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73.6
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119
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जय हिन्द
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बोलो न मुन्ना क्या सोचा तुमने?
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जुम्मन बोले-यह अलगू चौधरी की इच्छा पर निर्भर है।
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पोखर के रास्ते में उसे चोरु मिल गया|
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की दूरी पर नागरकोविल है।
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एक दिन उस चील के अंडों में से एक अंडा नीचे गिरा
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हमें गुझिया और पूरी खाने को मिलेंगी.
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उसने सीढ़ी छोड़ दी और गुस्से से मेरी तरफ़ देखा,
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पंडित जी उनके साथ बड़ी उदारता से पेश आते।
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रजनी ने यह भी बताया कि वहाँ बर्फ़ के पुतले बनाने की प्रतियोगिता होती है|
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अवश्य ही महाराज का दिमाग फिर गया है|
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सिद्धेश्वरी फिर झूठ बोल गई,
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वो किसी भी नागरिक को केवल चरमपंथ
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तुम्हें हार मान लेनी चाहियें पर वो मेंढक शायद उनकी बात नहीं सुन पा रहा था
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लड्डू की खुशबू अचानक महके,
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वह टूटे फाटक से सीधे बाहर निकल गया।
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कभी जमीन पर गिरते हुए.
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लहरों के धक्के एक-दूसरे को स्पर्श से पुलकित कर रहे थे।
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नगर नारियल के वृक्षों से ढका है।
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उन्हें बहुत अफसोस हो रहा था|
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इसको बंद कर देना चाहिए।'
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ज़रूर चित्रकारी की कक्षा ने चंदा किया होगा।
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निर्दयता और विश्वास-घातकता का
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उन्होंने तेनालीराम से पूछा कि यदि वह वापस आया तो तुम इस लिस्ट का क्या करोगे|
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'ये भूरा वाला ले लेते हैं!' अनिल ने कहा।
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लड़के वहाँ से एक फर्लांग पर हैं.
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और जैसे ही बात करने के लिए मुँह खोलती हूँ,
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और माँ ने कहा है कि कल वे पूड़ियाँ बनाने वाली हैं!
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लड्डू की खुशबू अचानक महके,
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मैं थक चुका था।
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अब बस्ती घनी होने लगी थी.
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क्या वे कह सकती हैं कि इस आठ वर्ष की मुद्दत में
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उसके क्षतों को अपनी स्निग्ध दृष्टि और
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कहो न दीदी, हूँ न मैं समझदार?
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के फिर उड़ ना पाया
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तब भी हवस नहीं मानती।
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'नाम तो तुम्हारा खास अच्छा नहीं है लेकिन, इस मामले में मैं कुछ नहीं कर सकता|
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वह जानती थी कि वह इसी दिन के लिए बनी है।
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वह भी दोपहर तक, किसी ने वह भी नहीं,
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'मोरू!' शिक्षक ने कड़क के कहा, 'तुम कुछ करते क्यों नहीं हो?'
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वे पहले आने वाले मज़दूर जैसे नहीं, दफ्तर में मेज़-कुर्सी पर काम करनेवाले लोग थे और
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ऐश्वर्य का फल क्या है?-मान और मर्यादा।
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यमुना किनारे उनका अंतिम
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और आवाज़ भी बढ़ा सकती हूँ…?
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मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था लेकिन मैंने बड़े-बड़े लोगों के इंटरव्यू देखे थे,
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जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और
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मैंने एक कदम पीछे हटाया।
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काका ने जवाब दिया।
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जज ने खड़े होकर कहा-यह कानून का न्याय नहीं, ईश्वरीय न्याय है!
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इस वक्त राजा का क्रोध भी शांत हो चुका था|
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पशु-बल और धन के उपासक के मन में किसी
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हम आपको बता रहे हैं 'मिल्कमैन ऑफ इंडिया'
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के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू किया.
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ठहरने का स्थान नागरकोविल से कन्याकुमारी की
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धनी सोच कर परेशान हो रहा था।'
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यह आदेश सुनकर तेलानीराम से नफरत करने वालों के चेहरे पर रौनक आ गई और
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जिस पर जाजिम बिछा हुआ है और
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ठहरने का स्थान नागरकोविल से कन्याकुमारी की
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'हाँ, हम तुमको आदेश देते हैं कि पेड़ से उतर जाओ!'
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आस-पास के गाँवों में ऐसा कौन था,
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एक मतवाले नाविक के शरीर से टकराती हुई
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उसके गले तथा छाती की हडि्डयाँ साफ दिखाई देती थीं।
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चंपा के दूसरे भाग में एक मनोरम शैलमाला थी।
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मैं चिल्ला-चिल्लाकर उनसे नीचे आने के लिए कहने लगा।
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बहुत से दीन दुखी,
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इसके प्रतिकूल दो सभ्य मूल के
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नाहीं घरे श्याम, घेरि आये बदरा।
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'लेकिन यह तो सरासर नाइंसाफ़ी है!
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अज्जी ने कहा, 'तुम ये लड्डू खा सकते हो।'
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दर्द में कराहती कांता को सांत्वना देती रही।
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आशीर्वाद के फूलों और खीलों को बिखेर दिया।
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उन बेकसों के साथ दगा दिया है,
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वह बड़ा ही होशियार हो गया है।
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रामचंद्र ने कुछ नहीं कहा।
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'विश्वास? कदापि नहीं, बुधगुप्त!
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किंतु, लगभग दस मिनट बीतने के
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मीनू की फोटोज लाजवाब थी।
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चंपा के एक उच्चसौध पर बैठी हुई
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'अभी नहीं, अभी नहीं। तुम्हें थोड़ा रुकना पड़ेगा!'
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उसका मुख खुला हुआ था और
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फिर सिर पर हाथ रखकर देखा,
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'धनी ने सीधे काम की बात पूछी।
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स्वाभाविक प्रवृत्ति पाप की ओर होती है,
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धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।
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दोपहर के खाने में अक्सर सबके आधे पेट रह जाने पर ख़त्म हो जाने वाले चावल से नहीं, उन दोस्तों से नहीं जिन्हें खेल जमते ही
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वह पतली सी चारपाई पर कस के आँखें मूँदे पड़ा रहा।
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शाम-सबेरे एक आदमी खरहरे करता, पोंछता और सहलाता था।
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यदि पेड़ कट जाएँगे तो यहाँ की सुन्दरता खत्म हो जाएगी।
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खाना खाया कुछ देर बाहर घूमने गए ।
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चौंककर नायक ने कहा और अपना कृपाण टटोेलने लगा!
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यही कारण है कि मुंशी जी के मृदुभाषी मातहतों को
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आनन्द साहब ने खुशी से सिर हिलाया|
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'क्या तुम इन्हें बाहर निकालने में मेरी मदद करोगे?' शिक्षक ने पूछा।
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‘ठीक-ठाक पाँच पैसे लगेंगे, लेना हो लो,
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वह बैठ गई, आँखों को मल-मलकर इधर-उधर देखा और
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इस अजीब स्थिति से मुझे खुद ही निबटना था।
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मैं अपनी हँसी सुन सकती हूँ
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मुझे क्या बेचेगा रुपय्या
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मैं सड़क की ओर देखने लगा।
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'सर मैं भी मॉडल का ही ऑडिशन देने आई हूं।'
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