सेवा छः मोबाइल और चार लैंडलाइन कंपनियों के द्वारा प्रबंध होता है, और यही कंपनियां तथा सिफी और हैथवे ब्रॉडबैंड सेवा द्वारा इंटरनेट भी उपलब्ध कराती हैं। शहर के क्षेत्र से कोई मुख्य नदी नहीं गुजरती है, अतः चेन्नई में वार्षिक मानसून वर्षा के जल को सरोवरों में सहेज कर रखने का इतिहास रहा है। शहर की बढ़ती आबादी और भूमिगत जल के गिरते स्तर के कारण शहर को जल अभाव का सामना करना पड़ा है। इस दिशा में वीरानम झील परियोजना भी कारगर नहीम सिद्ध हुई है। नई वीरानम परियोजना ने काफ़ी हद तक इस समस्या का समाधान किया है और शाहर की सुदूर स्रोतों पर निर्भरता घटी है। | तेलुगू गंगा परियोजना के लिए पानी किस नदी से आता है ? | {
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} | The water for the Telugu Ganga project comes from which river? | This department has 37 sub-parts and 121 police stations.City eating traffic is controlled by Chennai City Traffic Police.The suburbs of the metropolis come under the Chennai Metropolitan Police, and the outer bars are under the end of Kanchipuram and Thiruvallur Police Departments.Chennai Municipal Corporation and suburban municipalities provide civil facilities.Garbage-management indigo metal fhanlica environment management in most areas;The Municipal Corporation sees a private company and in some other areas.Water-supply and sewage treatment Chennai Metropolitan Water Supply and Sewage Board.Electrical supply Tamil Nadu Electricity Board manages.The city's telephone service is managed by six mobiles and four landline companies, and the same companies and Safi and Hathaway Broadband service also provide internet.No main river passes from the city area, so Chennai has a history of saving the annual monsoon rainwater in lakes.The city has faced water scarcity due to the increasing population of the city and falling level of ground water.The Veeranam Lake project in this direction has also proved to be effective.The new Veeranam project has solved this problem to a great extent and has reduced the dependence on remote sources. | {
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276 | इस हमले में खुद मेजर जनरल प्रसाद के काफिले पर भी भीषण हमला हुआ और उन्हें अपना वाहन छोड़ कर पीछे हटना पड़ा। भारतीय थलसेना ने दूनी शक्ति से प्रत्याक्रमण करके बरकी गाँव के समीप नहर को पार करने में सफलता अर्जित की। इससे भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी। इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिये कुछ समय के लिये युद्धविराम की अपील की। आखिरकार रूस और अमरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर जोर डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को बहला फुसलाकर इस बात के लिये मनाया गया कि वे शास्त्रीजी के साथ रूस की राजधानी ताशकन्द न जायें और वे भी मान गयीं। अपनी इस भूल का श्रीमती ललिता शास्त्री को मृत्युपर्यन्त पछतावा रहा। जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं। काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह आज तक रहस्य बना हुआ है कि क्या वाकई शास्त्रीजी की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी? | लाल बहादुर शास्त्री को भारत रत्न से सम्मानित कब किया गया था? | {
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} | When was Lal Bahadur Shastri awarded the Bharat Ratna? | In this attack, the convoy of Major General Prasad himself was also attacked and had to leave his vehicle and retreat.The Indian Army succeeded in crossing the canal near the village of Barki by reporting double power.This led to the Indian Army to reach Lahore's airport within the limits.Fearing this unexpected attack, the US appealed for some time to remove its citizens from Lahore.Eventually, Shastriji was insisted with the connivance of Russia and America.He was called Russia under a well thought out conspiracy which he accepted.His wife Lalita Shastri, who was always with him, was lured and celebrated for the fact that she should not go to Tashkend, the capital of Russia with Shastriji and she also agreed.Mrs. Lalita Shastri was regretted for this mistake.When the agreement dialogue went on, Shastriji had the same insistence that he has all the rest conditions but it is not acceptable to return the land to Pakistan.After much conflict, the document of Tashkent Agreement was signed by making international pressure on Shastriji.He signed by saying that he is definitely signing, but this land will return to another Prime Minister, not them.He died on the night of 11 January 1966, a few hours after signing a ceasefire agreement with Pakistan President Ayub Khan.It remains a mystery till date whether Shastriji died due to heart attack? | {
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277 | इस हमले में खुद मेजर जनरल प्रसाद के काफिले पर भी भीषण हमला हुआ और उन्हें अपना वाहन छोड़ कर पीछे हटना पड़ा। भारतीय थलसेना ने दूनी शक्ति से प्रत्याक्रमण करके बरकी गाँव के समीप नहर को पार करने में सफलता अर्जित की। इससे भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी। इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिये कुछ समय के लिये युद्धविराम की अपील की। आखिरकार रूस और अमरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर जोर डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को बहला फुसलाकर इस बात के लिये मनाया गया कि वे शास्त्रीजी के साथ रूस की राजधानी ताशकन्द न जायें और वे भी मान गयीं। अपनी इस भूल का श्रीमती ललिता शास्त्री को मृत्युपर्यन्त पछतावा रहा। जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं। काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह आज तक रहस्य बना हुआ है कि क्या वाकई शास्त्रीजी की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी? | लाल बहादुर शास्त्री जी की पत्नी का क्या नाम था? | {
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"श्रीमती ललिता शास्त्री"
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} | What was the name of Lal Bahadur Shastri's wife? | In this attack, the convoy of Major General Prasad himself was also attacked and had to leave his vehicle and retreat.The Indian Army succeeded in crossing the canal near the village of Barki by reporting double power.This led to the Indian Army to reach Lahore's airport within the limits.Fearing this unexpected attack, the US appealed for some time to remove its citizens from Lahore.Eventually, Shastriji was insisted with the connivance of Russia and America.He was called Russia under a well thought out conspiracy which he accepted.His wife Lalita Shastri, who was always with him, was lured and celebrated for the fact that she should not go to Tashkend, the capital of Russia with Shastriji and she also agreed.Mrs. Lalita Shastri was regretted for this mistake.When the agreement dialogue went on, Shastriji had the same insistence that he has all the rest conditions but it is not acceptable to return the land to Pakistan.After much conflict, the document of Tashkent Agreement was signed by making international pressure on Shastriji.He signed by saying that he is definitely signing, but this land will return to another Prime Minister, not them.He died on the night of 11 January 1966, a few hours after signing a ceasefire agreement with Pakistan President Ayub Khan.It remains a mystery till date whether Shastriji died due to heart attack? | {
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"Mrs. Lalita Shastri"
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278 | इस हमले में खुद मेजर जनरल प्रसाद के काफिले पर भी भीषण हमला हुआ और उन्हें अपना वाहन छोड़ कर पीछे हटना पड़ा। भारतीय थलसेना ने दूनी शक्ति से प्रत्याक्रमण करके बरकी गाँव के समीप नहर को पार करने में सफलता अर्जित की। इससे भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी। इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिये कुछ समय के लिये युद्धविराम की अपील की। आखिरकार रूस और अमरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर जोर डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को बहला फुसलाकर इस बात के लिये मनाया गया कि वे शास्त्रीजी के साथ रूस की राजधानी ताशकन्द न जायें और वे भी मान गयीं। अपनी इस भूल का श्रीमती ललिता शास्त्री को मृत्युपर्यन्त पछतावा रहा। जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं। काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह आज तक रहस्य बना हुआ है कि क्या वाकई शास्त्रीजी की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी? | लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु कैसे हुई थी? | {
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"हृदयाघात"
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} | How did Lal Bahadur Shastri die? | In this attack, the convoy of Major General Prasad himself was also attacked and had to leave his vehicle and retreat.The Indian Army succeeded in crossing the canal near the village of Barki by reporting double power.This led to the Indian Army to reach Lahore's airport within the limits.Fearing this unexpected attack, the US appealed for some time to remove its citizens from Lahore.Eventually, Shastriji was insisted with the connivance of Russia and America.He was called Russia under a well thought out conspiracy which he accepted.His wife Lalita Shastri, who was always with him, was lured and celebrated for the fact that she should not go to Tashkend, the capital of Russia with Shastriji and she also agreed.Mrs. Lalita Shastri was regretted for this mistake.When the agreement dialogue went on, Shastriji had the same insistence that he has all the rest conditions but it is not acceptable to return the land to Pakistan.After much conflict, the document of Tashkent Agreement was signed by making international pressure on Shastriji.He signed by saying that he is definitely signing, but this land will return to another Prime Minister, not them.He died on the night of 11 January 1966, a few hours after signing a ceasefire agreement with Pakistan President Ayub Khan.It remains a mystery till date whether Shastriji died due to heart attack? | {
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"Heart attack"
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279 | इस हमले में खुद मेजर जनरल प्रसाद के काफिले पर भी भीषण हमला हुआ और उन्हें अपना वाहन छोड़ कर पीछे हटना पड़ा। भारतीय थलसेना ने दूनी शक्ति से प्रत्याक्रमण करके बरकी गाँव के समीप नहर को पार करने में सफलता अर्जित की। इससे भारतीय सेना लाहौर के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी। इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबराकर अमेरिका ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिये कुछ समय के लिये युद्धविराम की अपील की। आखिरकार रूस और अमरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर जोर डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत रूस बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को बहला फुसलाकर इस बात के लिये मनाया गया कि वे शास्त्रीजी के साथ रूस की राजधानी ताशकन्द न जायें और वे भी मान गयीं। अपनी इस भूल का श्रीमती ललिता शास्त्री को मृत्युपर्यन्त पछतावा रहा। जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं। काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह आज तक रहस्य बना हुआ है कि क्या वाकई शास्त्रीजी की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी? | लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु कब हुई थी? | {
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"11 जनवरी 1966"
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} | When did Lal Bahadur Shastri Ji die? | In this attack, the convoy of Major General Prasad himself was also attacked and had to leave his vehicle and retreat.The Indian Army succeeded in crossing the canal near the village of Barki by reporting double power.This led to the Indian Army to reach Lahore's airport within the limits.Fearing this unexpected attack, the US appealed for some time to remove its citizens from Lahore.Eventually, Shastriji was insisted with the connivance of Russia and America.He was called Russia under a well thought out conspiracy which he accepted.His wife Lalita Shastri, who was always with him, was lured and celebrated for the fact that she should not go to Tashkend, the capital of Russia with Shastriji and she also agreed.Mrs. Lalita Shastri was regretted for this mistake.When the agreement dialogue went on, Shastriji had the same insistence that he has all the rest conditions but it is not acceptable to return the land to Pakistan.After much conflict, the document of Tashkent Agreement was signed by making international pressure on Shastriji.He signed by saying that he is definitely signing, but this land will return to another Prime Minister, not them.He died on the night of 11 January 1966, a few hours after signing a ceasefire agreement with Pakistan President Ayub Khan.It remains a mystery till date whether Shastriji died due to heart attack? | {
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1268
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"11 January 1966"
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280 | इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। ओलिव रिडले नामक समुद्री कछुआ विलुप्तप्राय प्रजातियों में आता है, इसको गहीरमाथा सागरीय उद्यान, गहीरमाथा तट, ओडिशा में पनपने लायक वातावरण उपलब्ध कराया गया है। इसके अलावा यहां मैर्लिन, बैराकुडा, स्किपजैक टूना, (Katsuwonus pelamis), यलोफ़िन टूना, हिन्द-प्रशांत हम्पबैक डॉल्फ़िन (Sousa chinensis), एवं ब्राइड्स व्हेल (Balaenoptera edeni) यहां के कुछ अन्य विशिष्ट जीवों में से हैं। बे ऑफ़ बंगाल हॉगफ़िश (Bodianus neilli) एक प्रकार की व्रास मीन है जो पंकिल लैगून राख या उथले तटीय राख में वास करती है। इनके अलावा यहाम कई प्रकार के डॉल्फ़िन झुण्ड भी दिखाई देते हैं, चाहे बॉटल नोज़ डॉल्फ़िन (Tursiops truncatus), पैनट्रॉपिकल धब्बेदार डॉल्फ़िन (Stenella attenuata) या स्पिनर डॉल्फ़िन (Stenella longirostris) हों। टूना एवं डॉल्फ़िन प्रायः एक ही जलक्षेत्र में मिलती हैं। तट के छिछले एवं उष्ण जल में, इरावती डॉल्फ़िन (Orcaella brevirostris) भी मिल सकती हैं। डब्ल्यूसीएस के शोधकर्ताओं के अनुसार बांग्लादेश के सुंदरबन इलाके और बंगाल की खाड़ी के लगे जल क्षेत्र में जहां कम खारा पानी है, वहां हत्यारी व्हेल मछलियों के नाम से कुख्यात अरकास प्रजाति से संबंधित करीब 6,000 इरावदी डॉल्फिनों को देखा गया था। ग्रेट निकोबार बायोस्फ़ियर संरक्षित क्षेत्र में बहुत से जीवों को संरक्षण मिलता है जिनमें से कुछ विशेष हैं: खारे जल का मगर (Crocodylus porosus), जाइंट लेदरबैक समुद्री कछुआ (Dermochelys coriacea), एवं मलायन संदूक कछुआ (Cuora amboinensis kamaroma)। एक अन्य विशिष्ट एवं विश्वप्रसिद्ध बाघ प्रजाति जो विलुप्तप्राय है, रॉयल बंगाल टाइगर, को सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षण मिला हुआ है। यह उद्यान गंगा-सागर-संगम मुहाने पर मैन्ग्रोव के घने जंगलों में स्थित है। बंगाल की खाड़ी के तटीय क्षेत्र खनिजों से भरपूर हैं। श्रीलंका, सेरेन्डिब, या रत्न – द्वीप कहलाता है। वहां के रत्नों में से कुछ प्रमुख है: अमेथिस्ट, फीरोजा, माणिक, नीलम, पुखराज और रक्तमणि, आदि। इनके अलावा गार्नेट व अन्य रत्नों की भारत के ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश राज्यों में काफ़ी पैदाइश है। जनवरी से अक्टूबर माह तक धारा उत्तर दिशा में दक्षिणावर्ती चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय धाराएं या ईस्ट इण्डियन करेंट्स कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी में मॉनसून उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ती है और मई माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह से टकराती है। इसके बाद भारत की मुख्य भूमि के उत्तर-पूर्वी तट पर जून माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक पहुंचती है। वर्ष के शेष भाग में, वामावर्ती धाराएं दक्षिण-पश्चिमी दिशा में चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय शीतकालीन जेट (ईस्ट इण्डियन विन्टर जेट) कहा जाता है। | सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान कहां स्थित है? | {
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} | Where is the Sundarbans National Park located? | Its beauty is made on seeing it.The sea tortoise called Olive Ridley comes in the extinct species, it has been provided an environment for flourishing in Gahirmatha Textiles, Gahirmatha Coast, Odisha.Apart from this, Merlin, Bairakuda, Skipzack Tuna, (katsuwonus pelamis), Yalofin Tuna, Hind-Prashant Hampback Dolphin (Sousa Chinensis), and Balanoptera Edeni are among some other specific creatures here.Bodianus Neilli is a type of Vrass Pisces that resides in Pankil Lagoon ash or shallow coastal ash.Apart from these, many types of dolphins also appear, whether Tursiops Truncatus, Pantropical Dolphin Dolphin (Stenella Attenuata) or Stenella Longirostris.Tuna and dolphins are often found in the same water area.In shallow and warm water of the coast, Orcaella Brevirostris can also be found.According to WCS researchers, around 6,000 Iravadi dolphins related to the infamous Arkas species in the Sundarban area of Bangladesh and where there is less saline water in the water area of Bengal, where there is less saline water, was seen.Many organisms are preserved in the Great Nicobar Biosphere protected area, some of which are special: Crocodylus porosus, giant leatherback sea turtle (dermochelys coriaacea), and Malayan Sanduk tortoise.Another specific and world -famous tiger species, which is extinct, has received protection in the Sunderban National Park.This garden is located in the dense forests of Mangrov at the Ganges-Sagar-Sangam mouth.The coastal areas of the Bay of Bengal are rich in minerals.Sri Lanka, Srendib, or Ratna - is called the island.Some of the gems there are prominent: Amethyst, firoja, ruby, sapphire, topaz and hemorrhage, etc.Apart from these, Garnet and other gems have a lot of birth in Odisha and Andhra Pradesh states of India.From January to October, the streams run clockwise in the north direction, which are called former Indian streams or East Indian Curots.The monsoon in the Bay of Bengal grows in the north-west direction and collides with the Andaman and Nicobar Islands until the international of May.After this, the north-eastern coast of the mainland of India reaches the international of June.In the remaining part of the year, the leftist currents move in the south-western direction, called the former Indian Winter Jet (East Indian Winter Jet). | {
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281 | इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। ओलिव रिडले नामक समुद्री कछुआ विलुप्तप्राय प्रजातियों में आता है, इसको गहीरमाथा सागरीय उद्यान, गहीरमाथा तट, ओडिशा में पनपने लायक वातावरण उपलब्ध कराया गया है। इसके अलावा यहां मैर्लिन, बैराकुडा, स्किपजैक टूना, (Katsuwonus pelamis), यलोफ़िन टूना, हिन्द-प्रशांत हम्पबैक डॉल्फ़िन (Sousa chinensis), एवं ब्राइड्स व्हेल (Balaenoptera edeni) यहां के कुछ अन्य विशिष्ट जीवों में से हैं। बे ऑफ़ बंगाल हॉगफ़िश (Bodianus neilli) एक प्रकार की व्रास मीन है जो पंकिल लैगून राख या उथले तटीय राख में वास करती है। इनके अलावा यहाम कई प्रकार के डॉल्फ़िन झुण्ड भी दिखाई देते हैं, चाहे बॉटल नोज़ डॉल्फ़िन (Tursiops truncatus), पैनट्रॉपिकल धब्बेदार डॉल्फ़िन (Stenella attenuata) या स्पिनर डॉल्फ़िन (Stenella longirostris) हों। टूना एवं डॉल्फ़िन प्रायः एक ही जलक्षेत्र में मिलती हैं। तट के छिछले एवं उष्ण जल में, इरावती डॉल्फ़िन (Orcaella brevirostris) भी मिल सकती हैं। डब्ल्यूसीएस के शोधकर्ताओं के अनुसार बांग्लादेश के सुंदरबन इलाके और बंगाल की खाड़ी के लगे जल क्षेत्र में जहां कम खारा पानी है, वहां हत्यारी व्हेल मछलियों के नाम से कुख्यात अरकास प्रजाति से संबंधित करीब 6,000 इरावदी डॉल्फिनों को देखा गया था। ग्रेट निकोबार बायोस्फ़ियर संरक्षित क्षेत्र में बहुत से जीवों को संरक्षण मिलता है जिनमें से कुछ विशेष हैं: खारे जल का मगर (Crocodylus porosus), जाइंट लेदरबैक समुद्री कछुआ (Dermochelys coriacea), एवं मलायन संदूक कछुआ (Cuora amboinensis kamaroma)। एक अन्य विशिष्ट एवं विश्वप्रसिद्ध बाघ प्रजाति जो विलुप्तप्राय है, रॉयल बंगाल टाइगर, को सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षण मिला हुआ है। यह उद्यान गंगा-सागर-संगम मुहाने पर मैन्ग्रोव के घने जंगलों में स्थित है। बंगाल की खाड़ी के तटीय क्षेत्र खनिजों से भरपूर हैं। श्रीलंका, सेरेन्डिब, या रत्न – द्वीप कहलाता है। वहां के रत्नों में से कुछ प्रमुख है: अमेथिस्ट, फीरोजा, माणिक, नीलम, पुखराज और रक्तमणि, आदि। इनके अलावा गार्नेट व अन्य रत्नों की भारत के ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश राज्यों में काफ़ी पैदाइश है। जनवरी से अक्टूबर माह तक धारा उत्तर दिशा में दक्षिणावर्ती चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय धाराएं या ईस्ट इण्डियन करेंट्स कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी में मॉनसून उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ती है और मई माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह से टकराती है। इसके बाद भारत की मुख्य भूमि के उत्तर-पूर्वी तट पर जून माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक पहुंचती है। वर्ष के शेष भाग में, वामावर्ती धाराएं दक्षिण-पश्चिमी दिशा में चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय शीतकालीन जेट (ईस्ट इण्डियन विन्टर जेट) कहा जाता है। | गार्नेट और अन्य रत्नों का उत्पादन भारत के किस राज्य में किया जाता है ? | {
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"ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश"
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} | Garnet and other gems are produced in which state of India? | Its beauty is made on seeing it.The sea tortoise called Olive Ridley comes in the extinct species, it has been provided an environment for flourishing in Gahirmatha Textiles, Gahirmatha Coast, Odisha.Apart from this, Merlin, Bairakuda, Skipzack Tuna, (katsuwonus pelamis), Yalofin Tuna, Hind-Prashant Hampback Dolphin (Sousa Chinensis), and Balanoptera Edeni are among some other specific creatures here.Bodianus Neilli is a type of Vrass Pisces that resides in Pankil Lagoon ash or shallow coastal ash.Apart from these, many types of dolphins also appear, whether Tursiops Truncatus, Pantropical Dolphin Dolphin (Stenella Attenuata) or Stenella Longirostris.Tuna and dolphins are often found in the same water area.In shallow and warm water of the coast, Orcaella Brevirostris can also be found.According to WCS researchers, around 6,000 Iravadi dolphins related to the infamous Arkas species in the Sundarban area of Bangladesh and where there is less saline water in the water area of Bengal, where there is less saline water, was seen.Many organisms are preserved in the Great Nicobar Biosphere protected area, some of which are special: Crocodylus porosus, giant leatherback sea turtle (dermochelys coriaacea), and Malayan Sanduk tortoise.Another specific and world -famous tiger species, which is extinct, has received protection in the Sunderban National Park.This garden is located in the dense forests of Mangrov at the Ganges-Sagar-Sangam mouth.The coastal areas of the Bay of Bengal are rich in minerals.Sri Lanka, Srendib, or Ratna - is called the island.Some of the gems there are prominent: Amethyst, firoja, ruby, sapphire, topaz and hemorrhage, etc.Apart from these, Garnet and other gems have a lot of birth in Odisha and Andhra Pradesh states of India.From January to October, the streams run clockwise in the north direction, which are called former Indian streams or East Indian Curots.The monsoon in the Bay of Bengal grows in the north-west direction and collides with the Andaman and Nicobar Islands until the international of May.After this, the north-eastern coast of the mainland of India reaches the international of June.In the remaining part of the year, the leftist currents move in the south-western direction, called the former Indian Winter Jet (East Indian Winter Jet). | {
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"Odisha and Andhra Pradesh."
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282 | इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। ओलिव रिडले नामक समुद्री कछुआ विलुप्तप्राय प्रजातियों में आता है, इसको गहीरमाथा सागरीय उद्यान, गहीरमाथा तट, ओडिशा में पनपने लायक वातावरण उपलब्ध कराया गया है। इसके अलावा यहां मैर्लिन, बैराकुडा, स्किपजैक टूना, (Katsuwonus pelamis), यलोफ़िन टूना, हिन्द-प्रशांत हम्पबैक डॉल्फ़िन (Sousa chinensis), एवं ब्राइड्स व्हेल (Balaenoptera edeni) यहां के कुछ अन्य विशिष्ट जीवों में से हैं। बे ऑफ़ बंगाल हॉगफ़िश (Bodianus neilli) एक प्रकार की व्रास मीन है जो पंकिल लैगून राख या उथले तटीय राख में वास करती है। इनके अलावा यहाम कई प्रकार के डॉल्फ़िन झुण्ड भी दिखाई देते हैं, चाहे बॉटल नोज़ डॉल्फ़िन (Tursiops truncatus), पैनट्रॉपिकल धब्बेदार डॉल्फ़िन (Stenella attenuata) या स्पिनर डॉल्फ़िन (Stenella longirostris) हों। टूना एवं डॉल्फ़िन प्रायः एक ही जलक्षेत्र में मिलती हैं। तट के छिछले एवं उष्ण जल में, इरावती डॉल्फ़िन (Orcaella brevirostris) भी मिल सकती हैं। डब्ल्यूसीएस के शोधकर्ताओं के अनुसार बांग्लादेश के सुंदरबन इलाके और बंगाल की खाड़ी के लगे जल क्षेत्र में जहां कम खारा पानी है, वहां हत्यारी व्हेल मछलियों के नाम से कुख्यात अरकास प्रजाति से संबंधित करीब 6,000 इरावदी डॉल्फिनों को देखा गया था। ग्रेट निकोबार बायोस्फ़ियर संरक्षित क्षेत्र में बहुत से जीवों को संरक्षण मिलता है जिनमें से कुछ विशेष हैं: खारे जल का मगर (Crocodylus porosus), जाइंट लेदरबैक समुद्री कछुआ (Dermochelys coriacea), एवं मलायन संदूक कछुआ (Cuora amboinensis kamaroma)। एक अन्य विशिष्ट एवं विश्वप्रसिद्ध बाघ प्रजाति जो विलुप्तप्राय है, रॉयल बंगाल टाइगर, को सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षण मिला हुआ है। यह उद्यान गंगा-सागर-संगम मुहाने पर मैन्ग्रोव के घने जंगलों में स्थित है। बंगाल की खाड़ी के तटीय क्षेत्र खनिजों से भरपूर हैं। श्रीलंका, सेरेन्डिब, या रत्न – द्वीप कहलाता है। वहां के रत्नों में से कुछ प्रमुख है: अमेथिस्ट, फीरोजा, माणिक, नीलम, पुखराज और रक्तमणि, आदि। इनके अलावा गार्नेट व अन्य रत्नों की भारत के ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश राज्यों में काफ़ी पैदाइश है। जनवरी से अक्टूबर माह तक धारा उत्तर दिशा में दक्षिणावर्ती चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय धाराएं या ईस्ट इण्डियन करेंट्स कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी में मॉनसून उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ती है और मई माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह से टकराती है। इसके बाद भारत की मुख्य भूमि के उत्तर-पूर्वी तट पर जून माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक पहुंचती है। वर्ष के शेष भाग में, वामावर्ती धाराएं दक्षिण-पश्चिमी दिशा में चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय शीतकालीन जेट (ईस्ट इण्डियन विन्टर जेट) कहा जाता है। | बंगाल की खाड़ी में हत्यारे व्हेल मछलि के नाम से प्रख्यात आर्कस प्रजाति के कितने इरावदी डॉल्फ़िन मौजूद हैं? | {
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"6,000 इरावदी"
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} | How many Irrawaddy dolphins of the genus Arcus, popularly known as killer whales, are present in the Bay of Bengal? | Its beauty is made on seeing it.The sea tortoise called Olive Ridley comes in the extinct species, it has been provided an environment for flourishing in Gahirmatha Textiles, Gahirmatha Coast, Odisha.Apart from this, Merlin, Bairakuda, Skipzack Tuna, (katsuwonus pelamis), Yalofin Tuna, Hind-Prashant Hampback Dolphin (Sousa Chinensis), and Balanoptera Edeni are among some other specific creatures here.Bodianus Neilli is a type of Vrass Pisces that resides in Pankil Lagoon ash or shallow coastal ash.Apart from these, many types of dolphins also appear, whether Tursiops Truncatus, Pantropical Dolphin Dolphin (Stenella Attenuata) or Stenella Longirostris.Tuna and dolphins are often found in the same water area.In shallow and warm water of the coast, Orcaella Brevirostris can also be found.According to WCS researchers, around 6,000 Iravadi dolphins related to the infamous Arkas species in the Sundarban area of Bangladesh and where there is less saline water in the water area of Bengal, where there is less saline water, was seen.Many organisms are preserved in the Great Nicobar Biosphere protected area, some of which are special: Crocodylus porosus, giant leatherback sea turtle (dermochelys coriaacea), and Malayan Sanduk tortoise.Another specific and world -famous tiger species, which is extinct, has received protection in the Sunderban National Park.This garden is located in the dense forests of Mangrov at the Ganges-Sagar-Sangam mouth.The coastal areas of the Bay of Bengal are rich in minerals.Sri Lanka, Srendib, or Ratna - is called the island.Some of the gems there are prominent: Amethyst, firoja, ruby, sapphire, topaz and hemorrhage, etc.Apart from these, Garnet and other gems have a lot of birth in Odisha and Andhra Pradesh states of India.From January to October, the streams run clockwise in the north direction, which are called former Indian streams or East Indian Curots.The monsoon in the Bay of Bengal grows in the north-west direction and collides with the Andaman and Nicobar Islands until the international of May.After this, the north-eastern coast of the mainland of India reaches the international of June.In the remaining part of the year, the leftist currents move in the south-western direction, called the former Indian Winter Jet (East Indian Winter Jet). | {
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"6,000 Irrawaddy"
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283 | इसकी सुंदरता देखते ही बनती है। ओलिव रिडले नामक समुद्री कछुआ विलुप्तप्राय प्रजातियों में आता है, इसको गहीरमाथा सागरीय उद्यान, गहीरमाथा तट, ओडिशा में पनपने लायक वातावरण उपलब्ध कराया गया है। इसके अलावा यहां मैर्लिन, बैराकुडा, स्किपजैक टूना, (Katsuwonus pelamis), यलोफ़िन टूना, हिन्द-प्रशांत हम्पबैक डॉल्फ़िन (Sousa chinensis), एवं ब्राइड्स व्हेल (Balaenoptera edeni) यहां के कुछ अन्य विशिष्ट जीवों में से हैं। बे ऑफ़ बंगाल हॉगफ़िश (Bodianus neilli) एक प्रकार की व्रास मीन है जो पंकिल लैगून राख या उथले तटीय राख में वास करती है। इनके अलावा यहाम कई प्रकार के डॉल्फ़िन झुण्ड भी दिखाई देते हैं, चाहे बॉटल नोज़ डॉल्फ़िन (Tursiops truncatus), पैनट्रॉपिकल धब्बेदार डॉल्फ़िन (Stenella attenuata) या स्पिनर डॉल्फ़िन (Stenella longirostris) हों। टूना एवं डॉल्फ़िन प्रायः एक ही जलक्षेत्र में मिलती हैं। तट के छिछले एवं उष्ण जल में, इरावती डॉल्फ़िन (Orcaella brevirostris) भी मिल सकती हैं। डब्ल्यूसीएस के शोधकर्ताओं के अनुसार बांग्लादेश के सुंदरबन इलाके और बंगाल की खाड़ी के लगे जल क्षेत्र में जहां कम खारा पानी है, वहां हत्यारी व्हेल मछलियों के नाम से कुख्यात अरकास प्रजाति से संबंधित करीब 6,000 इरावदी डॉल्फिनों को देखा गया था। ग्रेट निकोबार बायोस्फ़ियर संरक्षित क्षेत्र में बहुत से जीवों को संरक्षण मिलता है जिनमें से कुछ विशेष हैं: खारे जल का मगर (Crocodylus porosus), जाइंट लेदरबैक समुद्री कछुआ (Dermochelys coriacea), एवं मलायन संदूक कछुआ (Cuora amboinensis kamaroma)। एक अन्य विशिष्ट एवं विश्वप्रसिद्ध बाघ प्रजाति जो विलुप्तप्राय है, रॉयल बंगाल टाइगर, को सुंदरबन राष्ट्रीय उद्यान में संरक्षण मिला हुआ है। यह उद्यान गंगा-सागर-संगम मुहाने पर मैन्ग्रोव के घने जंगलों में स्थित है। बंगाल की खाड़ी के तटीय क्षेत्र खनिजों से भरपूर हैं। श्रीलंका, सेरेन्डिब, या रत्न – द्वीप कहलाता है। वहां के रत्नों में से कुछ प्रमुख है: अमेथिस्ट, फीरोजा, माणिक, नीलम, पुखराज और रक्तमणि, आदि। इनके अलावा गार्नेट व अन्य रत्नों की भारत के ओडिशा एवं आंध्र प्रदेश राज्यों में काफ़ी पैदाइश है। जनवरी से अक्टूबर माह तक धारा उत्तर दिशा में दक्षिणावर्ती चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय धाराएं या ईस्ट इण्डियन करेंट्स कहा जाता है। बंगाल की खाड़ी में मॉनसून उत्तर-पश्चिम दिशा में बढ़ती है और मई माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह से टकराती है। इसके बाद भारत की मुख्य भूमि के उत्तर-पूर्वी तट पर जून माह के अन्तर्राष्ट्रीय तक पहुंचती है। वर्ष के शेष भाग में, वामावर्ती धाराएं दक्षिण-पश्चिमी दिशा में चलती हैं, जिन्हें पूर्व भारतीय शीतकालीन जेट (ईस्ट इण्डियन विन्टर जेट) कहा जाता है। | भारत के पूर्वी क्षेत्र में चक्रवात किस महीने में बनते है ? | {
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} | In which month is a cyclone formed in the eastern region of India? | Its beauty is made on seeing it.The sea tortoise called Olive Ridley comes in the extinct species, it has been provided an environment for flourishing in Gahirmatha Textiles, Gahirmatha Coast, Odisha.Apart from this, Merlin, Bairakuda, Skipzack Tuna, (katsuwonus pelamis), Yalofin Tuna, Hind-Prashant Hampback Dolphin (Sousa Chinensis), and Balanoptera Edeni are among some other specific creatures here.Bodianus Neilli is a type of Vrass Pisces that resides in Pankil Lagoon ash or shallow coastal ash.Apart from these, many types of dolphins also appear, whether Tursiops Truncatus, Pantropical Dolphin Dolphin (Stenella Attenuata) or Stenella Longirostris.Tuna and dolphins are often found in the same water area.In shallow and warm water of the coast, Orcaella Brevirostris can also be found.According to WCS researchers, around 6,000 Iravadi dolphins related to the infamous Arkas species in the Sundarban area of Bangladesh and where there is less saline water in the water area of Bengal, where there is less saline water, was seen.Many organisms are preserved in the Great Nicobar Biosphere protected area, some of which are special: Crocodylus porosus, giant leatherback sea turtle (dermochelys coriaacea), and Malayan Sanduk tortoise.Another specific and world -famous tiger species, which is extinct, has received protection in the Sunderban National Park.This garden is located in the dense forests of Mangrov at the Ganges-Sagar-Sangam mouth.The coastal areas of the Bay of Bengal are rich in minerals.Sri Lanka, Srendib, or Ratna - is called the island.Some of the gems there are prominent: Amethyst, firoja, ruby, sapphire, topaz and hemorrhage, etc.Apart from these, Garnet and other gems have a lot of birth in Odisha and Andhra Pradesh states of India.From January to October, the streams run clockwise in the north direction, which are called former Indian streams or East Indian Curots.The monsoon in the Bay of Bengal grows in the north-west direction and collides with the Andaman and Nicobar Islands until the international of May.After this, the north-eastern coast of the mainland of India reaches the international of June.In the remaining part of the year, the leftist currents move in the south-western direction, called the former Indian Winter Jet (East Indian Winter Jet). | {
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284 | इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्त्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजीराजे भोसले ने मराठा साम्राज्य की नींव डाल दी और एक विशाल साम्राज्य खडा किया। उनके पश्चात मराठा रियासत के सरदार बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होळकर, ग्वालियर के शिंदे और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था। उन्होंने मुगलोंको परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया। ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो मुंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सातारा और कोल्हापुर थे, सातारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा प्रदेश वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर टिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बी जी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी मुंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व मुंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषायी तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, मुंबई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था। १९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी मुंबई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। | शिवाजीराव भोसले ने किस साम्राज्य की नींव रखी थी? | {
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"मराठा साम्राज्य"
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753
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} | Shivajirao Bhosale laid the foundation of which empire? | Apart from this, before capturing Portugal in the present region of Mumbai, the rule of the Sultanate of Gujarat and the Farukhi dynasty ruled the Khandesh region between 1382 and 1801 before the Mughal merger.Malik Ambar 1807–1424 was the Regent of the Nizamshahi dynasty of Ahmednagar.During this period, he has increased the strength and power of Murtaza Nizam Shah and stands a large army.Malik Amber is asked to be united in the Amber Deccan region to be united.Malik Ambar was the ambition of his son -in -law law to sit on the throne who helped Shah Jahan wrestling power in Delhi from his stepmother, Nur Jahan.By the 17th century, Shahaji Bhosle, an ambitious local, tried to establish an ambitious local, independent rule in the service of Mughals and Adil Shah of Bijapur.His son Shivajiraje Bhosle laid the foundation of the Maratha Empire and built a huge empire.He was followed by Gaikwad of Sardar Baroda of Maratha princely state, Hokar of Indore, Shinde of Gwalior and Peshwas (Prime Ministers).He defeated the Mughals and conquered large regions in the northern and central parts of the Indian subcontinent.After the defeat in the third battle of Panipat in 171, Maratha was restored to his supremacy and ruled Central and North India including New Delhi by the end of the eighteenth century.The Third Anglo Maratha War (1814–1614) led the country to end the Maratha Empire and the East India Company in 1819.The British Northern Deccan is spread over an area from Karachi in Pakistan which is part of the Mumbai Presidency.The number of Maratha states has to maintain autonomy in return to accept British suzerainty, maintained as princely states.At present, the largest princely states in the region of Maharashtra were Nagpur, Satara and Kolhapur, Bombay Presidency was captured in Satara 14 and captured in 1853 to become a later part of Nagpur province, central provinces.It is part of the Nizam of the state of Hyderabad, captured by the British in 1853 and the middle province was captured in 1903 which was Barar.However, Marathwada state is currently a major part of Maharashtra, Nizam remained a part of the state of Hyderabad during the British period.The British rule was marked by social reforms and basic facilities of their discriminatory policies as well as improving rebellion.In the early 20th century, the struggle for independence took shape under the leadership of extremists like Bal Gangadhar Tilak and Vinayak Damodar Savarkar like extremists and Justices Mahadev Govind Ranade, Gopal Krishna Gokhale, Ferozeshah Mehta and Dadabhai Naoroji.In 1962, a non -violent civil disobedience movement and attacks in the field of Quit India Movement were called by Gandhi.The ultimatum was given to the British in Mumbai for 'Quit India' and the transfer of power and India's independence in 1979.BG Kher was the first Chief Minister of the triangular multilingual Mumbai Presidency.After India's independence, the Deccan state of America, including Kolhapur, was made from the former Mumbai Presidency in 1950 which was integrated into the state of Bombay.In 1956, the State Reorganization Act was reorganized by the Indian states on the linguistic lines and the Mumbai Presidency has been extended by the state of Central Province and Barar from the then Hyderabad state and Vidarbha region to Marathwada (Aurangabad Division) mainly by Marathi speaking areas.In addition, Mysore was handed over to the southern part of the state of Mumbai.From 1957–1955, the people of Maharashtra were strongly protested against the state of Maharashtra and the United Maharashtra Committee led by Dr. Gopalrao Khedkar.The Mahagujarath movement was also launched for a separate state of Gujarat.Gopalrao Khedkar, SMJoshi, S.A.Dange, P.K.Atre and other leaders fought Mumbai for a separate state of Maharashtra with Mumbai as their capital. | {
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"The Maratha Empire"
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285 | इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्त्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजीराजे भोसले ने मराठा साम्राज्य की नींव डाल दी और एक विशाल साम्राज्य खडा किया। उनके पश्चात मराठा रियासत के सरदार बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होळकर, ग्वालियर के शिंदे और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था। उन्होंने मुगलोंको परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया। ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो मुंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सातारा और कोल्हापुर थे, सातारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा प्रदेश वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर टिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बी जी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी मुंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व मुंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषायी तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, मुंबई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था। १९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी मुंबई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। | पुर्तगाल के कब्जा किए जाने से पहले मुंबई पर किसका शासन था? | {
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} | Who ruled Mumbai before it was captured by the Portuguese? | Apart from this, before capturing Portugal in the present region of Mumbai, the rule of the Sultanate of Gujarat and the Farukhi dynasty ruled the Khandesh region between 1382 and 1801 before the Mughal merger.Malik Ambar 1807–1424 was the Regent of the Nizamshahi dynasty of Ahmednagar.During this period, he has increased the strength and power of Murtaza Nizam Shah and stands a large army.Malik Amber is asked to be united in the Amber Deccan region to be united.Malik Ambar was the ambition of his son -in -law law to sit on the throne who helped Shah Jahan wrestling power in Delhi from his stepmother, Nur Jahan.By the 17th century, Shahaji Bhosle, an ambitious local, tried to establish an ambitious local, independent rule in the service of Mughals and Adil Shah of Bijapur.His son Shivajiraje Bhosle laid the foundation of the Maratha Empire and built a huge empire.He was followed by Gaikwad of Sardar Baroda of Maratha princely state, Hokar of Indore, Shinde of Gwalior and Peshwas (Prime Ministers).He defeated the Mughals and conquered large regions in the northern and central parts of the Indian subcontinent.After the defeat in the third battle of Panipat in 171, Maratha was restored to his supremacy and ruled Central and North India including New Delhi by the end of the eighteenth century.The Third Anglo Maratha War (1814–1614) led the country to end the Maratha Empire and the East India Company in 1819.The British Northern Deccan is spread over an area from Karachi in Pakistan which is part of the Mumbai Presidency.The number of Maratha states has to maintain autonomy in return to accept British suzerainty, maintained as princely states.At present, the largest princely states in the region of Maharashtra were Nagpur, Satara and Kolhapur, Bombay Presidency was captured in Satara 14 and captured in 1853 to become a later part of Nagpur province, central provinces.It is part of the Nizam of the state of Hyderabad, captured by the British in 1853 and the middle province was captured in 1903 which was Barar.However, Marathwada state is currently a major part of Maharashtra, Nizam remained a part of the state of Hyderabad during the British period.The British rule was marked by social reforms and basic facilities of their discriminatory policies as well as improving rebellion.In the early 20th century, the struggle for independence took shape under the leadership of extremists like Bal Gangadhar Tilak and Vinayak Damodar Savarkar like extremists and Justices Mahadev Govind Ranade, Gopal Krishna Gokhale, Ferozeshah Mehta and Dadabhai Naoroji.In 1962, a non -violent civil disobedience movement and attacks in the field of Quit India Movement were called by Gandhi.The ultimatum was given to the British in Mumbai for 'Quit India' and the transfer of power and India's independence in 1979.BG Kher was the first Chief Minister of the triangular multilingual Mumbai Presidency.After India's independence, the Deccan state of America, including Kolhapur, was made from the former Mumbai Presidency in 1950 which was integrated into the state of Bombay.In 1956, the State Reorganization Act was reorganized by the Indian states on the linguistic lines and the Mumbai Presidency has been extended by the state of Central Province and Barar from the then Hyderabad state and Vidarbha region to Marathwada (Aurangabad Division) mainly by Marathi speaking areas.In addition, Mysore was handed over to the southern part of the state of Mumbai.From 1957–1955, the people of Maharashtra were strongly protested against the state of Maharashtra and the United Maharashtra Committee led by Dr. Gopalrao Khedkar.The Mahagujarath movement was also launched for a separate state of Gujarat.Gopalrao Khedkar, SMJoshi, S.A.Dange, P.K.Atre and other leaders fought Mumbai for a separate state of Maharashtra with Mumbai as their capital. | {
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286 | इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्त्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजीराजे भोसले ने मराठा साम्राज्य की नींव डाल दी और एक विशाल साम्राज्य खडा किया। उनके पश्चात मराठा रियासत के सरदार बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होळकर, ग्वालियर के शिंदे और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था। उन्होंने मुगलोंको परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया। ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो मुंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सातारा और कोल्हापुर थे, सातारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा प्रदेश वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर टिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बी जी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी मुंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व मुंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषायी तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, मुंबई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था। १९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी मुंबई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। | कर्नाटक को छोड़कर महाराष्ट्र में शामिल होने वाले गाँव की संख्या कितनी थी ? | {
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} | What was the number of villages that were included in Maharashtra excluding Karnataka? | Apart from this, before capturing Portugal in the present region of Mumbai, the rule of the Sultanate of Gujarat and the Farukhi dynasty ruled the Khandesh region between 1382 and 1801 before the Mughal merger.Malik Ambar 1807–1424 was the Regent of the Nizamshahi dynasty of Ahmednagar.During this period, he has increased the strength and power of Murtaza Nizam Shah and stands a large army.Malik Amber is asked to be united in the Amber Deccan region to be united.Malik Ambar was the ambition of his son -in -law law to sit on the throne who helped Shah Jahan wrestling power in Delhi from his stepmother, Nur Jahan.By the 17th century, Shahaji Bhosle, an ambitious local, tried to establish an ambitious local, independent rule in the service of Mughals and Adil Shah of Bijapur.His son Shivajiraje Bhosle laid the foundation of the Maratha Empire and built a huge empire.He was followed by Gaikwad of Sardar Baroda of Maratha princely state, Hokar of Indore, Shinde of Gwalior and Peshwas (Prime Ministers).He defeated the Mughals and conquered large regions in the northern and central parts of the Indian subcontinent.After the defeat in the third battle of Panipat in 171, Maratha was restored to his supremacy and ruled Central and North India including New Delhi by the end of the eighteenth century.The Third Anglo Maratha War (1814–1614) led the country to end the Maratha Empire and the East India Company in 1819.The British Northern Deccan is spread over an area from Karachi in Pakistan which is part of the Mumbai Presidency.The number of Maratha states has to maintain autonomy in return to accept British suzerainty, maintained as princely states.At present, the largest princely states in the region of Maharashtra were Nagpur, Satara and Kolhapur, Bombay Presidency was captured in Satara 14 and captured in 1853 to become a later part of Nagpur province, central provinces.It is part of the Nizam of the state of Hyderabad, captured by the British in 1853 and the middle province was captured in 1903 which was Barar.However, Marathwada state is currently a major part of Maharashtra, Nizam remained a part of the state of Hyderabad during the British period.The British rule was marked by social reforms and basic facilities of their discriminatory policies as well as improving rebellion.In the early 20th century, the struggle for independence took shape under the leadership of extremists like Bal Gangadhar Tilak and Vinayak Damodar Savarkar like extremists and Justices Mahadev Govind Ranade, Gopal Krishna Gokhale, Ferozeshah Mehta and Dadabhai Naoroji.In 1962, a non -violent civil disobedience movement and attacks in the field of Quit India Movement were called by Gandhi.The ultimatum was given to the British in Mumbai for 'Quit India' and the transfer of power and India's independence in 1979.BG Kher was the first Chief Minister of the triangular multilingual Mumbai Presidency.After India's independence, the Deccan state of America, including Kolhapur, was made from the former Mumbai Presidency in 1950 which was integrated into the state of Bombay.In 1956, the State Reorganization Act was reorganized by the Indian states on the linguistic lines and the Mumbai Presidency has been extended by the state of Central Province and Barar from the then Hyderabad state and Vidarbha region to Marathwada (Aurangabad Division) mainly by Marathi speaking areas.In addition, Mysore was handed over to the southern part of the state of Mumbai.From 1957–1955, the people of Maharashtra were strongly protested against the state of Maharashtra and the United Maharashtra Committee led by Dr. Gopalrao Khedkar.The Mahagujarath movement was also launched for a separate state of Gujarat.Gopalrao Khedkar, SMJoshi, S.A.Dange, P.K.Atre and other leaders fought Mumbai for a separate state of Maharashtra with Mumbai as their capital. | {
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287 | इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्त्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजीराजे भोसले ने मराठा साम्राज्य की नींव डाल दी और एक विशाल साम्राज्य खडा किया। उनके पश्चात मराठा रियासत के सरदार बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होळकर, ग्वालियर के शिंदे और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था। उन्होंने मुगलोंको परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया। ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो मुंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सातारा और कोल्हापुर थे, सातारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा प्रदेश वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर टिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बी जी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी मुंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व मुंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषायी तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, मुंबई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था। १९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी मुंबई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। | मलिक अंबर 16071626 किस प्रदेश के शासक थे? | {
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"अहमदनगर"
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} | Malik Ambar 16071626 was the ruler of which province? | Apart from this, before capturing Portugal in the present region of Mumbai, the rule of the Sultanate of Gujarat and the Farukhi dynasty ruled the Khandesh region between 1382 and 1801 before the Mughal merger.Malik Ambar 1807–1424 was the Regent of the Nizamshahi dynasty of Ahmednagar.During this period, he has increased the strength and power of Murtaza Nizam Shah and stands a large army.Malik Amber is asked to be united in the Amber Deccan region to be united.Malik Ambar was the ambition of his son -in -law law to sit on the throne who helped Shah Jahan wrestling power in Delhi from his stepmother, Nur Jahan.By the 17th century, Shahaji Bhosle, an ambitious local, tried to establish an ambitious local, independent rule in the service of Mughals and Adil Shah of Bijapur.His son Shivajiraje Bhosle laid the foundation of the Maratha Empire and built a huge empire.He was followed by Gaikwad of Sardar Baroda of Maratha princely state, Hokar of Indore, Shinde of Gwalior and Peshwas (Prime Ministers).He defeated the Mughals and conquered large regions in the northern and central parts of the Indian subcontinent.After the defeat in the third battle of Panipat in 171, Maratha was restored to his supremacy and ruled Central and North India including New Delhi by the end of the eighteenth century.The Third Anglo Maratha War (1814–1614) led the country to end the Maratha Empire and the East India Company in 1819.The British Northern Deccan is spread over an area from Karachi in Pakistan which is part of the Mumbai Presidency.The number of Maratha states has to maintain autonomy in return to accept British suzerainty, maintained as princely states.At present, the largest princely states in the region of Maharashtra were Nagpur, Satara and Kolhapur, Bombay Presidency was captured in Satara 14 and captured in 1853 to become a later part of Nagpur province, central provinces.It is part of the Nizam of the state of Hyderabad, captured by the British in 1853 and the middle province was captured in 1903 which was Barar.However, Marathwada state is currently a major part of Maharashtra, Nizam remained a part of the state of Hyderabad during the British period.The British rule was marked by social reforms and basic facilities of their discriminatory policies as well as improving rebellion.In the early 20th century, the struggle for independence took shape under the leadership of extremists like Bal Gangadhar Tilak and Vinayak Damodar Savarkar like extremists and Justices Mahadev Govind Ranade, Gopal Krishna Gokhale, Ferozeshah Mehta and Dadabhai Naoroji.In 1962, a non -violent civil disobedience movement and attacks in the field of Quit India Movement were called by Gandhi.The ultimatum was given to the British in Mumbai for 'Quit India' and the transfer of power and India's independence in 1979.BG Kher was the first Chief Minister of the triangular multilingual Mumbai Presidency.After India's independence, the Deccan state of America, including Kolhapur, was made from the former Mumbai Presidency in 1950 which was integrated into the state of Bombay.In 1956, the State Reorganization Act was reorganized by the Indian states on the linguistic lines and the Mumbai Presidency has been extended by the state of Central Province and Barar from the then Hyderabad state and Vidarbha region to Marathwada (Aurangabad Division) mainly by Marathi speaking areas.In addition, Mysore was handed over to the southern part of the state of Mumbai.From 1957–1955, the people of Maharashtra were strongly protested against the state of Maharashtra and the United Maharashtra Committee led by Dr. Gopalrao Khedkar.The Mahagujarath movement was also launched for a separate state of Gujarat.Gopalrao Khedkar, SMJoshi, S.A.Dange, P.K.Atre and other leaders fought Mumbai for a separate state of Maharashtra with Mumbai as their capital. | {
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"Ahmednagar"
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288 | इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्त्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजीराजे भोसले ने मराठा साम्राज्य की नींव डाल दी और एक विशाल साम्राज्य खडा किया। उनके पश्चात मराठा रियासत के सरदार बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होळकर, ग्वालियर के शिंदे और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था। उन्होंने मुगलोंको परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया। ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो मुंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सातारा और कोल्हापुर थे, सातारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा प्रदेश वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर टिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बी जी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी मुंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व मुंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषायी तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, मुंबई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था। १९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी मुंबई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। | पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई थी? | {
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"१७६१"
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1072
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} | When was the third battle of Panipat fought? | Apart from this, before capturing Portugal in the present region of Mumbai, the rule of the Sultanate of Gujarat and the Farukhi dynasty ruled the Khandesh region between 1382 and 1801 before the Mughal merger.Malik Ambar 1807–1424 was the Regent of the Nizamshahi dynasty of Ahmednagar.During this period, he has increased the strength and power of Murtaza Nizam Shah and stands a large army.Malik Amber is asked to be united in the Amber Deccan region to be united.Malik Ambar was the ambition of his son -in -law law to sit on the throne who helped Shah Jahan wrestling power in Delhi from his stepmother, Nur Jahan.By the 17th century, Shahaji Bhosle, an ambitious local, tried to establish an ambitious local, independent rule in the service of Mughals and Adil Shah of Bijapur.His son Shivajiraje Bhosle laid the foundation of the Maratha Empire and built a huge empire.He was followed by Gaikwad of Sardar Baroda of Maratha princely state, Hokar of Indore, Shinde of Gwalior and Peshwas (Prime Ministers).He defeated the Mughals and conquered large regions in the northern and central parts of the Indian subcontinent.After the defeat in the third battle of Panipat in 171, Maratha was restored to his supremacy and ruled Central and North India including New Delhi by the end of the eighteenth century.The Third Anglo Maratha War (1814–1614) led the country to end the Maratha Empire and the East India Company in 1819.The British Northern Deccan is spread over an area from Karachi in Pakistan which is part of the Mumbai Presidency.The number of Maratha states has to maintain autonomy in return to accept British suzerainty, maintained as princely states.At present, the largest princely states in the region of Maharashtra were Nagpur, Satara and Kolhapur, Bombay Presidency was captured in Satara 14 and captured in 1853 to become a later part of Nagpur province, central provinces.It is part of the Nizam of the state of Hyderabad, captured by the British in 1853 and the middle province was captured in 1903 which was Barar.However, Marathwada state is currently a major part of Maharashtra, Nizam remained a part of the state of Hyderabad during the British period.The British rule was marked by social reforms and basic facilities of their discriminatory policies as well as improving rebellion.In the early 20th century, the struggle for independence took shape under the leadership of extremists like Bal Gangadhar Tilak and Vinayak Damodar Savarkar like extremists and Justices Mahadev Govind Ranade, Gopal Krishna Gokhale, Ferozeshah Mehta and Dadabhai Naoroji.In 1962, a non -violent civil disobedience movement and attacks in the field of Quit India Movement were called by Gandhi.The ultimatum was given to the British in Mumbai for 'Quit India' and the transfer of power and India's independence in 1979.BG Kher was the first Chief Minister of the triangular multilingual Mumbai Presidency.After India's independence, the Deccan state of America, including Kolhapur, was made from the former Mumbai Presidency in 1950 which was integrated into the state of Bombay.In 1956, the State Reorganization Act was reorganized by the Indian states on the linguistic lines and the Mumbai Presidency has been extended by the state of Central Province and Barar from the then Hyderabad state and Vidarbha region to Marathwada (Aurangabad Division) mainly by Marathi speaking areas.In addition, Mysore was handed over to the southern part of the state of Mumbai.From 1957–1955, the people of Maharashtra were strongly protested against the state of Maharashtra and the United Maharashtra Committee led by Dr. Gopalrao Khedkar.The Mahagujarath movement was also launched for a separate state of Gujarat.Gopalrao Khedkar, SMJoshi, S.A.Dange, P.K.Atre and other leaders fought Mumbai for a separate state of Maharashtra with Mumbai as their capital. | {
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"1761"
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289 | इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्त्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजीराजे भोसले ने मराठा साम्राज्य की नींव डाल दी और एक विशाल साम्राज्य खडा किया। उनके पश्चात मराठा रियासत के सरदार बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होळकर, ग्वालियर के शिंदे और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था। उन्होंने मुगलोंको परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया। ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो मुंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सातारा और कोल्हापुर थे, सातारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा प्रदेश वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर टिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बी जी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी मुंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व मुंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषायी तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, मुंबई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था। १९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी मुंबई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। | मुंबई राज्य को महाराष्ट्र और गुजरात के नए राज्यों में विभाजित कब विभाजित किया गया था ? | {
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} | When was the state of Mumbai divided into the new states of Maharashtra and Gujarat? | Apart from this, before capturing Portugal in the present region of Mumbai, the rule of the Sultanate of Gujarat and the Farukhi dynasty ruled the Khandesh region between 1382 and 1801 before the Mughal merger.Malik Ambar 1807–1424 was the Regent of the Nizamshahi dynasty of Ahmednagar.During this period, he has increased the strength and power of Murtaza Nizam Shah and stands a large army.Malik Amber is asked to be united in the Amber Deccan region to be united.Malik Ambar was the ambition of his son -in -law law to sit on the throne who helped Shah Jahan wrestling power in Delhi from his stepmother, Nur Jahan.By the 17th century, Shahaji Bhosle, an ambitious local, tried to establish an ambitious local, independent rule in the service of Mughals and Adil Shah of Bijapur.His son Shivajiraje Bhosle laid the foundation of the Maratha Empire and built a huge empire.He was followed by Gaikwad of Sardar Baroda of Maratha princely state, Hokar of Indore, Shinde of Gwalior and Peshwas (Prime Ministers).He defeated the Mughals and conquered large regions in the northern and central parts of the Indian subcontinent.After the defeat in the third battle of Panipat in 171, Maratha was restored to his supremacy and ruled Central and North India including New Delhi by the end of the eighteenth century.The Third Anglo Maratha War (1814–1614) led the country to end the Maratha Empire and the East India Company in 1819.The British Northern Deccan is spread over an area from Karachi in Pakistan which is part of the Mumbai Presidency.The number of Maratha states has to maintain autonomy in return to accept British suzerainty, maintained as princely states.At present, the largest princely states in the region of Maharashtra were Nagpur, Satara and Kolhapur, Bombay Presidency was captured in Satara 14 and captured in 1853 to become a later part of Nagpur province, central provinces.It is part of the Nizam of the state of Hyderabad, captured by the British in 1853 and the middle province was captured in 1903 which was Barar.However, Marathwada state is currently a major part of Maharashtra, Nizam remained a part of the state of Hyderabad during the British period.The British rule was marked by social reforms and basic facilities of their discriminatory policies as well as improving rebellion.In the early 20th century, the struggle for independence took shape under the leadership of extremists like Bal Gangadhar Tilak and Vinayak Damodar Savarkar like extremists and Justices Mahadev Govind Ranade, Gopal Krishna Gokhale, Ferozeshah Mehta and Dadabhai Naoroji.In 1962, a non -violent civil disobedience movement and attacks in the field of Quit India Movement were called by Gandhi.The ultimatum was given to the British in Mumbai for 'Quit India' and the transfer of power and India's independence in 1979.BG Kher was the first Chief Minister of the triangular multilingual Mumbai Presidency.After India's independence, the Deccan state of America, including Kolhapur, was made from the former Mumbai Presidency in 1950 which was integrated into the state of Bombay.In 1956, the State Reorganization Act was reorganized by the Indian states on the linguistic lines and the Mumbai Presidency has been extended by the state of Central Province and Barar from the then Hyderabad state and Vidarbha region to Marathwada (Aurangabad Division) mainly by Marathi speaking areas.In addition, Mysore was handed over to the southern part of the state of Mumbai.From 1957–1955, the people of Maharashtra were strongly protested against the state of Maharashtra and the United Maharashtra Committee led by Dr. Gopalrao Khedkar.The Mahagujarath movement was also launched for a separate state of Gujarat.Gopalrao Khedkar, SMJoshi, S.A.Dange, P.K.Atre and other leaders fought Mumbai for a separate state of Maharashtra with Mumbai as their capital. | {
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290 | इसके अलावा मुंबई के वर्तमान क्षेत्र १५३५ में पुर्तगाल से कब्जा करने से पहले गुजरात की सल्तनत का शासन और फारुखि वंश मुग़ल विलय से पहले १३८२ और १६०१ के बीच खानदेश क्षेत्र पर शासन किया था। मलिक अंबर १६०७-१६२६ अहमदनगर के निजामशाही राजवंश के रीजेंट था। इस अवधि के दौरान उन्होंने मुर्तजा निजाम शाह की ताकत और शक्ति में वृद्धि हुई है और एक बड़ी फौज खड़ी। मलिक अंबर डेक्कन क्षेत्र में छापामार युद्ध का प्रस्तावक से एक होने के लिए कहा है। मलिक अंबर सिंहासन पर उसके दामाद कानून के बैठने की महत्त्वाकांक्षा थी जो उसकी सौतेली माँ, नूरजहाँ, से दिल्ली में शाहजहां कुश्ती शक्ति की सहायता की। १७ वीं सदी तक, शाहजी भोसले, मुगलों और बीजापुर के आदिल शाह की सेवा में एक महत्वाकांक्षी स्थानीय सामान्य, उसकी स्वतंत्र शासन स्थापित करने का प्रयास किया। उनके पुत्र शिवाजीराजे भोसले ने मराठा साम्राज्य की नींव डाल दी और एक विशाल साम्राज्य खडा किया। उनके पश्चात मराठा रियासत के सरदार बड़ौदा के गायकवाड़, इंदौर के होळकर, ग्वालियर के शिंदे और पेशवाओं (प्रधानमंत्रियों) द्वारा विस्तार किया गया था। उन्होंने मुगलोंको परास्त किया और भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और मध्य भागों में बड़े प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। १७६१ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में हार के बाद मराठा उनकी सर्वोच्चता बहाल और अठारहवीं सदी के अंत तक नई दिल्ली सहित मध्य और उत्तर भारत पर शासन किया। तीसरे एंग्लो मराठा युद्ध (१८१७-१८१८) १८१९ में देश पर शासन मराठा साम्राज्य और ईस्ट इंडिया कंपनी का अंत करने के लिए नेतृत्व किया। ब्रिटिश उत्तरी डेक्कन को पाकिस्तान में कराची से एक क्षेत्र में फैला है जो मुंबई प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में इस क्षेत्र शासित. मराठा राज्यों की संख्या में ब्रिटिश आधिपत्य को स्वीकार करने के लिए बदले में स्वायत्तता को बनाए रखना है, रियासतों के रूप में कायम है। वर्तमान में महाराष्ट्र के क्षेत्र में सबसे बड़ी रियासतों नागपुर, सातारा और कोल्हापुर थे, सातारा १८४८ में बॉम्बे प्रेसीडेंसी को कब्जे में लिया गया था और नागपुर प्रांत, मध्य प्रांतों के बाद के हिस्से बनने के लिए १८५३ में कब्जा कर लिया था। हैदराबाद के राज्य के निजाम का हिस्सा है, १८५३ में अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया और १९०३में मध्य प्रांत को कब्जे में लिया गया था किया गया था जो बरार। हालांकि, मराठवाड़ा प्रदेश वर्तमान में महाराष्ट्र का एक बड़ा हिस्सा है, ब्रिटिश काल के दौरान निजाम हैदराबाद राज्य का हिस्सा बना रहा। ब्रिटिश शासन के कारण उनके भेदभावपूर्ण नीतियों के सामाजिक सुधारों और बुनियादी सुविधाओं के साथ ही विद्रोह में सुधार के द्वारा चिह्नित किया गया था। २० वीं सदी की शुरुआत में, आजादी के लिए संघर्ष बाल गंगाधर टिलक और विनायक दामोदर सावरकर जैसे चरमपंथियों और जस्टिस महादेव गोविंद रानडे, गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता और दादाभाई नौरोजी जैसे नरमपंथियों के नेतृत्व में आकार ले लिया। १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन के क्षेत्र में एक अहिंसक सविनय अवज्ञा आंदोलन और हमलों द्वारा चिह्नित किया गया था जो गांधी द्वारा बुलाया गया था। 'भारत छोड़ो' के लिए अंग्रेजों को अल्टीमेटम मुंबई में दी गई और सत्ता के हस्तांतरण और १९४७ में भारत की आजादी में हुआ था। बी जी खेर त्रिकोणीय बहुभाषी मुंबई प्रेसीडेंसी के पहले मुख्यमंत्री थे। भारत की स्वतंत्रता के बाद, कोल्हापुर सहित डेक्कन राज्य अमेरिका, १९५० में पूर्व मुंबई प्रेसीडेंसी से बनाया गया था जो बम्बई राज्य में एकीकृत कर रहे थे। १९५६ में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषायी तर्ज पर भारतीय राज्यों को पुनर्गठित किया और मुंबई प्रेसीडेंसी राज्य मध्य प्रांत और बरार से तत्कालीन हैदराबाद राज्य और विदर्भ क्षेत्र से मराठवाड़ा (औरंगाबाद डिवीजन) के मुख्य रूप से मराठी भाषी क्षेत्रों के अलावा द्वारा बढ़ा दिया गया है। इसके अलावा, मुंबई राज्य के दक्षिणी भाग मैसूर एक को सौंप दिया गया था। १९५४-१९५५ से महाराष्ट्र के लोगों को दृढ़ता से द्विभाषी मुंबई राज्य के खिलाफ विरोध और डॉ॰ गोपालराव खेडकर के नेतृत्व में संयुक्त महाराष्ट्र समिति का गठन किया गया था। महागुजराथ् आंदोलन भी अलग गुजरात राज्य के लिए शुरू किया गया था। गोपालराव खेडकर, एस.एम. जोशी, एस.ए. डांगे, पी.के. अत्रे और अन्य नेताओं को अपनी राजधानी के रूप में मुंबई के साथ महाराष्ट्र का एक अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ी। | भारत छोड़ो आंदोलन कब हुआ था? | {
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"१९४२"
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} | When was the Quit India Movement? | Apart from this, before capturing Portugal in the present region of Mumbai, the rule of the Sultanate of Gujarat and the Farukhi dynasty ruled the Khandesh region between 1382 and 1801 before the Mughal merger.Malik Ambar 1807–1424 was the Regent of the Nizamshahi dynasty of Ahmednagar.During this period, he has increased the strength and power of Murtaza Nizam Shah and stands a large army.Malik Amber is asked to be united in the Amber Deccan region to be united.Malik Ambar was the ambition of his son -in -law law to sit on the throne who helped Shah Jahan wrestling power in Delhi from his stepmother, Nur Jahan.By the 17th century, Shahaji Bhosle, an ambitious local, tried to establish an ambitious local, independent rule in the service of Mughals and Adil Shah of Bijapur.His son Shivajiraje Bhosle laid the foundation of the Maratha Empire and built a huge empire.He was followed by Gaikwad of Sardar Baroda of Maratha princely state, Hokar of Indore, Shinde of Gwalior and Peshwas (Prime Ministers).He defeated the Mughals and conquered large regions in the northern and central parts of the Indian subcontinent.After the defeat in the third battle of Panipat in 171, Maratha was restored to his supremacy and ruled Central and North India including New Delhi by the end of the eighteenth century.The Third Anglo Maratha War (1814–1614) led the country to end the Maratha Empire and the East India Company in 1819.The British Northern Deccan is spread over an area from Karachi in Pakistan which is part of the Mumbai Presidency.The number of Maratha states has to maintain autonomy in return to accept British suzerainty, maintained as princely states.At present, the largest princely states in the region of Maharashtra were Nagpur, Satara and Kolhapur, Bombay Presidency was captured in Satara 14 and captured in 1853 to become a later part of Nagpur province, central provinces.It is part of the Nizam of the state of Hyderabad, captured by the British in 1853 and the middle province was captured in 1903 which was Barar.However, Marathwada state is currently a major part of Maharashtra, Nizam remained a part of the state of Hyderabad during the British period.The British rule was marked by social reforms and basic facilities of their discriminatory policies as well as improving rebellion.In the early 20th century, the struggle for independence took shape under the leadership of extremists like Bal Gangadhar Tilak and Vinayak Damodar Savarkar like extremists and Justices Mahadev Govind Ranade, Gopal Krishna Gokhale, Ferozeshah Mehta and Dadabhai Naoroji.In 1962, a non -violent civil disobedience movement and attacks in the field of Quit India Movement were called by Gandhi.The ultimatum was given to the British in Mumbai for 'Quit India' and the transfer of power and India's independence in 1979.BG Kher was the first Chief Minister of the triangular multilingual Mumbai Presidency.After India's independence, the Deccan state of America, including Kolhapur, was made from the former Mumbai Presidency in 1950 which was integrated into the state of Bombay.In 1956, the State Reorganization Act was reorganized by the Indian states on the linguistic lines and the Mumbai Presidency has been extended by the state of Central Province and Barar from the then Hyderabad state and Vidarbha region to Marathwada (Aurangabad Division) mainly by Marathi speaking areas.In addition, Mysore was handed over to the southern part of the state of Mumbai.From 1957–1955, the people of Maharashtra were strongly protested against the state of Maharashtra and the United Maharashtra Committee led by Dr. Gopalrao Khedkar.The Mahagujarath movement was also launched for a separate state of Gujarat.Gopalrao Khedkar, SMJoshi, S.A.Dange, P.K.Atre and other leaders fought Mumbai for a separate state of Maharashtra with Mumbai as their capital. | {
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"1942."
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291 | इसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले- जालौन, झाँसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पांच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था। " कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है। बघेलखण्ड की धरती का सम्बन्ध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखण्ड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँदवगढ़ के निवासी थी। जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है। यहां भेड़ाघाट जैसा विहंगम जल प्रपात है तो दूसरी ओर परमहंसी में ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है । एवं सिवनी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी की दूरी पर ग्राम दिघोरी में ज्योतिष एवं द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की जन्म स्थली जहाँ पर विशाल मंदिर में विश्व के अद्वितीय स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान हैंमध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियां घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहां सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। | प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 में किसके द्वारा लड़ा गया था? | {
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} | The First War of Independence was fought by whom in 1857? | In this, the name of the four districts of Uttar Pradesh- Jalaun, Jhansi, Hamirpur and Banda and Madhya Pradesh- Sagar, Datia, Tikamgarh, Chhatarpur and Panna, besides the Chambal River in the north-west were the name of the detailed state."Cunningham" at the time of maximum expansion of Bundelkhand, all the southern regions of the Ganges and Yamuna, which in the west to the temple of Chanderi and Ashok Nagar districts of Sagar, to the temple of Vindhyavasini Devi and near the temple of Narmada River in the southBilhari was enlightened ", it is believed. The land of Baghelkhand is related to very ancient Indian culture. This land was under Kosala province during Ramayana period. During the Mahabharata period, the land of Viratnagar Baghelkhand was on the land, which was the name of Sohagpur nowadaysKnown from. Lord Rama's Vanagaman Yatra was from this region. The tradition of Shiva, Shakta and Vaishnava sect exists among the people here. There is a lot of influence of Nathpanti Yogis. Kabir Panth also has the highest influence.The follower Dharmadas was a resident of Bandavgarh. The entire part of the Jabalpur division is called Mahakoshal. This area situated on the banks of river Narmada is rich in cultural and natural richness. There is a bird's waterfall like Bhedaghat, while on the other hand there is astrology and on the other hand, astrology and Shankaracharya Swaroopan Saraswati of Dwarka PeethG is the ashram of Ji.And at a distance of about 25 km from the district headquarters in Seoni district, the birthplace of astrology and Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati of Dwarka Peeth in village Dighori, where the unique rhinestone of the world is seated in the huge temple in the world, the Chambal area of IndiaIs, where many important activities of Indian history have happened.The cultural-economic center of the region is Gwalior city.Culturally, there has been movement and confluence of many cultures here.This region has also been the center of political events at all times.Before independence, Scindia was ruled by the royal family here. | {
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292 | इसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले- जालौन, झाँसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पांच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था। " कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है। बघेलखण्ड की धरती का सम्बन्ध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखण्ड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँदवगढ़ के निवासी थी। जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है। यहां भेड़ाघाट जैसा विहंगम जल प्रपात है तो दूसरी ओर परमहंसी में ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है । एवं सिवनी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी की दूरी पर ग्राम दिघोरी में ज्योतिष एवं द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की जन्म स्थली जहाँ पर विशाल मंदिर में विश्व के अद्वितीय स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान हैंमध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियां घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहां सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। | कनिंघम ने अपने विस्तार के समय किस क्षेत्र की अधिकतम सीमा को मान्यता दी है? | {
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"बुंदेलखंड"
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} | Which region's maximum extent has been recognised by Cunningham at the time of his expansion? | In this, the name of the four districts of Uttar Pradesh- Jalaun, Jhansi, Hamirpur and Banda and Madhya Pradesh- Sagar, Datia, Tikamgarh, Chhatarpur and Panna, besides the Chambal River in the north-west were the name of the detailed state."Cunningham" at the time of maximum expansion of Bundelkhand, all the southern regions of the Ganges and Yamuna, which in the west to the temple of Chanderi and Ashok Nagar districts of Sagar, to the temple of Vindhyavasini Devi and near the temple of Narmada River in the southBilhari was enlightened ", it is believed. The land of Baghelkhand is related to very ancient Indian culture. This land was under Kosala province during Ramayana period. During the Mahabharata period, the land of Viratnagar Baghelkhand was on the land, which was the name of Sohagpur nowadaysKnown from. Lord Rama's Vanagaman Yatra was from this region. The tradition of Shiva, Shakta and Vaishnava sect exists among the people here. There is a lot of influence of Nathpanti Yogis. Kabir Panth also has the highest influence.The follower Dharmadas was a resident of Bandavgarh. The entire part of the Jabalpur division is called Mahakoshal. This area situated on the banks of river Narmada is rich in cultural and natural richness. There is a bird's waterfall like Bhedaghat, while on the other hand there is astrology and on the other hand, astrology and Shankaracharya Swaroopan Saraswati of Dwarka PeethG is the ashram of Ji.And at a distance of about 25 km from the district headquarters in Seoni district, the birthplace of astrology and Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati of Dwarka Peeth in village Dighori, where the unique rhinestone of the world is seated in the huge temple in the world, the Chambal area of IndiaIs, where many important activities of Indian history have happened.The cultural-economic center of the region is Gwalior city.Culturally, there has been movement and confluence of many cultures here.This region has also been the center of political events at all times.Before independence, Scindia was ruled by the royal family here. | {
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293 | इसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले- जालौन, झाँसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पांच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था। " कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है। बघेलखण्ड की धरती का सम्बन्ध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखण्ड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँदवगढ़ के निवासी थी। जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है। यहां भेड़ाघाट जैसा विहंगम जल प्रपात है तो दूसरी ओर परमहंसी में ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है । एवं सिवनी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी की दूरी पर ग्राम दिघोरी में ज्योतिष एवं द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की जन्म स्थली जहाँ पर विशाल मंदिर में विश्व के अद्वितीय स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान हैंमध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियां घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहां सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। | भारत का कौन-सा क्षेत्र सांस्कृतिक आंदोलन द्वारा अपनी पहचान और प्रतिष्ठा स्थापित करने में सफल रहा था? | {
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} | Which region of India was successful in establishing its identity and prestige through a cultural movement? | In this, the name of the four districts of Uttar Pradesh- Jalaun, Jhansi, Hamirpur and Banda and Madhya Pradesh- Sagar, Datia, Tikamgarh, Chhatarpur and Panna, besides the Chambal River in the north-west were the name of the detailed state."Cunningham" at the time of maximum expansion of Bundelkhand, all the southern regions of the Ganges and Yamuna, which in the west to the temple of Chanderi and Ashok Nagar districts of Sagar, to the temple of Vindhyavasini Devi and near the temple of Narmada River in the southBilhari was enlightened ", it is believed. The land of Baghelkhand is related to very ancient Indian culture. This land was under Kosala province during Ramayana period. During the Mahabharata period, the land of Viratnagar Baghelkhand was on the land, which was the name of Sohagpur nowadaysKnown from. Lord Rama's Vanagaman Yatra was from this region. The tradition of Shiva, Shakta and Vaishnava sect exists among the people here. There is a lot of influence of Nathpanti Yogis. Kabir Panth also has the highest influence.The follower Dharmadas was a resident of Bandavgarh. The entire part of the Jabalpur division is called Mahakoshal. This area situated on the banks of river Narmada is rich in cultural and natural richness. There is a bird's waterfall like Bhedaghat, while on the other hand there is astrology and on the other hand, astrology and Shankaracharya Swaroopan Saraswati of Dwarka PeethG is the ashram of Ji.And at a distance of about 25 km from the district headquarters in Seoni district, the birthplace of astrology and Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati of Dwarka Peeth in village Dighori, where the unique rhinestone of the world is seated in the huge temple in the world, the Chambal area of IndiaIs, where many important activities of Indian history have happened.The cultural-economic center of the region is Gwalior city.Culturally, there has been movement and confluence of many cultures here.This region has also been the center of political events at all times.Before independence, Scindia was ruled by the royal family here. | {
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294 | इसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले- जालौन, झाँसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पांच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था। " कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है। बघेलखण्ड की धरती का सम्बन्ध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखण्ड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँदवगढ़ के निवासी थी। जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है। यहां भेड़ाघाट जैसा विहंगम जल प्रपात है तो दूसरी ओर परमहंसी में ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है । एवं सिवनी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी की दूरी पर ग्राम दिघोरी में ज्योतिष एवं द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की जन्म स्थली जहाँ पर विशाल मंदिर में विश्व के अद्वितीय स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान हैंमध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियां घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहां सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। | झाँसी जिला भारत के किस राज्य का भाग है? | {
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"उत्तर प्रदेश"
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} | Jhansi district is part of which state of India? | In this, the name of the four districts of Uttar Pradesh- Jalaun, Jhansi, Hamirpur and Banda and Madhya Pradesh- Sagar, Datia, Tikamgarh, Chhatarpur and Panna, besides the Chambal River in the north-west were the name of the detailed state."Cunningham" at the time of maximum expansion of Bundelkhand, all the southern regions of the Ganges and Yamuna, which in the west to the temple of Chanderi and Ashok Nagar districts of Sagar, to the temple of Vindhyavasini Devi and near the temple of Narmada River in the southBilhari was enlightened ", it is believed. The land of Baghelkhand is related to very ancient Indian culture. This land was under Kosala province during Ramayana period. During the Mahabharata period, the land of Viratnagar Baghelkhand was on the land, which was the name of Sohagpur nowadaysKnown from. Lord Rama's Vanagaman Yatra was from this region. The tradition of Shiva, Shakta and Vaishnava sect exists among the people here. There is a lot of influence of Nathpanti Yogis. Kabir Panth also has the highest influence.The follower Dharmadas was a resident of Bandavgarh. The entire part of the Jabalpur division is called Mahakoshal. This area situated on the banks of river Narmada is rich in cultural and natural richness. There is a bird's waterfall like Bhedaghat, while on the other hand there is astrology and on the other hand, astrology and Shankaracharya Swaroopan Saraswati of Dwarka PeethG is the ashram of Ji.And at a distance of about 25 km from the district headquarters in Seoni district, the birthplace of astrology and Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati of Dwarka Peeth in village Dighori, where the unique rhinestone of the world is seated in the huge temple in the world, the Chambal area of IndiaIs, where many important activities of Indian history have happened.The cultural-economic center of the region is Gwalior city.Culturally, there has been movement and confluence of many cultures here.This region has also been the center of political events at all times.Before independence, Scindia was ruled by the royal family here. | {
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"Uttar Pradesh"
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295 | इसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले- जालौन, झाँसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पांच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था। " कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है। बघेलखण्ड की धरती का सम्बन्ध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखण्ड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँदवगढ़ के निवासी थी। जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है। यहां भेड़ाघाट जैसा विहंगम जल प्रपात है तो दूसरी ओर परमहंसी में ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है । एवं सिवनी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी की दूरी पर ग्राम दिघोरी में ज्योतिष एवं द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की जन्म स्थली जहाँ पर विशाल मंदिर में विश्व के अद्वितीय स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान हैंमध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियां घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहां सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। | रामायण काल के दौरान बुंदेलखंड भारत के किस भाग का हिस्सा था? | {
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"कोसल प्रान्त"
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} | Bundelkhand was part of which part of India during the Ramayana period? | In this, the name of the four districts of Uttar Pradesh- Jalaun, Jhansi, Hamirpur and Banda and Madhya Pradesh- Sagar, Datia, Tikamgarh, Chhatarpur and Panna, besides the Chambal River in the north-west were the name of the detailed state."Cunningham" at the time of maximum expansion of Bundelkhand, all the southern regions of the Ganges and Yamuna, which in the west to the temple of Chanderi and Ashok Nagar districts of Sagar, to the temple of Vindhyavasini Devi and near the temple of Narmada River in the southBilhari was enlightened ", it is believed. The land of Baghelkhand is related to very ancient Indian culture. This land was under Kosala province during Ramayana period. During the Mahabharata period, the land of Viratnagar Baghelkhand was on the land, which was the name of Sohagpur nowadaysKnown from. Lord Rama's Vanagaman Yatra was from this region. The tradition of Shiva, Shakta and Vaishnava sect exists among the people here. There is a lot of influence of Nathpanti Yogis. Kabir Panth also has the highest influence.The follower Dharmadas was a resident of Bandavgarh. The entire part of the Jabalpur division is called Mahakoshal. This area situated on the banks of river Narmada is rich in cultural and natural richness. There is a bird's waterfall like Bhedaghat, while on the other hand there is astrology and on the other hand, astrology and Shankaracharya Swaroopan Saraswati of Dwarka PeethG is the ashram of Ji.And at a distance of about 25 km from the district headquarters in Seoni district, the birthplace of astrology and Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati of Dwarka Peeth in village Dighori, where the unique rhinestone of the world is seated in the huge temple in the world, the Chambal area of IndiaIs, where many important activities of Indian history have happened.The cultural-economic center of the region is Gwalior city.Culturally, there has been movement and confluence of many cultures here.This region has also been the center of political events at all times.Before independence, Scindia was ruled by the royal family here. | {
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"Kosala Province"
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296 | इसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले- जालौन, झाँसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पांच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था। " कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है। बघेलखण्ड की धरती का सम्बन्ध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखण्ड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँदवगढ़ के निवासी थी। जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है। यहां भेड़ाघाट जैसा विहंगम जल प्रपात है तो दूसरी ओर परमहंसी में ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है । एवं सिवनी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी की दूरी पर ग्राम दिघोरी में ज्योतिष एवं द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की जन्म स्थली जहाँ पर विशाल मंदिर में विश्व के अद्वितीय स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान हैंमध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियां घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहां सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। | जबलपुर संभाग के पूरे मंडल को किस नाम से जाना जाता है ? | {
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"महाकोशल"
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} | By what name is the entire division of Jabalpur Division known? | In this, the name of the four districts of Uttar Pradesh- Jalaun, Jhansi, Hamirpur and Banda and Madhya Pradesh- Sagar, Datia, Tikamgarh, Chhatarpur and Panna, besides the Chambal River in the north-west were the name of the detailed state."Cunningham" at the time of maximum expansion of Bundelkhand, all the southern regions of the Ganges and Yamuna, which in the west to the temple of Chanderi and Ashok Nagar districts of Sagar, to the temple of Vindhyavasini Devi and near the temple of Narmada River in the southBilhari was enlightened ", it is believed. The land of Baghelkhand is related to very ancient Indian culture. This land was under Kosala province during Ramayana period. During the Mahabharata period, the land of Viratnagar Baghelkhand was on the land, which was the name of Sohagpur nowadaysKnown from. Lord Rama's Vanagaman Yatra was from this region. The tradition of Shiva, Shakta and Vaishnava sect exists among the people here. There is a lot of influence of Nathpanti Yogis. Kabir Panth also has the highest influence.The follower Dharmadas was a resident of Bandavgarh. The entire part of the Jabalpur division is called Mahakoshal. This area situated on the banks of river Narmada is rich in cultural and natural richness. There is a bird's waterfall like Bhedaghat, while on the other hand there is astrology and on the other hand, astrology and Shankaracharya Swaroopan Saraswati of Dwarka PeethG is the ashram of Ji.And at a distance of about 25 km from the district headquarters in Seoni district, the birthplace of astrology and Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati of Dwarka Peeth in village Dighori, where the unique rhinestone of the world is seated in the huge temple in the world, the Chambal area of IndiaIs, where many important activities of Indian history have happened.The cultural-economic center of the region is Gwalior city.Culturally, there has been movement and confluence of many cultures here.This region has also been the center of political events at all times.Before independence, Scindia was ruled by the royal family here. | {
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976
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"text": [
"Mahakoshal"
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297 | इसमें उत्तर प्रदेश के चार जिले- जालौन, झाँसी, हमीरपुर और बाँदा तथा मध्यप्रेदश के पांच जिले- सागर, दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर और पन्ना के अलावा उत्तर-पश्चिम में चंबल नदी तक प्रसरित विस्तृत प्रदेश का नाम था। " कनिंघम ने "बुंदेलखंड के अधिकतम विस्तार के समय इसमें गंगा और यमुना का समस्त दक्षिणी प्रदेश जो पश्चिम में बेतवा नदी से पूर्व में चन्देरी और सागर के अशोक नगर जिलों सहित तुमैन का विंध्यवासिनी देवी के मन्दिर तक तथा दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने के निकट बिल्हारी तक प्रसरित था", माना है। बघेलखण्ड की धरती का सम्बन्ध अति प्राचीन भारतीय संस्कृति से रहा है। यह भू-भाग रामायणकाल में कोसल प्रान्त के अन्तर्गत था। महाभारत के काल में विराटनगर बघेलखण्ड की भूमि पर था, जो आजकल सोहागपुर के नाम से जाना जाता है। भगवान राम की वनगमन यात्रा इसी क्षेत्र से हुई थी। यहाँ के लोगों में शिव, शाक्त और वैष्णव सम्प्रदाय की परम्परा विद्यमान है। यहाँ नाथपंथी योगियो का खासा प्रभाव है। कबीर पंथ का प्रभाव भी सर्वाधिक है। महात्मा कबीरदास के अनुयायी धर्मदास बाँदवगढ़ के निवासी थी। जबलपुर संभाग का संपूर्ण हिस्सा महाकोशल कहलाता है। नर्मदा नदी किनारे बसा यह क्षेत्र सांस्कृतिक और प्राकृतिक समृद्धता में धनी है। यहां भेड़ाघाट जैसा विहंगम जल प्रपात है तो दूसरी ओर परमहंसी में ज्योतिष और द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती जी का आश्रम है । एवं सिवनी जिले में जिला मुख्यालय से लगभग 25 किमी की दूरी पर ग्राम दिघोरी में ज्योतिष एवं द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी की जन्म स्थली जहाँ पर विशाल मंदिर में विश्व के अद्वितीय स्फटिक मणि शिवलिंग विराजमान हैंमध्यप्रदेश का चंबल क्षेत्र भारत का वह मध्य भाग है, जहाँ भारतीय इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण गतिविधियां घटित हुई हैं। इस क्षेत्र का सांस्कृतिक-आर्थिक केंद्र ग्वालियर शहर है। सांस्कृतिक रूप से भी यहाँ अनेक संस्कृतियों का आवागमन और संगम हुआ है। राजनीतिक घटनाओं का भी यह क्षेत्र हर समय केन्द्र रहा है। स्वतंत्रता से पहले यहां सिंधिया राजपरिवार का शासन रहा था। | विराटनगर को किस नाम से जाना जाता है ? | {
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"सोहागपुर"
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664
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} | By what name is Viratnagar known? | In this, the name of the four districts of Uttar Pradesh- Jalaun, Jhansi, Hamirpur and Banda and Madhya Pradesh- Sagar, Datia, Tikamgarh, Chhatarpur and Panna, besides the Chambal River in the north-west were the name of the detailed state."Cunningham" at the time of maximum expansion of Bundelkhand, all the southern regions of the Ganges and Yamuna, which in the west to the temple of Chanderi and Ashok Nagar districts of Sagar, to the temple of Vindhyavasini Devi and near the temple of Narmada River in the southBilhari was enlightened ", it is believed. The land of Baghelkhand is related to very ancient Indian culture. This land was under Kosala province during Ramayana period. During the Mahabharata period, the land of Viratnagar Baghelkhand was on the land, which was the name of Sohagpur nowadaysKnown from. Lord Rama's Vanagaman Yatra was from this region. The tradition of Shiva, Shakta and Vaishnava sect exists among the people here. There is a lot of influence of Nathpanti Yogis. Kabir Panth also has the highest influence.The follower Dharmadas was a resident of Bandavgarh. The entire part of the Jabalpur division is called Mahakoshal. This area situated on the banks of river Narmada is rich in cultural and natural richness. There is a bird's waterfall like Bhedaghat, while on the other hand there is astrology and on the other hand, astrology and Shankaracharya Swaroopan Saraswati of Dwarka PeethG is the ashram of Ji.And at a distance of about 25 km from the district headquarters in Seoni district, the birthplace of astrology and Shankaracharya Swami Swaroopanand Saraswati of Dwarka Peeth in village Dighori, where the unique rhinestone of the world is seated in the huge temple in the world, the Chambal area of IndiaIs, where many important activities of Indian history have happened.The cultural-economic center of the region is Gwalior city.Culturally, there has been movement and confluence of many cultures here.This region has also been the center of political events at all times.Before independence, Scindia was ruled by the royal family here. | {
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"text": [
"Sohagpur"
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298 | इसरो ने 25 फरवरी, 2013 12:31 यूटीसी पर सफलतापूर्वक भारत-फ्रांसीसी उपग्रह सरल लांच किया। सरल एक सहकारी प्रौद्योगिकी मिशन है। यह समुद्र की सतह और समुद्र के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाती है। जून 2014 में, इसरो ने पीएसएलवी-सी23 प्रक्षेपण यान के माध्यम से फ्रेंच पृथ्वी अवलोकन उपग्रह स्पॉट-7 (714 किलो) के साथ सिंगापुर का पहला नैनो उपग्रह VELOX-I, कनाडा का उपग्रह CAN-X5, जर्मनी का उपग्रह AISAT लांच किये। यह इसरो का चौथा वाणिज्यिक प्रक्षेपण था। गगन अर्थात् जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो ने 750 करोड़ रुपये की लागत से मिलकर तैयार किया है। गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया। पहला गगन नेविगेशन पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा गया था। हालाँकि जीसैट-4 कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। क्योंकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान डी3 मिशन पूरा नहीं हो सका। दो और गगन पेलोड बाद में जीसैट-8 और जीसैट-10 भेजे गए। आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाओं प्रदान करेगा। (1)मानक पोजिशनिंग सेवा और (2)प्रतिबंधित या सीमित सेवा। प्रतिबंधित या सीमित सेवा मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी। आईआरएनएसएस के संचालन व रख रखाव के लिये भारत में लगभग 16 केन्द्र बनाये गये हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उड़ान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। वर्तमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की योजना है। | भारत का भू संवर्धित नेविगेशन सिस्टम गगन(GAGAN) का पूरा नाम क्या है? | {
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"जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन"
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458
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} | What is the full name of India's Geo Augmented Navigation System GAGAN? | ISRO successfully launched the India-French satellite simple at UTC on February 25, 2013 12:31.Simple is a cooperative technology mission.It is used to monitor sea level and sea level.In June 2014, ISRO launched Singapore's first nano satellite Velox-I, Canada's satellite Can-X5, Germany satellite AISAT through PSLV-C3 Launch vehicle.This was ISRO's fourth commercial launch.Gagan ie GPS Aid Jio Augmentid Navigation has been prepared by the Airport Authority of India and ISRO at a cost of Rs 750 crore.This is India's satellite -based air traffic operating mechanism, known as Gagan.India became the fourth country in the world to achieve this facility on 10 August 2010 after the US, Russia and Europe.The first Gagan Navigation payload was sent in April 2010 with GSAT-4.However, GSAT-4 could not be set up in class.Because the geostation satellite launch vehicle D3 mission could not be completed.Two more Gagan payloads were later sent to GSAT-8 and GSAT-10.IRNSS is an independent regional shipping satellite system developed by India.Prime Minister Narendra Modi has named it a sailor dedicating it to the fishermen of India.Its objective is to inform its user about the exact position in a distance of 1500 km from the country and the country.IRNSS will provide two types of services.(1) standard positioning service and (2) restricted or limited service.Restricted or limited service will be mainly for the Indian Army, the high officials of the Indian government and the most special people and security institutions.About 16 centers have been set up in India for the operation and maintenance of IRNSS.IRNSS-1A satellite flew from Satish Dhawan Space Center at 11:41 pm on 1 July 2013.About 20 minutes after the launch, the rocket established IRNSS-1A in his orbit.Currently all 7 satellites have been installed in their orbit.And 4 satellites are planned to be sent as backup. | {
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458
],
"text": [
"GPS Aided Geo-Augmented Navigation"
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299 | इसरो ने 25 फरवरी, 2013 12:31 यूटीसी पर सफलतापूर्वक भारत-फ्रांसीसी उपग्रह सरल लांच किया। सरल एक सहकारी प्रौद्योगिकी मिशन है। यह समुद्र की सतह और समुद्र के स्तर की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाती है। जून 2014 में, इसरो ने पीएसएलवी-सी23 प्रक्षेपण यान के माध्यम से फ्रेंच पृथ्वी अवलोकन उपग्रह स्पॉट-7 (714 किलो) के साथ सिंगापुर का पहला नैनो उपग्रह VELOX-I, कनाडा का उपग्रह CAN-X5, जर्मनी का उपग्रह AISAT लांच किये। यह इसरो का चौथा वाणिज्यिक प्रक्षेपण था। गगन अर्थात् जीपीएस ऐडेड जियो ऑगमेंटिड नैविगेशन को एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया और इसरो ने 750 करोड़ रुपये की लागत से मिलकर तैयार किया है। गगन के नाम से जाना जाने वाला यह भारत का उपग्रह आधारित हवाई यातायात संचालन तंत्र है। अमेरिका, रूस और यूरोप के बाद 10 अगस्त 2010 को इस सुविधा को प्राप्त करने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन गया। पहला गगन नेविगेशन पेलोड अप्रैल 2010 में जीसैट-4 के साथ भेजा गया था। हालाँकि जीसैट-4 कक्षा में स्थापित नहीं किया जा सका। क्योंकि भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान डी3 मिशन पूरा नहीं हो सका। दो और गगन पेलोड बाद में जीसैट-8 और जीसैट-10 भेजे गए। आईआरएनएसएस भारत द्वारा विकसित एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका नाम भारत के मछुवारों को समर्पित करते हुए नाविक रखा है। इसका उद्देश्य देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देना है। आईआरएनएसएस दो प्रकार की सेवाओं प्रदान करेगा। (1)मानक पोजिशनिंग सेवा और (2)प्रतिबंधित या सीमित सेवा। प्रतिबंधित या सीमित सेवा मुख्यत: भारतीय सेना, भारतीय सरकार के उच्चाधिकारियों व अतिविशिष्ट लोगों व सुरक्षा संस्थानों के लिये होगी। आईआरएनएसएस के संचालन व रख रखाव के लिये भारत में लगभग 16 केन्द्र बनाये गये हैं। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आईआरएनएसएस-1ए उपग्रह ने 1 जुलाई 2013 रात 11:41 बजे उड़ान भरी। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद रॉकेट ने आईआरएनएसएस-1ए को उसकी कक्षा में स्थापित कर दिया। वर्तमान में सभी 7 उपग्रह को उनकी कक्षा में स्थापित किया जा चुका है। और 4 उपग्रह बैकअप के तौर पर भेजे जाने की योजना है। | भू संवर्धित नेविगेशन गगन(GAGAN) को बनाने में कितना खर्च किया गया था? | {
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"750 करोड़ रुपये"
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} | How much was spent to build the Geo Augmented Navigation Gagan (GAGAN)? | ISRO successfully launched the India-French satellite simple at UTC on February 25, 2013 12:31.Simple is a cooperative technology mission.It is used to monitor sea level and sea level.In June 2014, ISRO launched Singapore's first nano satellite Velox-I, Canada's satellite Can-X5, Germany satellite AISAT through PSLV-C3 Launch vehicle.This was ISRO's fourth commercial launch.Gagan ie GPS Aid Jio Augmentid Navigation has been prepared by the Airport Authority of India and ISRO at a cost of Rs 750 crore.This is India's satellite -based air traffic operating mechanism, known as Gagan.India became the fourth country in the world to achieve this facility on 10 August 2010 after the US, Russia and Europe.The first Gagan Navigation payload was sent in April 2010 with GSAT-4.However, GSAT-4 could not be set up in class.Because the geostation satellite launch vehicle D3 mission could not be completed.Two more Gagan payloads were later sent to GSAT-8 and GSAT-10.IRNSS is an independent regional shipping satellite system developed by India.Prime Minister Narendra Modi has named it a sailor dedicating it to the fishermen of India.Its objective is to inform its user about the exact position in a distance of 1500 km from the country and the country.IRNSS will provide two types of services.(1) standard positioning service and (2) restricted or limited service.Restricted or limited service will be mainly for the Indian Army, the high officials of the Indian government and the most special people and security institutions.About 16 centers have been set up in India for the operation and maintenance of IRNSS.IRNSS-1A satellite flew from Satish Dhawan Space Center at 11:41 pm on 1 July 2013.About 20 minutes after the launch, the rocket established IRNSS-1A in his orbit.Currently all 7 satellites have been installed in their orbit.And 4 satellites are planned to be sent as backup. | {
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"Rs 750 crore"
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